बिहार के सीतामढ़ी में शुक्रवार (8 अगस्त 2025) को माता जानकी के भव्य मंदिर का शिलान्यास हुआ। यह भव्य मंदिर क्षेत्र पुनौरा धाम कहलाता है। यह न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि मिथिला क्षेत्र की बदलती डेमोग्राफी और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी इसकी गहरी प्रासंगिकता है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में संपन्न इस समारोह ने एक बार फिर सनातन धर्म की जड़ों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया।
माँ जानकी की जय!
बिहार के सीतामढ़ी में माता सीता की जन्मस्थली पर पुनौराधाम मंदिर एवं परिसर के समग्र विकास की वृहद योजना के भूमि पूजन से लाइव…#माँ_जानकी_मंदिर https://t.co/8uFr1Emg73— Amit Shah (@AmitShah) August 8, 2025
इस लेख में पुनौरा धाम के शिलान्यास के महत्व को मिथिला क्षेत्र की बदलती सामाजिक-जनसांख्यिकीय स्थिति और सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के संदर्भ में विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
पुनौरा धाम – सनातन का गौरवशाली प्रतीक
माता सीता की जन्मस्थली पुनौरा धाम मिथिला की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का केंद्र है। 67 एकड़ में 882 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला यह मंदिर न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा।
मंदिर का निर्माण राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के लाल बलुआ पत्थरों से हो रहा है। इसके वास्तुकार आशीष सोमपुरा हैं, जिन्होंने अयोध्या के राम मंदिर का भी डिजाइन तैयार किया। मंदिर परिसर में ‘सीता वाटिका’, ‘लव-कुश वाटिका’, जलाशय, फव्वारे, संग्रहालय, स्मृति द्वार और पर्यटक सुविधाओं जैसे होटल और रेस्टहाउस का निर्माण होगा।
शिलान्यास समारोह में 11 पवित्र नदियों के जल और 21 तीर्थों की मिट्टी का उपयोग हुआ। तिरुपति के हलवाइयों ने 11,000 लोगों के लिए लड्डू प्रसाद बनाया और कोलकाता के कलाकारों ने परिसर को फूलों और दीपों से सजाया।
सुरक्षा के लिए पाँच किलोमीटर का क्षेत्र रेड जोन घोषित किया गया और केवल 200 लोगों को ही भूमि पूजन स्थल पर प्रवेश की अनुमति दी गई। साथ ही सीतामढ़ी से दिल्ली के लिए ‘अमृत भारत एक्सप्रेस’ ट्रेन को हरी झंडी दिखाई गई, जो क्षेत्र को बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगी।
मिथिला की बदलती डेमोग्राफी: एक चिंताजनक तस्वीर
अपनी सांस्कृतिक समृद्धि और मैथिली भाषा के लिए जाने जाने वाला मिथिला क्षेत्र पिछले कुछ दशकों में जनसांख्यिकीय और सामाजिक बदलावों का गवाह रहा है। विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष और राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य रहे स्वर्गीय कामेश्वर चौपाल ने 2023 में ऑपइंडिया को दिए एक साक्षात्कार में इस बदलाव को रेखांकित किया था। उनके अनुसार, मिथिला में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, किशनगंज में 78%, कटिहार में 65%, पूर्णिया में 50%, और मधुबनी-दरभंगा में 32% मुस्लिम आबादी थी। चौपाल का अनुमान था कि अब यह आँकड़ा 39% तक पहुँच चुका होगा।
इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं, मुख्यत: इन्हें तीन बिंदुओं में समझ सकते हैं।
- बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों का प्रभाव।
- तबलीगी जमात जैसे संगठनों की गतिविधियाँ, जो कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रही हैं।
- अल्पसंख्यक संस्थानों को मिलने वाली सरकारी सहायता, जिसने मुस्लिम समुदाय के लिए आर्थिक आधार तैयार किया है।
