मुस्लिम आरोपितों के नाम लेने में कतराते है राजदीप सरदेसाई

यह बात अब साफ हो चुकी है कि पत्रकार राजदीप सरदेसाई अपनी पत्रकारिता में दोहरा मापदंड अपनाते हैं। हाल ही में कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनसे उनकी पत्रकारिता की निष्पक्षता पानी की तरह दिखाई देती है।

मुस्लिम आरोपितों के नाम लेने में संकोच

हाल ही में, पहलगाम में एक 70 वर्षीय विधवा महिला के साथ हुए बलात्कार मामले में राजदीप सरदेसाई ने जानबूझकर आरोपित का नाम नहीं लिया। पीड़ित के साथ ‘जुबैर अहमद’ नाम के व्यक्ति ने रेप किया था।

राजदीप सरदेसाई ने इस घटना पर ट्वीट किया और कोर्ट के जमानत रद्द करने के फैसले का जिक्र भी किया, लेकिन आरोपित ‘जुबैर अहमद’ का नाम छोड़ दिया।

जब नेटिज़न्स ने उनसे सवाल किया, तो राजदीप सरदेसाई ने अपनी गलती मानने के बजाय, दूसरे मामलों का हवाला देना शुरू कर दिया। राजदीप सरदेसाई ने कहा कि कोलकाता के एक मामले में आरोपित का नाम ‘मोनोजित मिश्रा‘ था और तमिलनाडु के दहेज उत्पीड़न मामले में आरोपित पति कविन कुमार, ससुर ईश्वरामुर्थी और सास चित्रादेवी थे।

आरोपित का नाम जानबूझकर छुपाया गया था, यह बात साफ दिखती है। राजदीप सरदेसाई ने यह भी कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन यह बात संस्कृति और धर्म से जुड़े पहलुओं को नज़रअंदाज़ करती है।

जगन्नाथ मंदिर की ‘तुलना’ का विवाद

राजदीप सरदेसाई ने 27 जून 2025 को भी एक और विवाद खड़ा कर दिया था, जब उन्होंने ओडिशा के 900 साल पुराने पुरी जगन्नाथ धाम की तुलना पश्चिम बंगाल के दीघा में बने एक नए जगन्नाथ मंदिर से की। राजदीप सरदेसाई ने X (पहले ट्वीटर) पर लिखा, “जगन्नाथ यात्रा के अब 2 स्थान हैं- मूल ओडिशा के पुरी में, एक नया पश्चिम बंगाल के दीघा में।”

यह तुलना जानबूझकर की गई गलती है ताकि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC सरकार के लिए ‘एजेंडा सेट’ किया जा सके। ये तुलना इसलिए भी की गई होगी, क्योंकि राजदीप सरदेसाई की पत्नी सागरिका घोष TMC की राज्यसभा सांसद हैं।

पुरी का जगन्नाथ मंदिर 12वीं सदी में बना एक ऐतिहासिक मंदिर है, जबकि दीघा का मंदिर अभी दो महीने पहले ही बनाया गया है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने भी स्पष्ट किया है कि दीघा मंदिर का भगवान जगन्नाथ की भक्ति से कोई लेना-देना नहीं है।

यह घटनाएँ राजदीप सरदेसाई की पत्रकारिता में एक पक्षपाती पैटर्न को दर्शाती हैं, जहाँ वे कुछ मामलों में जानकारी छिपाते हैं और दूसरों में जानबूझकर तुलना करके राजनीतिक एजेंडा साधने की कोशिश करते हैं।



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