प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29 अगस्त 2025 को जापान की यात्रा पर जा रहे हैं। यह यात्रा सिर्फ औपचारिक मुलाकात नहीं होगी बल्कि दोनों देशों के बीच रिश्तों को और मज़बूत करने का बड़ा कदम मानी जा रही है।

जापान ने अगले दस सालों में भारत में करीब ¥10 ट्रिलियन (5,800 लाख करोड़ रुपए) निवेश करने का ऐलान किया है। यह 2022 में किए गए पाँच साल के लिए ¥5 ट्रिलियन (2,750 लाख करोड़ रुपए) निवेश की प्रतिबद्धता से कहीं ज्यादा है।

पीएम मोदी का जापान दौरा सिर्फ दो देशों के बीच की औपचारिकता से कहीं ज्यादा है। बदलते हुए दुनिया के माहौल में भारत जापान के लिए एक जरूरी साझेदार बनकर उभरा है। जापान को चीन की बढ़ती आक्रामकता की चिंता है।

हालाँकि, यह अब एक नया ‘टैरिफ फ़्लोर’ बन गया है, जिससे जापानी कंपनियों के मुनाफे पर दबाव रहेगा और उन्हें अपनी अंतरराष्ट्रीय रणनीतियों पर फिर से सोचना पड़ेगा। यही स्थिति भारत के लिए एक बड़ा अवसर है, क्योंकि जापान अपने व्यापार और निवेश के नए रास्ते भारत में तलाश सकता है।

अमेरिका-जापान व्यापार विवाद से भारत को लाभ क्यों?

जापान और अमेरिका को सबसे करीबी साथी माना जाता है। इसके बावजूद वॉशिंगटन का आर्थिक राष्ट्रवाद सामने आया है, जिसमें अपने ही साथियों के खिलाफ भी टैरिफ लगाया गया है। अब सभी देशों को 15-20% “दुनिया भर का टैरिफ” का खतरा झेलना पड़ रहा है, वो भी जब तक कि वो अमेरिका के साथ खास समझौता नहीं कर लेते।

इसी वजह से जापान को मजबूरी में 15% टैरिफ समझौता मानना पड़ा। कुछ दिनों बाद अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी ऐसा ही किया। इसका बड़ा सबक जापान के लिए यह है कि अमेरिकी बाजार पर ज्यादा निर्भरता जोखिम भरी है। अगर मुनाफा सुरक्षित रखना है तो उसे नए बाजार तलाशने होंगे और इसमें भारत सबसे बड़ा उदाहरण बना है।

  1. जापान को बड़ा बाजार चाहिए, भारत वो देता है। अमेरिका के टैरिफ से मुनाफा घट रहा है, इसलिए जापानी कंपनियों को ऐसे बाजार चाहिए जहाँ कीमतें कम और खपत ज्यादा हो। भारत की 1.4 अरब की आबादी, तेजी से बढ़ता मध्यम वर्ग और 2025 तक 6.4% GDP वृद्धि (IMF का अनुमान) उसे चीन और अमेरिका दोनों की तुलना में अधिक आकर्षक विकल्प बनाते हैं।
  2. भारत की एक और ताकत है उसकी रणनीतिक स्वायत्तता है। नई दिल्ली न तो पश्चिमी पाबंदियों का हिस्सा बनी, न ही पूर्वी एशिया के RCEP समूह में शामिल हुई। जापान जहाँ चीन पर निर्भरता घटाना चाहता है, वहीं भारत अपनी स्वतंत्र नीति की वजह से आदर्श साझेदार नजर आता है।
  3. बड़े ऐस्पेक्ट में देखें तो जापान के भीतर भी दबाव बढ़ रहा है। वहाँ मुद्रास्फीति बैंक ऑफ जापान के लक्ष्य से ऊपर है और आगे ब्याज दरें बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। यानी बेहद सस्ता ‘येन फ़ाइनेंस’ अब खत्म होने की ओर है। ऐसे में जापानी पूंजी अब भारत जैसे देशों में ज्यादा लाभ कमा सकती है।
  4. भारत पर भी दबाव है। हाल ही में अमेरिका-भारत की कुछ वार्ताएँ रद्द हो चुकी हैं। द्विपक्षीय समझौते न होने की वजह से भारत पर भी अमेरिकी अतिरिक्त शुल्क लगाने का खतरा बना हुआ है। वॉशिंगटन ने चेतावनी दी है कि अगर तेल और भू-राजनीति जैसी दिक्कतें जारी रहीं, तो और टैरिफ लगाए जा सकते हैं।
  5. इसलिए भारत के लिए अब जरूरी है कि वह अपने निर्यात को विविध बनाए (Export mix risk कम करे), साथ ही अन्य देशों के साथ साझेदारी मजबूत करे, ताकि बाजार जोखिम कम हो।

