सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस बागची की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि 4-5 साल पहले कोविड और लॉकडाउन के दौरान भी पराली जलाई जाती थी। उस वक्त आसमान साफ और नीला दिखाई देता था, तो अब ऐसा क्यों है?
खंडपीठ ने कहा कि प्रदूषण पर होने वाले बहस को अहंकार का मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए और न ही राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहिए।
सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, “साइंटिफिक एनालिसिस के अनुसार, सबसे ज़्यादा किसकी वजह से पराली जल रही है? हम पराली जलाने पर कमेंट नहीं करना चाहते। यह उन लोगों पर बोझ डालना गलत है जिनका कोर्ट में बहुत कम प्रतिनिधित्व है। कोविड के दौरान भी पराली जल रही थी, लेकिन लोग फिर भी साफ नीला आसमान क्यों देख पा रहे थे? पराली जलाने का मुद्दा बेवजह राजनीतिक मुद्दा या ईगो का मुद्दा नहीं बनना चाहिए।”
कोर्ट ने कहा, “हम हाथ पर हाथ धर कर बैठे नहीं रह सकते हैं। बहुत जल्द, हम एक हफ़्ते के अंदर पराली जलाने के अलावा दूसरे कारणों को रोकने के लिए उठाए गए असरदार उपायों पर एक रिपोर्ट चाहते हैं।”
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के पीछे सिर्फ पराली ही नहीं बल्कि कई अन्य कारण हैं। इसलिए इसका साइंटिफिक एनालिसिस जरूरी है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 10 दिसंबर को होगी।
सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि प्रदूषण रोकने के लिए बनाए गए प्लान का कितना असर हुआ, इस पर सरकार को विचार करना चाहिए और इसमें सुधार लाना चाहिए। सरकार को एक हफ्ते में इस पर रिपोर्ट देना चाहिए।
