पत्रकारों का एक संगठन है प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI)। इस संस्था का एक बार फिर से ‘दर्द’ प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए उभर आया है। वजह है- बिहार में प्रोपेगेंडाबाज पत्रकार/यूट्यूबर पर एफआईआर दर्ज होना।
अजीत अंजुम पर ये एफआईआर बिहार में चल रहे मतदाता सूची वेरिफिकेशन के कार्य में बाधा डालने को लेकर दर्ज की गई है। BLO अंसारुल हक अंसारी की शिकायत पर ये एफआईआर बेगुसराय के बलिया थाने में दर्ज की गई है। हक ने बताया है कि अजीत अंजुम कथित रिपोर्टिंग के दौरान इस प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे थे कि ‘मुस्लिम मतदाताओं को परेशान किया जा रहा है।’
इस एफआईआर को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने कहा है कि अजीत अंजुम जो कुछ भी कर रहे थे वो बतौर पत्रकार उनका ‘पेशेवर कार्य’ है। उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
The Press Club of India and IWPC expresses deep concern over the lodging of a First Information Report (FIR) against senior journalist Ajit Anjum, reportedly in connection with his professional work, covering a series on Special Intensive Revision (SIR) of electoral rolls in… pic.twitter.com/Gu6JyOVVzb
— Press Club of India (@PCITweets) July 15, 2025
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के तर्ज पर अजीत अंजुम के खिलाफ एफआईआर पर रोना रोया है। बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) जबसे शुरू हुआ है तभी से इसको लेकर विपक्ष, आंदोलनजीवी, NGO दुष्प्रचार अभियान चला रहे हैं। यह गैंग अपना अभियान लेकर सुप्रीम कोर्ट तक भी गया था। लेकिन देश की शीर्ष अदालत ने SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद से अजीत अंजुम और रवीश कुमार जैसे कथित पत्रकारों की ‘सक्रियता’ काबिले गौर है।
रवीश कुमार ने दैनिक जागरण में प्रकाशित एक खबर का स्क्रीनशॉट एक्स/ट्विटर पर साझा किया है। यह खबर बिहार की मतदाता सूची से 35 लाख से अधिक नाम हटाने से संबंधित है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जिन लोगों के नाम हटाए जाएँगे, उनमें से 12.56 लाख लोग ऐसे हैं, जो अब जीवित नहीं है। करीब 5.76 लाख लोग ऐसे हैं, जिनका नाम वोटर लिस्ट में एक से अधिक जगह पर दर्ज है। इसके अलावा करीब 17.38 लाख ऐसे लोग हैं, जो अस्थायी तौर पर बिहार से बाहर शिफ्ट हो चुके हैं।
अभी वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट बना भी नहीं है,लोगों ने दस्तावेज़ भी नहीं दिए हैं, अपील का मौक़ा तक नहीं मिला है लेकिन जागरण लिख रहा है कि 35 लाख वोटर के नाम काटने की तैयारी। इतनी तैयारी हो चुकी है तो चुनाव क्यों करा रहे हैं, प्रिंट कमांड दीजिए और रिज़ल्ट छाप दीजिए। क्या जागरण की इस… pic.twitter.com/SR6KVOCcZw
— ravish kumar (@ravish_journo) July 15, 2025
रवीश कुमार ने अपने पोस्ट में कहा है, “35 लाख वोटर के नाम काटने की तैयारी है।” लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया है कि 35 लाख लोगों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों है कि जो अब इस दुनिया में नहीं है। उन्होंने यह नहीं बताया है कि जो जीवित लोग नहीं है, उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं होना चाहिए। इसी तरह यह भी नहीं बताया है कि कोई भी व्यक्ति किसी एक ही जगह का मतदाता हो सकता है।
उन्होंने विपक्ष के प्रोपेगेंडा को हवा देते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि चुनाव आयोग मनमर्जी से 35 लाख नाम काट रहा है। इसका कोई वैधानिक/संवैधानिक आधार नहीं है। आगे इसी पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि आयोग को अब चुनाव नहीं करवाना चाहिए, सीधे रिजल्ट ही छाप देना चाहिए।
इसी तरह एक अन्य ट्वीट में रवीश कुमार ने एक वीडियो शेयर किया है। जिस वीडियो में लिखा गया है- दरभंगा में बीजेपी की महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष वोटर वेरिफिकेशन में BLO के साथ काम करते पाई गई। इस वीडियो को शेयर करते हुए रवीश कुमार ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से भी सवाल पूछ लिया है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार क्या इस पर मिसलिडिंग का ठप्पा लगवाएंगे या जवाब देंगे कि यह कैसे हो गया? फिर कोई उनके आयोग पर क्यों भरोसा करे? ज्ञानेश कुमार ने एक प्रेस कांफ्रेंस तक नहीं की है लगता है थाने में बैठ कर FIR लिखवा रहे हैं। यह कैसे हो सकता है? कोई तो आयोग से बोले? https://t.co/aepBGbWIOB
— ravish kumar (@ravish_journo) July 16, 2025
यह बताने की कोशिश की है कि चुनाव आयोग के इस अभियान में सिर्फ बीजेपी नेताओं की सक्रियता है, जबकि हकीकत यह है कि बिहार क तमाम दल SIR अभियान का हिस्सा हैं। मुख्य विपक्षी दल इस 47 हजार से अधिक कार्यकर्ता इस अभियान से जुड़े हुए हैं।
यह जानकारी चुनाव आयोग ने भी साझा की है। इसे गूगल में सामान्य सर्च से भी यह अधिकारिक फैक्ट प्राप्त किए जा सकते हैं। जाहिर है कि रवीश कुमार को भी यह जानकारी होगी। लेकिन जो फैक्ट की बात करे वो रवीश कुमार कैसा!
