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हिंदुओं की घट रही संख्या, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रही मुस्लिम-ईसाई आबादी: जनसंख्या के आँकड़ों को कैसे बदल रहा है ये धार्मिक वर्गीकरण


जनसंख्या भारत पूर्वोत्तर बंगाल

भारत एक ऐसा देश है जहाँ कई धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। यहाँ ज्यादातर लोग हिंदू धर्म से जुड़े हुए हैं। हालाँकि एक बड़ा तबका ऐसा भी है कि जो इस्लाम, ईसाइयत, सिख, बौद्ध, जैन और जनजातीय धर्मों को मानते हैं। समय के साथ धर्मों के लिहाज से जनसंख्या में भी बदलाव देखा जा रहा है।

भले ही राष्ट्रीय स्तर पर ये बदलाव बहुत अधिक महत्व न रखते हों, लेकिनअग गूढ़ता से देखा जाए तो ये बदलाव काफी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। खास तौर पर पश्चिम बंगाल, असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों में।

हमारे पास जनसंख्या के सर्वे के सबसे ताजा आंकड़े 2011 के ही मौजूद हैं। इस लिहाज से यह एक दशक से भी पुराने आँकड़े हैं जो 2001 से 2011 के बीच हुई जनसंख्या बदलाव को बता रहे हैं।

2001 से 2011 के बीच क्या बदला?

राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो हिंदुओं की जनसंख्या में कुछ कमी देखी गई है। 2001 में हिंदू जनसंख्या 80.46 % थी जो 2011 में 79.8% तक घटी। लेकिन मुस्लिम जनसंख्या में 13.43% से 14.23% का इजाफा देखा गया। यहाँ तक कि ईसाई जनसंख्या में भी थोड़ी बहुत देखी गई।

हालाँकि यह आँकड़े बहुत बड़े बदलाव तो नहीं दिखलाते लेकिन अगर इन्हें जिला स्तर पर देखा जाए तो कहानी पूरी तरह बदल जाएगी। भारत के 640 जिलों में से 468 जिलों में हिंदू जनसंख्या में गिरावट देखी गई यानी 70% से अधिक जिलों में हिंदू जनसंख्या घटी है।

इनमें से 227 जिलों में 0.7% से अधिक गिरवट देखी गई। वहीं दूसरी ओर 513 जिलों में मुस्लिम आबादी और 439 जिलों में ईसाई आबादी में बढ़ोतरी दर्ज की गई।

पश्चिम बंगाल में क्या चल रहा है?

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या में लगातार और प्रत्यक्ष तौर पर इजाफा देखा जा रहा है। मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर और उत्तर और दक्षिण 24 परगना आदि जिलों में मुस्लिम आबादी हिंदू जनसंख्या से कहीं अधिक तेजी से बढ़ रही है।

इसी वजह से हिंदुओं की संख्या में गिरावट देखी गई है। यहाँ तक कि कई जिलों हिंदुओं की जनसंख्या 1% तक कम हुई है जो राष्ट्रीय औसत से भी काफी अधिक है।

ये बदलाव महज आँकड़ों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी अपने आसपास बदलाव के साक्षी हैं। दुकानों के खुलने के प्रकार, बाजार में होने वाले शोर और आवाजें, स्कूलों की छुट्टियाँ और यहाँ तक कि स्थानीय राजनीति में भी बदलाव को देखा जा सकता है।

यह कुछ इस तरह का बदलाव है जो धीरे-धीरे बढ़ रहा है लेकिन जैसे ही यह अपने उच्चतम स्तर पर पहुँचता है तो लोगों की नजर में आता है।

असम की सीमा पर चिंता

असम में भी ज्यादातर जिलों में मुस्लिम आबादी बढ़ी है। इनमें खासतौर पर वे जिले शामिल हैं जो बांग्लादेश से सटे हुए हैं। धुबरी, बारपेटा, गोलपारा और मोरीगांव जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। स्थानीयों का मानना है कि इस पूरे बदलाव के लिए असम में क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट (सीमापार आवागमन) सबसे अधिक जिम्मेदार है।

