तमिलनाडु के कीलाडी (Keeladi) में हुई खुदाई ने दक्षिण भारत में एक प्राचीन और शहरीकृत सभ्यता के अस्तित्व का प्रमाण दिया है। यह खुदाई 2014 में शुरू हुई थी और इसकी शुरुआती जिम्मेदारी पुरातत्वविद् के. अमरनाथ रामकृष्ण को सौंपी गई थी।
हालाँकि, इस खुदाई के दौरान एक बड़ा राजनीतिक विवाद सामने आया। मामले में के. अमरनाथ के कई बार तबादले हुए। इस वजह से राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन गई। वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने भी उनकी खुदाई वाली रिपोर्ट पर आपत्ति जताई। ASI ने अमरनाथ से कहा कि वे अपनी रिपोर्ट में बदलाव करें, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इस इंकार के बाद केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
अब के. अमरनाथ रामकृष्ण को ग्रेटर नोएडा में स्थित ‘राष्ट्रीय स्मारक और पुरावशेष मिशन’ (National Mission on Monuments and Antiquities – NMMA) का निदेशक नियुक्त किया गया है। इससे पहले वे इसी मिशन के नई दिल्ली कार्यालय में निदेशक के रूप में कार्यरत थे। अपने पिछले कार्यकाल से छह महीने बाद उनका यह तबादला हुआ है। इससे पहले वे उत्खनन एवं अन्वेषण निदेशक के तौर पर तीन महीने तक काम कर चुके थे।
यह सब कैसे शुरू हुआ: कीलाडी की खोज और उसका महत्व
कीलाडी, जिसे कीझाडी भी कहा जाता है, तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में स्थित है। यह मदुरै से लगभग 12 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में वैगई नदी के किनारे है। यहाँ खुदाई का कार्य लगभग दस साल पहले अमरनाथ रामकृष्ण के नेतृत्व में शुरू हुआ था। रामकृष्ण उस समय ASI के अधीक्षक पुरातत्वविद थे। उनके नेतृत्व में इस कार्य की शुरुआत पल्लिचंथई नामक स्थान से हुई थी।
यहाँ पहले 100 एकड़ का नारियल का एक बाग था। वैगई नदी के किनारे 100 से अधिक स्थानों को खुदाई के लिए चिन्हित किया गया था, जिनमें कीलाडी सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ। शुरू में खुदाई के तीन चरण ASI ने किए, उसके बाद कार्यभार तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग (TNSDA) ने सँभाला।

कीलाडी से अब तक 18,000 से अधिक प्राचीन वस्तुएँ मिल चुकी हैं। इनमें कुएँ, जल निकासी प्रणाली, ईंटों से बने भवन, तमिल ब्राह्मी लिपि में लेख लिखे मिट्टी के बर्तन, सोने के आभूषण, ताँबे की वस्तुएँ, अर्ध-कीमती पत्थर और रत्न, शंख और हाथी दाँत से बनी चूड़ियाँ, काँच की मोतियाँ, कताई और बुनाई के उपकरण, मिट्टी की मुहरें और अन्य वस्तुएँ शामिल हैं।
इन खोजों से यह सिद्ध होता है कि कीलाडी में एक समृद्ध, उन्नत और योजनाबद्ध नगरी बसती थी। यहाँ व्यापार, बुनाई, रंगाई, मिट्टी के बर्तन और मोती बनाने जैसे कई व्यवसाय मौजूद थे। यहाँ मिले कार्नेलियन और अगेट जैसे विदेशी पत्थरों से बने गहनों से यह भी पता चलता है कि यहाँ समुद्री व्यापार भी होता था। इसके साथ ही खुदाई में मिली ताँबे की सुई, सूत लटकाने के पत्थर, कताई के चक्के और मिट्टी के बर्तन इस क्षेत्र में कपड़ा उद्योग की समृद्धता को दर्शाते हैं।
इसके अलावा, हॉप्सकॉच जैसे खेलों के चिह्न, पासे और गोटियों जैसी वस्तुएँ उच्च वर्गीय समाज की उपस्थिति और उनके मनोरंजन के साधनों को दर्शाती हैं। क्षेत्र की उपजाऊ भूमि और पशुपालन ने यहाँ के लोगों को समृद्ध किया और समुद्री व्यापार में सक्षम बनाया।
