देश के कई सीमावर्ती इलाकों खासकर उत्तर प्रदेश, असम और नेपाल से सटे जिलों में अचानक और असंतुलित जनसांख्यिकीय बदलाव (डेमोग्राफिक बदलाव) को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गहरी चिंता जाहिर की है। हाल ही में यूपी के संभल और असम के 11 जिलों में हुई जाँचों और रिपोर्टों से सामने आया है कि इन इलाकों में हिंदू आबादी तेजी से घट रही है, जबकि एक विशेष समुदाय (मुस्लिम) की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी के तीन सबसे संवेदनशील जिले श्रावस्ती, बहराइच और बलरामपुर में बीते 10 वर्षों में एक विशेष समुदाय (मुस्लिम) की जनसंख्या दोगुनी हो चुकी है। सुरक्षा एजेंसियों ने इन इलाकों में विदेशी फंडिंग, जाली नोटों की तस्करी और अवैध धर्मांतरण जैसे गंभीर मामले पकड़े हैं। इन गतिविधियों में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की भूमिका की भी आशंका जताई गई है।
यह सिर्फ यूपी की बात नहीं है। असम में स्थिति और भी गंभीर है। यहाँ के कम से कम 11 जिलों में हिंदू अब अल्पसंख्यक बन चुके हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसकी वजह बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ, ज्यादा जन्म दर और संगठित अतिक्रमण है। खुद असम के मुख्यमंत्री का कहना है कि अगर यही रफ्तार बनी रही तो 2041 तक राज्य में हिंदू और मुस्लिम आबादी 50-50 हो सकती है।
According to the 2011 census, 1 crore Bangladeshis in Assam. By 2041, half of Assam’s total population will be Bangladeshi immigrants.
Out of the total population, 34% are Muslims—of which only 3% are indigenous Muslims. Stated by Chief Minister Himanta Biswa Sarma. pic.twitter.com/Yly0nBqyWn— Nandan Pratim Sharma Bordoloi (@NANDANPRATIM) July 23, 2025
ये आँकड़े केवल जनसंख्या बदलाव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक संतुलन और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खतरे की घंटी हैं। गृह मंत्रालय ने संबंधित जिलों के अधिकारियों को सख्त निगरानी और कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। नेपाल बॉर्डर पर भी यही पैटर्न देखा जा रहा है, जहाँ हिंदू जनसंख्या घट रही है, जबकि अन्य समुदायों की आबादी में बढ़ोतरी हो रही है।
यूपी में डेमोग्राफी का बदलाव
संभल जिले से आई एक ताज़ा कमेटी रिपोर्ट ने जनसंख्या के बदलाव को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए। रिपोर्ट के अनुसार, आज़ादी के समय संभल नगर पालिका क्षेत्र में हिंदुओं की आबादी करीब 45 फीसदी थी, लेकिन अब यह घटकर सिर्फ 15 फीसदी रह गई है। यह बदलाव महज़ आँकड़ों का उतार-चढ़ाव नहीं माना जा रहा, बल्कि रिपोर्ट में इसे एक ‘सुनियोजित साजिश’ और ‘एथनिक क्लीनिंग’ जैसा गंभीर मामला बताया गया है। इसमें न सिर्फ जनसंख्या का संतुलन बदला गया है, बल्कि मंदिरों और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाए जाने के भी प्रमाण मिले हैं, जिससे साफ है कि यह बदलाव अचानक नहीं, बल्कि योजनाबद्ध तरीके से हुआ है।
यही स्थिति अब उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा से सटे संवेदनशील जिलों श्रावस्ती, बहराइच और बलरामपुर में भी सामने आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में इन इलाकों में जनसंख्या का संतुलन तेजी से बदला है। रिपोर्टों के अनुसार, यहाँ अवैध रूप से धार्मिक स्थलों का निर्माण बढ़ा है और सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से अतिक्रमण किया जा रहा है। स्थानीय लोग पलायन को मजबूर हो रहे हैं, जबकि बाहरी लोग बड़ी संख्या में यहाँ बसते जा रहे हैं। इसी के साथ इन क्षेत्रों में मानव तस्करी, अवैध धर्मांतरण और आपराधिक गतिविधियों में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है, जिससे यह इलाका सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