चौपाल के अनुसार, इन संस्थानों में इस्लामिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता है, जबकि हिंदू धर्म और संस्कृति को नजरअंदाज किया जाता है। इसके अलावा राजनीतिक तुष्टिकरण ने भी मिथिला में हिंदुओं को जातीय आधार पर बाँटकर कमजोर किया है।
तुष्टिकरण और इस्लामी कट्टरपंथ का बढ़ता प्रभाव
दरअसल, बिहार के मिथिला क्षेत्र में न केवल डेमाग्राफी तेजी से बदल रही है, बल्कि मुस्लिमों का कैरेक्टर भी बदला है। गाँव-गाँव में धर्मांतरण हो रहा है। यह है कॉन्ग्रेस की पुरानी प्लानिंग का नतीजा।
कामेश्वर चौपाल ने कहा था, “80 के दशक में जब मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करवाने का संघर्ष चल रहा था, तब अचानक से एक कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री (डॉ. जगन्नाथ मिश्रा) ने उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दे दिया। त्रि भाषा सूत्र से संस्कृत को बाहर कर उर्दू को शामिल कर दिया। मिथिला के नौ जिलों को मुस्लिम प्रभावी बताकर इसकी शुरुआत की गई। नतीजा जिस स्कूल में दो भी उर्दू पढ़ने वाले बच्चे थे, उर्दू शिक्षक की बहाली हुई। लेकिन मैथिली की स्कूलों में पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस तुष्टिकरण ने एक तरफ मैथिल हिंदुओं को अपनी भाषा से काट दिया, दूसरी तरफ गैर मैथिली भाषी मुस्लिमों का बीज बो दिया।”
स्वर्गीय चौपाल ने 2023 में बताया था कि 1980 के दशक में तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने उर्दू को बिहार की दूसरी राजभाषा बनाकर मैथिली को दरकिनार किया। इससे मैथिल हिंदुओं की सांस्कृतिक पहचान कमजोर हुई और गैर-मैथिली भाषी मुस्लिमों का प्रभाव बढ़ा।
जाति के पॉलिटिक्स ने हिंदुओं को कमजोर कर दिया है। इसलिए मिथिला में अब कोई हिंदू नहीं दिखता। जिनको मुस्लिम का भय है, वही हिंदू है। बाकी अपनी जातीय पहचान के साथ जी रहे हैं। दूसरी तरफ 72 फिरके होने के बावजूद कोई मुस्लिम जातीय पहचान के साथ नहीं जी रहा। वो एक ही बात कहेगा हम मियाँ हैं।
आज आप देखिए मुस्लिम मैथिली नहीं बोलते हैं। कुछ दशक पहले तक उनकी बोली हमारी तरह थी। हमारी तरह वे कपड़े पहनते थे। आज उनका बच्चा पैदा होते ही टखने से ऊपर उठे पायजामे और सिर पर टोपी डाले दिखने लगता है।
जो बीजारोपण कॉन्ग्रेस ने किया उसे लालू प्रसाद यादव ने खुलमखुल्ला MY (मुस्लिम+यादव) से फलने-फूलने दिया। यह राजनीतिक समीकरण तुष्टिकरण का चरम था। बिहार में तबलीगी जमात का असर बढ़ता गया। मुस्लिमों में कट्टरपंथ बढ़ता गया।
तबलीगी जमात और इस्लामिक मुल्कों से आए पैसों से मुस्लिमों की सोच बदली गई तो रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों ने डेमोग्राफी चेंज करने में भूमिका निभाई। जैसे ही मुस्लिमों की आबादी बढ़ी तो मिथिला की हालत कश्मीर जैसी हो जाएगी। खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टियाँ इसकी जमीन तैयार कर रही हैं। असल में ये पार्टियाँ इस्लामी कट्टरपंथ के लिए स्लीपर सेल का काम कर रही हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने घुसपैठियों के मुद्दे पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “बिहार विधानसभा चुनाव से पहले, क्या बिहार की वोटर लिस्ट से घुसपैठियों को हटाना चाहिए या नहीं? हमारा संविधान भारत में पैदा न हुए किसी व्यक्ति को वोट देने का अधिकार नहीं देता। राहुल बाबा, तुम संविधान लेकर घूम रहे हो, कम से कम इसे खोलकर ठीक से पढ़ तो लो। घुसपैठियों को इस देश की चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। और यही वजह है कि वे SIR का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि घुसपैठिए उनका वोट बैंक हैं…”
