डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ही नहीं, बल्कि असल जिंदगी में ‘लव जिहाद’ को लेकर बहस छिड़ी हुई है। एक तरफ कुछ लोग इसे हिंदूवादी समूहों की ‘कॉन्स्पिरेंसी थ्योरी’ बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ हकीकत के आईने में ये एक ऐसी घातक साजिश है, जो न सिर्फ परिवारों को तोड़ रही है, बल्कि देश की एकता को भी खोखला कर रही है। इस बीच ऑल्ट न्यूज ने एक रिपोर्ट छापी, जिसमें NBDSA (न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी) के एक पत्र का हवाला देकर लव जिहाद को पूरी तरह खारिज करने की कोशिश की।
ऑल्ट न्यूज का कहना है कि ये हिंदुत्व ग्रुप्स की अफवाह है, जिसमें मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों को फँसाकर धर्म बदलवाते हैं। लेकिन साहब ये कोई अफवाह नहीं, बल्कि कोर्ट रूम की चौखट पर साबित हो चुकी हकीकत है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक, जजों ने इसे राष्ट्रीय खतरा बताया है। आज हम इसी कड़वी सच्चाई को खोलकर रखेंगे, ताकि लीपापोती करने वाले चाहे वो छद्म वामपंथी हों या इस्लामी कट्टरपंथी अपनी आँखें बंद न रख सकें। ये कोई विचारधारा की जंग नहीं, बल्कि बेटियों की इज्जत और देश की सुरक्षा की लड़ाई है।
सबसे पहले समझते हैं, लव जिहाद आखिर है क्या? सरल शब्दों में कहें तो ये एक सुनियोजित जाल है, जिसमें मुस्लिम युवक अपनी असली पहचान छिपाकर गैर-मुस्लिम लड़कियों खासकर हिंदू या ईसाई से दोस्ती करते हैं। प्यार का बहाना बनाकर रिश्ता गहरा करते हैं, फिर शादी का लालच देकर या दबाव बनाकर धर्मांतरण करवाते हैं। ये सिर्फ प्यार की बात नहीं, बल्कि एक बड़ी साजिश का हिस्सा है- जनसंख्या बढ़ाने का, अपने मजहब को फैलाने का और देश को कमजोर करने का।
इसमें लड़कियाँ अक्सर फँस जाती हैं, क्योंकि वो युवावस्था में होती हैं, सपनों में खोई रहती हैं। लेकिन जब हकीकत सामने आती है, तो बहुत देर हो चुकी होती है। इज्जत दाँव पर लग जाती है, परिवार टूट जाते हैं, और कई बार जान तक चली जाती है। ऐसे मामलों में पैसे का लेन-देन भी होता है, जिसमें लड़कों को इनाम मिलता है, जैसे ईमान की कमाई के साथ-साथ पैसे की। ये कोई कल्पना नहीं, बल्कि दर्जनों कोर्ट केस और ट्रैकर्स के आँकड़ों से साबित है।
कोर्ट मान चुका है साजिश की बात, कई केस सामने
अब बात करते हैं कोर्ट की। भारत की न्यायपालिका ने लव जिहाद को कभी कॉन्स्पिरेंसी थ्योरी नहीं कहा, बल्कि इसे अपराध की श्रेणी में रखा है। लीजिए, जनवरी 2025 का वो ऐतिहासिक फैसला, जब सुप्रीम कोर्ट ने बरेली कोर्ट की टिप्पणियों को सही ठहराया। मामला मोहम्मद आलिम का था, जिसने खुद को ‘आनंद’ बताकर एक हिंदू महिला से दोस्ती की। प्यार का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए, गर्भवती किया, फिर धर्म बदलने का दबाव डाला।
