Site icon sudarshanvahini.com

मोदी सरकार ने J&K से 370 किया साफ तो हूर पाने की कश्मीरी लौंडों की तमन्ना भी हुई फुर्र: 2018 में 200 बने थे आतंकी, 2025 में केवल 1


जम्मू-कश्मीर में नए स्थानीय आतंकियों की भर्ती लगभग ना के बराबर बची है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद आतंकियों की भर्ती में लगातार कमी हुई है। 2018 में 200 युवाओं ने आतंकवाद के लिए बंदूक उठाई थी। वहीं, इस वर्ष जम्मू-कश्मीर से केवल एक युवक आतंकी बना है।

अनुच्छेद 370 से कैसे बढ़ा आतंकवाद?

अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद से जोड़कर देखा जाता रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जनवरी 2025 में कहा था कि अनुच्छेद 370 ने युवाओं के मन में अलगाव का बीज बोया था।

उन्होंने कहा था, “आतंकवाद देश के अन्य मुस्लिम इलाकों में क्यों नहीं फैला? एक तर्क यह भी है कि कश्मीर की सीमा पाकिस्तान से लगती है। यहाँ तक कि गुजरात और राजस्थान की सीमा भी पाकिस्तान से लगती है लेकिन आतंकवाद वहाँ तक नहीं पहुँचा। अनुच्छेद 370 ने इस भ्रांति को बढ़ावा दिया कि भारत और कश्मीर के बीच संबंध अस्थाई हैं। धीरे-धीरे, अलगाववाद आतंकवाद में बदल गया।”

जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कुछ दिनों पहले ही कहा था कि अनुच्छेद 370 के कारण आतंकवाद और आतंकी तंत्र को बढ़ावा मिला है। सिन्हा ने कहा कि 5 अगस्त 2019 को आतंकी तंत्र के खात्मे की शुरुआत हो गई थी।

200 से 1 आतंकी तक: 7 वर्षों में बदली सूरत

2016 में हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में आतंकी भर्ती तेज हुई थी। 2018 में यह उच्चतम स्तर पर पहुँच गई। यह वही दौर था, जब आतंकियों के खुलेआम जनाजे निकाले जाते थे, स्थानीय युवाओं को भड़काया जाता था और सोशल मीडिया प्रचार व भाषणों के जरिए युवाओं को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया जाता था।

5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया गया और विशेष दर्जा खत्म हो गए। इसके बाद हालात तेजी से बदलने लगे। 2018 में जहाँ करीब 200 कश्मीरी युवाओं ने आतंकी संगठनों का रुख किया था, वहीं 2024 में यह संख्या घटकर सिर्फ 7 रह गई। 2025 में अब तक सिर्फ एक मामला सामने आया है।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद आतंकी भर्ती में रिकॉर्ड कमी आई है। आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक, आतंकी संगठनों में भर्ती हुए स्थानीय युवकों की संख्या 2020 में 160, 2021 में 125, 2022 में 100, 2023 में 22 और 2024 में सिर्फ 7 रह गई। वहीं, 2025 में जनवरी में कुलगाम से एक युवक गायब हुआ था और बाद में खबर आई कि वह आतंकी संगठन में शामिल हो गया है।

अब आतंकियों के छोटे-छोटे समूह ज्यादातर पाकिस्तान से आने वाले प्रशिक्षित लड़ाकों से बनते हैं। 2019 से 2024 के बीच आतंकवाद से जुड़ी 700 घटनाओं में 1,050 आतंकियों को ढेर कर दिया गया है।

इन वजहों से कम हुई आतंकियों की भर्ती

अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में आतंकी भर्ती को रोकने के लिए सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उठाए गए कदमों का असर अब साफ नजर आ रहा है। एजेंसियों ने एक के बाद एक ऐसे कई कदम उठाए जिनके चलते आतंकियों की भर्ती कम होती गई। पुलिस और एजेंसियों ने इंटेलिजेंस आधारित ऑपरेशनों पर जोर दिया। संदिग्ध युवाओं की सोशल मीडिया गतिविधियों, फोन कॉल्स और आने-जाने पर कड़ी निगरानी रखी गई।

जिन युवकों के आतंकी रास्ते पर जाने का शक था, उनके परिवारों से सीधे संपर्क किया गया। वहीं, जो लोग गाँँव-गाँँव घूमकर या सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को भड़काते थे। उन पर भी सरकार ने नजर बनाए रखी। इन्हें गिरफ्तार किया गया या ऑपरेशनों में ढेर किया गया।

