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भारत विभाजन के वक्त RSS ने जमीन पर निभाई भूमिका: सरदार पटेल ने भी की थी काम की तारीफ, लाखों हिंदुओं के खून से सना है इतिहास


भारत विभाजन के वक्त RSS के कार्य

14 अगस्त, 1947 भारत के इतिहास का वह काला दिन, जो लाखों भारतीयों के खून से रंगा है। यह भारत के विभाजन का समय था। भारत को ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ के कारण धर्म के आधार पर विभाजित किया गया था।

मुस्लिमों ने एक अलग राष्ट्र की माँग की थी, लेकिन इसकी आग में हजारों हिंदू झुलस गए। पाकिस्तान के रूप में जब मुस्लिम राष्ट्र अस्तित्व में आया, तो हजारों हिंदुओं के शव पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में लाद दिए गए। यही नहीं हजारों हिन्दू महिलाओं के साथ रेप किया गया, बच्चों को अनाथ बना दिया गया।

स्थिति इतनी गंभीर थी कि वर्तमान पाकिस्तान में रहने वाले लाखों हिंदू खतरे में थे। इस विभाजन ने न केवल जमीन पर लाइन खींची, बल्कि लाखों हिंदुओं के दिलों को भी छलनी कर दिया। इन अत्याचारों के खिलाफ हिंदुओं की पुकार सुनने वाला कोई नहीं था।

हिंदू मर रहे थे और अपने पूर्वजों की भूमि से पलायन कर रहे थे। ऐसी कठिन परिस्थिति में हिन्दुओं के साथ अगर कोई खड़ा था तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस था। न तो सरकार को और न ही कॉन्ग्रेस को इसकी परवाह थी।

विभाजन के दौरान संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका

विभाजन के समय, संघ और उसके स्वयंसेवकों ने पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी। जब दंगे भड़के और नेहरू सरकार पूरी तरह से बैकफुट पर आ गई, तो संघ ने आगे आकर पाकिस्तान से आए लाखों हिंदू शरणार्थियों के लिए तीन हजार से ज्यादा राहत शिविरों की व्यवस्था की।

आरएसएस ने पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं को सुरक्षित भारत लाने का बीड़ा उठाया था। आरएसएस को एक साथ दो मोर्चों पर लड़ना था। एक पाकिस्तान से हिंदुओं को किसी भी कीमत पर बाहर निकालना और दूसरा देश के अंदर हिन्दू विरोधी दंगों से लड़ना। ये दंगे मुस्लिम लीग करा रहा था।

संघ पर काम कर चुके प्रोफेसर डॉ. हरेंद्र सिंह ने एक लेख में लिखा है कि देश के विभाजन के वक्त मुस्लिम लीग ने भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक जमा कर लिए थे। दिल्ली में इन हथियारों और विस्फोटकों को रखने की व्यवस्था की गई थी। इतना ही नहीं, कई मस्लिम कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित भी किया गया। साथ ही भारत में रहने वाले हिंदुओं और सिखों के नरसंहार की साजिश भी रची।

ऐसे समय में संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी जान जोखिम में डालकर इस षड्यंत्र का पर्दाफाश किया। संघ के कुछ नेता और स्वयंसेवक जहाँ देश के भीतर हिंदुओं की रक्षा कर रहे थे, वहीं कई बड़े नेता और स्वयंसेवक पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति पर नज़र बनाए हुए थे।

लेख में कहा गया है कि विभाजन के समय, आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक गुरुजी ने स्वयं कहा था, “जब तक वहाँ (पाकिस्तान में) एक भी हिंदू है, उसे वहाँ मत छोड़ो।” उनके आह्वान पर, लाखों स्वयंसेवकों ने पाकिस्तान से करीब दो करोड़ हिंदुओं को सुरक्षित निकाल कर ले आए। पाकिस्तान में हिन्दुओं की मदद के साथ-साथ आधुनिक बांग्लादेश में फँसे हिंदुओं के जीवन को बचाने में भी आरएसएस लगा रहा।

पाकिस्तान के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, लाहौर, कराची जैसे क्षेत्रों में तत्कालीन सरसंघचालक गुरुजी और संघ के बड़े नेता लगातार मेहनत कर रहे थे और वहाँ हिन्दूओं की सुरक्षा का इंतजाम किया जा रहा था।

संघ ने वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों और बाला साहेब देवरसजी जैसे नेताओं को पंजाब भेजा। राष्ट्र सेविका समिति की संचालिका सिंधुताई हिन्दू महिलाओं को संगठित करने के लिए तीन हफ्ते तक कराची से लाहौर तक जागरुकता अभियान चलाया।

हिन्दुओं की जान आरएसएस ने बचाया

पाकिस्तान में हिन्दुओं के जीवन और सम्मान की रक्षा का जिम्मा आरएसएस ने उठाया था। संघ ने लाहौर में 80 और पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में 300 से ज्यादा शिविर स्थापित किए। इसके अलावा भारत के जम्मू, दिल्ली, अमृतसर, कोलकाता में हिन्दू रक्षा समिति, पंजाब राहत समिति समेत कई राहत शिविरों की स्थापना की, जहाँ विस्थापितों को रखा गया था।