जब महिला ने इनकार किया तो मारपीट की और जबरन गर्भपात करवाया। साल 2022 में पीड़िता ने बरेली पुलिस में शिकायत की। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 30 सितंबर 2024 को आलिम को उम्रकैद और 1 लाख का जुर्माना ठोका, उसके पिता साबिर को 2 साल की सजा दी। जज रवि कुमार दिवाकर ने फैसले में साफ कहा कि अवैध धर्मांतरण देश की एकता और संप्रभुता के लिए खतरा है। उन्होंने इसे ‘लव जिहाद’ की अंतरराष्ट्रीय साजिश बताया, जो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी स्थितियाँ पैदा करने का हथियार है। विदेशी फंडिंग की आशंका जताई और कहा कि अगर अंकुश न लगाया गया, तो भविष्य में गंभीर परिणाम होंगे।
इस फैसले से आहत होकर एक अनस नाम का शख्स सुप्रीम कोर्ट पहुँचा। उसने PIL दायर कर कहा कि बरेली जज की टिप्पणियाँ मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हैं, उन्हें हटा दो। लेकिन 2 जनवरी 2025 को जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की बेंच ने इसे सनसनीखेज बताकर खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा, “ये टिप्पणियाँ तथ्यों पर आधारित हैं, इन्हें हटाना उचित नहीं।” ये फैसला साफ संदेश देता है कि लव जिहाद कोई थ्योरी नहीं, बल्कि साक्ष्यों वाली साजिश है। ऑल्ट न्यूज जैसे प्लेटफॉर्म्स NBDSA के पत्रों का सहारा लेकर इसे ढकने की कोशिश करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उनकी सारी दलीलें धूल चाटने पर मजबूर कर देता है।
बरेली कोर्ट ने सामने रखी लव जिहाद की थ्योरी
बरेली कोर्ट ने ही लव जिहाद की पूरी थ्योरी को खोलकर रख दिया। जज दिवाकर ने कहा कि ये मुस्लिम पुरुषों की वो रणनीति है, जिसमें हिंदू महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। प्यार का बहाना, शादी का वादा, फिर निकाह के नाम पर धर्मांतरण। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के ‘प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलिजन एक्ट, 2021’ का हवाला दिया, जो जबरन, धोखे से या लालच देकर धर्म बदलवाने को अपराध मानता है।
जज ने चेतावनी दी कि ये कमजोर वर्गों एससी, एसटी, ओबीसी, महिलाओं और बच्चों को टारगेट करता है। ब्रेनवॉशिंग, अपमान, मनोवैज्ञानिक दबाव, नौकरी या शादी का लालच ये सब हथकंडे अपनाए जाते हैं। कोर्ट ने इसे जनसंख्या परिवर्तन का हथियार बताया, जो देश की एकता को चोट पहुँचाता है। अगर ये चलता रहा, तो भारत में अल्पसंख्यक बहुसंख्यक बनने की साजिश रंग ला सकती है। ये बातें सिर्फ किताबी नहीं, बल्कि साक्ष्यों पर टिकी हैं, जिसमें पीड़िता के बयान से लेकर चैट्स और फोटोज सब कुछ सामने है।
हरियाणा की कोर्ट ने लव जिहाद को बताया देश की अखंडता-एकता के लिए खतरा
अब हरियाणा की तरफ चलते हैं, जहाँ जुलाई 2025 में यमुनानगर कोर्ट ने एक और काला अध्याय खोला। शहबाज नाम का मुस्लिम युवक 14 साल की हिंदू नाबालिग लड़की को स्कूल जाते वक्त परेशान करता था। पीछा करता, दबाव बनाता कि वो एक मुस्लिम लड़के से रिश्ता जोड़े। लड़की ने नवंबर 2024 में FIR दर्ज कराई। जज रंजना अग्रवाल ने 17 जुलाई 2025 को शहबाज को कुल 7 साल की सजा सुनाई- एक केस में 4 साल, दूसरे में 2, तीसरे में 1। POCSO एक्ट और अन्य धाराओं के तहत 1 लाख का जुर्माना भी लगाया।
