यूसुफ पठान

तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान ने 16 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल के मालदा जिले की ऐतिहासिक अदीना मस्जिद की तस्वीरें अपने सोशल मीडिया पर साझा कीं।

यूसुफ पठान ने मस्जिद की तारीफ करते हुए लिखा कि यह एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे 14वीं सदी में इलियास शाही वंश के दूसरे शासक सुलतान सिकंदर शाह ने बनवाया था। यह मस्जिद 1373 से 1375 ईस्वी के बीच बनाई गई थी और उस समय यह भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी मस्जिद थी। यह उस दौर की शानदार वास्तुकला को दर्शाती है।

जैसे ही TMC सांसद यूसुफ पठान ने अदीना मस्जिद की पोस्ट साझा की, कुछ लोगों ने इसका फैक्टचेक करना शुरू कर दिया और इसके हिंदू इतिहास की बात सामने रखी।

अधिवक्ता शेखर कुमार झा ने मस्जिद की दीवार पर खुदे हुए भगवान गणेश की एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, “ऐतिहासिक: आदिनाथ मंदिर बना अदीना मस्जिद।”

एक्स यूजर ‘PlanH’ ने यूसुफ पठान की पोस्ट का जवाब देते हुए लिखा: “प्रिय यूसुफ पठान, आप जिस जगह खड़े हैं वह कभी भारत के सबसे बड़े हिंदू मंदिरों में से एक आदिनाथ मंदिर का परिसर था, जिसे इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़कर कब्जा कर लिया था।

यूजर ने कुछ तस्वीरें भी लगाई और कहा, “अब समय आ गया है कि इस अन्याय और बर्बरता को सुधारा जाए और मंदिर की खोई हुई गरिमा को फिर से स्थापित किया जाए।”

‘अब्दुल किताबी’ नामक एक यूजर ने अदीना मस्जिद परिसर में पाए गए हिंदू मूर्तियों की तस्वीरें साझा करते हुए यूसुफ पठान को टैग कर जवाब दिया:

“प्रिय यूसुफ पठान (@iamyusufpathan), आप जिस जगह खड़े हैं, वह कभी भारत के सबसे बड़े हिंदू मंदिरों में से एक आदिनाथ मंदिर का परिसर था, जिसे इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़कर मस्जिद में बदल दिया था।”

उन्होंने आगे लिखा, “मैंने कुछ तस्वीरें संलग्न की हैं जो इस बात का प्रमाण हैं। अब समय आ गया है कि इस अन्याय और बर्बरता को सुधारा जाए और मंदिर की खोई हुई गरिमा को फिर से स्थापित किया जाए। एक सच्चे मुसलमान के तौर पर हमें यह मस्जिद हिंदुओं को लौटा देनी चाहिए।”

एक अन्य ने लिखा, “आदिनाथ मंदिर अब अदीना मस्जिद है! हमारी धर्मनिरपेक्षता की खूबसूरती!”

एक एक्स यूजर ने पूछा, “क्या आप लोगों ने अपना कुछ बनाया है, या दूसरों के धार्मिक स्थलों को तोड़कर सब कुछ अपने कब्जे में ले लिया है और उसे अपना बता दिया है?”

अदीना या आदिनाथ, मस्जिद में बदला गया एक और हिंदू मंदिर

अदीना मस्जिद पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के ऐतिहासिक शहर पांडुआ में स्थित है। पारंपरिक इतिहासकारों के अनुसार, इस मस्जिद का निर्माण बंगाल सल्तनत के इलियास शाही वंश के सुलतान सिकंदर शाह ने 1373 में शुरू कराया था और 1375 में पूरा हुआ। उस समय यह मस्जिद पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी मस्जिद थी और इसे दिल्ली सल्तनत पर शाह की सैन्य जीत का प्रतीक माना गया।

हालाँकि, ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक साक्ष्य बताते हैं कि इस मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद हिंदू धार्मिक संरचनाओं को तोड़कर उनके पत्थरों और सामग्री से किया गया था। ये मंदिर पाल–सेन काल (8वीं से 12वीं सदी) के थे।

मूर्ति और मूर्तिकला से जुड़े अवशेषों से यह भी संकेत मिलता है कि जहाँ आज अदीना मस्जिद खड़ी है, वहाँ पहले भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर था, जिसे आदिनाथ मंदिर कहा जाता था।

आदिनाथ शिव का एक प्राचीन रूप है। इस मंदिर परिसर में भगवान विष्णु का एक मंदिर भी था। इतिहासकारों का यह भी मानना है कि आज अदीना मस्जिद के भीतर जो मिंबर है, वह किसी पुराने मंदिर के काले पत्थर से बने दरवाजे को तोड़कर बनाया गया था।

अदीना मस्जिद की दीवारों, दरवाजों, मेहराबों और नमाज़ के स्थानों पर टेराकोटा और पत्थर की नक्काशी देखने को मिलती है, जिनमें भगवान शिव और गणेश जैसे हिंदू देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हुई हैं।

