कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने एक बार फिर भारत के खिलाफ वैश्विक शक्तियों को उकसाने का काम किया है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाते हुए अमेरिका में चल रही अदानी समूह पर जाँच को रूस के तेल व्यापार से जोड़ दिया।
गौरतलब हो कि कुछ ही दिन पहले गाँधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत की ‘डेड इकोनॉमी’ वाली बात दोहराई थी। अब उन्होंने उससे भी आगे बढ़कर एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने ट्रंप को ‘अडानी कार्ड’ इस्तेमाल करने का सुझाव दे डाला है।
राहुल गाँधी ने अपनी पोस्ट में लिखा, “भारत, कृपया समझिए: प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति ट्रंप के बार-बार के धमकियों के बावजूद उनके सामने क्यों नहीं खड़े हो पा रहे हैं, इसका कारण अदानी पर चल रही अमेरिकी जाँच है। एक धमकी यह है कि मोदी, एए (अदानी) और रूसी तेल सौदों के बीच वित्तीय संबंधों को उजागर किया जाएगा। मोदी के हाथ बँधे हुए हैं।”
India, please understand:
The reason PM Modi cannot stand up to President Trump despite his repeated threats is the ongoing U.S. investigation into Adani.
One threat is to expose the financial links between Modi, AA, and Russian oil deals.
Modi’s hands are tied.— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 6, 2025
भारत के आंतरिक मामलों में राहुल का विदेशी ताकतों को खींचने का कोई नया कदम नहीं हैं, बल्कि ये उनकी आदत बन चुका है। लेकिन किसी जाँच का सहारा लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति को भारत पर दबाव बनाने का सुझाव देना उन पर सवाल खड़े कर रहा है। सवाल ये कि क्या राहुल गाँधी को सच में देश की परवाह है या सिर्फ राष्ट्र हित के नाम पर वह भारत विरोधी नैरेटिव को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
इजरायली खुफिया एजेंसी ने पहले ही किया था राहुल के अडानी पर आरोप का खुलासा
यह पहली बार नहीं है जब अडानी समूह की जाँच पर हो रहे हमलों के सिलसिले में कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी का नाम सामने आया है। स्पुतनिक इंडिया की एक असत्यापित लेकिन चौंकाने वाली रिपोर्ट के अनुसार, इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने राहुल गाँधी, इंडियन ओवरसीज कॉन्ग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा और अमेरिका की शॉर्ट-सेलर कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च के बीच एक छुपी हुई साजिश का खुलासा किया है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मोसाद ने पित्रोदा का होम सर्वर हैक किया और उसमें से ऐसे संचार डिक्रिप्ट किए गए जिनसे पता चला कि अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को प्रधानमंत्री मोदी और भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाने के हथियार की तरह इस्तेमाल करने की योजना बनाई गई थी।
हिंडनबर्ग ने 2023 में अडानी समूह पर कॉर्पोरेट इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी का आरोप लगाया था, लेकिन भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।
रिपोर्ट आने का समय भी संदेहास्पद माना गया, क्योंकि यह रिपोर्ट तब आई जब गौतम अडानी इजराइल के हाइफा बंदरगाह को 1.2 बिलियन डॉलर में खरीदने का सौदा लगभग पूरा करने वाले थे।
इजरायली सरकार ने इस रिपोर्ट को रणनीतिक हमला माना और इसके पीछे की ताकतों को खोजने के लिए ‘ऑपरेशन जेपेलिन’ नाम का एक खुफिया अभियान शुरू किया। इस ऑपरेशन में सामने आया कि इस अभियान के तार चीन, पश्चिमी लॉबी, कुछ एक्टिविस्ट वकील, हेज फंड्स और भारत की विपक्षी राजनीति के एक प्रमुख चेहरे से जुड़े हुए हैं।
सोरोस से जुड़ा एनजीओ नेटवर्क और राहुल गाँधी की गुप्त अमेरिका यात्रा
राहुल गाँधी के 2023 के विदेश दौरों ने अडानी मामले और भारत सरकार पर विदेशी हमलों से जुड़े विवादों को और गहरा कर दिया है। खासतौर पर उनके अमेरिका दौरे और वहाँ की गतिविधियों को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की 10 दिन की यात्रा के दौरान राहुल गाँधी ने व्हाइट हाउस के अधिकारियों से चुपचाप मुलाकात की। ये राजनयिक नियमों का गंभीर उल्लंघन था, क्योंकि इस यात्रा की जानकारी या समन्वय भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से नहीं किया गया था।
इसके अलावा हडसन इंस्टीट्यूट के एक कार्यक्रम में उन्हें ‘हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स’ की सह-संस्थापक सुनीता विश्वनाथ के पास बैठे देखा गया। यह संस्था जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित है और इसे हिंदू विरोधी गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
जॉर्ज सोरोस ने खुद भारत में सत्ता परिवर्तन का सार्वजनिक आह्वान किया है। उनकी संस्था ओपन सोसाइटी फाउंडेशन ने OCCRP (ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट) को फंडिंग दी है, जिसने अडानी समूह के खिलाफ रिपोर्टें प्रकाशित की थीं।
राहुल गाँधी की उज़्बेकिस्तान यात्रा भी चर्चा में रही, क्योंकि वह यात्रा यूएसएआईडी की प्रशासक सामंथा पावर की यात्रा के साथ मेल खाती थी। सामंथा पावर भी सोरोस समर्थित नेटवर्क से जुड़ी मानी जाती हैं।
साथ ही सैम पित्रोदा के एनजीओ ‘ग्लोबल नॉलेज इनिशिएटिव’ को यूएसएआईडी, रॉकफेलर फाउंडेशन और अमेरिकी विदेश विभाग से फंडिंग मिलती रही है।
इन सभी बातों को मिलाकर यह संकेत मिलता है कि राहुल गाँधी और उनके सहयोगियों के विदेशी संगठनों और भारत-विरोधी तत्वों के साथ संबंध हो सकते हैं। ये गतिविधियाँ भारत की राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप की आशंका को और मजबूत करती हैं।
राजनीतिक राजद्रोह या सिर्फ गलत निर्णय?
