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‘हम जैसे ही घर में भोले बाबा की पूजा करते, वे हालेलुइया का मचाने लगते शोर’: बिहार में ‘सोशल वर्कर’ बनकर आई महिला, फिर अपने गैंग के साथ मिल हिंदुओं को बनाने लगी ईसाई


पटना धर्मांतरण के 4 आरोपित गिरफ्तार

भारत में धर्मांतरण का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है, खासकर जब यह शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत जरूरतों के नाम पर गरीब और कमजोर समुदायों को निशाना बनाता है। बिहार के पटना के पास कन्नौजी गाँव में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया, जहाँ एक कोचिंग सेंटर की आड़ में अवैध धर्मांतरण की गतिविधियाँ चल रही थीं।

कोचिंग सेंटर की आड़ में धर्मांतरण का जाल

रिपोर्ट्स के मुताबिक, पटना से लगभग 15 किलोमीटर दूर कन्नौजी गाँव के वार्ड नंबर 5 में गोपालपुर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत एक चौंकाने वाला धर्मांतरण रैकेट सामने आया। इस गाँव में यादव, मल्लाह, कुर्मी और SC समुदाय, जिसमें खास तौर पर मुसहर जाति के लोग रहते हैं, वो सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े हैं।

इस मामले की शुरुआत तब हुई जब नालंदा के राजगीर की रहने वाली सुषमा कुमारी ने दो-तीन साल पहले संजय कुमार के घर को किराए पर लिया। उसने खुद को एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पेश किया और धीरे-धीरे गाँव में अपनी पैठ बनाई।

सुषमा ने साल 2024 में किराए के ही मकान में हॉल जैसी व्यवस्था कर ली, जिसमें एक शेड और मंच था। उसने दावा किया कि यह गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा प्रदान करने वाला कोचिंग सेंटर है। इस दावे के आधार पर उसने पास के मुसहर समुदाय के बच्चों को आकर्षित करना शुरू किया। लेकिन इस कोचिंग सेंटर में शिक्षा के नाम पर जो गतिविधियाँ हो रही थीं, वे चौंकाने वाली थीं।

पटना धर्मांतरण रैकेट की मुख्य आरोपित सुषमा

सुषमा के सेंटर के पास रहने वाले अभिषेक कुमार ने बताया कि वहाँ नियमित रूप से ईसाई प्रार्थना होती थी। उसने कहा, “जब भी हम अपने घर में भोले बाबा की पूजा करते, सेंटर वाले अजीब-अजीब आवाज़ें निकालते और ‘हालेलुइया’ बोलते ताकि हमारी पूजा में खलल पड़े।” उसने ये भी कहा, “वो दावा करते थे कि वो बुरी आत्माओं को भगा सकते हैं।”

धर्मांतरण की रणनीति और निशाने पर गरीब

स्थानीय लोगों के बयानों से पता चला कि इस तथाकथित कोचिंग सेंटर में बच्चों को ईसाइयत की ओर आकर्षित करने के लिए व्यवस्थित तरीके से काम किया जा रहा था। कुछ प्रमुख गतिविधियाँ इस प्रकार हैं-

धार्मिक प्रचार और हिंदू परंपराओं का विरोध: बच्चों को ‘आमीन’ कहना सिखाया जाता था, जबकि ‘जय विश्वकर्मा’ या ‘जय श्री राम’ कहने पर उन्हें डाँटा जाता था। कुछ बच्चों ने बताया कि सुषमा और उनके सहयोगी उन्हें मारते थे अगर वे हिंदू देवी-देवताओं का नाम लेते।

हिंदू प्रथाओं का अपमान : बच्चों को सिखाया जाता था कि हनुमान और राम जैसे हिंदू देवता ‘झूठे और काल्पनिक’ हैं, जबकि ‘येशु’ उनके असली भगवान हैं। उनकी माताओं को बिंदी, सिंदूर और चूड़ियाँ पहनने से मना किया जाता था, जो हिंदू संस्कृति में महत्वपूर्ण प्रतीक हैं।

लालच का जाल: सुषमा और उनके तीन सहयोगियों (रेखा कुमारी, सीता कुमारी और आशीष कुमार) द्वारा बच्चों और उनके परिवारों को प्रलोभन दिए जाते थे। इनमें मुफ्त शिक्षा, बीमारियों का इलाज और आर्थिक सहायता का वादा शामिल था। इसके अलावा वे ‘येसु के प्रति प्रेम’ दिखाने के लिए नाटकीय प्रदर्शन करते थे।