इसके अलावा, वहाँ फूलों की आकृति, चैत्य मेहराबें, कीर्तिमुख (मुखाकृति वाला मुखौटा), मोतियों की माला, और घुँघरू व घँटियों की जंजीर जैसी कलाकृतियाँ भी मौजूद हैं। ऐसी सजावट इस्लामी वास्तुकला में नहीं पाई जाती, जिससे यह साफ संकेत मिलता है कि ये सभी नक्काशियाँ और कलात्मक चिन्ह पाला–सेन काल (8वीं–12वीं सदी) के हिंदू स्थापत्य कला से संबंधित हैं।

अदीना मस्जिद के केंद्रीय मिहराब (नमाज पढ़ने की दिशा दर्शाने वाला हिस्सा) में इसके हिंदू इतिहास के साफ संकेत मिलते हैं। यह मिहराब एक घुमावदार दीवार में बना है और इसके सामने की मेहराब त्रि-पत्रीय (तीन खंडों वाली) डिजाइन में है। मेहराब के दोनों ओर के हिस्सों (स्पैंड्रल) को फूलों की आकृतियों (रोसेट्स) से सजाया गया है।

मिहराब के अंदर के पैनलों में भी त्रि-पत्रीय मेहराबों और रोसेट डिजाइनों की नक्काशी है, जिनके ऊपर से घंटियों और जंजीरों के लटकते हुए डिजाइन दिखाई देते हैं। ऐसे सजावटी डिजाइन खासतौर पर हिंदू स्थापत्य कला में पाए जाते हैं, और इन्हें आमतौर पर मंदिरों के खंभों पर उकेरा जाता था, खासकर पाला–सेन काल में।

अदीना मस्जिद के परिसर और उसकी दीवारों में आज भी टूटा हुआ शिवलिंग और कई हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ दिखाई देती हैं। आसपास की संरचनाओं जैसे पांडुआ पुल में भी हिंदू मंदिरों के खंडहरों से लिए गए पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है। यह इस पूरे क्षेत्र में इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर मंदिरों के विध्वंस को दर्शाता है।

पूर्व क्रिकेटर और TMC सांसद यूसुफ पठान ने इस मस्जिद को इस्लामी वास्तुकला की मिसाल बताते हुए एक ऐतिहासिक गौरव के रूप में पेश किया और सुल्तान सिकंदर शाह को भारतीय मुस्लिम शासक के तौर पर याद रखने की बात कही। जबकि ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो सिकंदर शाह की राजनीतिक और धार्मिक सोच भारत नहीं बल्कि अरब और इराक (कटेसिफन) से प्रेरित थी।

यह मस्जिद 14वीं शताब्दी में सिकंदर शाह ने एक भव्य हिंदू मंदिर को तोड़कर बनवाई थी, जिसे पहले आदिनाथ मंदिर कहा जाता था। इसके बाद, 19वीं सदी में आए भूकंपों के चलते यह स्थल उजाड़ हो गया। वर्तमान में यह स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तहत राष्ट्रीय महत्त्व का संरक्षित स्मारक है, जिससे यहाँ खुदाई या पूजा-पाठ पर रोक लगी हुई है।

यह मुद्दा पहले भी बीजेपी द्वारा उठाया गया था और 2024 में फिर चर्चा में आया जब वरिष्ठ अधिवक्ता हरी शंकर जैन ने हिंदुओं से आह्वान किया कि वे अदीना मस्जिद में जाकर पूजा शुरू करें। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में पत्र भी लिखा।

फरवरी 2024 में, हिरण्मय गोस्वामी नाम के एक युवा पुजारी ने कुछ हिंदू अनुयायियों के साथ अदीना मस्जिद परिसर में शिवलिंग के पास पूजा और मंत्रोच्चार शुरू किया। हालांकि, बाद में पुलिस ने उन्हें पूजा जारी रखने से रोक दिया।

इतिहास में मध्यकालीन इस्लामी आक्रमणों के दौरान हजारों हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। आज जो कई ऐतिहासिक मस्जिदें मानी जाती हैं, वे वास्तव में उन्हीं मंदिरों के खंडहरों पर बनी हैं या उन्हीं मंदिरों को ढाँचे में थोड़ा बदलाव कर मस्जिद में बदल दिया गया है। अयोध्या का बाबरी ढाँचा, मथुरा की शाही ईदगाह, और काशी की ज्ञानवापी मस्जिद ये सभी ऐसे प्रमुख उदाहरण हैं जहाँ मंदिरों को कब्जा करके मस्जिदें बनाई गईं।

इस प्रक्रिया की कानूनी रुकावट है 1991 का पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship Act), जो 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव की इजाज़त नहीं देता। यह कानून मंदिर पुनःस्थापन की कोशिशों में बड़ी बाधा बना हुआ है। हालाँकि अयोध्या में राम जन्मभूमि की सफल पुनर्प्राप्ति ने हिंदू समाज को नया उत्साह और आशा दी है।

(मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में श्रद्धा पांडे ने लिखी है। इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है)



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