हालाँकि मोसाद के कथित खुलासे की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन जो परिस्थितियाँ सामने आई हैं वे राहुल गाँधी की राजनीति की एक गंभीर और चिंताजनक तस्वीर पेश करती हैं।
राहुल गाँधी ने हाल के वर्षों में सोरोस से जुड़े एक्टिविस्टों से मिलने और विदेशी ताकतों को भारत के खिलाफ बोलने वालों को आगे बढ़ाने का काम किया है। ये वे सीमाएँ हैं जिन्हें एक जिम्मेदार विपक्षी नेता को कभी पार नहीं करना चाहिए, खासकर एक लोकतंत्र में।
उनका हालिया ट्वीट, जिसमें उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप से प्रधानमंत्री मोदी, अडानी और रूस के तेल व्यापार से जुड़ी कथित वित्तीय जानकारी ‘उजागर’ करने की अपील की, वह न सिर्फ बेबुनियाद है, बल्कि यह भारत की आंतरिक नीति में विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देने के खतरे के बहुत करीब माना जा रहा है।
इस तरह के बयान और गतिविधियाँ भारत की भू-राजनीतिक स्थिति, आर्थिक स्थिरता और वैश्विक सहयोगियों के साथ रिश्तों को नुकसान पहुँचा सकती हैं। इन प्रयासों को एक राजनीतिक वापसी की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, खासकर तब जब कॉन्ग्रेस को लगातार तीन लोकसभा चुनावों और कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा है।
भारत पर वाशिंगटन का बढ़ता दबाव और अडानी कार्ड
राहुल गाँधी की हालिया टिप्पणी को समझने के लिए उसका पूरा संदर्भ जानना जरूरी है। अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह एक ऐसा व्यापार समझौता करे जो भारत के लिए असंतुलित है लेकिन अमेरिकी हितों के लिए काफी फायदेमंद है।
जब भारत ने इस तरह के समझौते पर आपत्ति जताई, तो अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 25% तक टैक्स लगाने की धमकी दी। इस बीच, अमेरिका ने भारत पर यह आरोप भी लगाया कि वह ‘रूस की युद्ध मशीन को फंड कर रहा है’, जबकि सच्चाई ये है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ खुद रूस से अरबों डॉलर की चीजें आज भी आयात कर रहे हैं। ऐसे में यह आरोप पाखंड भरा और दोहरा मापदंड दिखाता है।
ऐसे संवेदनशील समय में राहुल गाँधी अगर अडानी मामले की आड़ लेकर अमेरिका के आरोपों का समर्थन करते हैं, तो यह भारत पर अमेरिकी दबाव को और बढ़ाने जैसा है। इस तरह की राजनीति से एकतरफा और भारत विरोधी व्यापार समझौते का रास्ता खुल सकता है, जिससे भारत की आर्थिक स्वतंत्रता और संप्रभुता को नुकसान पहुँच सकता है।
राहुल गाँधी किसके पक्ष में हैं?
लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका बेहद अहम होती है। वह सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है, गलतियों को उजागर करता है और जनता की आवाज को मंच देता है। लेकिन जब कोई नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते विदेशी ताकतों से मेलजोल बढ़ाए तो वह शत्रुतापूर्ण और भारत-विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा देता है।
इसके साथ ही वह राष्ट्रीय हितों से समझौता करने जैसा जोखिम उठाता है, तब असहमति और विश्वासघात के बीच की रेखा धुंधली होने लगती है। राहुल गाँधी के पिछले बयानों और विदेश दौरों से जुड़ी गतिविधियाँ इसी ओर इशारा करती हैं।
उन पर विदेशी हस्तक्षेप को हवा देने, संदिग्ध अंतरराष्ट्रीय संगठनों और लॉबियों से जुड़ने और अब अडानी मुद्दे को आधार बनाकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भारत के खिलाफ कार्रवाई की अपील करने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं।
यह सब मिलाकर एक बड़ा और चिंताजनक सवाल खड़ा करता है। क्या राहुल गाँधी आज भारत की विपक्षी राजनीति की आवाज हैं या फिर वे किसी विदेशी एजेंडे की पटकथा निभा रहे हैं?