Bihar: Union Home Minister Amit Shah says, "Before the Bihar Assembly elections, should infiltrators be removed from Bihar's voter list or not? Our Constitution does not give the right to vote to anyone who was not born in India. Rahul Baba, you're roaming around with the… pic.twitter.com/9Bxlt2WfhQ
— IANS (@ians_india) August 8, 2025
पुनौरा धाम का शिलान्यास: सनातन की पुनर्स्थापना
पुनौरा धाम में जानकी मंदिर का निर्माण केवल एक धार्मिक परियोजना नहीं है, बल्कि यह मिथिला में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। राम मंदिर की तरह यह मंदिर भी सांस्कृतिक गौरव को पुनर्जनन देगा।
इस प्रोजेक्ट के महत्वपूर्ण होने की कई वजहे हैं-
आर्थिक और सामाजिक विकास: मंदिर निर्माण से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। होटल, रेस्टहाउस, और संग्रहालय जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। ‘अमृत भारत एक्सप्रेस’ और राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण क्षेत्र की कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा, जिससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण: मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने में यह मंदिर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। ‘सीता वाटिका’ और ‘लव-कुश वाटिका’ जैसे प्रतीकात्मक स्थल मैथिली संस्कृति को पुनर्जनन देंगे।
राष्ट्रीय सुरक्षा का दृष्टिकोण: मिथिला में बढ़ते इस्लामी कट्टरपंथ और घुसपैठ की समस्या को देखते हुए, सनातन धर्म के प्रतीकों का उद्धार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जरूरी है। यह मंदिर हिंदुओं में एकता और सांस्कृतिक गौरव की भावना को प्रबल करेगा, जो कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ एक मजबूत जवाब होगा।
धर्मांतरण पर अंकुश: चौपाल ने बताया था कि मिथिला में गाँव-गाँव में धर्मांतरण की गतिविधियाँ चल रही हैं। इस मंदिर के निर्माण से सनातन धर्म की जड़ें मजबूत होंगी, जिससे मिशनरी और इस्लामी गतिविधियों पर अंकुश लगेगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा और सनातन की पुनर्स्थापना
मिथिला में बदलती डेमोग्राफी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चुनौती बन रही है। किशनगंज, कटिहार, और पूर्णिया जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी का तेजी से बढ़ना और कट्टरपंथी गतिविधियों का उभार चिंता का विषय है। बांग्लादेशी घुसपैठ और तबलीगी जमात की गतिविधियाँ इस क्षेत्र को अस्थिर कर सकती हैं। ऐसे में पुनौरा धाम जैसे धार्मिक स्थलों का पुनरुद्धार न केवल सांस्कृतिक गौरव को बढ़ाएगा, बल्कि हिंदुओं में एकता और आत्मविश्वास को भी प्रबल करेगा।
मोदी सरकार और नीतीश सरकार की यह पहल मिथिला में सनातन धर्म की जड़ों को मजबूत करने की दिशा में एक ठोस कदम है। फुलहर जैसे अन्य धार्मिक स्थलों का विकास और अयोध्या-पुनौरा धाम को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग इस क्षेत्र को धार्मिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा।
पुनौरा धाम में जानकी मंदिर का शिलान्यास मिथिला के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह मंदिर न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है, बल्कि बदलती डेमोग्राफी और बढ़ते कट्टरपंथ के खिलाफ एक मजबूत जवाब भी है। यह परियोजना रोजगार, पर्यटन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी, साथ ही सनातन धर्म की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को बचाने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए ऐसे प्रयासों की जरूरत है। यह मंदिर माता सीता की जन्मस्थली को न केवल एक धार्मिक केंद्र बनाएगा, बल्कि मिथिला के लोगों में गर्व और एकता की भावना भी जगाएगा।