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हमें सैयदा हमीद की ‘इंसानियत’ न बताओ द वायर और अपूर्वानंद, हमने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का हिंदू नरसंहार देखा है


सैयदा हमीद, आज से करीब एक हफ्ते पहले तक देश का बड़ा वर्ग इस नाम को नहीं जानता होगा। अब हालात बदल गए हैं, सैयदा वामपंथी और अर्बन नक्सल गिरोह की ‘पोस्टर गर्ल’ बन गई हैं। आपको लगेगा उन्होंने कोई क्रांतिकारी काम किया है लेकिन ऐसा है नहीं।

उन्होंने भारत में घुसपैठियों की वकालत की है, उनका मानना है कि असम में बांग्लादेशियों को रहने देना चाहिए क्योंकि ये धरती अल्लाह ने इंसानों के लिए ही बनाई है। गैर-कानूनी घुसपैठ की इस वकालत को अपूर्वानंद जैसे अर्बन नक्सल गिरोह के लोग ‘इंसानियत’ बता रहे हैं।

अपूर्वानंद ने ‘द वायर’ में एक लंबा लेख लिखकर सैयदा हमीद को विक्टिम बनाने की पूरी कोशिश की है, उनकी नजर में असली दिक्कत भारत के लोग हैं ना की सैयदा। उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की वकालत करने वाली सैयदा असल में मासूम हैं, जो लोग नहीं समझ पा रहे हैं।

अपूर्वानंद का विक्टिम कार्ड

अपूर्वानंद ने लिखा, “वह वीडियो देखा जिसमें वे बांग्लादेशियों के बारे में कुछ कह रही हैं, देखा कि वे कैमरेवालों से घिरी हुई हैं। जाहिरा तौर पर उनसे बांग्लादेशियों के बारे में कुछ पूछा जा रहा है। सवालों की बौछार से आजिज़ आकर सैयदा कहती हैं।

द वायर के लेख का हिस्सा

यानी, अपूर्वानंद बता रहे हैं कि सैयदा ने जो कह दिया सो ठीक है क्यों पत्रकारों ने उन्हें परेशान कर दिया था, जाहिर है कि जब कोई किसी दौरे पर किसी राज्य में एक प्रोपेगेंडा के तहत जाएगा तो सवाल तो पूछे ही जाएँगे।

सैयदा का पूरा बयान सुनकर कहीं आपको नहीं लगेगा कि वो परेशान हैं, तनाव में हैं या उन्हें कोई समस्या है। इसके अल्ट वो आक्रामक लहजे में अपनी बात कह रही हैं। अपूर्वानंद द्वारा सैयदा को विक्टिम बनाने की शुरुआत यहीं से हो जाती है।

दरअसल, सैयदा हमीद, प्रशांत भूषण और हर्ष मंदर जैसे वामपंथियों का एक गुट 2 दिन के लिए असम के दौरे पर ‘बेदखली’ का अध्ययन करने गया था। यह गुट घुसपैठियों को पीड़ित बनाने पर तुला हुआ था, लगे हाथ सैयदा ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी पीड़ित ही बना दिया।

भारतीयों पर ही अपूर्वानंद का निशाना

खैर, वापस अपूर्वानंद पर लौटते हैं। वह सैयदा के बयान का आशय खुद ही समझाते हुए लिखते हैं, “भारत में बांग्लादेशियों का अपराधीकरण कर दिया गया है। उनके साथ किसी इंसानी बर्ताव की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सैयदा सिर्फ इतना कह रही थीं कि बांग्लादेशियों को इंसान की तरह देखने की जरूरत है। उनके किसी लफ्ज से यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि वे भारत में गैर-कानूनी तरीके से बांग्लादेशियों के रहने की वकालत कर रही हैं।

द वायर का लेख

हालाँकि, जब आपने सैयदा का बयान सुना तो स्पष्ट था तो वो बांग्लादेशियों के भारत में रहने की वकालत कर रही हैं। कोई बांग्लादेशी घुसपैठ करने भारत में आता है और यहाँ कब्जा कर लेता है तो वो किस तरह से रहना हुआ। बांग्लादेशी किस नियम का पालन कर भारत में घुसपैठ करता है? घुसपैठिए का भारत में कानून रहना कैसे संभव है?

