2008 के मालेगाँव विस्फोट के मामले में पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी 7 लोगों को बरी कर दिया गया है। इस हमले से जुड़ी कई साज़िशों का खुलासा होना बाकी है, जाँच एजेंसियाँ उसमें लगी हैं। इस ब्लास्ट की साज़िश के अलावा इस पूरे केस से जुड़े लोगों के बयानों को जोड़कर देखने से एक बात नजर आती है कि संभवतः इस ब्लास्ट की आड़ में देश से हिंदू नेतृत्व खत्म करने का भी प्रयास हो रहा था।

ऐसा कहने के पीछे कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं बल्कि लोगों के एक के बाद एक कई बयान हैं। इस बयानों से पता चलता है कि तत्कालीन कॉन्ग्रेस राज में काम कर रहीं एजेंसियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(तब गुजरात के मुख्यमंत्री) , आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और योगी आदित्यनाथ (तब सांसद) को किसी भी तरह मालेगाँव विस्फोट के मामले में फंसाने के लिए लोगों पर दबाव बनाया था। इस केस से जुड़े कुछ लोगों के बयानों के ज़रिए समझते हैं कि किस तरह एजेंसियाँ लोगों पर दबाव बना रही थीं।

जबरन मोदी, योगी, भागवत का नाम लेने को कहा गया: साध्वी प्रज्ञा

मालेगाँव विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भी आरोपित बनाया गया था। अब प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कहा है कि जाँच एजेंसियों ने उन पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत आरएसएस और बीजेपी के कई नेताओं का नाम लेने का दबाव बनाया था।

साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि उस वक्त वह सूरत में रह रहीं थीं तो उनसे नरेंद्र मोदी का नाम लेने को कहा गया था। उन्होंने कहा, “मुझसे विशेष तौर पर नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत, राम माधव, योगी आदित्यनाथ, इंद्रेश कुमार और कई अन्य बड़े नेताओं के नाम लेने को कहा गया था। मैंने वो नाम नहीं लिए इसलिए मुझे प्रताड़ित किया गया था।”

साध्वी प्रज्ञा ने कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन UPA सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि इस पूरे झूठे मामले के पीछे कॉन्ग्रेस थी। उन्होंने कहा कि यह मामला भगवा और सशस्त्र बलों को बदनाम करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा था।

मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया: पूर्व ATS अधिकारी

साध्वी प्रज्ञा ऐसे दावा करने वालीं इकलौती नहीं है। मालेगाँव विस्फोट केस की जाँच में शामिल रहे महाराष्ट्र ATS के रिटायर्ड पुलिस इंस्पेक्टर मेहबूब मुजावर ने भी ऐसा ही दावा किया था। मुजावर ने कहा कि उस वक्त उन्हें कुछ खास लोगों को गिरफ्तार करने के गुप्त आदेश दिए गए थे, जिनमें RSS प्रमुख मोहन भागवत का नाम भी शामिल था।

मुजावर ने दावा किया कि इनका मकसद ‘भगवा आतंकवाद’ की झूठी कहानी गढ़ना था। हालाँकि, उन्होंने यह आदेश मानने से इंकार कर दिया था। उनका कहना है कि आदेश न मानने के बाद, उनके ऊपर आईपीएस अधिकारी परमवीर सिंह ने एक झूठा केस डाल दिया जिससे उनकी 40 साल की पुलिस सेवा खत्म हो गई।

कर्नल पुरोहित पर बनाया गया योगी का नाम लेने का दबाव

इस मामले में आरोपित बनाए गए लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित ने मई 2024 में कोर्ट में बताया था कि उन पर RSS, VHP के नेताओं और योगी आदित्यनाथ का नाम लेने का दबाव बनाया गया था।

कर्नल पुरोहित ने मुंबई के एक कोर्ट को बताया, “मेरे साथ युद्ध बंदी से भी बदतर व्यवहार किया गया। हेमंत करकरे, परमबीर सिंह और कर्नल श्रीवास्तव लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि मैं मालेगाँव बम धमाके के लिए खुद को जिम्मेदार बता दूँ। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं RSS, VHP के वरिष्ठ नेताओं और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम लूँ। उन्होंने मुझे 3 नवम्बर, 2008 तक यातनाएँ दीं।”

हिंदू लीडरशिप को खत्म करने की थी साज़िश!