कोर्ट ने साफ कहा, “लव जिहाद देश की अखंडता और एकता के लिए खतरा है।” भले BNS या POCSO में इसका नाम न हो, लेकिन ये मुस्लिम पुरुषों का वो षड्यंत्र है, जिसमें गैर-मुस्लिम महिलाओं को प्रेम के जाल में फँसाकर इस्लाम में ढकेल दिया जाता है। जज ने इसे ‘घिनौनी साजिश’ कहा, जो नाबालिगों को ब्रेनवॉश करती है। ये मामला सिर्फ एक नहीं, बल्कि सैकड़ों गैंगों का प्रतिनिधित्व करता है।
लव जिहाद साजिश की जड़ें बेहद गहरी
ये तो सिर्फ दो-चार केस हैं। असल में लव जिहाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। ये शब्द खुद हिंदुओं का नहीं, बल्कि केरल के ईसाई समुदाय का दिया हुआ है। वहाँ 2005 से 2012 तक सिर्फ 7 सालों में 4000 ईसाई लड़कियाँ इसकी शिकार बनीं। कोट्टायम जिले के मीनाचिल तालुक में अकेले 400 से ज्यादा लड़कियाँ गायब हुईं, जिनमें से सिर्फ 41 को वापस लाया जा सका। साइरो मालाबार चर्च ने साल 2020 में इस पर रिपोर्ट भी दी थी। ईसाई समुदाय ने माना कि उनकी लड़कियाँ सॉफ्ट टारगेट हैं। मुस्लिम लड़के पहचान बदलकर कलावा पहनकर, तिलक लगाकर भ्रम फैलाते हैं। ये पैटर्न पूरे देश में एक जैसा है।
लव जिहाद के डराने वाले आँकड़े
अब आँकड़ों की बात करें तो धार्मिक घृणा से जुड़े अपराधों को रिकॉर्ड करने वाले हिंदूफोबिया ट्रैकर में जनवरी 2023 से दिसंबर 2025 तक 4294 मामले दर्ज हैं। इनमें लव जिहाद से जुड़े 1100 से ज्यादा केस हैं, जो मीडिया में रिपोर्ट हुए। बाकी अनगिनत तो ऐसी हैं, जो अंधेरे में दब गईं। ट्रैकर में महिलाओं के खिलाफ अपराध 3354, नाबालिग पीड़ित 1449, धर्मांतरण के 1693 मामले, मौतें 235, और मॉब वायलेंस 557 दर्ज हैं।
ये केस हत्या, जबरन गर्भपात, उत्पीड़न, ब्रेनवॉशिंग से भरे पड़े हैं। ये आँकड़े झूठे नहीं, बल्कि FIR, कोर्ट डॉक्यूमेंट्स और न्यूज रिपोर्ट्स पर आधारित हैं। ऑल्ट न्यूज जैसे लोग इन्हें नजरअंदाज कर NBDSA के पत्रों का ढाल बनाते हैं, लेकिन ये पत्र सिर्फ कुछ चैनलों की रिपोर्टिंग पर हैं- जैसे NCERT की पुरानी किताब में ‘रीना-आहमद’ की काल्पनिक चिट्ठी को लव जिहाद से जोड़ना। NBDSA ने Zee, ABP, News18, India TV को फटकार लगाई, वीडियो हटाने को कहा। लेकिन ये पत्र लव जिहाद की हकीकत को मिटाने के लिए नहीं बने। ये सिर्फ जिम्मेदार पत्रकारिता की बात करते हैं, न कि साजिश को ढकने की।
लव जिहाद को खारिज नहीं कर पा रहे लीपापोती करने वाले लोग-संस्थान
अब आते हैं लीपापोती करने वालों पर। खुद को फैक्ट-चेकर कहने वाला ऑल्ट न्यूज बार-बार लव जिहाद को ‘इस्लामोफोबिक कॉन्स्पिरेंसी’ बता रहा है। उसका तर्क है कि ये हिंदूवादियों की कॉन्स्पिरेंसी थ्योरी है, जिसमें मुस्लिम लड़कों को बदनाम किया जाता है। NBDSA के पत्र का हवाला देकर वो कहता है कि NCERT चिट्ठी को ‘लव जिहाद‘ से जोड़ना गलत था।
हाँ… वो चिट्ठी काल्पनिक थी, क्लास 3 की EVS बुक की, लेकिन ये पत्र साबित नहीं करता कि हजारों केस झूठे हैं। ऑल्ट न्यूज चैनलों को फटकार पर खुश हो रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप्पी साधे है। क्यों? क्योंकि वो फैसले को भी शायद साजिश मानते हैं। ऐसे लोगों-संस्थानों का एजेंडा साफ है कि वो असलियत को छिपाकर सच्चाई को दबाने में जुटे रहते हैं।