कार्बन डेटिंग के अनुसार कीलाडी की सभ्यता लगभग 2160 साल (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व) पुरानी है। लेकिन 2019 में तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट में बताया गया कि यहाँ की सांस्कृतिक परतें छठी से पहली शताब्दी ईसा पूर्व के बीच की हैं। अमेरिका भेजे गए छह नमूनों में से एक नमूने को 353 सेंटीमीटर गहराई से लिया गया था। इस पर तारीख 580 ईसा पूर्व पाई गई। इसका अर्थ यह है कि कीलाडी की सभ्यता पहले माने गए समय से लगभग 300 साल पुरानी है।
इससे संगम युग की शुरुआत अब लगभग 800 ईसा पूर्व मानी जा सकती है, जो पहले के 300 ईसा पूर्व के अनुमान से कहीं पहले है। संगम युग तमिल इतिहास में साहित्य और संस्कृति के उत्कर्ष का काल माना जाता है और कीलाडी से मिले साक्ष्य इस युग की ऐतिहासिकता को पुष्ट करते हैं।
यहाँ के भवनों की दिशा चारों दिशाओं के अनुसार तय की गई थी, जिससे नगर नियोजन की समझ दिखाई देती है। बर्तनों पर ब्राह्मी लिपि में लेख मिलना यह दर्शाता है कि उस समय कीलाडी के लोग साक्षर थे। सूरज और चाँद की आकृतियाँ यह संकेत देती हैं कि वे खगोल विज्ञान के ज्ञान से भी परिचित थे।
कीलाडी में मिले कुछ प्रतीक सिंधु घाटी सभ्यता से मिलते-जुलते हैं। हालाँकि दोनों के बीच लगभग 1000 वर्षों का अंतर है, इसलिए इस संबंध पर और शोध की आवश्यकता है। तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग के अनुसार कीलाडी एक पूर्ण रूप से विकसित नगरीय सभ्यता थी, जहाँ ईंटों से बने भवन, शिल्पकला, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रमाण मिलते हैं।
इसने स्पष्ट रूप से यह सिद्ध किया कि तमिलनाडु में प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में नगरीय जीवन और बस्तियाँ मौजूद थीं। कीलाडी ने न केवल तमिल संगम साहित्य की प्रामाणिकता को बल दिया बल्कि दक्षिण भारत के इतिहास को भी और पीछे ले जाकर समृद्ध किया।
रामकृष्ण की खोज और उनका ट्रांसफर
कीलाडी की खुदाई की शुरुआत 2014 में पुरातत्वविद् अमरनाथ रामकृष्ण की अगुवाई में हुई थी। उन्होंने 2014 से 2016 के बीच पहले दो चरणों की खुदाई करवाई और इस दौरान मिली जानकारी को 982 पन्नों की रिपोर्ट में संकलित किया। इस रिपोर्ट को उन्होंने ASI की महानिदेशक वी. विद्यावती को सौंपा। इस रिपोर्ट के बारह अध्यायों में खुदाई के उद्देश्यों और उसके ऐतिहासिक महत्व को समझाया गया।
एक अलग अध्याय में अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित बीटा एनालिटिकल लैब में 23 नमूनों की AcceleratorMass Spectrometry (AMS) तकनीक से की गई कार्बन डेटिंग का विवरण दिया गया। इस अध्याय में पौधों और जानवरों के अवशेषों के विश्लेषण और अन्य विश्वविद्यालयों से मिली जानकारियों के आधार पर कीलाडी की सभ्यता की समय-सीमा तय की गई।
केवल पहले दो चरणों में करीब 5,800 वस्तुएँ मिली थीं, जिससे यह स्थान ऐतिहासिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। लेकिन इसके बाद अमरनाथ रामकृष्ण का तबादला असम कर दिया गया। इसे कई लोगों ने खुदाई कार्य में एक बड़ा झटका माना।