कॉन्ग्रेस राज में जिन लोगों का नाम लेने के लिए आरोपितों और जाँच अधिकारियों पर दबाव बनाया गया उनमें RSS के बड़े नेता, BJP के नेता और नई उभरती लीडरशिप के अलावा RSS से जुड़े अन्य संगठनों के लोग भी शामिल हैं। इन कड़ियों को जोड़ने से अंदेशा होता है कि किस तरह पूरे देश में हिंदू लीडरशिप को खत्म करने की साज़िश की जा रही थी।

अगर तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार अपनी इस साज़िश में कामयाब हो जाती तो देश में हिंदू हितों की आवाज उठाने वाले नेताओं को शायद वर्षों के लिए जेलों में डाल दिया जाता। अगर नरेंद्र मोदी को गिरफ्तार कर लिया जाता तो शायद वो 2014 में कभी देश के प्रधानमंत्री ना बन पाते, जो बदलाव आज देश में हमें नज़र आते हैं वैसा शायद कभी ना हो पाता।

वहीं, अगर मोहन भागवत को गिरफ्तार किया जाता तो कॉन्ग्रेस का अगला निशाना RSS ही होता और पहले तीन बार की तरह एक बार फिर शायद RSS को बैन कर दिया जाता। योगी आदित्यनाथ के गिरफ्तारी के जरिए शायद बीजेपी की भावी पीढ़ी को खत्म करने और संत समाज को बदनाम करने की साजिश की जाती।

मोटे तौर पर समझ आता है कि अगर यह साज़िश सफल होती तो RSS और BJP को वैचारिक तौर पर कमजोर कर हिंदुत्व की विचारधारा को सार्वजनिक विमर्श से बाहर करने की कोशिश सफल हो जाती। हिंदू जनमानस जो संगठित नजर आने लगा था, उसमें शायद फिर टूट पड़ जाती और अयोध्या में भव्य श्रीराम का मंदिर देखना लोगों का सपना ही रह जाता।

सिर्फ इतना ही नहीं दुनिया भर के मंचों पर मुस्लिम आतंकवाद के बराबर ही हिंदू या भगवा आतंकवाद को खड़ा कर दिया जाता। अगर हिंदू आतंकवाद के कुचक्र की एक बार शुरुआत हो जाती तो यह कहाँ तक जाता इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है।

ऐसा सिर्फ एक घटना तक ही सीमित नहीं था लेकिन मुख्य तौर पर इसके बाद से ही हिंदू और भगवा को आतंकवाद बताने की साजिश शुरू हो गई थी। सितंबर 2008 के मालेगाँव ब्लास्ट के बाद मुंबई में 26 नवंबर 2008 को बड़ा आतंकी हमला हुआ था।

इस हमले में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हिंदू धर्म को बदनाम करने की साज़िश रची थी। हमले में शामिल आतंकी अजमल कसाब हाथ पर कलावा बाँधकर आया था और लश्कर-ए-तैयबा का प्लान था कि कसाब की अगर इस हमले में मौत हो जाए तो उसे हिंदू आतंकी घोषित कर दिया जाए।

मुंबई पुलिस कमिश्नर रहे राकेश मारिया ने अपनी किताब में दावा किया था कि ‘कसाब के पास समीर दिनेश चौधरी नाम का पहचान पत्र था जो बेंगलुरू के पते पर था’। अब अगर देश में हिंदू आतंकवाद की थ्योरी फैलाई जाती तो पाकिस्तान के अलावा इस केस को बनाने के लिए भारत के लोगों का भी इसमें शामिल होने ज़रूरी होता लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

कसाब को जिंदा पकड़ा गया और जाँच में यह सामने आया कि वह पाकिस्तान का रहने वाला था। इतने सब के बाद भी 26/11 के हमले के लिए RSS को बदनाम करने की साज़िश खत्म नहीं हुई। RSS के खिलाफ पुस्तक लिखी गई और उसके विमोचन में कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह पहुंचे।

पत्रकार अजीज बर्नी ने ’26/11: RSS की साज़िश’ की साज़िश नाम से किताब लिखकर लश्कर को क्लीन चिट देने की कोशिश हुई और RSS को इन हमलों का ज़िम्मेदार बताने की कोशिश हुई और इस किताब के विमोचन में कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह तक शामिल हुए थे।

‘इंडियन पॉलिसी फाउंडेशन’ के एक डॉक्यूमेंट में इस किताब के कुछ अंशों को प्रकाशित किया गया है। इसमें लिखा गया है, “मुंबई के 26/11 हमलों के लिए भाजपा और संघ जिम्मेदार हैं और इसकी जाँच में देरी के खिलाफ भाजपा ने आवाज़ नहीं उठाई थी।”

इस किताब में नरेंद्र मोदी की मुंबई हमलों में भूमिका तक को लेकर दावा किया गया और इसमें लिखा गया, “संघ परिवार के हमले की साजिश में मोसाद और सीआइए ने मदद की। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमलावर को मुंबई पहुंचाने और होटल में रुकवाने में मदद की (पृः 41)।”

