संसद मॉनसून सत्र 2025

संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई 2025 को शुरू हुआ था और 21 अगस्त को समाप्त हो गया। सत्र शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सांसदों से देशहित में एकजुट होकर सार्थक चर्चा की अपील की थी। उन्हें उम्मीद थी कि यह सत्र देश को प्रगति देने वाले फैसलों से भरा होगा लेकिन यह पूरा सत्र विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया।

हालाँकि, प्रधानमंत्री की अपील भी बेअसर ही रही। जिन जिम्मे इस देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए कानूनों का निर्माण करना है, वो सांसद SIR जैसे मुद्दों के नाम पर संसद में भी हंगामा कर अपना वोट बैंक साधने में लगे हैं। इस मॉनसून सत्र में राज्यसभा केवल 39% और लोकसभा केवल 31% काम कर पाई। इस पूरे सत्र में 200 करोड़ रुपए से अधिक बर्बाद हो गए। जाहिर है ये पैसे हमारे, आपके टैक्स के ही पैसे हैं।

संसद में कामकाज का हाल

जानकारी के मुताबिक, राज्यसभा में 41 घंटे 15 मिनट की कार्यवाही हुई यानी निर्धारित समय के मुकाबले सिर्फ 38.88% काम हो सका। वहीं, लोकसभा में 120 घंटे निर्धारित थे लेकिन काम सिर्फ 37 घंटे ही हो पाया।

इसके अलावा राज्यसभा में 285 प्रश्नों में से सिर्फ 14 लिए गए, जीरो ऑवर सबमिशन (शून्यकाल) के 7 नोटिस और 61 विशेष उल्लेख ही हो सके। वहीं, लोकसभा में 419 तारांकित प्रश्नों में सिर्फ 55 के उत्तर दिए जा सके।

विधेयकों का हाल

इस सत्र में राज्यसभा में 15 और लोकसभा में 12 विधेयक पारित हुए, जिनमें से हंगामे के चलते अधिकतर बिना चर्चा या बहुत ही सीमित चर्चा के पारित किए गए। इनमें आयकर विधेयक 2025, कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग संशोधन विधेयक, ऑनलाइन गेमिंग विनियमन विधेयक, समुद्र द्वारा वस्तुओं की ढुलाई विधेयक, तटीय जहाजरानी विधेयक, भारतीय बंदरगाह विधेयक, खनिज एवं खनन (विकास एवं विनियमन) संशोधन विधेयक शामिल है। इसके अलावा संविधान का 130वाँ संशोधन विधेयक फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया।

सबसे अहम चर्चा: ऑपरेशन सिंदूर

पूरे सत्र में एकमात्र गंभीर चर्चा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हुई। इसमें लोकसभा में खुद प्रधानमंत्री मोदी और राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जवाब दिया। यह भारत की सैन्य सफलता और सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा था, जिस पर सदन में विस्तार से चर्चा हुई। हालाँकि, इस पर चर्चा के दौरान भी विपक्षी सांसद हंगामा करते रहे।

विवाद और हंगामा

इस पूरे सत्र में विपक्ष के हंगामे का सबसे बड़ा कारण था- बिहार में SIR प्रक्रिया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि इसके जरिए राज्य के लोगों के वोट काटे जा रहे हैं। चूँकि बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं, विपक्ष इस मुद्दे को लेकर लगातार हंगामा करता रहा। सदन में नारेबाजी, तख्तियाँ लहराना, बिल फाड़ना जैसे दृश्य भी देखने को मिले।

लगातार 20 दिनों तक इंडिया ब्लॉक से जुड़े विपक्षी दलों ने SIR के मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा के अंदर और बाहर जमकर हंगामा किया। यही वजह है कि दोनों सदनों की कार्यवाही लगातार बाधित होती रही।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने सांसदों के व्यवहार पर लगातार नाराजगी जताई। संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा कि असहमति लोकतंत्र का हिस्सा है लेकिन संसद को बाधित करना अलोकतांत्रिक है। एक और हैरानी की बात ये भी है कि कैप्टन शुभांशु शुक्ला तक पर भी चर्चा तक नहीं हो सकी।

कितना हुआ आर्थिक नुकसान?

रिपोर्ट्स के अनुसार, लोकसभा में 83 घंटे काम नहीं हुआ, इससे कुल 124 करोड़़ 50 लाख रुपए बर्बाद हुए। वहीं, राज्यसभा में 73 घंटे की बर्बादी से 80 करोड़़ रुपयों की बर्बादी हुई। यानी दोनों सदनों को मिलाकर 204 करोड़ 50 लाख रुपए पूरी तरह से बर्बाद हो गए। आँकडों की बात करें तो संसद की प्रति मिनट कार्यवाही पर करीब 2.50 लाख रुपए खर्च होते हैं, मतलब 1 दिन की संसद की कार्यवाही पर करीब 9 करोड़ का खर्च होता है। बर्बाद हुआ यह पैसा किसी पार्टी का नहीं बल्कि देश की आम जनता की मेहनत की कमाई थी।

राज्य सभा के डिप्टी चेयरमैन हरिवंश ने कहा, “कोशिशों के बावजूद ये सत्र व्यवधानों के की वजह से प्रभावित हुआ, इससे बार-बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। इससे न केवल संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद हुआ, बल्कि सार्वजनिक महत्व के कई मामलों पर चर्चा और विचार-विमर्श संभव नहीं हो सका।”

लोक सभा स्पीकर ओम बिरला ने अपने समापन भाषण में कहा, “जनप्रतिनिधि के रूप में हमारे आचरण और कार्यप्रणाली को पूरा देश देखता है। जनता बहुत उम्मीदों के साथ चुनकर सदन में भेजती है। सहमति और असहमति होना लोकतंत्र की स्वाभाविक प्रक्रिया है, किंतु हमारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि सदन गरिमा, मर्यादा और शालीनता के साथ चले।”

उन्होंने कहा, “सदन में नियोजित गतिरोध कभी हमारी परंपरा नहीं रही है। हमें विचार करना होगा कि हम देश के नागरिकों को देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था के माध्यम से क्या संदेश दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि इस विषय पर सभी राजनीतिक दल और माननीय सदस्य गंभीर विचार और आत्म-मंथन करेंगे।”

विचार-विमर्श और गंभीर मुद्दों पर चर्चा तो दूर की बात है, अंतिम दिन लोकसभा स्पीकर की चाय पार्टी में भी विपक्ष के नेता नहीं पहुँचे। जिन्होंने सामान्य शिष्टाचार तक नहीं निभाया वो देश की जनता से कोई रिश्ता क्या ही निभा सकते थे।

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