कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी इन दिनों कथित ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर लगातार हंगामा खड़ा कर रहे हैं। वे लगातार चुनाव आयोग (ECI) और BJP सरकार पर बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) प्रक्रिया से वोट काटने का आरोप लगा रहे हैं। उनके इन आरोपों पर अब विपक्ष से ज्यादा विदेशी मीडिया सुर में सुर मिला रही है।
अल जजीरा, BBC, वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स और अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (ABC) जैसे विदेशी मीडिया संस्थानों ने भारत की चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए रिपोर्ट्स छापी हैं। इन रिपोर्ट्स में तीन एजेंडे साफ नजर आते हैं-
- भारत सरकार अल्पसंख्यकों और गरीब तबकों को पहचान के नाम पर परेशान कर रही है।
- मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी कर विपक्षी वोट बैंक काटा जा रहा है।
- मोदी सरकार लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है।
विदेशी मीडिया की इन कहानियों में भारत की वास्तविक स्थिति और चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर आधी-अधूरी जानकारी देकर एकतरफा तस्वीर पेश की जा रही है। इससे पता लगता है कि राहुल गाँधी जिस कथित ‘वोट चोरी’ के नारे के सहारे अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं, उसी प्रोपेगेंडा को अब विदेशी मीडिया ने उठाकर भारत की छवि पर सवाल खड़े करने का जरिया बना लिया है।
अल जज़ीरा ने अपनी इस रिपोर्ट में लिखा कि भारत में लगभग 8 करोड़ लोगों को अपने वोटिंग अधिकार साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने पड़ रहे हैं। इसे उन्होंने NRC जैसी प्रक्रिया बताया है, जिसमें खासतौर पर मुस्लिम और प्रवासी मजदूरों पर असर पड़ने का दावा किया गया।

जबकि हकीकत यह है कि भारत में चुनाव आयोग हर 5 साल पर ‘वोटर लिस्ट रिवीजन’ कराता है। इसका मकसद फर्जी वोटरों को हटाना और नए पात्र मतदाताओं को जोड़ना है। यह कोई ‘नागरिकता साबित करने’ का अभियान नहीं है बल्कि केवल वोटर लिस्ट की सफाई है।
अल जज़ीरा ने इसे NRC जैसी प्रक्रिया बताकर अतिशयोक्ति की है, जबकि भारत सरकार और आयोग दोनों साफ कह चुके हैं कि किसी भी नागरिक का वोट बिना ठोस कारण हटाया नहीं जा सकता।
वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी इन रिपोर्ट में यह दावा किया कि बिहार में मतदाता सूची में संशोधन के लिए जल्दबाजी की गई, जिससे तकनीकी गडबड़ियाँ, दस्तावेजों में कमी और व्यापक भ्रम की स्थिति बनी।
जबकि असल में वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) प्रक्रिया नई नहीं है। हर 5 साल में चुनाव आयोग इसे करवाता है। चुनाव आयोग ने यह भी साफ किया कि यह प्रक्रिया सभी जिलों में समान रूप से लागू है न कि किसी खास समुदाय पर। इसके तहत सिर्फ उन लोगों के नाम हटते हैं जो या तो दूसरी जगह शिफ्ट हो गए, डुप्लीकेट एंट्री हैं या फिर जिनका निधन हो चुका है।
न्यूयॉर्क टाइम्स और अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी (ABC) की इन रिपोर्ट्स में वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) को विवादित बताकर विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन को सपोर्ट किया गया, जिसमें राहुल गाँधी समेत विपक्षी नेता को दिल्ली पुलिस ने रोका। विदेशी मीडिया ने इसे ‘लोकतंत्र बचाने की लड़ाई’ की तरह पेश किया।
लोकतंत्र में विपक्ष को बोलने का पूरा अधिकार है लेकिन सिर्फ आरोप लगा देना ही सबूत नहीं होता। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और भारत की न्यायपालिका कई बार यह साफ कर चुकी है कि वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) पारदर्शी प्रक्रिया है।
विपक्ष ने अभी तक अदालत या आयोग को कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया कि बीजेपी या सरकार ने ‘वोट चोरी’ की हो विदेशी मीडिया की रिपोर्ट्स केवल राजनीतिक बयानों पर आधारित हैं, जिनमें तथ्यात्मक आधार कमजोर है।
विदेशी मीडिया अक्सर भारत से जुड़ी खबरों को अपने नजरिए से पेश करता है। अल जज़ीरा, BBC, वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी संस्थाएँ पहले भी CAA, NRC और कृषि कानूनों पर एकतरफा रिपोर्टिंग को लेकर विवादों में रही हैं।
इस बार भी उन्होंने राहुल गाँधी के बयानों को आधार बनाकर यह नैरेटिव गढ़ा कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है। जबकि वास्तविकता यह है कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया हर साल होती है। इसमें लाखों नए वोटर जुड़ते हैं, जिससे चुनाव पारदर्शी तरीके से होते हैं।
राहुल गाँधी का ‘वोट चोरी’ मुद्दा राजनीतिक प्रोपेगेंडा
उधर, राहुल गाँधी ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाकर राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। उनके बयानों को विदेशी मीडिया ने और बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है ताकि यह दिखाया जा सके कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है और अल्पसंख्यकों को वोट से वंचित किया जा रहा है।
लेकिन तथ्य यही बताते हैं कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया नियमित है, सभी पर समान रूप से लागू होती है और किसी भी नागरिक का वोट मनमाने ढंग से नहीं हटाया जा सकता।
यानि राहुल गाँधी और विदेशी मीडिया के दावे एक राजनीतिक नैरेटिव से ज्यादा कुछ नहीं लगते। भारत का लोकतंत्र मजबूत है और वोट की ताकत हर नागरिक को बराबरी से हासिल है।