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वित्तीय धोखाधड़ी के लिए ओडिशा ट्रस्ट का इस्तेमाल, कॉर्पोरेट दलालों को फायदा पहुँचाने के लिए पूछे सवाल: पूर्व सांसद पिनाकी मिश्रा के खिलाफ 2 शिकायतें दर्ज, पढ़ें सारी डिटेल


पूर्व सांसद और वरिष्ठ वकील पिनाकी मिश्रा के खिलाफ दो शिकायतें 25 अगस्त 2025 को ऑपइंडिया के हाथ लगी। ये गृह मंत्रालय और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में दर्ज की गई थी। ये राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है। एक शिकायत में वित्तीय अनियमितताओं और संपत्ति के लेन-देन का ब्यौरा था, जबकि दूसरी शिकायत में संसद में उनके आचरण को लेकर जानकारी दी गई थी।

संसद में उन्होंने देश की सबसे संवेदनशील रक्षा संपत्तियों पर बार-बार सवाल पूछे थे। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि ये मामले राष्ट्रीय सुरक्षा और कॉर्पोरेट हितों के टकराव से जुड़े हैं। शिकायत दो भागों में है। एक में संपत्तियों की खरीद-फरोख्त और वित्तीय लेन-देन में कथित अनियमितता की बात कही गई है। जबकि दूसरी शिकायत संसद में मिश्रा के पूछे गए सवालों और उनकी गतिविधियों से जुड़ा है। संसद में उन्होंने भारत की परमाणु पनडुब्बियों, मिसाइल प्रणालियों और प्रमुख रक्षा सौदों से जुड़े कई सवाल पूछे थे।

इन दोनों मामलों को मिला कर देखा जाए, तो ये बेहद संगीन नजर आता है। इसकी जाँच की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि दोनों शिकायतों को संबंधित अधिकारियों ने स्वीकार कर लिया है और इन मामलों में आगे की जाँच शुरू कर दी गई है। शिकायतकर्ता ने पिनाकी मिश्रा और उनकी पत्नी महुआ मोइत्रा के गलत कार्यों के बीच समानताएँ भी बताई हैं। महुआ मोइत्रा पर संसद में व्यवसायी गौतम अडानी को निशाना बनाकर सवाल पूछकर एक दूसरे व्यवसायी की मदद करने का आरोप था।

वित्तीय अनियमितता, संपत्ति अधिग्रहण का मामला

शिकायतकर्ता ने मिश्रा के वित्तीय लेन-देन और संपत्ति अधिग्रहण पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने उनके पिछले संबंधों, खास कर चंद्रास्वामी को लेकर सवाल पूछे हैं।

शिकायतकर्ता ने बताया कि कैसे दिल्ली के गोल्फ लिंक्स और जोर बाग स्थित दो प्रमुख संपत्तियों को हासिल किया गया। इन संपत्तियों को खरीदा नहीं गया, बल्कि कंपनी के शेयरों की खरीद के जरिए हासिल किया गया। बताया जाता है कि बंगलों को सीधे रिजिस्ट्री कराने के बजाय, मिश्रा ने होल्डिंग कंपनियों, जुपिटर एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड और व्हाइट लिली एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड का अधिग्रहण कर लिया। ये तीनों नरेंद्रजीत कोली नाम के एक ही व्यक्ति से खरीदा गया था।

शिकायतकर्ता ने इसके पीछे की मंशा को लेकर कहा कि संपत्तियों की खरीब-फरोख्त इस तरह से की गई, ताकि मिश्रा जाँच से बच जाएँ। इनकी खरीद की टाइमिंग पर सवाल खड़े करते हुए कहा गया है कि उस वक्त मिश्रा अपेक्षाकृत युवा वकील थे। दिल्ली हाईकोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक उनकी संपत्ति कम थी और आय कुछ लाख रुपए थी।

2017 में मिश्रा और उनकी पूर्व पत्नी संगीता मिश्रा से जुड़े इनकम टैक्स के मामले में, कोर्ट ने पाया कि उनकी घोषित आय से इतनी महँगी संपत्ति खरीदना तर्कसंगत नहीं लगता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इनकम टैक्स अधिकारियों ने हांगकांग के एक व्यक्ति द्वारा संगीता मिश्रा के खाते में भेजे गए 3,05,000 अमेरिकी डॉलर के धन का पता चला। इसे ‘प्रेम और स्नेह’ से दिए गए ‘गिफ्ट’ के तौर पर दिखाया गया था। जिस पर टैक्स नहीं लगा था।

शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि कोई विदेशी, बगैर व्यावसायिक लाभ के इतनी बड़ी रकम क्यों किसी को देगा? उससे कोई सीधा पारिवारिक संबंध भी नहीं था। ये स्थिति असंभव तो नहीं, लेकिन संदिग्ध जरूर है। ‘गिफ्ट’ को सही ठहराने के लिए दायर हलफनामे ने संदेह और गहरा गया। ये कोई साधारण अनियमितता या तकनीकी खामी नहीं थीं, बल्कि ऐसे लेन-देन थे, जिनकी आधिकारिक जाँच बेहद जरूरी था।

शिकायत में मिश्रा के चंद्रास्वामी के साथ लंबे समय से जुड़े होने का भी जिक्र किया गया है । 1980 और 1990 के दशक में चंद्रास्वामी का संबंध राजनेताओं, व्यापारियों और अंतरराष्ट्रीय हस्तियों से था। विवादास्पद हथियार डीलर अदनान खशोगी से भी उनके करीबी रिश्ते थे। ऑपइंडिया को शिकायतकर्ता के दर्ज कराए गए दस्तावेज की कॉपी मिली है। इससे पता चलता है कि मिश्रा 1983 में स्नातक होने के तुरंत बाद चंद्रास्वामी के वकील बन गए और एक दशक से भी ज्यादा समय तक उनके साथ जुड़े रहे।

शिकायतकर्ता के अनुसार, मिश्रा ने चंद्रास्वामी के साथ कम से कम 22 विदेश यात्राएँ की। इनमें लंदन और न्यूयॉर्क की यात्राएँ शामिल हैं, जहाँ चंद्रास्वामी के वित्तीय लेन-देन और विवादास्पद व्यक्तियों के साथ मेलजोल होता था।

शिकायतकर्ता ने 1996 में पड़े इनकम टैक्स छापे का भी जिक्र किया। इसमें मिश्रा से साबित नहीं कर पाए कि उन्होंने विदेश यात्राएँ अपने कानूनी काम के लिए की थी। लगभग उसी समय, मिश्रा के चाचा रंगनाथ मिश्रा भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मिश्रा ने खुद दावा किया था कि उन्होंने कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के विशेष कार्य अधिकारी के रूप में काम किया था। पारिवारिक प्रभाव, पेशेवर संबंधों और बेहिसाब संपत्ति के इस गठजोड़ ने शिकायतकर्ता के संदेह को और बढ़ा दिया।

अपने संस्मरणों में, पूर्व सीबीआई अधिकारी निर्मल कुमार सिंह ने चंद्रास्वामी के खिलाफ जाँच में बाधा डालने में मिश्रा की कथित भूमिका के बारे में बताया है। इसमें अधिकारियों को आश्रम में प्रवेश करने से रोकना, केस फाइलें हासिल करना और गवाहों को धमकाना जैसी बातें शामिल हैं। शिकायतकर्ता ने जाँच में बाधा डालने से लेकर इनकम टैक्स और संपत्तियों का मालिकाना हक और अदालती रिकॉर्ड की जानकारी, यह तर्क देने के लिए दिया है कि मिश्रा के पूरे करियर में संदिग्ध वित्तीय और व्यावसायिक लेन-देन एक पैटर्न रहा है।

संसद में मिश्रा के पूछे गए सवाल

दूसरी शिकायत मिश्रा की सांसद के रूप में भूमिका पर केन्द्रित है। इसमें लोकसभा में उनके चार कार्यकालों में उठाए गए छह सौ से ज्यादा सवालों का रिकॉर्ड शामिल है। इनमें से काफी सवाल भारत की सैन्य तैयारियों और रक्षा खरीद से जुड़े थे। हालाँकि सांसदों द्वारा सरकार से शासन, बजट और विकास के बारे में सवाल पूछना आम बात है, लेकिन मिश्रा के सवाल बेहद संवेदनशील क्षेत्रों से जुड़े तकनीकी जानकारियों से भरे थे।

