भारत में इजरायल के राजदूत रुवेन अजार ने कहा है कि सोनिया गाँधी को अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन उन जैसे नेताओं को क्षेत्रीय (मध्यपूर्व) हालात की जानकारी होनी चाहिए। इस इलाके में तीन दशकों से चल रही ईरानी आक्रमकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, “हमें यह देखकर निराशा हुई कि जिनका (सोनिया गाँधी) आपने जिक्र किया, उन्होंने 7 अक्टूबर 2023 (हमास अटैक) के हमलों की उस तरह निंदा नहीं की, जैसे की जानी चाहिए थी। ईरान द्वारा पिछले तीन दशकों से की जा रही आक्रामकता को नजरअंदाज करना पूरी तरह अस्वीकार्य है।”
दरअसल सोनिया गाँधी ने एक अंग्रेजी अखबार को लिखे लेख में इजरायल के बीच चल रहे युद्ध में ईरान का पक्ष लेने की बात कही थी। उन्होंने मोदी सरकार को ‘जिम्मेदार और बुलंद आवाज में बोलने’ की नसीहत भी दी थी, साथ ही भारत की कथित चुप्पी को लेकर सवाल खड़े किए। सोनिया गाँधी ने कहा था कि ईरान भारत का मित्र रहा है जबकि इजरायल के साथ रणनीतिक संबंध हालिया हैं।
उन्होंने मोदी सरकार पर स्वतंत्र फिलिस्तीन की कल्पना करने वाले दो राष्ट्रसिद्धांत के सिद्धांत को समर्थन करने वाली विदेश नीति को त्यागने का आरोप भी लगाया था। उन्होंने कहा कि इजरायल ने ईरान की संप्रभुत्ता का उल्लंघन किया है और एकतरफा कार्रवाई कर रहा है। इजरायल के पीएम नेतन्याहू पर उन्होंने लगातार शांति भंग करने और आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया। वहीं ईरान के पक्ष में बोलते हुए उन्होने 1994 का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि “1994 में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में कश्मीर मुद्दे पर प्रस्ताव रोकने में मदद की।”
दरअसल ईरान ने कश्मीर मुद्दे पर भारत के रुख पर हमेशा गोलमोल रवैया अपनाया है। कई बार उसने सोशल मीडिया के माध्यम से गलत बयानबाजी की है। उसने कश्मीर में ‘आत्मनिर्णय के अधिकार’ के अधिकार का समर्थन किया है। इसके अलावा कई बार उसने भारत के मुस्लिम समुदाय का जिक्र करते हुए मोदी सरकार को कटघरे में खड़े किया था।
ऐसे में साफ है कि ईरान भारत का हमेशा से दोस्त नहीं रहा है। जबकि इजरायल ने लगातार पाकिस्तान के खिलाफ भारत का समर्थन देता आ रहा है चाहे वो सीमा पार आतंकवाद का मसला हो या पाकिस्तान में घुसकर बदला लेने की भारतीय कार्रवाई हो।
भारत हमेशा से शांति का समर्थक रहा है। चाहे यूक्रेन-रूस जंग हो या इजरायल-ईरान युद्ध। भारत ने शांति की बात की है। प्रधानमंत्री मोदी ने साइप्रस दौरे के दौरान भी दोहराया था कि जंग इस शताब्दी में समस्या का हल नहीं निकाल सकता। हर समस्या का समाधान शांति से ही हो सकता है।