कर्नाटक की आर्थिक हालत दो साल में बिगड़ गई है। साल 2023 में बीजेपी सरकार के समय सरप्लस बजट था, लेकिन अब कॉन्ग्रेस के राज में राज्य कर्ज में डूब रहा है, वित्तीय घाटा बढ़ रहा है और विकास परियोजनाओं के लिए पैसा कम हो रहा है।
कम्पट्रोलर और ऑडिटर जनरल (CAG) ने 31 मार्च 2024 के लिए अपनी हालिया स्टेट फाइनेंस ऑडिट रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि कॉन्ग्रेस सरकार की पाँच ‘गारंटी’ योजनाएँ, जो बड़े धूमधाम से शुरू की गई थीं, राज्य की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डाल रही हैं।
CAG की रिपोर्ट ने चिंता जताई
इस हफ्ते कर्नाटक विधानसभा में पेश की गई CAG रिपोर्ट में कॉन्ग्रेस सरकार की पाँच कल्याणकारी योजनाओं गृह लक्ष्मी, गृह ज्योति, अन्न भाग्य, शक्ति, और युवा निधि के प्रभाव का पहला सरकारी ऑडिट किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इन गारंटी योजनाओं के लिए 2023-24 में 36,538 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था, जो राज्य के कुल राजस्व खर्च का 15% है।
इसका असर साफ दिख रहा है। पिछले साल कर्नाटक की आय में सिर्फ 1.86% की बढ़ोतरी हुई, जबकि इन योजनाओं की वजह से खर्च 12.54% बढ़ गया। इस असंतुलन से राज्य को 9,271 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा हुआ, जो 2022-23 में कोविड-19 के बाद की रिकवरी को उलट रहा है।
राज्य का वित्तीय घाटा भी 2022-23 में 46,623 करोड़ रुपए से बढ़कर 2023-24 में 65,522 करोड़ रुपए हो गया। इस अंतर को भरने के लिए सरकार ने बाजार से 63,000 करोड़ रुपए उधार लिए, जो पिछले साल के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा है। CAG ने चेतावनी दी है कि इससे भविष्य में कर्ज चुकाने का बोझ और ब्याज का खर्च बढ़ेगा।
Karnataka state government has borrowed Rs 63,000 Crore to finance the guarantee schemes and the resulting deficits. This is Rs 37,000 crore higher than last year's net debt of Rs 26,000 crore, a CAG report stated.
Of the capital expenditure earmarked for infrastructure in…— ANI (@ANI) August 20, 2025
दूसरी तरफ बुनियादी ढाँचे पर पूँजीगत खर्च 5,229 करोड़ रुपए कम हो गया। इससे ज्यादातर प्रोजेक्ट रुक गए हैं और अधूरे कामों की संख्या 68% बढ़ गई है। CAG ने साफ कहा कि इस तरह की उत्पादक पूँजी में कटौती कर्नाटक के भविष्य के विकास को नुकसान पहुँचाएगी।
कॉन्ग्रेस सरकार का दावा है कि ये योजनाएँ असमानता कम करती हैं, स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती हैं और मानव पूँजी विकास को बढ़ावा देती हैं। लेकिन CAG ने चेताया कि अगर दूसरी सब्सिडी को कम या तर्कसंगत नहीं किया गया, तो ये गारंटी योजनाएँ ‘राज्य की वित्तीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डालेंगी।’
इन योजनाओं के शुरू होने के बाद कर्नाटक स्थिरता से कर्ज और वित्तीय तनाव की स्थिति में पहुँच गया है।
2023 में बीजेपी का संतुलित ‘सरप्लस’ बजट
वर्तमान स्थिति फरवरी 2023 के बिल्कुल उलट है, जब बीजेपी के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने सरप्लस बजट पेश किया था। कई लोगों को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव के चलते बीजेपी लोकलुभावन वादों के साथ बड़ा दाँव खेलेगी। लेकिन बोम्मई सरकार ने लोकलुभावन घोषणाओं को वित्तीय जिम्मेदारी के साथ संतुलित कर सबको चौंका दिया।
बजट में हर विभाग को ध्यान में रखा गया, बिना राज्य के वित्त को नुकसान पहुँचाए। किसानों, युवाओं और महिलाओं को योजनाओं का केंद्र बनाया गया। कृषि को भारी आवंटन मिला और किसानों के लिए ब्याज-मुक्त ऋण की सीमा बढ़ाई गई। जैसा कि उम्मीद थी, कोई नया कर नहीं लगाया गया और शराब की कीमतों को भी नहीं छुआ गया।
शिक्षा को सबसे ज्यादा फायदा हुआ, जिसमें 37,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का आवंटन किया गया। बोम्मई ने मुफ्त शिक्षा, मुफ्त बस पास और महिलाओं – छात्रों के लिए सब्सिडी की घोषणा की।