शिकायतकर्ता ने मिश्रा द्वारा पूछे गए उन सवालों का उदाहरण दिया, जिनमें उन्होंने आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र सहित भारत की परमाणु ऊर्जा संचालित पनडुब्बियों की परिचालन स्थिति के बारे में जानकारी माँगी थी। एक सवाल में उन्होंने आईएनएस अरिहंत को हुए नुकसान, मरम्मत की अनुमानित लागत और इसे समुद्र में चलने लायक बनाने की समय-सीमा के बारे में पूछा था। इसका सरकार ने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के आधार पर उत्तर देने से इनकार कर दिया था। एक अन्य प्रश्न में, उन्होंने आईएनएस चक्र के बारे में भी ऐसी ही जानकारी मांगी थी।

इसके अलावा, उन्होंने फ्रांस के साथ राफेल सौदा, वियतनाम के साथ सुखोई-30 विमानों के पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम और पुराने रक्षा उपकरणों के कथित उपयोग पर भी सवाल पूछे थे। शिकायत के अनुसार, इन सवालों की विशिष्टता से पता चलता है कि ये व्यापक नीतिगत स्पष्टीकरण प्राप्त करने के बजाय संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने के लिए तैयार किए गए थे। इसलिए, शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि ये संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने का प्रयास था।

रक्षा प्रश्न और कथित रूस-विरोधी झुकाव

ऑपइंडिया द्वारा प्राप्त किए गए डॉसियर से पता चलता है कि संसद में मिश्रा ने एक तरह के सवाल ज्यादा पूछे। कई प्रश्न रूस से प्राप्त रक्षा प्रणालियों पर केंद्रित थे। इससे रूस-विरोधी रुझान का पता चलता है। उन्होंने बार-बार पट्टे पर ली गई पनडुब्बी आईएनएस चक्र को लेकर सवाल, एटीवी कार्यक्रम की स्थिति, रूस से प्राप्त किए गए एस-400 वायु रक्षा प्रणाली के बारे में सवाल पूछे।

उन्होंने ये भी पूछा कि क्या अमेरिका ने भारत द्वारा एस-400 प्रणाली की खरीद पर आपत्ति जताई थी? एक अन्य प्रश्न में, उन्होंने सौदे से जुड़ी जानकारी माँगी। इसमें किश्तें और कितना भुगतान किया गया, यह भी शामिल था। शिकायतकर्ता ने बताया कि पूछताछ का तरीका अमेरिकी हथियार निर्माताओं की माँग के अनुरूप था। ये लोग भारत को THAAD और पैट्रियट जैसी प्रणालियाँ बेचना चाहते थे।

इसके अलावा, बजटीय आवंटन के बारे में भी सवाल थे। उदाहरण के लिए, उन्होंने पूछा कि क्या भारत के रक्षा बजट में पिछले हथियार सौदों के भुगतान को शामिल किया गया है? और नए हथियारों की खरीद के लिए कितनी राशि बची है। शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि अगर ऐसे सवालों के विस्तार से जवाब दिए जाएँ, तो विदेशी ताकतों को भारत की खरीद प्राथमिकताओं का रोडमैप मिल सकता है। बार-बार पूछे गए ये सवाल ये दर्शाते हैं कि आगे जाँच जरूरी है।

कॉर्पोरेट संबंध और सवाल

शिकायतकर्ता ने कॉर्पोरेट हितों के टकराव का भी आरोप लगाया है। मिश्रा जब कोयला, बिजली और इस्पात क्षेत्रों की कई संस्थाओं के जब वकील थे, उस वक्त संसद में कोयला भंडारों, बिजली संयंत्रों और सरकारी खदानों में कोयला माफियाओं की भूमिका पर सवाल पूछे थे।

2015 और 2017 के बीच, मिश्रा ने कोयला खदानों के आधुनिकीकरण, लोडिंग-अनलोडिंग के दौरान चोरी और कोयला प्रबंधन में माफिया तत्वों के हस्तक्षेप के बारे में सवाल उठाए। शिकायतकर्ता ने कहा कि ये सवाल उन मामलों से काफी मिलते-जुलते हैं , जिन पर वह कोर्ट में जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड सहित इस क्षेत्र की कंपनियों के वकील के रूप में बहस कर रहे थे।