आलोचकों ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उन्होंने खुदाई को जानबूझकर रोकने की कोशिश की। ऐसा इसलिए क्योंकि पहले खुदाई के लिए फंड और सहयोग देने का वादा किया गया था, लेकिन फिर उसे टाल दिया गया। इस बीच, खुदाई का तीसरा चरण शुरू हो चुका था, जिसकी जिम्मेदारी पुरातत्वविद् पी.एस. श्रीरामन को दी गई। तीसरे चरण में 400 वर्ग मीटर तक खुदाई करने के बाद श्रीरामन ने कहा कि पहले मिले ईंटों के निर्माण में कोई निरंतरता नहीं पाई गई।
इस बयान के बाद तमिलनाडु में यह आरोप लगे कि केंद्र सरकार कीलाडी की ऐतिहासिकता को कमतर दिखाने की कोशिश कर रही है। इस मामले ने राजनीतिक रूप भी ले लिया और तमिल राजनीति में अक्सर उठने वाले उत्तर भारत-विरोधी भावनाओं को इससे जोड़ा जाने लगा।
ASI को रोके जाने के बाद तमिलनाडु सरकार ने शुरू की खुदाई परियोजना, मिलीं 13,000 वस्तुएँ
कीलाडी खुदाई स्थल पर ASI ने तीसरे चरण के बाद खुदाई को यह कहकर रोक दिया था कि कोई विशेष खोज नहीं हुई है। लेकिन 2017 में तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग ने खुदाई का काम सँभाला और तब से अब तक हजारों पुरावशेष मिल चुके हैं। अप्रैल 2023 में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने खुदाई के नौवें चरण की शुरुआत की थी। यह सितंबर 2023 में पूरा हुआ।
अब तक राज्य पुरातत्व विभाग 13,000 से अधिक वस्तुएँ खोज चुका है, और कार्बन डेटिंग से यह पता चला है कि यह क्षेत्र लगभग 580 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के बीच सक्रिय था। वर्ष 2024-2025 में खुदाई का दसवाँ चरण भी शुरू हो चुका है, जिसमें सैकड़ों और प्राचीन वस्तुएँ मिली हैं।
हाल ही में कीलाडी खुदाई स्थल की तीसरी खाई (ट्रेंच) में एक नई 30 फीट लंबी संरचना मिली है, जबकि पहले ASI ने इस क्षेत्र में कोई बड़ी खोज की संभावना को नकार दिया था। यह संरचना जमीन से 90 सेंटीमीटर नीचे पश्चिमी हिस्से में मिली और इसकी लंबाई लगभग 10 मीटर आँकी गई है। यह पूर्व-पश्चिम दिशा में बनी है।
इस संरचना में जो ईंटें इस्तेमाल हुई हैं, वे कीलाडी की दूसरी खोजों में मिली ईंटों के जैसी ही हैं। यह समानता इस खोज की प्रामाणिकता को और मजबूत करती है। इतिहास के प्रोफेसर वी. मरप्पन (प्रेसीडेंसी कॉलेज) के अनुसार, पहले की टीम ने यह अनुमान लगाया था कि यह क्षेत्र कभी औद्योगिक क्षेत्र रहा होगा।
उन्होंने यह भी कहा, “नई खोजों से यह सवाल उठता है कि क्या अभी भी जमीन के नीचे के कई हिस्से खुदाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं।” खुदाई करने वाले पुरातत्वविदों का मानना है कि यह संरचना संभवतः किसी कार्यशाला या औद्योगिक इमारत की हो सकती है।
मद्रास हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
कीलाडी में चल रही पुरातत्विक खुदाई के मामले में कुछ समय के लिए मामला कोर्ट तक पहुँच गया। इस दौरान मद्रास हाई कोर्ट के जजों ने भी खुदाई स्थल का दौरा किया और ASI को खुदाई जारी रखने का आदेश दिया। साथ ही तमिलनाडु पुरातत्व विभाग को खुदाई में शामिल होने की अनुमति भी दी गई।
तमिलनाडु का पुरातत्व विभाग तीसरे चरण से खुदाई में सक्रिय रूप से शामिल रहा। इसके कारण पूरी घटना ने एक महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया। 2019 में मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने यह फैसला सुनाया कि खुदाई को रोका नहीं जाना चाहिए क्योंकि इससे तमिल सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ सामने आई हैं।