सामाजिक और आर्थिक कमजोरी का शोषण: अत्यंत गरीबी और अशिक्षा से जूझ रहा मुसहर समुदाय इस रैकेट का आसान निशाना बना। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी जरूरतों की आड़ में इन लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया गया। यह एक ऐसी रणनीति थी जो भारत के कई हिस्सों में मिशनरी गतिविधियों में देखी गई है, जहाँ आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों को निशाना बनाया जाता है।

समुदाय का विरोध और पुलिस कार्रवाई

रिपोर्ट्स के मुताबिक, लगभग एक साल तक यह रैकेट चुपके-चुपके चलता रहा, लेकिन मई 2024 में गाँव के एक युवा दीपक कुमार ने इस अवैध गतिविधि के खिलाफ आवाज उठाई। दीपक और विश्वास कुमार ने मिलकर स्थानीय लोगों को संगठित किया और गोपालपुर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की।

इस शिकायत के आधार पर 18 मई 2024 को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR नंबर 208/2025) दर्ज की गई। FIR में कहा गया कि सुषमा कुमारी और उनके सहयोगी लगभग दो साल से अवैध धार्मिक गतिविधियाँ चला रहे थे। जब गाँव वालों ने इसका विरोध किया, तो उन्हें झगड़ा, शारीरिक हमला और यहाँ तक कि जान से मारने की धमकी दी गई।

पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए सुषमा कुमारी और उसके तीन सहयोगियों रेखा कुमारी, सीता कुमारी और आशीष कुमार को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए जानबूझकर किए गए कार्य) और धारा 302 (किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर ठेस पहुँचाना) के तहत गिरफ्तार किया। पुलिस द्वारा तैयार की गई जब्ती सूची में बाइबल, इवेंजलिस्ट मैनुअल और ‘चुने हुए लोग’ (Chosen People) जैसी किताबें शामिल थीं।

हालाँकि, बिहार में अभी तक कोई विशेष ‘विरोधी-जबरन धर्मांतरण कानून’ नहीं है, जिसके कारण आरोपितों पर केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने की धाराओं के तहत कार्रवाई की गई। यह एक महत्वपूर्ण कमी है, क्योंकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ऐसे कानूनों ने धर्मांतरण के मामलों में सख्त कार्रवाई को संभव बनाया है।

फिलहाल, कोचिंग सेंटर अब बंद हो चुका है और गाँव वालों ने इस धर्मांतरण रैकेट को पूरी तरह से बाहर कर दिया है। हालाँकि, गोपालपुर पुलिस स्टेशन से संपर्क करने की कोशिशें नाकाम रहीं, क्योंकि पुलिस का संपर्क नंबर बंद या रेंज से बाहर था। इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि गिरफ्तार आरोपितों को जमानत मिली है या नहीं।

स्थानीय लोगों ने बताया कि इस घटना ने गाँव में डर और तनाव का माहौल पैदा किया। कुछ महिलाओं ने भास्कर की टीम को बताया कि पिछले दो सालों से हर रविवार को सेंटर से अजीब आवाजें आती थीं, और जब भी उन्होंने वहाँ झाँकने की कोशिश की, तो पर्दे लटकाए जाते थे। यहाँ तक कि जिस जगह को पहले छठ पूजा की तैयारी के लिए इस्तेमाल किया जाता था, वहाँ अब दूसरी प्रार्थनाएँ होने लगी थीं।

बिहार में इस तरह के अन्य मामले

यह बिहार में धर्मांतरण का पहला मामला नहीं है। छह महीने पहले, बक्सर में एक समान मामला सामने आया था, जहाँ दो पादरियों पर 50-60 हिंदू पुरुषों और महिलाओं को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाने का आरोप लगा था। एक वीडियो में दिखाया गया कि पादरी महिलाओं को गंगा में डुबकी लगवाकर उनका सिंदूर मिटा रहे थे। पादरी ने दावा किया कि सभी प्रतिभागी स्वेच्छा से बाइबल पढ़ने के बाद शामिल हुए थे, लेकिन स्थानीय लोगों ने इसे जबरन धर्मांतरण करार दिया।

कन्नौजी गाँव का यह मामला भारत में अवैध धर्मांतरण की गहरी समस्या को उजागर करता है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी जरूरतों की आड़ में गरीब और कमजोर समुदायों को निशाना बनाना एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है। स्थानीय लोगों की साहसी पहल ने इस रैकेट को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालाँकि, इस मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि बिहार जैसे राज्यों में मजबूत विरोधी-जबरन धर्मांतरण कानून की आवश्यकता है। साथ ही सामुदायिक जागरूकता और स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देना जरूरी है ताकि इस तरह की गतिविधियों को समय रहते रोका जा सके। यह घटना न केवल धार्मिक संवेदनशीलता का मामला है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता का भी सवाल उठाती है।



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