भारत-जापान साझेदारी दोनों देशों के लिए फायदेमंद

जापान और अमेरिका को सबसे करीबी सहयोगी माना जाता है, लेकिन अब वॉशिंगटन की आर्थिक राष्ट्रवाद की नीति मजबूत होकर टैरिफ (शुल्क) के रूप में सामने आ रही है और यह सहयोगियों पर भी लागू हो रही है।

अब सभी देशों पर 15–20% ‘दुनियाभर का टैरिफ’ का खतरा बना रहता है, जब तक कि वे अमेरिका के साथ विशेष समझौता न कर लें। बड़ी हानि से बचने के लिए जापान को 15% टैरिफ समझौते को मानना पड़ा।

अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) ने भी कुछ दिन बाद इसी तरह का समझौता किया। इससे जापान के लिए एक साफ सबक निकलता है। अमेरिकी बाजार पर उसकी ज्यादा निर्भरता जोखिमभरी है। अगर टैरिफ जारी रहते हैं, तो मुनाफे के लिए जापान को दूसरे बाजार तलाशने होंगे। ऐसे में भारत एक बड़ा विकल्प बनता जा रहा है।

1. जापान को बड़े पैमाने वाले बाजार की जरूरत है और भारत यह अवसर देता है। अमेरिकी टैरिफ से मुनाफा घट रहा है, इसलिए जापानी कंपनियों को अब ऐसे बाजार की तलाश है जहाँ कीमतें कम हों और खपत ज्यादा।

भारत इस मामले में सबसे उपयुक्त है यहाँ 1.4 अरब की आबादी है, तेजी से बढ़ता हुआ मध्यम वर्ग है और IMF के अनुसार 2025 तक 6.4% GDP वृद्धि का अनुमान है। यही वजह है कि भारत, चीन और दुनियाभर में टैरिफ लाद रहे अमेरिका के बीच जापान के लिए सबसे व्यवहारिक विकल्प बन रहा है।

2. रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) भारत के लिए फायदेमंद साबित हुई है। भारत किसी भी गुट में शामिल होने से बचाता रहा है चाहे वह पश्चिमी देशों के प्रतिबंध हों या पूर्वी एशिया का RCEP समझौता।

जापान जब चीन पर निर्भर हुए बिना अपने विकल्प बढ़ाना चाहता है, तब नई दिल्ली उसके लिए सबसे उपयुक्त साझेदार बनती है, क्योंकि भारत अपनी संतुलित और स्वतंत्र नीति पर कायम है।

3. आर्थिक माहौल बदल रहा है। जापान में महँगाई दर अब बैंक ऑफ जापान (BoJ) के लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है और बाजार भविष्य में ब्याज दरें बढ़ने का अनुमान लगा रहे हैं। इसका मतलब है कि बहुत सस्ते येन पर वित्त मिलने का दौर अब खत्म होने की ओर है, भले ही येन अभी कुछ समय तक कमजोर बना रहे। ऐसी स्थिति में जापानी पूंजी बेहतर मुनाफे की तलाश में बाहर जाएगी और यहीं भारत अपने लिए एक बड़ा अवसर बना सकता है।

4. जापान से आगे बढ़कर अब भारत पर भी दबाव है। हाल ही में भारत-अमेरिका की बातचीत के कई दौर रद्द हो चुके हैं और अगर द्विपक्षीय समझौता नहीं हुआ तो भारत को अतिरिक्त अमेरिकी टैरिफ का खतरा है। वॉशिंगटन ने चेतावनी दी है कि अगर तेल से जुड़ी राजनीति और अन्य मतभेद जारी रहे तो और शुल्क लगाए जा सकते हैं। इसी वजह से अगस्त के आखिर में होने वाली बातचीत भी रद्द कर दी गई।