बुनियादी ढाँचे को भी बोम्मई के बजट में जगह मिली। अपर भद्रा जल परियोजना को 5,300 करोड़ रुपए और कालसा बाँदूरी परियोजना को 1,000 करोड़ रुपए दिए गए। कर्नाटक में पानी के मुद्दे संवेदनशील हैं और ये आवंटन बीजेपी की योजनाओं में प्रमुख थे। बेंगलुरु को भी बेहतर गतिशीलता और ट्रैफिक प्रबंधन के लिए बुनियादी ढाँचा फंडिंग का वादा किया गया।
विपक्ष ने दावा किया कि बोम्मई और ज्यादा लोकलुभावन पहल कर सकते थे, खासकर कॉन्ग्रेस के मुफ्त बिजली और नकद पुरस्कारों की आक्रामक गारंटी के सामने। फिर भी दबाव के बावजूद बीजेपी सरकार ने लोगों के लिए केंद्रित और वित्तीय रूप से समझदार बजट पेश किया। उस साल राज्य को राजस्व सरप्लस भी मिला। यह नाजुक संतुलन अब मौजूदा आँकड़ों से साफ तौर पर उजागर हो रहा है।
सिद्धारमैया की मुफ्त योजनाएँ कर्नाटक की अर्थव्यवस्था को कैसे डुबो रही हैं
2023 में कॉन्ग्रेस के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में कर्नाटक सरकार ने अपनी पाँच गारंटी योजनाएँ शुरू कीं। ये योजनाएँ कॉन्ग्रेस के चुनाव अभियान का आधार थीं और माना जाता है कि इनकी वजह से पार्टी को भारी जीत मिली। लेकिन अब इनका अर्थव्यवस्था पर खर्च साफ दिख रहा है।
कॉन्ग्रेस के सत्ता में आने के दो महीने बाद जुलाई 2024 में सिद्धारमैया के आर्थिक सलाहकार बसवराज रायरेड्डी ने स्वीकार किया कि इन गारंटी योजनाओं के लिए भारी राशि रखने की वजह से विकास परियोजनाओं के लिए पैसा नहीं बचा है।
उन्होंने खुलासा किया था कि इन योजनाओं पर करीब 65,000 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है। रायरेड्डी ने कहा “लोग विकास चाहते हैं। लेकिन मुझ पर विश्वास करें, बिल्कुल भी पैसा नहीं है। चूँकि मैं वित्तीय सलाहकार हूँ, मैंने यहाँ झील विकास परियोजना के लिए फंड जुटाया।”
कर्नाटक के सभी विधायक अपने क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए फंड जुटाने में असमर्थ हैं। यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस के नेता भी चुपके से स्वीकार कर रहे हैं कि ये गारंटी योजनाएँ सड़कों, सिंचाई और बुनियादी ढाँचे के लिए जरूरी फंड को खत्म कर रही हैं।
बीजेपी विधायक रमेश जारकिहोली ने कॉन्ग्रेस सरकार पर आरोप लगाया कि वह बेंगलुरु पर ही बचे हुए थोड़े पैसे खर्च कर रही है और बाकी राज्य को अनदेखा कर रही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार के समय शुरू हुईं अधिकांश परियोजनाएँ जैसे कि अथानी में बसवेश्वर और अम्माजेश्वरी सिंचाई परियोजनाएँ पूरी तरह ठप हो गई हैं।
कॉन्ग्रेस की मुफ्त योजनाओं ने पार्टी के अंदर भी तनाव पैदा किया है। कुछ कॉन्ग्रेस नेता दावा करते हैं कि इन योजनाओं से अपेक्षित चुनावी फायदा नहीं मिला और इतने भारी खर्च की कीमत सही थी या नहीं, इस पर सवाल उठ रहे हैं।
वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेताओं ने कई बार वित्तीय तनाव को स्वीकार किया है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने जुलाई 2023 में माना कि पार्टी की गारंटी के लिए 40,000 करोड़ रुपए अलग रखने की वजह से विकास के लिए फंड जुटाना मुश्किल हो रहा है।
मुफ्त योजनाएँ राज्य के बुनियादी ढाँचे के विकास को प्रभावित कर रही हैं
कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने 24 जून, 2025 को खुले तौर पर कहा कि वित्त मंत्रालय भी संभालने वाले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पास बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के लिए पर्याप्त फंड नहीं है।
गृह मंत्री ने बागलकोट जिले में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था, “हमारे पास पैसा नहीं है, सिद्धारमैया के पास भी अब फंड नहीं है। हमने पहले ही सब कुछ लोगों को चावल, दाल और तेल के रूप में दे दिया है, हाँ तेल भी।”
परमेश्वर के मुताबिक, कॉन्ग्रेस सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं पर भारी खर्च किया है, जिसके चलते नए पूंजीगत परियोजनाओं के लिए बजट में बहुत कम जगह बची है।
इससे पहले, कर्नाटक के लघु-स्तरीय उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री शरणबसप्पा दर्शनपुर ने कहा था कि कॉन्ग्रेस सरकार के पहले साल में बुनियादी ढाँचे का विकास कुछ हद तक प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि यह सिद्धारमैया सरकार की गारंटी योजनाओं की वजह से होगा।