हालाँकि जनगणना में धर्म-परिवर्तन या घुसपैठ के बारे में सीधे तौर पर सवाल नहीं पूछे जाते, लेकिन असम में रहने वाले लोग अवैध घुसपैठियों के खिलाफ वर्षों से आवाज उठा रहे हैं। राजनीतिक पार्टियाँ, स्थानीय लोग और आम नागरिक इस मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं। इस भौगोलिक बदलाव ने ही असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) और घुसपैठ के खिलाफ सत्यापन अभियानों की शुरुआत की है।

पूर्वोत्तर राज्यों में तेजी से बढ़ती ईसाई जनसंख्या

पूर्वोत्तर भारत में धार्मिक बदलाव तेजी से आकर ले रहा है। नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में ईसाई जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। यहाँ तक कि भारत के 238 जिलों में ईसाई जनसंख्या 2001 से 2011 के बीच 50% से भी अधिक बढ़ी है।

यह इजाफा खासतौर पर जनजातीय इलाकों में देखने को मिला है। यहाँ ईसाई मिशनरियों ने कई दशकों से काम किया है। कुछ लोग इसे धार्मिक परिवर्तन मानते हैं तो अन्य इसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और चर्च संगठनों की कल्याणकारी योजनाओं का परिणाम मानते हैं, जो दूर-दराज के इलाकों में काफी सक्रिय है।

इन राज्यों में अब ईसाई धर्म को बाहरी नहीं माना जाता। इसे स्थानीय और स्वदेशी के तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। अधिकांश जनजातीय समुदाय अब स्वयं को ईसाई घोषित करते हैं और अपने पारंपरिक रीति-रिवाज़ों के साथ-साथ नए धर्म का पालन भी करते हैं।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य और अर्थशास्त्री शमिका रवि ने सोशल मीडिया पर कुछ नक्शे साझा किए। इनमें दिखाया गया कि 2001 से 2011 के बीच भारत में धार्मिक जनसंख्या का स्वरूप कैसे बदला। एक नक्शे में उन क्षेत्रों को दर्शाया गया जहाँ हिंदू जनसंख्या का हिस्सा सबसे अधिक घटा और दूसरे नक्शे में उन क्षेत्रों को दिखाया गया जहाँ मुस्लिम और ईसाई जनसंख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई।

मानचित्रों ने इस बात की पुष्टि की कि इन इलाकों के लोगों को कई वर्षों से यह महसूस हो रहा था कि उनके आसपास की जनसंख्या संरचना बदल रही है।

ये बदलाव क्यों हो रहे हैं?

धार्मिक बदलाव के यूँ तो कई कारण हो सकते हैं। लेकिन इसका एक मुख्य कारण जन्म दर भी है। मुस्लिम समुदाय की जन्म दर हिंदू समुदाय से अधिक रही है। हालाँकि हाल के वर्षों में यह अंतर धीरे- धीरे कम हो रहा है। इसी कारण अब धार्मिक संतुलन में बदलाव देखा जा रहा है।

जहाँ मुस्लिम या ईसाई समुदाय पहले से बड़ी संख्या में मौजूद था, वहीं उनकी आबादी भी तेजी से बढ़ी। जन्म दर में थोड़े से बदलाव से लंबे समय में जनसंख्या के लिहाज से बढ़ोतरी हो सकती है।

असम और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में प्रवासन और धर्म परिवर्तन भी इन बदलावों के कारण हैं। सीमा पार प्रवासन और जनजातीय समुदायों में धर्म परिवर्तन से स्थानीय आबादी पर भी असर पड़ा है।

गौर करने वाली बात यह है कि हिंदू जनसंख्या में सबसे तेजी से गिरावट उन क्षेत्रों में हुई जहाँ हिंदू न तो बहुत बड़ी संख्या में थे और न ही बहुत कम यानी मिश्रित आबादी वाले क्षेत्र रहे। लेकिन जहाँ हिंदू आबादी 90% से अधिक या 20% से कम थी, वहाँ यह गिरावट उतनी स्पष्ट नहीं रही।

