पूर्वोत्तर राज्यों में विकास की कहानी

पिछले ग्यारह वर्षों में पूर्वोत्तर क्षेत्रों का विकास उल्लेखनीय रहा है। देश की मुख्य धारा से दूर अविकसित माने जाने वाले 7 सिस्टर्स में मोदी सरकार ने विकास की ऐसी बयार बहाई है कि हर राज्य रेलवे कनेक्टिविटी से जुड़ गया है। भौगोलिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण इस क्षेत्र में विकास की आँधी आ गई है।

कुछ साल पहले मोदी सरकार ने बहु चरणीय कनेक्टिविटी परियोजना शुरू की थी। इसका मकसद 7 सिस्टर्स और वन ब्रदर्स की राजधानियों को एक-दूसरे से जोड़ना था। इसका रिजल्ट अब सामने आ रहा है। 2025 के अंत तक नागालैंड की राजधानी कोहिमा और मणिपुर की राजधानी इंफाल के बीच रेलवे कनेक्टिविटी बन जाएगी। इसके अलावा मिजोरम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश का पासीघाट तक रेलवे नेटवर्क बिछ जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि 2029 तक पूर्वोत्तर के सारे राज्य एक-दूसरे से रेलवे के माध्यम से भी जुड़ जाएँगे।

केंद्र सरकार के ‘एक्ट ईस्ट’ के तहत बुनियादी ढाँचे पर आधारित विकास यहाँ किया जा रहा है। मिजोरम में बैराबी-सैरांग लाइन, नागालैंड में दीमापुर-जुब्ज़ा लाइन, सिक्किम में सेवोके-रंगपो परियोजना और असम में अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाला इंजीनियरिंग चमत्कार बोगीबील ब्रिज जैसी प्रमुख रेलवे परियोजनाओं ने भारत की सात बहनों और एक भाई के बीच का रिश्ता और मजबूत किया है।

मोदी सरकार का रणनीतिक प्रयास, विजन और नीति

2014 से ही भारत सरकार पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों के साथ जोड़ने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘कनेक्टिविटी के माध्यम से विकास’ के तहत बुनियादी ढाँचे का विकास और रेलवे का विस्तार कर रही है। इस विजन को पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान और नॉर्थ ईस्ट स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट स्कीम (NESIDS) जैसी नीतियों से और बढ़ावा मिला है। इस स्कीम का मकसद कनेक्टिविटी की कमी को पूरा करना है।

रेल मंत्रालय के अनुसार पूर्वोत्तर में रेल परियोजनाओं के लिए पूँजी वित्त वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2023-24 तक 370% से अधिक बढ़े हैं। इसका फायदा नई रेलवे लाइनों, गेज परिवर्तन, विद्युतीकरण और पटरियों के दोहरीकरण में हो रहा है।

धनसिरी-दीमापुर-जुब्जा रेलवे लाइन

कई दशकों तक नागालैंड रेलवे नेटवर्क से दूर रहा। हालाँकि दीमापुर रेलवे नेटवर्क में जुड़ा रहा है। अब दीमापुर-जुब्जा (कोहिमा) रेलवे लाइन पर कई सालों से काम चल रहा था। पिछले दशक में इस पर तेजी से काम हुआ। इस परियोजना पर 6,663 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। 82.5 किलोमीटर लंबी यह लाइन सिर्फ दीमापुर और राजधानी कोहिमा को ही नहीं जोड़ेगी बल्कि धनसिरी, शोखुवी, मोल्वोम, फेरिमा, पिफेमा जैसे कई शहरों कस्बों को जोड़ेगी। इसमें 37 सुरंगे, 24 पुल, 156 छोटे पुल, 5 रोड ओवर ब्रिज और 15 रोड अंडर ब्रिज बनाए जा रहे हैं।

जब यह लाइन चालू हो जाएगी, तो इससे यात्रा में समय कम लगेगा और कृषि उपज, पारंपरिक शिल्प और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। 2026 तक नागालैंड की राजधानी कोहिमा प्रमुख रेल हब बनने जा रहा है। यह परियोजना शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार तक पहुँच के माध्यम से राज्य के जनजातीय समुदायों को सशक्त बना रही है।

सिक्किम की पहली रेलवे परियोजना

सात बहनों में से एक सिक्किम आखिरकार राष्ट्रीय रेलवे नेटवर्क से जुड़ने के लिए तैयार है। 44.96 किलोमीटर लंबी इस परियोजना में कुल 5 स्टेशन हैं। सिक्किम में प्रवेश करने से पहले यह पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों के घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों से होकर गुजरती है। इसमें 14 सुरंगें और 28 पुल बनाए गए हैं और इसे 2027 तक पूरा करने की योजना है।

यह रेलवे लाइन गंगटोक के पास के सीमावर्ती शहर रंगपो को भारतीय रेलवे नेटवर्क से जोड़ेगी। इस परियोजना को गंगटोक तक पहुँचाने की भी बात की जा रही है। यह लाइन पर्यटन और बागवानी आधारित उद्योगों को काफी बढ़ावा देगा, साथ ही भारत-चीन सीमा तक भारतीय सेना को पहुँचने में आसानी होगी ।