अपूर्वानंद प्रोफेसर हैं तो, शब्दों के जाल से लोगों को उलझाने की कोशिश कर रहे हैं। जब बात घुसपैठ पर हो रही हो, और कोई कहे कि ‘बांग्लादेशी भी यहाँ रह सकते हैं’ तो इसका मतलब यही होता है।

बहुत चालाकी से अपूर्वानंद ने इसमें यह भी कहने की कोशिश की है कि बांग्ला बोलने वाले मुसलमानों पर भारत में हमले हो रहे हैं। जैसे उन्होंने सैयदा के बयान का खुद आशय निकाला है, उनका आशय भी साफ है कि वो बंगाल को निशाना बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह महीन सोच देश के भीतर ही यह बताने की कोशिश है कि भारत में बांग्ला भाषियों को मारा-पीटा जा रहा है।

पूरा देश ही अपूर्वानंद के निशाने पर है

अब इस लेख में आगे बढ़ते हैं। अपूर्वानंद ‘द वायर’ में लिखते हैं, “सैयदा अपने भोलेपन में भूल गईं कि आज के हिंदुस्तान और असम में उनकी इस इंसानियत की माँग का जवाब हिंसा ही हो सकता है। वह हमला मुख्यमंत्री ने शुरू किया। बाकी सब उस हमले में शामिल हो गए। लेकिन इस हमले के लिए उनके इस बयान की ज़रूरत भी न थी

अब इसे महीनता से समझें तो इसमें दो बाते हैं एक ‘सैयदा का भोलापन और असम के मुख्यमंत्री की हिंसा’। अपूर्वानंद ने सैयदा के सारे बयानों को उनके भोलेपन के आवरण में ढंक दिया। अब शब्दों पर गौर करिए ‘आज के हिंदुस्तान और असम’…’इंसानियत की माँग का जवाब हिंसा’…’हमला मुख्यमंत्री ने शुरू किया’। इन शब्दों के जरिए महीन तरीके से माहौल बनाया जा रहा है। वो भी देश के खिलाफ, असम के सीएम के खिलाफ और यह साबित करने की कोशिश है कि आज के भारत में इंसानियत की कोई जगह नहीं बस हिंसा की जगह है।

आगे बढ़िए, ‘हमले के लिए उनके इस बयान की ज़रूरत भी नहीं थी’ यानी बयान को भूल जाओ और बस यह याद रखो कि इस बयान के बाद जो सवाल उठ रहें हैं वो तो बेमानी ही हैं। ये कोशिश है कि कैसे लोगों को आरोपी बनाया जाए और सैयदा को क्लीन चिट दे दी जाए।

द वायर का लेख

याद रखिए कि अपूर्वानंद जैसे लोग जो आज इंसानियत की दुहाई दे रहे हैं वो CAA के खिलाफ भर-भरकर बयानबाजी कर रहे थे। इनका यह इंसानियत का चोला सुविधा के अनुसार ओढ़ा जाता है। जब पीड़ितों में अधिकतर हिंदू थे तो इन्हें ना इंसानियत याद आई, ना भोलापन याद आया।

जिस CAA के खिलाफ यह गिरोह लिख रहा था, उसमें तो प्रताड़ितों को भारत की नागरिकता मिलनी थी। वो लोग तो घुसपैठ करके किसी दूसरे देश पर ‘कब्जा’ करने की नियत से नहीं आए थे। उनकी तो पुण्यभूमि भी यही थी। तब भी इस गिरोह के पेट में दर्द था।

घुसपैठियों पर दर्द से दिक्कत में क्यों अपूर्वानंद?

अपूर्वानंद ने लिखा, “पिछले 11 साल भारतीय जनता पार्टी और भारत का बड़ा मीडिया ‘घुसपैठियों’ के खिलाफ युद्ध कर रहा है। उस युद्ध में सैयदा, हर्ष और प्रशांत जैसे भारतीयों को गद्दार ठहराया जा रहा है जो दुश्मन के साथ मिले हुए हैं।”

द वायर का लेख

अगर, घुसपैठियों के खिलाफ युद्ध चल भी रहा है तो इससे अपूर्वानंद जैसे लोगों को क्या दिक्कत हो सकती है। कल को ये लोग हत्यारों, बलात्कारियों के समर्थन में भी उतर आएँगे कि इन पर कार्रवाई क्यों? इनके खिलाफ युद्ध क्यों? कोई अगर गैरकानूनी काम करेगा तो उसकी पूजा तो नहीं की जाएगी। उसके खिलाफ कार्रवाई ही होगी। वहीं, सरकार कर रही है।

