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राजदीप ने उमर खालिद की जमानत वापसी और देरी की रणनीति को ठहराया सही

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में 2020 के दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगे के आरोपित उमर खालिद और अन्य आरोपितों की जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि आरोपितों पर लगे आरोप प्रथम दृष्टया (prima facie) सही लगते हैं।

इस फैसले से तथाकथित लेफ्ट-लिबरल गैंग खासा परेशान हो गया है। पत्रकार राजदीप सरदेसाई भी उमर खालिद की जमानत खारिज होने पर नाराज दिखे।

उनके मुताबिक, सोशल मीडिया पर यह ‘नैरेटिव’ फैलाया जा रहा है कि उमर खालिद वर्षों से जेल में हैं और इसकी वजह कोर्ट की देरी नहीं है, बल्कि उनके वकील ही बार-बार सुनवाई टलवाते रहे हैं।

राजदीप सरदेसाई यह तो नहीं नकारते कि उमर खालिद के वकील बार-बार तारीख (adjournments) माँगते रहे हैं लेकिन वे इस देरी की रणनीति और फोरम शॉपिंग को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। हाई कोर्ट ने इन तरीकों को भांप लिया था।

सरदेसाई का कहना है कि खालिद के वकील तारीखें लेने और सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) वापस लेने में सही थे, क्योंकि यह मामला उस जज के पास लगा था जिसकी पहचान ऐसे मामलों में जमानत न देने के लिए रही है।

खालिद अपनी लंबी कैद को जमानत के आधार के रूप में कैसे इस्तेमाल करना चाहता था?

उमर खालिद की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने कोर्ट को बताया कि खालिद के वकील ही जानबूझकर देरी कर रहे हैं। विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कहा कि 2023 से 2024 के बीच कुल 14 तारीखों में से 7 बार सुनवाई खालिद के वकीलों ने ही टलवाई। यानी जमानत याचिका में देरी कोर्ट की धीमी प्रक्रिया से नहीं, बल्कि खालिद की कानूनी रणनीति से हुई, ताकि जेल में लंबी कैद को जमानत का आधार बनाया जा सके।

अभियोजन ने यह भी बताया कि 2022 में हाई कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद खालिद ने लगभग 6 महीने तक सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल नहीं की और फिर अप्रैल 2023 में दाखिल करने के बाद इसे वापस ले लिया।

इसके लिए वकीलों ने ‘परिस्थितियों में बदलाव’ का हवाला दिया। यह तथाकथित बदलाव दो कारणों से जुड़ा था। पहला जस्टिस अनिरुद्ध बोस के रिटायर होने के बाद बेंच में बदलाव हुआ और मामले को जस्टिस बेला त्रिवेदी के सामने सूचीबद्ध किया गया, जिसे खालिद के वकीलों ने बार-बार बदलवाने की कोशिश की।

दिलचस्प बात यह है कि ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान खालिद के वकील कपिल सिब्बल ने देरी का ठीकरा सुप्रीम कोर्ट पर फोड़ने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि SLP की सुनवाई टलने और अंत में फरवरी 2023 में इसे वापस लेने की वजह सुप्रीम कोर्ट की धीमी कार्यवाही और बदलती परिस्थितियाँ थीं। सिब्बल ने खालिद को न्यायिक व्यवस्था का शिकार दिखाने की कोशिश की, जबकि हकीकत यह थी कि वे इसी व्यवस्था का दुरुपयोग करके उसे रिहाई दिलाना चाहते थे।

यह भी महत्वपूर्ण है कि खालिद का मामला उस सिद्धांत पर खरा नहीं उतरता कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’, क्योंकि 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि UAPA मामलों में ‘जेल नियम है और जमानत अपवाद’।

पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने खालिद की टालमटोल की रणनीति की आलोचना की

उमर खालिद के वकीलों की फोरम शॉपिंग और जानबूझकर देरी करने की रणनीति पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने भी आपत्ति जताई थी। उन्होंने वही बातें दोहराईं जो अभियोजन पक्ष ने दिल्ली हाई कोर्ट में खालिद की जमानत सुनवाई के दौरान रखी थीं।

पूर्व CJI ने कहा कि खालिद के वकील बार-बार सुनवाई टलवाते रहे और सुप्रीम कोर्ट से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली, लेकिन ऐसा माहौल बनाया जैसे पूरी न्यायिक व्यवस्था ही उनके खिलाफ काम कर रही हो।

Rajdeep supports Umarr Khalid bench hunting and bail plea withdrawals



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