संघ ने बिछड़े हुए भाई-बहनों, माता-पिता, पति-पत्नी को मिलाया। घायलों के इलाज की व्यवस्था और जरूरत पड़ने पर रक्तदान तथा रक्तदान शिविरों की आयोजन किया। हर दिन 20 से 25 हजार लोगों को भोजन कराने और कपड़े, बर्तन, खाद्य सामग्री आदि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई। देश के कई शहरों के स्कूलों, धर्मशालाओं में विस्थापितों के रहने की व्यवस्था की गई।

सरदार पटेल ने की थी आरएसएस के कार्यों की तारीफ

सरदार वल्लभभाई पटेल ने विभाजन के समय में स्वयंसेवकों के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा था, “इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि संघ के वीर स्वयंसेवकों ने अनगिनत निर्दोष महिलाओं और बच्चों की जान बचाई। वे उन्हें दूर-दूर से बचाकर यहाँ लाए।” हालाँकि यह भी एक सच्चाई है कि संघ के इस वीरतापूर्ण कार्य पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया।

जब महात्मा गाँधी नोआखली में बैठे थे और हिंदू मर रहे थे, बच्चों के अंग-भंग हो रहे थे और महिलाओं को लूटा जा रहा था। उस वक्त केवल संघ के कार्य ही जमीन पर हो रहे थे। संघ के हजारों स्वयंसेवकों ने बिना किसी प्रचार के पीड़ितों की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था।

इस्लामिक जिहाद के शिकार बने लाखों हिन्दू

भारत और पाकिस्तान दोनों ही जगहों पर हिंदू हिंसा के सबसे ज्यादा शिकार हुए। लगभग 20 लाख लोग मारे गए और दो करोड़ लोगों को अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़नी पड़ी। बेटियों के साथ उनके बाप के सामने बलात्कार किया गया। पूरे-पूरे परिवार जला दिए गए। मंदिरों और गुरुद्वारों को निशाना बनाया गया और छोटे बच्चों, बुज़ुर्गों और यहाँ तक कि महिलाओं को भी मुस्लिम भीड़ ने मार डाला।

सबसे भीषण हिंसा सिंध, हैदराबाद, पंजाब, बंगाल और कश्मीर में हुई। कश्मीर में कबायली वेश में पाकिस्तानियों ने हिंदुओं का कत्लेआम किया। सिंध, बंगाल और पंजाब में हिंदू और सिख परिवारों को जिंदा जला दिया गया और बच्चों को प्रताड़ित करके मार डाला गया। हिंदू महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार आम बात थी। लाखों लोग इस अत्याचार को कभी नहीं भूल पाएँगे।

ऐसी भयानक, क्रूर और बर्बर घटनाओं को इतिहास से मिटा दिया गया। इतिहास में ऐसी घटनाओं का कोई जिक्र नहीं है। इसमें मुंशी, सावरकर, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे लोग शामिल हैं। करोड़ों हिंदुओं के दर्द को याद करने और आने वाली पीढ़ी को सच्चाई से रूबरू कराने का यही काम प्रधानमंत्री मोदी विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के माध्यम से कर रहे हैं।

स्वतंत्रता आंदोलन में आरएसएस की भूमिका

एक सोची-समझी साजिश के तहत वामपंथियों और कॉन्ग्रेस ने ये दुष्प्रचार किया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वतंत्रता संग्राम में निष्क्रिय रहा। सच तो यह है कि संघ ने न सिर्फ महान स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाई, बल्कि जरूरत पड़ने पर स्वंयसेवकों ने अपनी जान भी दी।

उमाकांत कड़िया जैसे संघ स्वयंसेवकों ने गांधीजी के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में भाग लिया। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में पहली गोली खाने वाले वह पहले क्रांतिकारी थे।

हकीकत यह है कि जब देश को जरूरत पड़ी, संघ ने आगे आकर मदद की। जब तत्कालीन नेहरू सरकार बैकफुट पर थी, तब इसी संघ के स्वयंसेवकों ने पाकिस्तानी सेना और मुस्लिम लीग की गतिविधियों का पर्दाफाश करके सरकार की मदद की। इस स्वतंत्रता संग्राम में अनेक स्वयंसेवकों ने भाग लिया और देश के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दी।

इसके अलावा, जब हिंदू समुदाय अलग-थलग पड़ गया, तब केवल संघ के स्वयंसेवक ही उनके साथ खड़े रहे। उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर हिंदू समुदाय के लिए संघर्ष किया और लाखों लोगों की जान भी बचाई। उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार पटेल ने भी कहा था कि संघ के हजारों बहादुर स्वयंसेवक लाखों लोगों की जान बचाने और महिलाओं के खिलाफ हो रही बर्बरता को रोकने के लिए सबसे आगे थे।

इसलिए, कांग्रेस और वामपंथी इतिहासकारों-गिरोह का यह दावा कि आरएसएस स्वतंत्रता संग्राम में शामिल नहीं था, निराधार है और जानबूझकर एक षडयंत्र के तहत फैलाया गया है। प्रकृति का नियम है कि सत्य को चाहे कितना भी दबाया जाए, सही समय पर वह सामने आ ही जाता है। यही सही समय है।

(मूल रूप से गुजराती में ये रिपोर्ट लिखी गई है, इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें)

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