केरल हाई कोर्ट ने महात्मा गाँधी की प्रतिमा के साथ अभद्रता करने वाले शख्स के खिलाफ कार्रवाई रद्द कर दी। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना कोई अपराध नहीं था। ऐसा करने वाला एक छात्र था, जिसने महात्मा गाँधी के ऊपर एक क्रिसमस वाला श्रद्धांजलि माला भी रख दिया था।

केरल हाई कोर्ट ने कहा कि छात्र का कृत्य भले ही निंदनीय है, लेकिन उसे कानूनन अपराध नहीं माना जा सकता। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे कृत्य को दंडित करने के लिए कोई स्पष्ट कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है।

कोर्ट का क्या कहना था?

यह मामला केरल हाई कोर्ट की जस्टिस वी जी अरुण की बेंच ने सुना। उन्होंने यह कहते हुए मामला रद्द कर दिया कि याचिकाकर्ता का आचरण भले ही सामाजिक रूप से अस्वीकार्य और निंदनीय हो लेकिन कानून के अनुसार उसे गैर-कानूनी नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने साफ किया कि हर अनैतिक कार्य, अवैध कार्य नहीं होता।

कोर्ट ने ‘nullum crimen sine lege’ यानी ‘बिना कानून के कोई अपराध नहीं’ के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि जब तक किसी कृत्य को किसी कानून में अपराध के रूप में परिभाषित नहीं किया गया हो, तब तक उसे अपराध नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 में भी राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिमाओं को अपवित्र करने के खिलाफ कोई प्रावधान नहीं है।

वकीलों की दलीलें और कोर्ट की टिप्पणी

छात्र के वकील एडवोकेट एस राजीव ने दलील दी कि भले ही छात्र का तरीका गलत था, लेकिन उसे अपराध नहीं कहा जा सकता। वकील ने दलील दी कि न तो कोई कानून टूटा है और न ही किसी की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया है।

वहीं, सरकारी पक्ष की ओर से एडवोकेट हाशिम के एम ने तर्क दिया कि यह कृत्य समाज में असंतोष फैलाने वाला था। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत के नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के साथ-साथ अपने मौलिक कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए।

कोर्ट ने माना कि स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना भी एक नैतिक कर्तव्य है, भले ही संविधान में उसका स्पष्ट रूप से जिक्र नहीं किया गया हो।

क्या था मामला?

यह मामला एक लॉ छात्र से जुड़ा है, जिस पर आरोप था कि उसने महात्मा गाँधी की प्रतिमा पर चशमा और क्रिसमस की माला रखी और फिर कहा कि गाँधी जी का निधन बहुत पहले हो चुका है।

इस पूरे कृत्य की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई और उसे छात्रों के व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर किया गया। इससे कॉलेज में तनाव फैल गया और प्रिंसिपल ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद छात्र को पाँच दिन के लिए कॉलेज से निलंबित कर दिया गया और उसे ₹5000 का जुर्माना भी भरना पड़ा।

छात्र के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से जानबूझकर उकसाना) और धारा 426 (शरारत के लिए दंड) के तहत केस दर्ज किया गया था। अब यह केस रद्द हो गया है।

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