जस्टिस डी. कृष्णकुमार और जस्टिस आर. विजयकुमार की पीठ ने कहा कि खुदाई से जनता को तमिल सभ्यता के बारे में और जानकारी मिलेगी, इसलिए संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खुदाई में कोई रुकावट न आए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि पुरातत्वविद् अमरनाथ रामकृष्ण को 15 दिनों के भीतर तमिलनाडु वापस भेजा जाए ताकि वह खुदाई का कार्य जारी रख सकें। उन्हें राज्य वापस बुलाए जाने के बाद जनवरी 2023 में खुदाई के पहले दो चरणों की रिपोर्ट पेश की गई।
2023 में ही मदुरै निवासी पी. प्रभाकर पांडियन की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी की और कहा कि ASI की पहले दो चरणों की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। उसी साल कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वे खुदाई से संबंधित डाली गईं कई जनहित याचिकाओं पर जवाबी हलफनामे दाखिल करें।
इनमें 2016 और 2017 की वे याचिकाएँ भी शामिल थीं जिनमें खुदाई को बंद करने के बजाय उसे आगे कैसे बढ़ाया जाए, इस पर मार्गदर्शन माँगा गया था। एक याचिका में सरकार से कीलाडी में ‘साइट म्यूजियम’ बनाने की माँग की गई थी। इसके बाद मार्च 2023 में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने दो एकड़ में बने 18.43 करोड़ की लागत वाले कीलाडी संग्रहालय का उद्घाटन किया।
2016 में कोर्ट ने ASI को खुदाई में मिले अवशेषों के वैज्ञानिक परीक्षण के लिए देहरादून स्थित प्रयोगशाला ले जाने की अनुमति दी। हालाँकि साथ ही यह भी कहा कि राज्य के पुरातत्व आयुक्त को इसकी जानकारी पहले दी जाए। आयुक्त को निर्देश दिया गया कि वे वस्तुओं के वीडियो और फोटो लें और ASI को आदेश दिया गया कि परीक्षण के बाद सभी अवशेष तमिलनाडु वापस लाए जाएँ और कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी जाए।
केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच छिड़ा विवाद
जनवरी 2023 में पुरातत्वविद अमरनाथ रामकृष्ण ने कीलाडी खुदाई पर तैयार 982 पन्नों की एक अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी। इससे पहले उन्होंने 2016 और 2017 में प्रारंभिक और अंतरिम रिपोर्ट्स भी दी थीं। यह रिपोर्ट लगभग ढाई साल तक ASI के पास रही। उसके बाद ASI ने रामकृष्ण को इसे संशोधित करने के लिए कहा।
ASI ने रिपोर्ट में दिये गए कुछ कालखंडों और निष्कर्षों की वैज्ञानिक पुष्टि पर सवाल उठाए। ASI ने कहा कि प्रारंभिक काल यानी 8वीं सदी ईसा पूर्व से 5वीं सदी ईसा पूर्व के दावे के लिए ठोस प्रमाण नहीं दिये गए हैं। संस्था ने कहा कि सिर्फ गहराई का जिक्र करना पर्याप्त नहीं, परत (लेयर) नंबर भी देना जरूरी है ताकि तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके।
ASI ने कहा कि रिपोर्ट्स में तारीखें जिस तरह से दी गई हैं, उन्हें और वैज्ञानिक रूप में पेश करने की जरूरत है। लेकिन अमरनाथ रामकृष्ण ने रिपोर्ट में कोई बदलाव करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उनका शोध वैज्ञानिक मानकों पर आधारित है और उसमें मैटीरियल कल्चर (सामग्री संस्कृति), परत दर परत विश्लेषण और AMS (Accelerator Mass Spectrometry) जैसे वैज्ञानिक तरीकों से तारीखों की पुष्टि की गई है।