इस किताब में ऐसे और भी कई मनगढ़ंत दावे किए गए थे और दिग्विजय सिंह जैसे कॉन्ग्रेस के नेता इन दावों को बढ़ाने-चढ़ाने की पूरी कोशिश में लगे थे। ऐसा दिग्विजय सिंह केवल अपनी मर्जी से नहीं कर रहे होंगे इसमें बड़े नेताओं की भी भूमिका होगी क्योंकि इस विषय पर बड़े कॉन्ग्रेसी नेता खामोश ही रहे हैं इसका कोई विरोध उन्होंने नहीं किया है।

भगवा और हिंदू को आतंकवाद बनाने की साजिश

दिग्विजय सिंह के अलावा गृह मंत्री रहे पी. चिदंबरम और सुशील कुमार शिंदे ने भी भगवा और हिंदू आतंकवाद जैसे शब्दों का खुलकर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। पी. चिदंबरम ने गृह मंत्री रहते हुए 2010 में राज्यों के पुलिस महानिदेशकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘भगवा आतंक’ का बम धमाकों से संबंध का पता चला है।

चिदंबरम ने पुलिस महानिदेशकों से कहा था, “भारत में युवा पुरुषों और महिलाओं को कट्टरपंथी बनाने के प्रयासों में कोई कमी नहीं आई है। हाल ही में भगवा आतंकवाद की घटना का पर्दाफाश हुआ है, जिसकी अतीत में हुए कई बम विस्फोटों में संलिप्तता पाई गई है। मेरी आपको सलाह है कि हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए।”

चिदंबरम के अलावा सुशील कुमार शिंदे ने भी गृह मंत्री रहते हुए जनवरी 2013 में कहा था कि बीजेपी और आरएसएस के कैंपों में ‘हिंदू आंतकवादियों’ को प्रशिक्षण दिया जाता है। शिंदे ने कहा था, “ये सब इतनी बार अख़बार में आ गया है। ये कोई नई चीज़ नहीं है जो मैंने आज कही है। ये भगवा आतंकवाद की ही बात मैंने की है, कोई दूसरी बात नहीं कही है।”

शिंदे ने एक कथित रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था, “रिपोर्ट आ गई है। जाँच में भाजपा हो या आरएसएस के ट्रेनिंग कैंप, हिंदू आतंकवाद बढ़ाने का काम देख रहे हैं।समझौता एक्सप्रेस रेलगाड़ी का धमाका हो, मक्का मस्जिद ब्लास्ट हो या फिर मालेगाँव, हिंदू चरमपंथियों ने वहाँ जाकर बम धमाके करवाए और फिर कह दिया कि ये धमाके अल्पसंख्यकों ने करवाए।”

कई वर्षों बाद शिंदे ने स्पष्ट किया कि भगवा आतंकवाद शब्द कहने के लिए उनकी पार्टी कॉन्ग्रेस ने बोला था। शिंदे ने कहा कि वे इस शब्द का इस्तेमाल करना नहीं चाहते थे, लेकिन मजबूरी में उन्हें इसका इस्तेमाल करना पड़ा।

यह वर्षों का सिलसिला अब तक भी खत्म नहीं हुआ है। सबूतों के नाम पर कोर्ट में भगवा आतंकवाद की थ्योरी फेल हो गई लेकिन कांग्रेस के नेता अब भी इससे जुड़ा नैरेटिव बनाने में जुटे हैं।

NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता पृथ्‍वीराज चव्‍हाण ने शनिवार (2 अगस्त) को कहा कि आतंकवादियों के लिए ‘भगवा’ शब्द का प्रयोग न करके ‘सनातन’ या ‘हिंदुत्ववादी’ शब्दों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

हिंदू को आतंकवादी साबित करने की थ्योरी असल में किसी और को बचाकर तुष्टिकरण करने की रणनीति है। लेकिन अब यह थ्योरी फ्लॉप हो गई है, होनी ही थी। जिस विचार में पेड़, पहाड़, जल, जंगल, जीव सबको पवित्र और पूजनीय माना गया है उस पर आतंकवाद का ठप्पा लगाने की कोशिश करना यकीनन बेईमानी ही है।

कॉन्ग्रेस के नेता अब भी हिंदू धर्म को बदनाम करने के नए-नए बहाने ढूंढते हैं लेकिन ‘सनातन’ को बदनाम करते-करते पार्टी खुद कहाँ पहुँच गई है, ये सब भी हमारे सामने है। देश के मूल विचार को बदनाम करने की साजिश और कोशिश पर हर तरह से लगाम लगाए जाने की जरूरत है।



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