2020 से एक बड़ा बदलाव आया और मारे गए आतंकियों के जनाजों पर रोक लगा दी गई। पहले, मारे गए आतंकियों के शव उनके गाँँवों में सौंप दिए जाते थे, जहां हजारों की भीड़ जुटती थी और भड़काऊ भाषण होते थे। ऐसे जनाजे कई बार भर्ती का मंच बन जाते थे। लेकिन अब शव गाँवों में देने की बजाय उत्तर कश्मीर के दूरदराज इलाकों में दफनाए जाने लगे।

LoC (लाइन ऑफ कंट्रोल) पर घुसपैठ पर नकेल कसी गई। इसके सहारे पाकिस्तान से लोग आकर स्थानीय आतंकियों को भड़काते थे। इसके लिए ड्रोन निगरानी, मजबूत फेंसिंग और हाई-टेक काउंटर-इंफिल्ट्रेशन ग्रिड का इस्तेमाल हुआ। इससे पाकिस्तान से हथियार, गोलाबारूद और आतंकी घुसपैठियों की सप्लाई चेन लगभग टूट गई।

370 हटने के बाद कैसे बदले हालात?

संसद ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने को मंजूरी दी और 31 अक्टूबर, 2019 से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया गया। इसके साथ ही, केंद्र सरकार के 170 कानून जो पहले लागू नहीं थे, अब वे इस क्षेत्र में लागू कर दिए गए।

370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में सत्ता का विकेंद्रीकरण होने भी शुरू हो गया। जनपद और जिला पंचायत के चुनाव हुए, 2018 में पंचायत चुनाव हुए और इसमें 74.1% मतदान हुआ। 2019 में पहली बार आयोजित ब्लॉक डेवलेपमेंट काउंसिल चुनाव में 98.3% मतदान हुआ।

कुछ दिनों पहले हुआ पहलगाम आतंकी हमला एक अपवाद जैसा था। आँकड़ों के मुताबिक, बीते एक दशक के दौरान वर्ष 2023 में आतंकी हिंसा में मरने वालों की संख्या सबसे कम रही है। इनमें 33 प्रतिशत कमी आ चुकी है।

आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, 5 अगस्त 2019 से 4 अगस्त 2025 के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से संबंधित कुल 1,230 मौतें दर्ज की गईं। वहीं, वर्ष 2013 से 2019 तक की अवधि में हुई कुल 1,845 मौतें हुई थीं। अनुच्छेद 370 हटने से पहले की छह वर्ष की अवधि 1121 आतंकवादी मारे गए, 475 सुरक्षाकर्मी और 243 नागरिक बलिदानी हुए हैं।

370 हटने के बाद विकास कार्यों में तेजी आई है। आईआईटी जम्मू, रियासी मेडिकल कॉलेज, एम्स अवंतीपोरा (2025 तक शुरू होने की उम्मीद) जैसे संस्थानों से शिक्षा को बढ़ावा मिला, वहीं 2019 के बाद 80,000 करोड़ रुपए का निवेश आया।

उदहमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक पूरी तरह चालू हो गया, कई टनल प्रोजेक्ट्स से कनेक्टिविटी बेहतर हुई और भारतनेट के तहत 9,789 फाइबर कनेक्शन दिए गए। पर्यटन में भी रिकॉर्ड वृद्धि हुई, श्रीनगर को 2024 में यूनेस्को ने ‘वर्ल्ड क्राफ्ट सिटी’ का दर्जा दिया और 2019 की तुलना में फ्लाइटों की संख्या 35 से बढ़कर 125 प्रतिदिन हो गई।

जम्मू-कश्मीर में कर राजस्व में भारी वृद्धि देखी गई। 2022 और 2024 के बीच जीएसटी संग्रह में 12%, उत्पाद शुल्क में 39% और कुल गैर-कर राजस्व में 25% की वृद्धि हुई है। राज्य का GDP 2015-16 के 1.17 लाख करोड़ रुपए से दोगुना होकर 2023-24 में 2.45 लाख करोड़ रुपए और 2024-25 में 2.63 लाख करोड़ रुपए हो गया है।

2023 में, रिकॉर्ड 2.11 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर आए और पर्यटन ने GDP में 7% का योगदान दिया। 2019 के बाद 75 नए स्पॉ खोले गए। 2,000 से अधिक होमस्टे पंजीकृत किए गए जिनमें बहुत सारे दूरदराज के गांवों में स्थित है।

Source link

Exit mobile version