इस विवाद ने राजनीतिक रंग भी ले लिया। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), विदुथलै चिरुथैगल काच्ची (VCK) और इतिहासकार आर. बालकृष्णन ने ASI के कदम को तमिल संस्कृति को दबाने की कोशिश बताया। उनका आरोप था कि केंद्र सरकार कीलाडी की ऐतिहासिकता को राजनीतिक कारणों से नहीं मान रही है।
वहीं केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि रिपोर्ट को मान्यता देने से पहले और वैज्ञानिक प्रमाण जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ एक खोज से पूरे ऐतिहासिक विमर्श को नहीं बदला जा सकता। उनका कहना था कि तमिलनाडु भारत का अहम हिस्सा है और उसका इतिहास विज्ञान के आधार पर सम्मानित होना चाहिए, न कि भावनात्मक राजनीति के जरिए।
शेखावत ने यह भी सवाल उठाया कि क्या यह विवाद इसलिए बढ़ा है, क्योंकि तमिलनाडु सरकार केंद्र के साथ सहयोग करने को तैयार नहीं है? उन्होंने कहा, “ऐसे पदों पर बैठे लोग अगर क्षेत्रीय भावनाएँ भड़काएँगे, तो यह उचित नहीं होगा। हमें विशेषज्ञों को फैसला लेने देना चाहिए, न कि नेताओं को।”
तमिलनाडु के पुरातत्व मंत्री थंगम थेनारासु ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार तमिलों के साथ निचले दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार कर रही है। उन्होंने कहा, “दो साल तक रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, कोई फंड नहीं दिया गया, और अब कहा जा रहा है कि पर्याप्त सबूत नहीं हैं।”
MDMK नेता वायको ने आरोप लगाया कि केंद्र एक ‘काल्पनिक संस्कृत सभ्यता’ को बढ़ावा देना चाहता है और तमिल सभ्यता को दबा रहा है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी सोशल मीडिया पर लिखा, “हमें नहीं बदलना है, बदलनी हैं कुछ सोच। हम तमिलों ने हजारों वर्षों से हर रुकावट का सामना किया है और विज्ञान की मदद से अपने इतिहास को साबित किया है।”
मदुरै से CPI (M) के सांसद एस. वेंकटराजन ने कहा कि रामकृष्ण को रिपोर्ट लिखने से रोका गया, उन्हें ट्रांसफर किया गया और वे कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही रिपोर्ट तैयार कर सके। उन्होंने कहा कि ASI ने संसद और कोर्ट में कहा था कि 11 महीने में रिपोर्ट प्रकाशित होगी, लेकिन वह वादा भी पूरा नहीं हुआ। उनका आरोप था, “यह सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि तमिलनाडु और दक्षिण भारतीय इतिहास पर हमला है।”
रामकृष्ण की रिपोर्ट के समय तमिलनाडु में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) की सरकार थी। AIADMK ने लंबे समय तक इस विवाद पर चुप्पी साधे रखी। लेकिन 18 जून को उसके वरिष्ठ नेता आर.बी. उधयकुमार ने कहा कि केंद्र सिर्फ और वैज्ञानिक प्रमाणों की माँग कर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर रिपोर्ट खारिज की जाती है, तो उनकी पार्टी सबसे पहले विरोध करेगी।
DMK ने AIADMK पर भी निशाना साधा और कहा कि उन्होंने केंद्र के आगे झुककर तमिल पहचान से समझौता किया है। AIADMK के एक और वरिष्ठ नेता माफोई पंडियाराजन ने खुद को ‘कीलाडी नायकर’ कहकर तमिल पुरातनता को सिद्ध करने का श्रेय लिया, लेकिन DMK नेताओं ने इसे दिखावा कहा और आरोप लगाया कि AIADMK ने गठबंधन की राजनीति को तमिल गौरव से ऊपर रखा।
