महबूबा मुफ्ती अफलजल गुरु यासीन मलिक द वायर

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एक बार फिर इतिहास को झुठलाने और आतंकियों के लिए ‘घड़ियाली आँसू’ बहाने के अपने पुराने एजेंडे पर उतर आई हैं। ‘द वायर’ पर महबूबा मुफ्ती ने एक लेख छपवाया है। इस लेख ही हेडलाइन ‘Betrayed: The Tragedy of Two Kashmiris and the Crisis of Indian Justice’ है। इसमें महबूबा मुफ्ती दो कुख्यात चेहरों ‘अफजल गुरु और यासीन मलिक‘ को ‘सिस्टम के छल’ का शिकार बताया है।

इसके अलावा लेख में महबूबा मुफ्ती ने अफजल गुरु को ‘बलि का बकरा’ और यासीन मलिक को ‘शांतिदूत’ बताया है। महबूबा मुफ्ती न केवल इतिहास को झुठला रही है, बल्कि उन नागरिकों के बलिदान का अपमान भी कर रही है, जिन्होंने इन आतंकियों की वजह से अपनी जान गँवाई है। महबूबा मुफ्ती जिन दो चेहरों के लिए घड़ियाली आँसू बहा रही हैं, उनकी असली करतूत क्या थी, यह जानना जरूरी है।

अफजल गुरु: संसद हमले का मास्टरमाइंड, ‘बलि का बकरा’ नहीं

महबूबा मुफ्ती का दावा: ‘द वायर’ के लेख में अफजल गुरु को एक ‘मुखबिर’ बताया गया है जिसे दविंदर सिंह नामक अधिकारी के कहने पर काम करने के बाद ‘गुपचुप तरीके से फाँसी’ दी गई और ‘बलि का बकरा’ बना दिया गया।

हमारा जवाब: मुफ्ती जी, यह आधी-अधूरी और झूठी कहानी है। जिस अफजल गुरु को आप ‘बलि का बकरा’ बता रही हैं, वह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सदस्य और 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हुए सबसे बड़े हमले का मास्टरमाइंड था। उसकी योजना के तहत पाँच आतंकियों ने हमारे लोकतंत्र के मंदिर पर अँधाधुँध फायरिंग की थी, जिसमें 9 लोगों की मौत हुई थी।

भारत की सर्वोच्च अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने उसके संगठित अपराध और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की मंशा को देखते हुए 2002 में मौत की सज़ा सुनाई थी। यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया के तहत हुआ था, किसी ‘सामूहिक चेतना’ को शांत करने के लिए नहीं। अफजल को उसके आतंकवादी कृत्यों के लिए दंड मिला, न कि किसी ‘षड्यंत्र’ के लिए।

यासीन मलिक: शांतिदूत नहीं, आतंक और टेरर फंडिंग का दोषी

महबूबा मुफ्ती का दावा: मुफ्ती ने यासीन मलिक को ‘शांति का दूत’ बताया जिसने 1994 में हिंसा त्याग दी और विभिन्न प्रधानमंत्रियों के साथ संवाद किया। मुफ्ती का दावा है कि उसे ‘शांति प्रयासों’ के लिए जेल भेजा गया।

यासीन मलिक ‘शांतिदूत’ नहीं, बल्कि आतंकवादी गतिविधियों का प्रमुख चेहरा रहा है। उसका इतिहास खून और हिंसा से भरा है। उसने पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) जाकर आतंक की ट्रेनिंग ली थी। यासीन मलिक पर 1989 में गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण में शामिल होने का गंभीर आरोप था, जिसके बदले में आतंकियों को रिहा करना पड़ा।

इससे भी बड़ा जुर्म, जनवरी 1990 में श्रीनगर में चार वायुसेना जवानों की हत्या करना था, जिसका वह मुख्य साजिशकर्ता था। इसके अलावा, वह 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है। दिल्ली की NIA कोर्ट ने उसे ‘शांति प्रयासों’ के लिए नहीं, बल्कि 2022 में टेरर फंडिंग (आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पैसा जुटाने) के मामले में उम्रकैद की सज़ा सुनाई। हाफिज सईद जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी से मिलना ‘शांति प्रयास’ नहीं, बल्कि देश से विश्वासघात था।

महबूबा मुफ्ती का दोमुँहापन

महबूबा मुफ्ती का यह दावा कि यासीन मलिक को ‘शांति प्रयासों’ के लिए जेल भेजा गया, एक झूठा नैरेटिव है। भारत की सुरक्षा एजेंसियों के साथ बातचीत करना एक अलग बात है, लेकिन हाफिज सईद जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी से मिलना और टेरर फंडिंग करना शांतिदूत का काम नहीं हो सकता। महबूबा मुफ्ती का बयान आतंकियों को बचाने और उनके कारनामों पर पर्दा डालने की एक शर्मनाक कोशिश है। देश यह जानता है कि न्याय हुआ है, बलिदान नहीं।

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