ये बात सिर्फ कोयले तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने विमानन क्षेत्र से जुड़े कई सवाल भी पूछे, जिनमें एयरलाइन रूट, हवाई अड्डों का विस्तार और सीप्लेन को बढ़ावा देना शामिल था। वहीं दूसरी ओर वह ब्रैडी एयर प्राइवेट लिमिटेड और ब्रैडी एंड मॉरिस इंजीनियरिंग जैसी कंपनियों के निदेशक के रूप में भी काम किया। इन कंपनियों की विमानन और बुनियादी ढाँचे में हिस्सेदारी थी।

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि सांसद और कॉर्पोरेट के प्रतिनिधि के रूप में दोहरी भूमिका, संसदीय विशेषाधिकारों का दुरुपयोग है।

शिकायतकर्ता द्वारा उठाए गए प्रश्न

शिकायतकर्ता ने मिश्रा के खिलाफ अपने आरोपों के समर्थन में 13 सवाल उठाए। शिकायतकर्ता के अनुसार, मिश्रा ने अपने संसदीय पद का इस्तेमाल करके संवेदनशील जानकारी हासिल करने की शुरुआत अपने पहले संसदीय कार्यकाल से ही शुरू कर दिया था।

अगस्त 1996 में, उन्होंने लोकसभा में गृह मंत्री से उस वर्ष जून में दिल्ली में बरामद आरडीएक्स और हथियारों के बारे में पूछा था। सरकार ने एके-56 राइफलों, ग्रेनेड, टाइमर और आरडीएक्स सहित बरामदगी की जानकारी दी और पुष्टि की कि गिरफ्तारियाँ की गईं और कानूनी कार्रवाई की गई। शिकायतकर्ता ने उनके इस इरादे पर सवाल उठाया, क्योंकि मिश्रा उस वक्त चल रही आतंकवाद-रोधी जाँच की जानकारी माँग रहे थे। ऐसी जानकारी आम तौर पर संवेदनशील मानी जाती है। एजेंसियाँ न्यायिक कार्यवाही पूरी होने तक इसका खुलासा नहीं करती हैं।

उसी साल जुलाई में, मिश्रा ने प्रधानमंत्री से यह भी पूछा था कि क्या सरकार ने दाभोल बिजली परियोजनाओं के लिए एनरॉन के साथ संशोधित समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और उससे जुड़ी विस्तृत जानकारी भी दी है। हालाँकि सरकार ने जानकारी उपलब्ध करा दी थी, लेकिन शिकायतकर्ता ने सवाल उठाया कि पुरी का एक सांसद महाराष्ट्र की एक विवादास्पद बिजली परियोजना पर सवाल क्यों कर रहा है?

2017 की बात करें, तो मार्च में मिश्रा ने रक्षा मंत्रालय से पूछा था कि क्या वियतनामी लड़ाकू पायलटों को भारत में सुखोई-30 एमकेआई विमानों पर प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्होंने प्रशिक्षित किए जाने वाले पायलटों की संख्या, प्रशिक्षण की अवधि पर सवाल पूछा। साथ ही पूछा कि क्या भारतीय लड़ाकू पायलटों को विदेश में उन जेट विमानों पर प्रशिक्षित किया जाएगा जिन्हें सरकार खरीदने का प्रस्ताव रखती है। हालाँकि सरकार ने जानकारी दी थी कि भारत और वियतनाम, वियतनामी वायु सेना के कर्मियों को सुखोई-30 विमानों पर प्रशिक्षण देने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने पर सहमत हो गए हैं। लेकिन, शिकायतकर्ता ने चिंता जताई कि मिश्रा के प्रश्न में प्रशिक्षण की संख्या और अवधि सहित सटीक परिचालन विवरण मांगा गया था। ऐसी जानकारी संवेदनशील होती है और आमतौर पर संसद में नहीं उठाई जाती।