असम में भी वही कहानी
असम में जनसंख्या के स्वरूप में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, जिसे लेकर राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही चिंतित हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, उस समय असम के 9 जिले मुस्लिम बहुल थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर कम से कम 11 हो गई है। इस बदलाव के पीछे क्या कारण हैं, इसे लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने साफ तौर पर बांग्लादेशी घुसपैठ, मुस्लिम समुदाय की ऊँची जन्म दर और जमीन पर अवैध कब्जों को जिम्मेदार ठहराया है।
मुख्यमंत्री सरमा का मानना है कि अगर यही प्रवृत्ति बनी रही तो 2041 तक राज्य में हिंदू और मुस्लिम आबादी का अनुपात बराबरी पर आ सकता है। उन्होंने इस बदलाव को केवल जनसंख्या का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संतुलन से जुड़ा एक गंभीर विषय बताया है। असम जैसे सीमावर्ती और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील राज्य के लिए यह बदलाव कई तरह की चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है।
धर्मांतरण और विदेशी फंडिंग का जाल
जाँच में सामने आया है कि सीमावर्ती इलाकों में हो रहे जनसांख्यिकीय और धार्मिक बदलावों के पीछे विदेशी फंडिंग की बड़ी भूमिका है। खासकर बलरामपुर में अवैध धर्मांतरण के आरोपित छांगुर पीर का मामला इस साजिश की गहराई को उजागर करता है। छांगुर पीर ने नेपाल के बैंक खातों के ज़रिए विदेश से बड़ी मात्रा में पैसा मँगवाया और उसका इस्तेमाल सुनियोजित तरीके से धर्मांतरण के लिए किया।
जाँच में यह भी पाया गया कि क्षेत्र में ईसाई मिशनरियाँ सक्रिय रूप से दलित और गरीब परिवारों को निशाना बनाकर उनका धर्मांतरण करा रही थीं। इन घटनाओं के बीच एक और गंभीर मामला तब सामने आया जब पाकिस्तान को ₹100 करोड़ की टेरर फंडिंग का सुराग मिला।
सरकार की कार्रवाई
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीमावर्ती इलाकों में हो रहे जनसांख्यिकीय बदलाव और अवैध धार्मिक गतिविधियों के मामलों को बेहद गंभीरता से लिया है। दरअसल, अक्टूबर 2024 में ‘अमर उजाला’ ने इस मुद्दे पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें नेपाल सीमा से सटे इलाकों में अवैध मदरसों के निर्माण, घुसपैठ की साजिश और मजहबी शिक्षा की आड़ में देशविरोधी गतिविधियों का खुलासा किया गया था। अब मंत्रालय ने इस रिपोर्ट के आधार पर उत्तर प्रदेश के सभी सीमावर्ती जिलों के DM और SP को सख्त कार्रवाई के निर्देश जारी किए हैं।
बलरामपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी अरविंद सिंह ने भी 2024 में इस पूरे नेटवर्क और विदेशी फंडिंग के संबंध में शासन को एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट भेजी थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने कुछ स्थानीय पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे। लेकिन अफसोस की बात यह रही कि उस वक्त उनकी रिपोर्ट को दबा दिया गया और उन्हें जिले से हटा दिया गया। अब जबकि केंद्र सरकार इस मामले को प्राथमिकता दे रही है, उसी रिपोर्ट को फिर से खंगालकर नए सिरे से जाँच शुरू कर दी गई है।
इस पूरे मुद्दे की गंभीरता सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। नेपाल में भी 2021 की जनगणना में हिंदू आबादी में गिरावट दर्ज की गई है, जबकि मुस्लिम और ईसाई आबादी में बढ़ोतरी देखी गई है। चूंकि इन दोनों देशों की सीमाएँ खुली हैं और सामाजिक व धार्मिक गतिविधियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं, इसलिए भारत सरकार ने नेपाल से भी सहयोग माँगा है ताकि सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिरता बनाए रखी जा सके और अवैध गतिविधियों पर कड़ा अंकुश लगाया जा सके।