बोगीबील पुल इंजीनियरिंग की अनोखी मिसाल

असम से अरुणाचल को जोड़ने के लिए बना बोगीबील ब्रिज इंजीनियरिंग की अनोखी मिसाल है। ये ब्रह्मपुत्र नदी पर बना भारत का सबसे लंबा रेलवे और सड़क पुल की मिलीजुली परियोजना है।

दिसंबर 2018 में बनकर तैयार हुआ यह 4.94 किलोमीटर लंबा ढाँचा असम के उत्तरी तट पर स्थित धेमाजी को दक्षिण में डिब्रूगढ़ से जोड़ता है। ये अप्रत्यक्ष रूप से अरुणाचल प्रदेश से जुड़ता है। इससे असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच यात्रा का समय काफी कम हो गया है।

पुल बनने से पहले डिब्रूगढ़ से ईटानगर जाने वाले लोगों को सड़क मार्ग से 24 घंटे का समय लगता था, लेकिन अब यह यात्रा सिर्फ 6 घंटे में पूरी हो जाती है। इस पुल का सामरिक सैन्य महत्व भी है क्योंकि ये चीन सीमा से लगे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के नजदीक है।

अरुणाचल प्रदेश तक पहुँचा ट्रेन

अरुणाचल प्रदेश में 2013 तक कोई रेल संपर्क नहीं था। 2014 में उद्घाटन किए गए नाहरलागुन रेलवे स्टेशन ने राज्य में रेल आवागमन की शुरुआत हुई। ये स्टेशन ईटानगर से सिर्फ 15 किमी दूर है। नाहरलागुन से गुवाहाटी और दिल्ली तक इंटरसिटी सेवाओं ने न केवल यात्रा के समय को कम किया है, बल्कि पूर्वोत्तर को दिल्ली से जोड़ा भी है।

इसके अलावा सरकार ने 200 किलोमीटर लंबी भालुकपोंग -तवांग रेलवे लाइन को मंजूरी भी दे दी है।

मेघालय और मिजोरम का रेल कनेक्शन

मेघालय की राजधानी शिलांग और मिजोरम की राजधानी आइजोल पूर्वोत्तर के प्रशासनिक केंद्र हैं, लेकिन दशकों तक यहाँ रेलवे कनेक्टिविटी की कमी रही। तेतेलिया-बिरनीहाट लाइन से अब शिलांग को भारतीय रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की उम्मीद है।
पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के अंतर्गत 51.38 किलोमीटर लंबी परियोजना बैराबी- सैरांग रेलवे लाइन आइजोल को सीधे भारत के नेटवर्क से जोड़ रहा है। इसमें 55 बड़े पुल, 87 छोटे पुल और 23 सुरंगें शामिल हैं। 2025 में ये परियोजना पूरी होने जा रही है।

त्रिपुरा और मणिपुर तक रेलवे नेटवर्क

2014 के बाद त्रिपुरा में रेलवे नेटवर्क का विकास हुआ। अगरतला-अखौरा रेल परियोजना भारत को बांग्लादेश से जोड़ती है। इसके 2025 में पूरा होने की संभावना है।

मणिपुर में जिरीबाम-इम्फाल रेलवे लाइन निर्माणाधीन है। 111 किलोमीटर से ज्यादा लंबी यह लाइन पहली बार इम्फाल को राष्ट्रीय नेटवर्क से जोड़ेगी। इससे मणिपुर की राजधानी में सामान और पर्यटक आसानी से पहुँच सकेंगे। ये परियोजना 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है। इस ट्रैक का 70% से ज़्यादा हिस्सा सुरंगों से होकर गुज़रेगी। म्यांमार से सटे होने की वजह से मणिपुर में इसका सामरिक महत्व भी है।

आर्थिक और रणनीतिक फायदा

इन परियोजनाओं का असर बहुआयामी है। पर्यटन, शिक्षा, बागवानी आदि के विकास में इनका काफी महत्व है। नागालैंड के संतरे, मेघालय के अनानास और मिजोरम के बाँस के हस्तशिल्प जैसे स्थानीय उत्पादों को विश्वस्तर पर ले जाने में इससे काफी मदद मिलेगी।

पिछले एक दशक से ज्यादा समय से पूर्वोत्तर भारत में रेलवे के बदलाव की असली कहानी सिर्फ पटरियाँ और सुरंग, पुल ही नहीं कह रहे, बल्कि इसका असर काफी गहरा है। ये परियोजनाएं उन लोगों पर सीधा असर डाल रही हैं जो पहले खुद को उपेक्षित समझते थे। नया रेल नेटवर्क पूर्वोत्तर की जीवन रेखा बन गई है। जैसे-जैसे भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, पूर्वोत्तर की भागीदारी भी बढ़ रही है और देश के विकास में अहम भूमिका निभा रही है।



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