भारत के लिए खतरा हैं घुसपैठिए

ये घुसपैठिए भारत की डेमोग्राफी के लिए इतना बड़ा खतरा है कि खुद पीएम मोदी को लाल किले की प्राचीर से घुसपैठ के खिलाफ मिशन की शुरुआत करने की बात कहनी पड़ी है। ये घुसपैठिए आज भारत में गली-नुक्कड़ से लेकर बड़े-बड़े शहरों में क्राइम में लिप्त हैं।

पिछले दिनों एक बांग्लादेशी द्वारा सैफ अली खान पर हमले की खबर सुर्खियों में रही थी, इसके अलावा भी ये घुसपैठिए हत्या से लेकर बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में लिप्त हैं। ये घुसपैठिए अब केवल सीमावर्ती इलाकों तक सीमित नहीं है बल्कि देश के भीतरी इलाकों में भी फैल गए हैं।

ये ना केवल हमारी डेमोग्राफी को बदल रहे हैं बल्कि हमारे मठ, मंदिर, जंगल हर जगह जमीन पर कब्जा कर रहे। यहाँ तक की देश में ये घुसपैठिए संगठित हिंसा में भी शामिल हैं। ये दंगा फैलाने में भी सबसे आगे नज़र आते हैं।

खुद बांग्लादेश में किस तरह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। ये लोग महिलाओं, नाबालिग बच्चियों को निशाना बना रहे हैं। हिंदू धर्म स्थलों को तोड़ा जा रहा है। हिंदुओं की चुन-चुनकर हत्याएँ की जा रही हैं।

कल इनमें से ही कोई भारत में घुस आएगा तो ये आज जो इंसानियत का रोना रो रहे हैं, घुसपैठियों की वकालत कर रहे हैं। ये खुद भी उनके निशाने पर होंगे। यह बात समझने की जरूरत है कि देश विरोधी बातें कर ‘कूल’ बनने का जो नया चलन शुरू हुआ है, यह असल में बेहद खतरनाक है। यह क्रूरता है।

घुसपैठियों की वकालत ‘कूल’ नहीं ‘क्रूर’

आज अपूर्वानंद भारत के लोगों को इंसानियत सिखाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन भारत के लोगों ने कट्टरपंथी सोच के जख्म सदियों तक झेले हैं। ये घुसपैठिए जो भारत में आकर भारत को खोखला कर अपनी कट्टरपंथी सोच को आगे बढ़ाना चाहते हैं, भारत को उससे बचने की जरूरत है।

16 अगस्त 1946 को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के नाम पर कोलकाता की सड़कों पर हिंदुओं के कत्लेआम कोई कैसे भूल सकता है। हजारों हिंदुओं को मुस्लिम कट्टरपंथी ने सिर्फ अपनी मानसिकता की वजह से मार गिराया था।

भारत ने ऐसी ही कट्टरपंथी सोच के चलते अपना बड़ा भू-भाग खो दिया है। देश ने इसी सोच के कारण बँटवारे का दंश झेला है। यही बांग्लादेश, जिससे आज लोग भारत में जबरन घुसपैठ कर रहे हैं, कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था। फिर यहाँ कट्टरपंथी सोच आती गई, जिहादियों के इलाके बन गए और देश बँट गया।

बँटवारे के दौरान लाखों लोगों की हत्याएँ हुई, बहन-बेटियों के बलात्कार हुए और चोरी-डकैती की घटनाओं की बाढ़ आ गई। ये आज के ‘कूल’ दिखने वाले लोग देश को वापस उसी दौर में ले जाने पर आमादा है।

पर, अपूर्वानंद और ‘द वायर’ कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन ये देश, देश के लोग एक बार फिर भारत को नहीं बँटने देंगे। भारत घुसपैठियों के खिलाफ मजबूती से खड़ा है और खड़ा रहेगा। भारत को इंसानियत का सबक सीखने के लिए अपूर्वानंद की जरूरत नहीं है। भारत ने इस दुनिया को इंसानियत और मानवता का पाठ पढ़ाया है।



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