फरवरी 2018 में, पिनाकी मिश्रा ने विदेश मंत्रालय से पूछा था कि क्या उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण के बाद भारत पर अमेरिका का दबाव था कि वह प्योंगयांग के साथ अपने संबंधों को कम करे। उन्होंने आगे पूछा था कि क्या सरकार ने उत्तर कोरिया से अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को वापस लेने का आग्रह किया था, क्या भारत इस मुद्दे को सुलझाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से बातचीत कर रहा था। इसके क्या रिजल्ट थे।

सरकार ने जवाब दिया कि भारत उत्तर कोरिया की गतिविधियों को लेकर अंतरराष्ट्रीय चिंताओं से सहमत है। सरकार ने यह भी कहा कि भारत ने उत्तर कोरिया से ऐसी कार्रवाइयों से बचने का आह्वान किया है। शिकायतकर्ता ने चिंता जताई कि मिश्रा की पूछताछ का उद्देश्य उत्तर कोरिया, अमेरिका और वैश्विक परमाणु अप्रसार ढाँचे से जुड़ी संवेदनशील वार्ताओं में भारत की कूटनीतिक स्थिति की जाँच करना था, जो कुल मिलाकर रणनीतिक रूप से अहम हैं।

मार्च 2018 में, मिश्रा ने रक्षा मंत्रालय से पूछा था कि क्या आईएनएस चक्र को भारी नुकसान पहुँचा है और उसे ड्राई-डॉक में रखा गया है। उन्होंने आगे यह भी पूछा कि क्या नुकसान का आकलन किया गया है, उसकी सीमा क्या है, मरम्मत की अनुमानित लागत कितनी है, और पनडुब्बी कब तक फिर से समुद्र में उतरने के लिए तैयार हो जाएगी।

मार्च 2018 में ही, उन्होंने मंत्रालय से आईएनएस अरिहंत को हुए नुकसान के बारे में फिर से पूछा। उन्होंने विशेष रूप से मरम्मत की अनुमानित लागत और उस समय-सीमा का विवरण माँगा जिसके भीतर पनडुब्बी की मरम्मत की जाएगी और उसे पूरी परिचालन क्षमता के साथ फिर से सेवा में लाया जाएगा। मंत्रालय ने दोनों ही सवालों का जवाब नहीं दिया और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ऐसी जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि अगर सरकार ने जवाब दिया होता, तो यह जानकारी विरोधी शक्तियों के लिए बहुत मूल्यवान हो सकती थी। एक तरह से, मिश्रा ने वैध संसदीय निगरानी से कहीं आगे जाकर गोपनीय रक्षा क्षमता के क्षेत्रों में भी दखल दिया।

फिर अप्रैल 2018 में, मिश्रा ने रक्षा मंत्रालय से 2018-19 के बजट में नई हथियार प्रणालियों और आधुनिकीकरण के लिए बजटीय आवंटन का विवरण मांगा । उन्होंने आगे यह भी पूछा कि क्या इस आवंटन में पहले के हथियार सौदों की किश्तें शामिल हैं और यदि हाँ, तो उसका विवरण भी। साथ ही पूछा कि भारतीय सेना के लिए नई खरीद के लिए कितने पैसे बचे हुए हैं। सरकार ने ये जानकारी दी, लेकिन शिकायतकर्ता ने दावा किया कि भारत की रक्षा खरीद योजना के सटीक आंकड़ों की जानकारी माँगने वाले ऐसे प्रश्न संवेदनशील हैं और हमारी प्राथमिकताओं को बताते हैं। ये जानकारियाँ विदेशी हथियार आपूर्तिकर्ताओं और विरोधी संस्थाओं के लिए काम की हो सकती हैं।

जुलाई 2018 में, उन्होंने रक्षा मंत्रालय से पूछा था कि क्या आधुनिकीकरण के लिए 86,488 करोड़ रुपए सहित बजट में 6% की वृद्धि से रक्षा तैयारियाँ ठप हो जाएँगी। उन्होंने यह भी पूछा था कि क्या चीन का रक्षा बजट भारत के बजट से लगभग तिगुना है और सरकार सीमित वृद्धि के साथ सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की योजना कैसे बना रही है। इसकी जानकारी भी उपलब्ध कराई गई थी। शिकायतकर्ता ने जोर देकर कहा कि प्रश्न इस तरह से तैयार किए गए थे कि उन्हें एक संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा माना जा सकता है।