इस स्थिति से भारत के लिए दो जरूरी बातें सामने आती हैं

  1. ऐसे तीसरे देशों के साथ साझेदारी मजबूत करना, जिससे बाजार का खतरा घट सके।
  2. निर्यात को विविध बनाकर जोखिम कम करना।

भारत-जापान साझेदारी पारस्परिक रूप से लाभकारी है

जैसे-जैसे अमेरिका जापान और यूरोपीय संघ (EU) जैसे अपने दोस्तों पर भी टैरिफ की दीवार मज़बूत कर रहा है, वैसे-वैसे भारत सबसे बड़ा टैरिफ-फ्री साझेदार बनकर उभर रहा है।

भारत और EFTA (यूरोपियन फ़्री ट्रेड एसोसिएशन) के बीच FTA समझौता 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा, जबकि ब्रिटेन (UK) के साथ FTA पहले ही तय हो चुका है। इसका मतलब है कि जापानी निवेशक भारत में निवेश करके सीधे यूरोप तक बिना टैरिफ के पहुँच पाएँगे।

प्रधानमंत्री मोदी इसे भारत की एक बड़ी भू-राजनीतिक बढ़त (geopolitical arbitrage) के रूप में पेश कर सकते हैं।

सेमीकंडक्टर एंड एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक्स : जापान के सेमीकंडक्टर रेनसान्स (semiconductor renaissance) में भारत को ‘प्लस-वन’ बनाया जा सकता है। जापान का रपिदुस प्रोजेक्ट 2027 तक 2-नैनोमीटर चिप उत्पादन का लक्ष्य रखता है, जिसे METI का मज़बूत सहयोग और वैश्विक साझेदारों का साथ मिला है।

टोक्यो ने पहले ही भारत-जापान सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन पार्टनरशिप बनाई है और एक औपचारिक भारत-जापान सेमीकंडक्टर पॉलिसी डायलॉग की मेजबानी भी करता है। भारत को चाहिए कि वह रपिदुस इंडिया ‘डिजाइन, पैकेजिंग और टैलेंट’ कॉरिडोर का प्रस्ताव रखे, जिसका मुख्य केंद्र बेंगलुरु/हैदराबाद और गुजरात का धोलेरा हो। यह भारत की PLI और OSAT योजनाओं के साथ पूरी तरह मेल खाएगा।

इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड कनेक्टिविटी : मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन से लेकर उत्तर-पूर्वी राज्यों की सड़क परियोजनाओं तक, जापानी ODA (Official Development Assistance) ने भारत की कई बड़ी कनेक्टिविटी योजनाओं को सहयोग दिया है। जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) ने उत्तर-पूर्व क्षेत्र में लगभग 750 किलोमीटर नई सड़कों के निर्माण को फंड किया है, जिससे कनेक्टिविटी में बड़ा सुधार हुआ है। इसके अलावा, जापान ने क्षेत्रीय पानी सप्लाई और स्वच्छता परियोजनाओं में भी योगदान दिया है। उदाहरण के लिए, गुवाहाटी में JICA ने पानी वितरण व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सहायता दी है।

भारत-जापान आर्थिक सहयोग का सबसे बड़ा प्रतीक है मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल (MAHSR) प्रोजेक्ट, जिसे भारत की पहली बुलेट ट्रेन लाइन कहा जा रहा है। यह केवल हाई-स्पीड रेल नहीं है, बल्कि जापान की अत्याधुनिक शिंकानसेन तकनीक को भारत में लाने की महत्वाकांक्षा भी दिखाता है। इस प्रोजेक्ट को बड़े पैमाने पर जापानी ODA लोन के जरिए फंड किया जा रहा है।

इसकी गुजरात वाली लाइन दिसंबर 2027 तक पूरी करने का लक्ष्य है, जबकि पूरे प्रोजेक्ट का उद्घाटन दिसंबर 2029 में होगा। भारतीय सरकार चाहती है कि जापान भारत की राष्ट्रीय हाई-स्पीड रेल परियोजना में और भी ज्यादा सहयोग करे। उम्मीद है कि जापान पश्चिम भारत की मौजूदा लाइन के अलावा, देश के अन्य हिस्सों में भी शिंकानसेन तकनीक वाली नई रूट्स के प्रस्ताव पेश करेगा।

