मालेगाँव विस्फोट केस में गुरुवार (31 जुलाई 2025) को मुंबई की एक विशेष NIA कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित सहित कुल 7 आरोपियों को बरी कर दिया है। वहीं अब विशेष जज एके लाहोटी ने आरोपितों को फँसाने के लिए झूठे सबूत पेश करने के आरोप में ATS के ACP शेखर बागड़े के खिलाफ जाँच के आदेश दिए हैं।
इस केस की शुरुआती जाँच महाराष्ट्र ATS ने की थी, लेकिन 2011 में मामला NIA को सौंपा गया। जाँच के दौरान दो सेना अधिकारियों ने बताया कि ATS के अधिकारी (अब ACP) शेखर बगड़े 3 नवंबर 2008 को आरोपित सुधाकर चतुर्वेदी की गैरमौजूदगी में उनके घर में घुसे थे। दोनों सैन्य अधिकारियों ने गवाही दी कि बगड़े ने वहाँ चुपचाप जाकर RDX जैसे विस्फोटक रखे, और उन्हें यह बात किसी को न बताने को कहा।
दो दिन बाद ATS की टीम ने उस घर पर छापा मारा और RDX मिलने का दावा किया। NIA की जाँच और कोर्ट में दी गई जानकारी से यह स्पष्ट हुआ कि बगड़े ने घर में जबरन घुसकर फर्जी सबूत रखे थे। कोर्ट ने कहा कि ATS की तरफ से इस मामले में कोई संतोषजनक सफाई नहीं दी गई और पूरे मामले में ‘सबूतों की प्लांटिंग’ की आशंका है।
इतना ही नहीं कोर्ट को यह भी पता चला कि विस्फोट के कथित घायलों के मेडिकल सर्टिफिकेट बिना मान्यता प्राप्त डॉक्टरों से बनवाए गए थे। कुछ सर्टिफिकेट जानबूझकर बदले भी गए थे। कोर्ट ने इस पर भी जाँच का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 2017 में कर्नल पुरोहित को जमानत देते हुए बगड़े की संदिग्ध भूमिका पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने कहा था कि आर्मी की जाँच में भी अलग कहानी सामने आई थी और बगड़े का आरोपित के घर में जाना सवाल खड़ा करता है।
अब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि ATS और NIA दोनों ही आरोपितों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं ला सके और पूरा मामला संदेह के घेरे में है। कोर्ट का 1000 पन्नों का यह फैसला महाराष्ट्र के DGP, ATS प्रमुख और NIA को भेजा गया है ताकि फर्जी सबूत और मेडिकल रिकॉर्ड की गहराई से जाँच हो सके।
ATS ने जाँच में कैसे की गड़बड़ी?
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अभियोजन पक्ष (प्रॉसिक्यूशन) किसी भी आरोपित के खिलाफ ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया। कोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि ATS यह साबित नहीं कर पाई कि धमाके में इस्तेमाल की गई बाईक प्रज्ञा ठाकुर की थी।
कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि प्रज्ञा ठाकुर धमाके से कम से कम दो साल पहले ही साध्वी बन चुकी थीं और अभियोजन यह नहीं दिखा सका कि उनका धमाके की साजिश से कोई संबंध था। कर्नल पुरोहित के मामले में भी अदालत ने कहा कि कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो कि उनके घर में कभी विस्फोटक सामग्री रखी गई थी।
जाँच एजेंसी ने मूलभूत जाँच प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया। उदाहरण के तौर पर, जिस कमरे में विस्फोटक रखने का दावा किया गया, उसकी स्केच तक नहीं बनाई गई और फॉरेंसिक सैंपल भी दूषित (contaminated) पाए गए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘अभिनव भारत’ नाम की जिस दक्षिणपंथी संस्था की बात की गई थी, जिसे प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित से जोड़ा गया था, उसके बारे में भी यह साबित नहीं हो सका कि वह किसी आतंकवादी गतिविधि में शामिल थी या उसके फंड का इस्तेमाल इस तरह के कामों के लिए हुआ था।