केंद्र सरकार ने माँगी उत्खनन रिपोर्ट
ASI ने सेवानिवृत्त अधीक्षण पुरातत्वविद् पी. एस. श्रीरामन से कीलाडी खुदाई के तीसरे चरण की आधिकारिक रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। वर्ष 2017 में रामकृष्ण के अचानक तबादले के बाद श्रीरामन को यह खुदाई सौंपी गई थी, लेकिन उस चरण में कोई बड़ी खोज नहीं हुई थी।
श्रीरामन वर्ष 2019 में रिटायर हो गए थे। अब उन्हें ASI ने अनुमति दी है कि वे अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कीलाडी और कोडुमनाल खुदाई कार्यों की रिपोर्ट तैयार करें। उन्होंने ‘द हिंदू’ को बताया कि वे चेन्नई स्थित ASI कार्यालय से रिपोर्ट तैयार करेंगे क्योंकि खुदाई से जुड़ा सारा रिकॉर्ड और सामग्री वहीं पर है। उन्होंने कहा, “चूंकि मैं सेवानिवृत्त हो चुका हूँ, दोनों रिपोर्टें लंबित थीं। मैंने ASI से सामग्री तक पहुँच की अनुमति माँगी थी और वह अब मिल गई है। मैं जल्द ही रिपोर्ट तैयार करना शुरू करूँगा।”
श्रीरामन को 2017-18 में कोडुमनाल में भी एक सीजन तक खुदाई कार्य का अनुभव है। कोडुमनाल, नॉयल नदी के उत्तर तट पर इरोड जिले में स्थित है। पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार, कोडुमनाल को दो सांस्कृतिक कालों, प्रागैतिहासिक युग और मेगालिथिक युग में बाँटा जा सकता है। उस समय के लोग कुशल कारीगर थे, टिकाऊ ढाँचे बनाते थे और कई देशों से व्यापार करते थे।
डेक्कन हेराल्ड से बातचीत में श्रीरामन ने कहा, “मैंने रिपोर्ट पूरी करने के लिए ASI से औपचारिक अनुमति माँगी है। ASI ने मुझे निर्देश दिया है कि इसे जल्द से जल्द पूरा करूँ। मैं कोडुमनाल की रिपोर्ट पर ज्यादा ध्यान दे रहा हूँ क्योंकि वह मेरी व्यक्तिगत कार्य था, जबकि कीलाडी में मेरा कार्यकाल सीमित था और यह पहले से चल रहे कार्य का हिस्सा था।”
यह घटनाक्रम तब सामने आया है जब एक महीने पहले ASI ने रामकृष्ण को उनके द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में विशेषज्ञों की सिफारिशों के अनुसार बदलाव कर दोबारा जमा करने के लिए कहा था।
भारत के इतिहास में नया सवेरा: समानांतर सभ्यता के निशान
तमिलनाडु के कीलाडी पुरातत्व स्थल ने राज्य के इतिहास का एक नया अध्याय सामने रखा है। अमेरिका की बीटा एनालिटिक्स (Beta Analytics) लैब द्वारा की गई रेडियोकार्बन डेटिंग से यह पता चला कि यहाँ से मिली एक वस्तु 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व की है। यह समय वही है जब गंगा घाटी में भारत का दूसरा शहरीकरण शुरू हो रहा था।
तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा 2017-18 से अब तक 29 वस्तुओं की रेडियोकार्बन डेटिंग करवाई गई है। सबसे पुरानी वस्तु 580 ईसा पूर्व की पाई गई है और सबसे नई 200 ईस्वी की। इसका मतलब है कि यह इलाका लगभग 800 वर्षों तक एक जीवंत शहरी और औद्योगिक सभ्यता का केंद्र था।
यहाँ संगम युग (Sangam Age) की बड़ी ईंटों से बनी इमारतें मिली हैं, जो संगम साहित्य में वर्णित शहरी विकास की पुष्टि करती हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार पुरातत्वविद् के. राजन ने बताया कि ईंट की इमारतों के ऊपर की परतों से मिली चीजें तीसरी सदी ईसा पूर्व के बाद की हैं, जबकि नीचे की परतें छठी सदी ईसा पूर्व तक जाती हैं।