अगस्त 2015 में, मिश्रा और अन्य सांसदों ने रक्षा मंत्रालय से पिछले तीन वर्षों और चालू वर्ष में उग्रवाद, आतंकवाद और सीमा पार गोलीबारी में मारे गए सुरक्षाकर्मियों की संख्या के बारे में पूछा था। उन्होंने आगे यह भी पूछा कि क्या सरकार ने इन हताहतों के कारणों का विश्लेषण किया है, क्या परिवारों को मुआवज़ा दिया गया है, कारगिल युद्ध के बाद से कितने रक्षा सौदे किए गए हैं, और घुसपैठ और आतंकवाद से निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। सरकार ने इनकी जानकारियाँ भी दी थी। शिकायतकर्ता ने कहा कि इस तरह के प्रश्नों में विस्तृत खरीद आवश्यकताओं और परिचालन कमजोरियों के बारे में पूछा गया था। अगर पूरी जानकारी का खुलासा किया जाए, तो इससे भारत की कमियों का पता चल सकता है और रक्षा लॉबिस्टों को इससे मदद मिल सकती है।

अगस्त 2016 में, मिश्रा और दो अन्य सांसदों ने रक्षा मंत्रालय से पूछा था कि क्या फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए मूल्य निर्धारण और संबंधित मुद्दों पर बातचीत पूरी हो गई है। उन्होंने वर्तमान स्थिति, बातचीत पूरी होने और विमानों की आपूर्ति की समय-सीमा और भारतीय वायु सेना में फाइटर विमानों की कमी को दूर करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी माँगी। इसे भी सरकार ने उपलब्ध कराया। लेकिन, शिकायतकर्ता ने दावा किया कि ऐसे सवालों से भारत की बातचीत की स्थिति और विरोधियों के सामने उसकी परिचालन क्षमताएँ उजागर हो सकती थीं।

मार्च 2018 में, मिश्रा और अन्य सांसदों ने जहाजरानी मंत्रालय से पूछा था कि क्या ईरान में चाबहार बंदरगाह के चालू होने से भारत के व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। किन देशों के साथ भारत के व्यापार विस्तार की संभावना है। उन्होंने आगे उन उत्पादों का विवरण माँगा जिनसे लाभ होने की उम्मीद है। हालाँकि जानकारी प्रदान की गई थी, लेकिन शिकायतकर्ता ने कहा कि इस तरह के विस्तृत खुलासे, अगर दुरुपयोग किए गए, तो भारत की रणनीतिक कमजोरियों को उजागर कर सकते हैं और लॉबिंग के हितों को बढ़ावा दे सकते हैं।

जुलाई 2019 में, मिश्रा और तीन सांसदों ने पूछा था कि क्या सरकार रूस की एस-400 प्रणाली खरीदने की योजना बना रही है और इसकी लागत और अन्य देशों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं जैसे विवरण मांगे थे। हालाँकि जानकारी प्रदान की गई थी, और सरकार ने यह भी कहा था कि भारत खतरे की आशंका, परिचालन और तकनीकी पहलुओं के आधार पर संप्रभु निर्णय लेता है। शिकायतकर्ता ने कहा कि किसी रणनीतिक खरीद से जुड़ी लागत और तीसरे देश के दबाव के विवरण जैसे प्रश्न, विदेशी आपत्तियों को बढ़ा सकते हैं।

दिसंबर 2019 में, मिश्रा ने महत्वपूर्ण हथियारों के स्वदेशीकरण, रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने की योजनाओं और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने के उपायों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में पूछा था । सरकार ने जानकारी उपलब्ध कराई। हालाँकि, शिकायतकर्ता ने दावा किया कि इस तरह के विस्तृत खुलासे से हथियारों की खरीद फरोख्त की प्राथमिकताओं का पता चल सकता है।

दिसंबर 2022 में, मिश्रा ने खान मंत्रालय से पूछा था कि क्या खनिजों की रॉयल्टी दरों की समीक्षा के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, उस पर क्या कार्रवाई की गई है, क्या सरकार ने रॉयल्टी दरों में संशोधन के लिए कोई समय-सीमा तय की है, और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं। सरकार ने यह जानकारी उपलब्ध कराई थी। हालाँकि, शिकायतकर्ता ने दावा किया कि कोयला और खनिज रॉयल्टी संशोधन पर उनके द्वारा माँगी गई विस्तृत जानकारी कोर्पोरेट को फायदा पहुँचाने की तरकीब थी, क्योंकि वह प्रमुख खनन कंपनियों के वकील के रूप में भी पेश हुए थे।