मुस्लिम जनसंख्या में इजाफा वहाँ अधिक देखा गया जहाँ वे पहले से अधिक संख्या में थे। वहीं ईसाई जनसंख्या में वृद्धि मुख्य रूप से उन इलाकों में देखी गई जहाँ जनजातीय समुदाय रहते हैं, खासकर दूरदराज पहाड़ी इलाकों में।

अचानक नहीं हुआ ये बदलाव

ये बात भी जानने योग्य जरूरी है कि ये बदलाव रातों-रात नहीं हुए हैं। ये धीरे-धीरे कई वर्षों में हुए हैं। उदाहरण के तौर पर, 1961 से 2011 के बीच हर दशक में भारत में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत बढ़ा। 1961 से 1971 के बीच ये 0.5% तक बढ़ा, 1991 से 2001 के बीच 0.8% और 2001 से 2011 के बीच 0.8% तक बढ़ा।

ऐसे में 2001-2011 हो रहे बदलाव कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं, बल्कि पिछले 50 वर्षों में चला आ रहा एक रुझान है।

कई वजहों से है आँकड़ों का महत्व

जनसंख्या में बदलाव के कई कारण हैं। भारत जैसे देश, जहाँ राजनीति, पहचान और सामुदायिक जीवन धर्म पर आधारित होते हैं, वहाँ छोटे से बदलाव भी बड़ी बहस और विवाद का कारण बन सकते हैं।

पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में भौगोलिक जनसंख्या में बदलाव स्थानीय राजनीति, स्कूलों की शिक्षा, त्योहारों के आयोजन और भूमि विवादों पर भी असर डालता है। जनजातीय इलाकों में ईसाई रूपांतरण के साथ सांस्कृतिक पहचान भी बदल रही है।

कुछ लोग इस बात को लेकर चिंता में हैं कि अगर ये रुझान लगातार बना रहा तो आने वाले दो दशकों में स्थानीय जनसंख्या भौगोलिक तौर पर पूरी तरह बदल सकती है। वहीं कुछ लोग इसे एक खुले देश में प्राकृतिक विस्तार की प्रक्रिया मानते हैं।

कोई नई जानकारी अब तक नहीं

2021 की जनगणना से इन बदलावों की नई जानकारी मिलने की उम्मीद थी, लेकिन पहले कोविड-19 और फिर प्रशासनिक कारणों से इसमें देरी हुई। इसीलिए हम आज भी 2011 के आँकड़ों पर ही निर्भर हैं।

जब तक नए आँकड़े सामने नहीं आते, तब तक भौगोलिक स्तर पर बदलावों की बहस पुराने आँकड़ों, सैटेलाइट अध्ययनों और सर्वे पर ही आधारित रहेगी। भारत की विविधता ही हमेशा उसकी खासियत रही है। लेकिन इस वृहद और विविध समाज में सामंजस्य बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि हम इस विविधता में आ रहे बदलावों पर नजर रखें।

2001 से 2011 के बीच एक स्पष्ट रुझान सामने आया और वह ये रहा कि अधिकांश जिलों में हिंदू आबादी का अनुपात घटा, जबकि मुस्लिम और ईसाई आबादी का अनुपात बढ़ा। खासकर पश्चिम बंगाल, असम और पूर्वोत्तर में। इन बदलावों के हमेशा कई कारण रहे हैं और ये बदलाव नए नहीं हैं। लेकिन अब ये जनसंख्या संतुलन के मामले में संवेदनशील क्षेत्रों में ज्यादा दिखाई देने लगे हैं।

मूल रूप से ये लेख अंग्रेजी में श्रीति सागर ने लिखा है। इसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। हिंदी में इसका अनुवाद रामांशी मिश्रा ने किया है।



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