कीलाडी के पास कोन्डगई (Kondagai) में एक कब्र स्थल से एक मानव खोपड़ी मिली है। आधुनिक 3D तकनीक और खोपड़ी की माप के जरिये वैज्ञानिक उस व्यक्ति का चेहरा, उम्र, खानपान, और लिंग जानने की कोशिश कर रहे हैं। राजन ने बताया कि यह सब दर्शाता है कि कीलाडी भी गंगा घाटी की तरह ही एक प्राचीन शहरी सभ्यता का हिस्सा था। 29 डेटिंग में से 12 नमूने अशोक के समय से भी पहले के हैं।
भारत और विदेश के 20 से अधिक शोध संस्थान कीलाडी पर शोध कर रहे हैं, जैसे लिवरपूल यूनिवर्सिटी (UK), यूनिवर्सिटी ऑफ पीसा (Italy), फील्ड म्यूजियम (Chicago), फ्रेंच इंस्टिट्यूट ऑफ पांडिचेरी, IIT गांधीनगर, और डेक्कन कॉलेज। कीलाडी में खुदाई के दौरान बैल, भैंस, बकरी, गाय, कुत्ते, सूअर, हिरण और अन्य जानवरों की हड्डियाँ भी मिली हैं। डेक्कन कॉलेज में इनका विश्लेषण चल रहा है। मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्राचीनमानव और पशु DNA का अध्ययन कर रहे हैं ताकि यहाँ के लोगों के जीवन और प्रवास के बारे में और जानकारी मिल सके।
पुरातत्व विभाग के संयुक्त निदेशक आर. शिवानंदम ने बताया कि इतने अधिक नमूनों की डेटिंग से यह साफ है कि कीलाडी एक साक्षर समाज था, जहाँ कारीगर रहते थे और यह एक औद्योगिक केंद्र था। यह जगह मदुरै होते हुए पूर्वी तट के अलागनकुलम और पश्चिमी तट के मुजिरिस बंदरगाह को जोड़ने वाले प्राचीन व्यापार मार्ग पर स्थित थी।
हालाँकि इस बस्ती का प्राचीन नाम अभी तक ज्ञात नहीं है। संगम साहित्य में नगरों, सड़कों, महलों, गहनों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का वर्णन मिलता है। कीलाडी की खोज से यह साफ हो गया है कि संगम साहित्य केवल कल्पना नहीं बल्कि वास्तविक जीवन का चित्रण था।
यहाँ से मिट्टी और हाथी दाँत के पासे भी मिले हैं, जो संगम साहित्य के ‘कलीथोगई’ ग्रंथ में वर्णित हैं। राजन ने यह भी बताया कि कीलाडी ही नहीं, बल्कि कोडुमनाल, पोरुन्थल, सिवगलाई, आदिचनाल्लूर और कोरकाई जैसे अन्य स्थल भी छठी सदी ईसा पूर्व के हैं। कोरकाई से तो 785 ईसा पूर्व की भी एक तिथि मिली है, जो दिखाता है कि उस समय तमिल क्षेत्र में नगरीकरण व्यापक रूप से फैला हुआ था।
कीलाडी में 110 एकड़ के क्षेत्र में अब तक सिर्फ 4% खुदाई हुई है। राज्य सरकार आगे और खुदाई कराएगी और यहाँ एक ऑन-साइट म्यूजियम भी बनाएगी, जो देश का पहला ऐसा संग्रहालय होगा।
पुरातत्वविद् बालकृष्णन ने कहा, “तमिलनाडु में लंबे समय से पुरातत्व की उपेक्षा होती रही, लेकिन कीलाडी ने तमिल समाज में नई जागरूकता पैदा की है।” राजन ने अंत में कहा, “कीलाडी वह पहली साइट है जिसने तमिलनाडु में पुरातत्व की सोच ही बदल दी है।”
कीलाडी से प्राप्त चेहरे
मदुरै कामराज विश्वविद्यालय और ब्रिटेन की लिवरपूल जॉन मूर्स यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने मिलकर एक अनोखा फॉरेंसिक फेस रिकंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट किया, जिसमें उन्होंने करीब 2500 साल पहले के दो व्यक्तियों के चेहरे फिर से बनाए। ये दोनों कंकाल तमिलनाडु के कीलाडी क्षेत्र के पास कोंडगई में पाए गए थे। यह एक प्राचीन कब्रिस्तान है और मुख्य खुदाई स्थल से 800 मीटर दूर स्थित है।