विद्या ज्योति ट्रस्ट और मनी लॉन्ड्रिंग का मामला

कटक में दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) कलिंगा का संचालन करने वाले विद्या ज्योति ट्रस्ट के संबंध में आयकर महानिदेशालय (डीजीआईटी) को दी गई अपनी शिकायत में शिकायतकर्ता ने दावा किया है कि ट्रस्ट को आय कर अधिनियम की धारा 12ए के तहत छूट प्राप्त है, लेकिन इसका उपयोग कर चोरी और काले धन को वैध बनाने के लिए किया गया है।

इस ट्रस्ट की स्थापना 2001 में महिमानंद मिश्रा और माला मिश्रा ने की थी। इसके ट्रस्टी पिनाकी मिश्रा, उनकी पूर्व पत्नी संगीता मिश्रा और महिमानंद मिश्रा के बेटे चर्चित और चंदन मिश्रा थे। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि वित्त वर्ष 2015-16 और वित्त वर्ष 2024-25 के बीच स्कूलों के बैंक खातों में सालाना 1 करोड़ रुपये से लेकर 12 करोड़ रुपये तक की बड़ी नकदी जमा की गई। गौरतलब है कि नोटबंदी वाले साल, वित्त वर्ष 2016-17 में लगभग 8 करोड़ रुपये जमा किए गए थे, जिसके बारे में शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि यह बेहिसाब धन को सफेद करने की जानबूझकर की गई मंशा को दर्शाता है।

लगभग 3,000 छात्रों के नामांकन वाले इस स्कूल की वार्षिक फीस प्रति बच्चा 1.2-2 लाख रुपए है। यानी इसका औसत कारोबार 40-50 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है। हालाँकि, शिकायत में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि घोषित आय लगातार 40 करोड़ रुपये से कम रही, जो पैसों को छिपाने और ट्रस्टियों के लाभ के लिए धन के दुरुपयोग का दर्शाता है। इसमें आगे आरोप लगाया गया है कि ट्रस्ट ने वेतन, विज्ञापन और रखरखाव जैसे खर्चों के लिए आय के उपयोग का दावा किया, लेकिन एक दशक तक सालाना 20-30 करोड़ रुपए के भुगतान पर टीडीएस नहीं काटा गया।

शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रस्टी माला और संगीता को “पेशेवर शुल्क” के रूप में सीधे पैसे ट्रांसफर किए गए थे। शिकायत में इन्हें अधिनियम की धारा 13(3) का उल्लंघन बताते हुए फर्जी लेनदेन बताया गया है।

इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि पिनाकी मिश्रा ने इनकम टैक्स की घोषणाओं में संपत्तियों का कम मूल्यांकन कर, संदिग्ध तरीकों से 300 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की संपत्तियां और कलाकृतियाँ अर्जित कीं। इसमें विशेष रूप से 80 करोड़ रुपए की कलाकृतियों की ओर इशारा किया गया, लेकिन उनकी कीमत केवल 6-8 करोड़ रुपये बताई गई। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि वित्त वर्ष 2020-21 में, मिश्रा ने अपने बेटे धनराज मिश्रा के नाम पर लंदन में एक संपत्ति खरीदने के लिए हवाला के माध्यम से पैसे भेजने के लिए जोर बाग की एक संपत्ति बाजार मूल्य से कम पर बेच दी।

ये शिकायतें दर्शाती हैं कि मामला सिर्फ वित्तीय या कॉर्पोरेट विवादों का नहीं है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है। भारत की परमाणु संपत्तियों, मिसाइल प्रणालियों और रक्षा सौदों पर बार-बार ध्यान केंद्रित करना इस बात का सबूत है कि संसदीय विशेषाधिकार का दुरुपयोग किया गया है।

(मूल रूप से ये लेख अंग्रेजी में लिखी गई है। इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें)

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