सुरक्षा और साझेदारी: भारत और जापान का सुरक्षा सहयोग अब एक गहरी रणनीतिक साझेदारी में बदल चुका है, जो आपसी हित और भरोसे पर आधारित है। इसकी नींव 2008 में हुए ‘ज्वॉइंट डिक्लेरेशन ऑन सिक्योरिटी कोऑपरेशन’ से रखी गई, जिसमें खुफिया जानकारी साझा करने, समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी कदम और शांति स्थापना जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया।

इसके बाद कई समझौतों ने इस साझेदारी को और मजबूत किया, जैसे 2014 का रक्षा आदान-प्रदान समझौता, 2015 के रक्षा उपकरण और तकनीकी सहयोग तथा सैन्य सूचना सुरक्षा समझौते और 2020 का RPSS (Reciprocal Provision of Supplies and Services) समझौता, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे को लॉजिस्टिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।

हाल ही में 2024 में दोनों देशों ने एक मेमरैन्डम ऑफ इन्टेन्ट पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत भारतीय नौसेना के लिए UNICORN मस्त को संयुक्त रूप से विकसित किया जाएगा। यह रक्षा तकनीक सहयोग की दिशा में एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा का महत्व

इस यात्रा का एक अहम पहलू रियलपॉलिटिक भी है। प्रधानमंत्री मोदी यह दिखाना चाहते हैं कि भारत न केवल दुनिया में हो रहे अशांति के बीच टिके हुए है, बल्कि उससे फायदा भी उठा रहा है। जहाँ बाकी देश सिर्फ प्रतिक्रिया देते हैं, भारत व्यापारिक संघर्षों को सप्लाई चेन, पूँजी प्रवाह और भू-राजनीतिक ताकत में बदल रहा है।

भारत-जापान साझेदारी को और मज़बूत करने के लिए दोनों देशों के नेता कई क्षेत्रों पर ध्यान देंगे, जैसे इंटेलिजेंस शेयरिंग (खुफिया जानकारी साझा करना), सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए जरूरी रेयर अर्थ मेटल्स और व्यापक आर्थिक-सुरक्षा सहयोग, जिसमें क्वाड फ्रेमवर्क भी शामिल है।

चीन की आक्रामक नीतियों ने इंडो-पैसिफिक को बदल दिया है, जिससे दोनों लोकतांत्रिक देशों के पास विकल्प कम और जरूरतें ज्यादा हो गई हैं। जापान का भारत की ओर झुकाव चाहे वह रक्षा उपकरण और तकनीकी सहयोग, न्यूक्लियर छूट, मालाबार और समुद्री साझेदारी जैसे अभ्यास या नई टेक्नोलॉजी साझेदारियाँ हों क्षेत्रीय अस्थिरता के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति है।

भारत और जापान दोनों विचारधारा-आधारित गठबंधनों से बचते हैं और इसके बजाय क्वाड, SCRI और द्विपक्षीय संबंधों के जरिए एक लचीला और हित-आधारित सुरक्षा ढाँचा बना रहे हैं। यह किसी औपचारिक गठबंधन में फँसे बिना ही मज़बूत निवारक (deterrence) तैयार करता है। प्रधानमंत्री मोदी की यह टोक्यो यात्रा सिर्फ एक द्विपक्षीय मुलाकात नहीं होगी, बल्कि भारत की प्रगति को दुनिया के सामने पेश करने का अवसर बनेगी।

चीन जहाँ धमकियों से दबदबा बनाने की कोशिश कर रहा है और अमेरिका अपने साझेदारों पर टैरिफ का दबाव डाल रहा है, वहीं मोदी के नेतृत्व में भारत एक विश्वसनीय और मजबूत साझेदार के रूप में सामने आ रहा है।

आज भारत को एशिया के भविष्य का अहम खिलाड़ी माना जा रहा है बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट, नए चिप प्रोजेक्ट्स, रक्षा सहयोग और जापान की बड़ी निवेश योजनाएँ इसका सबूत हैं। यह यात्रा दिखाती है कि भारत अब सिर्फ परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रहा, बल्कि दुनिया की नई दिशा तय करने वाला देश बनता जा रहा है। मोदी के नेतृत्व में भारत आत्मविश्वासी, भरोसेमंद और वैश्विक नेतृत्व के लिए तैयार नजर आ रहा है।

मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में दिव्यांश तिवारी ने लिखी है, इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है।

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