चेहरे के लक्षणों को देखकर वैज्ञानिकों ने बताया कि इन लोगों के चेहरे दक्षिण भारतीय जैसे थे, लेकिन उनमें प्राचीन ऑस्ट्रो-एशियाटिक जनजातियों और पश्चिम ईरानी (ईरान क्षेत्र के शिकारी) समुदाय के भी कुछ संकेत मिले हैं। इससे पता चलता है कि उस समय के तमिल लोगों का मिश्रित वंश (genetic ancestry) रहा होगा। हालाँकि वैज्ञानिकों ने कहा है कि और अधिक DNA रिसर्च की जरूरत है ताकि वंश के बारे में पक्के तौर पर बताया जा सके।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार लिवरपूल यूनिवर्सिटी के फेस लैब की निदेशक प्रोफेसर कैरोलाइन विल्किंसन ने बताया कि उन्होंने कंप्यूटर की मदद से एक 3D फेशियल रिकंस्ट्रक्शन सिस्टम का इस्तेमाल किया, जिससे खोपड़ी की संरचना और माँसपेशियों के आधार पर चेहरे तैयार किए गए। हालाँकि दोनों खोपड़ियों के निचले जबड़े गायब थे, इसलिए उन्होंने सिर की नाप और आकार के आधार पर दाँतों और जबड़े की बनावट का अनुमान लगाया।
मदुरै कामराज विश्वविद्यालय में जेनेटिक्स विभाग के प्रोफेसर जी. कुमारेशन ने कहा, “ये प्रक्रिया 80% विज्ञान और 20% कला है।” उन्होंने बताया कि DNA की जानकारी और ये बनाए गए चेहरे संगम काल के समय के तमिल लोगों की नस्ल और पहचान समझने में मदद कर सकते हैं।
भारत की सभ्यता यात्रा में महत्वपूर्ण क्षण
यहाँ पर एक 90 x 60 मीटर क्षेत्र में खुदाई की गई है, जहाँ पासे, अज्ञात ताँबे के सिक्के, काँच, शंख, हाथीदाँत, मोती, मिट्टी के मनके, मुहरें और सोने की सजावटी वस्तुएँ मिली हैं। यह क्षेत्र तमिलनाडु के कुछ गिने-चुने स्थानों में से एक है जैसे कि अरिकामेडु, कावेरीपट्टिनम और कोरकाई। यहाँ विभिन्न प्रकार की संरचनाएँ पाई गई हैं, जैसे कि जटिल ईंटों से बनी इमारतें, टैंक जैसी जल निकासी प्रणाली, दोहरी दीवार वाले भट्ठी और टेराकोटा के कुएँ।
ये खोजें यह दर्शाती हैं कि यहाँ एक समृद्ध, शिक्षित और उन्नत शहरी सभ्यता थी। इससे यह भी पता चलता है कि भारत की सभ्यता केवल गंगा घाटी तक सीमित नहीं थी, बल्कि उत्तर और दक्षिण दोनों क्षेत्रों में अनेक प्राचीन और विकसित समुदाय बसे हुए थे। इसके अलावा इन खोजों से यह भी साफ होता है कि उस समय के लोग बाहरी दुनिया से भी जुड़े हुए थे।
इन बातों से यह साबित होता है कि भारत की सभ्यता की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह उन मिथकों को भी खारिज करता है जो कहते हैं कि भारत में विदेशी आकर बसे और सभ्यता की शुरुआत की। इसके विपरीत यह स्पष्ट होता है कि भारत में पहले से ही उन्नत नगर नियोजन, व्यापार, मनोरंजन और एक जीवंत सांस्कृतिक जीवन था।
इस तरह की खोजें न केवल गर्व का विषय हैं बल्कि हमारे अतीत को समझने, उसकी निरंतरता को महसूस करने और हमारी सांस्कृतिक पहचान को जानने में भी मदद करती हैं। हमारे पूर्वजों की सोच और उन्होंने जिस तरह के समाज को बनाया और सदियों तक सँजोया, वे वास्तव में प्रशंसा के पात्र हैं।
कीलाडी अब इतिहासकारों, पुरातत्वविदों, शिलालेख विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। यहाँ की खोजों ने कई शोधों को प्रेरित किया है और यह जगह अब धीरे-धीरे विश्व के प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में अपनी जगह बना रही है
इस खबर को मूल रूप से अंग्रेजी में रुकमा राठौर ने लिखा है। इसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। इसका अनुवाद किया है सौम्या सिंह ने।