असल में बिहार में जबसे वोटर वेरिफिकेशन शुरू हुआ है राहुल गाँधी से लेकर तेजस्वी यादव तक, पप्पू यादव से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक इसे पिछड़ा, दलित, मुस्लिम विरोधी अभियान बताने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि इस अभियान से ही यह बात सामने आई है कि बिहार के 4 जिलों कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया में जनसंख्या से अधिक आधार कार्ड बने हुए हैं।
ये वैसै जिले हैं जो बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं। बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ को लेकर बदनाम रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में इन जिलों की डेमोग्राफी तेजी से बदली है। किशनगंज में तो 70 प्रतिशत तक आबादी अब मुस्लिम हो चुकी है। ये वही किशनगंज है, जहाँ महीने में औसतन 26 से 28 हजार आवेदन निवास प्रमाण पत्र को लेकर किए जाते थे।
लेकिन SIR शुरू होने के बाद जुलाई 2025 के शुरुआती 6 दिनों में ही निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए किशनगंज 1.28 लाख से अधिक आवेदन आए थे। राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने ये आँकड़े सार्वजनिक करते हुए कहा था कि इससे पता चलता है कि किशनगंज में बड़ी संख्या में घुसपैठिए मौजूद हैं।
साफ है कि राजद-कॉन्ग्रेस जैसे विपक्षी दल हों या फिर उनके लिए पत्रकार का चोला पहनकर काम करने वाले अजीत अंजुम या रवीश कुमार, वे उसे प्रोपेगेंडा को बार-बार आगे बढ़ा रहे हैं। जिसे सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है, जिन भ्रमित दावों का चुनाव आयोग लगातार फैक्ट-चेक कर चुका है, जो दावें जमीनी वास्तविकताओं के आसपास भी नहीं टिकते हैं।
ऐसे में अजीत अंजुम पर कानूनी कार्रवाई से इस गैंग को दर्द होना ही था। PCI ने एक बयान जारी कर जो ‘दर्द’ छलकाया है, वह भी इसका ही प्रतीक है।
ये वही प्रेस क्लब ऑफ इंडिया है, जिसे अर्नब गोस्वामी जैसे पत्रकारों की गिरफ्तारी के बाद न प्रेस की स्वतंत्रता और न अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खयाल आता है। ये वही प्रेस क्लब ऑफ इंडिया है, जो फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री का ओपन प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द कर देता है, क्योंकि अग्निहोत्री ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्म बनाकर कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार का सत्य दिखाया था।
वह सत्य जो इस्लाम का कट्टरपंथी और बर्बर चेहरा दिखाती है। वह सत्य जिसे दबाने की लिबरल गैंग पुरजोर कोशिश करता है। वह सत्य जिस पर यह चर्चा तक नहीं चाहता। ऐसा कर उन्हें कभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ध्यान नहीं आता।
अजीत अंजुम को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का ‘दर्द’ चोर-चोर मौसेरे भाई से अधिक कुछ भी नहीं है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया को न प्रेस की स्वतंत्रता की चिंता है। न पत्रकारों की अभिव्यक्ति की आजादी की चिंता है। वह केवल और केवल अपने एजेंडा को बिहार में बेनकाब होते देख तिलमिला रही है।