मंत्री ने बताया कि इन गारंटी योजनाओं से खजाने पर 40,000 करोड़ से 50,000 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ पड़ेगा।
दर्शनपुर ने कहा, “हमें अपनी पाँच गारंटी योजनाओं को लागू करने के लिए हर साल 50,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की जरूरत है। इससे विकास कार्य आंशिक रूप से प्रभावित हो सकते हैं।”
‘गृह ज्योति’ योजना को फंड करने के लिए बिजली दरें 2.89 रुपए प्रति यूनिट बढ़ाई गईं
गृह ज्योति योजना ने धूम मचाई, लेकिन अब नागरिकों को इसका दर्द महसूस होने लगा है। गृह ज्योति योजना के तहत मुफ्त बिजली देने के लिए, 200 यूनिट से ज्यादा खपत पर बिजली की दरें 2.89 रुपए प्रति यूनिट बढ़ा दी गईं। राहत देने के बजाय कई परिवारों को मुफ्त स्लैब से ज्यादा खपत होने पर बिल में ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं।
कॉन्ग्रेस सरकार पर SC/ST विकास के लिए फंड डायवर्ट करने का आरोप
कॉन्ग्रेस सरकार ने कर्नाटक अनुसूचित जाति उप-योजना और जनजातीय उप-योजना (SCSP-TSP) के तहत आवंटित फंड का करीब 37% हिस्सा अपनी पाँच गारंटी योजनाओं के लिए डायवर्ट कर दिया। बीजेपी ने कहा कि कॉन्ग्रेस पार्टी दलित समुदायों के कल्याण के लिए रखे गए फंड को डायवर्ट कर रही है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कॉन्ग्रेस सरकार ने ‘गृहलक्ष्मी’ योजना के लिए 7,881.91 करोड़ रुपए, ‘भाग्यलक्ष्मी’ योजना के लिए 70.28 करोड़ रुपए, ‘गृहज्योति’ योजना के लिए 2,585.93 करोड़ रुपए, ‘अन्नभाग्य’ योजना के लिए 448.15 करोड़ रुपए, ‘अन्नभाग्य’ के डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के लिए 2,187 करोड़ रुपए, ‘शक्ति’ योजना के लिए 1,451.45 करोड़ रुपए और ‘युवा निधि’ योजना के लिए 175.50 करोड़ रुपए SCSP-TSP से उपयोग करने का फैसला किया है।
KSRTC वेतन संकट: ‘शक्ति’ ने कैसे तोड़ा सार्वजनिक परिवहन
इससे पहले, 5 अगस्त 2025 को कर्नाटक स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (KSRTC) और बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (BMTC) के कर्मचारियों ने वेतन संशोधन और 38 महीने के बकाया भुगतान की माँग को लेकर हड़ताल किया था।
वे 25% वेतन वृद्धि और 1,800 करोड़ रुपए के बकाया भुगतान की माँग कर रहे थे। हालाँकि वित्तीय तंगी की वजह से राज्य सरकार ने सिर्फ 14 महीने के बकाया का निपटारा करने का प्रस्ताव रखा।
कर्मचारियों को गुस्सा इस बात का था कि उनकी तनख्वाह रोकी जा रही है, जबकि सरकार शक्ति योजना पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर रही है, जिसमें महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा मिलती है। कॉन्ग्रेस सरकार पर चार सरकारी परिवहन निगमों (KSRTC, BMTC, NWKRTC, KKRTC) को शक्ति योजना के लिए 1,600 करोड़ रुपए का बकाया है।
इन कंपनियों पर पहले से ही 6,330 करोड़ रुपए का कर्ज है और इस मुफ्त योजना ने उनकी वित्तीय स्थिति को और खराब कर दिया है। वेतन रुक गए हैं और कर्मचारी अब सड़कों पर उतरकर न्याय की माँग कर रहे हैं। इस बीच कर्नाटक में हजारों यात्री बसों के बंद होने से परेशान हैं।
कर्नाटक का दो साल का अनुभव एक सबक है। कल्याणकारी योजनाएँ अल्पकालिक राजनीतिक फायदे के लिए मददगार हो सकती हैं, लेकिन बिना वित्तीय समझदारी के अंधाधुंध लोकलुभावन नीतियां अर्थव्यवस्था को कमजोर कर सकती हैं। बीजेपी का 2023 का सरप्लस बजट दिखाता है कि कल्याण और विकास में संतुलन बनाया जा सकता है, लेकिन कॉन्ग्रेस सरकार की जल्दबाजी में शुरू की गई गारंटी योजनाओं ने इन लाभों को रिकॉर्ड समय में उलट दिया।
राजस्व सरप्लस से राजस्व घाटे तक, रुके हुए बुनियादी ढाँचे से लेकर योजनाबद्ध परियोजनाओं तक और वित्तीय समझदारी से बढ़ते कर्ज तक, कर्नाटक की अर्थव्यवस्था आज लोकलुभावन राजनीति की कीमत चुका रही है। अगर सब्सिडी को तर्कसंगत करने और विकास-प्रधान प्राथमिकताओं जैसे सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो राज्य और गहरे आर्थिक संकट में धकेल दिया जाएगा।
मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में शृति सागर ने लिखी है, इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है।