भारत इस समय अपनी सेना को और ताकतवर बनाने के लिए बड़े कदम उठा रहा है। खबरों के मुताबिक, भारत रूस के सुखोई Su-57E जो पाँचवीं पीढ़ी का एक शानदार लड़ाकू विमान है, उसे खरीदने और भारत में बनाने की सोच रहा है।
दूसरी तरफ अमेरिका का F-35 विमान भी है, जिसे पश्चिमी देशों का सबसे उन्नत विमान माना जाता है। लेकिन भारत का इसकी तरफ ज्यादा ध्यान न देने के कई बड़े कारण हैं।
भारत और रूस का रक्षा साझेदारी का रिश्ता दशकों पुराना और भरोसेमंद है। रूस न सिर्फ विमान बेचने की बात कर रहा है, बल्कि तकनीक देने और भारत में ही विमान बनाने का ऑफर भी दे रहा है। वहीं, अमेरिका तकनीक देने में कंजूसी करता है और उसके हथियारों की डिलीवरी में देरी की शिकायतें भी रही हैं। भारत अपनी रक्षा नीति में आत्मनिर्भरता और आजादी को बहुत अहम मानता है। ऐसे में रूस का प्रस्ताव भारत की ‘मेक इन इंडिया’ नीति और लंबे समय की रणनीति के ज्यादा करीब है।
पाकिस्तान और उसका दोस्त चीन लगातार अपनी सेना को मजबूत कर रहे हैं, खासकर भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे सफल अभियान के बाद। ऐसे हालात में भारत का Su-57 जैसे उन्नत स्टील्थ विमान की तरफ झुकाव सिर्फ हवाई सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि दुनिया में बदलते हालात में आत्मनिर्भर बनने की कोशिश का भी हिस्सा है। लेकिन यह तय करने से पहले कि भारत को Su-57 लेना चाहिए या F-35, यह समझना जरूरी है कि भारत को अपनी वायुसेना को तुरंत आधुनिक बनाने की जरूरत क्यों है।

भारत को अपनी वायुसेना को आधुनिक क्यों करना चाहिए?
भारत को चीन और पाकिस्तान, दोनों मोर्चों पर खतरे का सामना है। पुराने पड़ते लड़ाकू विमानों को बदलने के लिए नई और उन्नत तकनीक वाले विमानों की जरूरत है। भारतीय वायुसेना को भविष्य की लड़ाइयों के लिए तैयार करना और देश की सुरक्षा को मजबूत करना अब बहुत जरूरी है।
भारतीय वायुसेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मिशनों में अपनी ताकत दिखाई है, लेकिन अभी उसके पास सिर्फ 31 स्क्वाड्रन हैं, जबकि कम से कम 42 स्क्वाड्रन चाहिए। यह कमी तब और गंभीर हो जाती है, जब पाकिस्तान, जो आर्थिक तंगी में है, फिर भी चीन से J-35 जैसे स्टील्थ विमान खरीदने की तैयारी कर रहा है। भारत अपने पुराने मिग-21, जगुआर और मिराज 2000 जैसे विमानों को धीरे-धीरे हटा रहा है। सिर्फ फ्रांस के राफेल विमानों पर निर्भर रहना ठीक नहीं। भारत को अपने विमानों में विविधता लानी होगी।
स्वदेशी तेजस और AMCA जैसे प्रोजेक्ट अभी पूरी तरह तैयार नहीं हैं और इनमें देरी हो रही है। इसलिए भारत को अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए पाँचवीं पीढ़ी के स्टील्थ विमानों पर विचार करना पड़ रहा है। भारत की रक्षा अनुसंधान संस्था DRDO, AMCA स्टील्थ विमान पर काम कर रही है, लेकिन यह 2035 से पहले तैयार नहीं होगा। दूसरी तरफ, पाकिस्तान को इस साल से ही चीन से J-35A जैसे उन्नत विमान मिलने शुरू हो जाएँगे। ऐसे में 10 साल तक इंतजार करना भारत के लिए जोखिम भरा हो सकता है।
पाकिस्तान की सेना ने अपने रक्षा बजट में 18-20% की बढ़ोतरी की है, भले ही उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर है और वह IMF से कर्ज ले रहा है। फिर भी, वह भारत के खिलाफ टकराव की तैयारी कर रहा है। यह भारत के लिए साफ चेतावनी है कि उसे अपनी वायुसेना को जल्दी मजबूत करना होगा।
एक अहम बात यह है कि डीआरडीओ ने एएमसीए (AMCA) फाइटर जेट का विकास शुरू कर दिया है, लेकिन पहला विमान 2035 से पहले मिलने की उम्मीद नहीं है।
तेजस मार्क-1 का ऑर्डर पूरा होने के बाद, HAL 2028-29 में तेजस मार्क-2 बनाना शुरू करेगा। इसके बाद ही AMCA का उत्पादन शुरू होगा। किसी भी आधुनिक विमान को बनाने में 10-15 साल लगते हैं। चूँकि AMCA प्रोजेक्ट को पिछले साल ही मँजूरी मिली है, इसलिए अभी इसमें काफी समय लगेगा। इसीलिए भारत को अभी विदेशी पाँचवीं पीढ़ी के विमानों पर विचार करना पड़ रहा है।
अमेरिकी F-35 भारत के लिए क्यों ठीक नहीं?
भारत उन गिने-चुने देशों में है जो रूस और अमेरिका, दोनों से रक्षा उपकरण खरीदता है। रूस लंबे समय से भारत का भरोसेमंद साथी रहा है, जबकि अमेरिका अक्सर रक्षा सौदों का इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के लिए करता है।
अमेरिका से खरीदे उपकरणों में भारत को कई बार मुश्किलें आई हैं। मिसाल के तौर पर, तेजस MK-1A के लिए अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक (GE) के F404 इंजन की डिलीवरी में देरी हुई है। तेजस MK-2 के लिए GE F414 इंजन का सौदा भी दो साल पहले हुए समझौते के बावजूद रुका हुआ है।
इस सौदे में भारत में इंजन बनाने और तकनीक हस्तांतरण की बात थी, लेकिन अमेरिका इसमें अड़चन डाल रहा है। पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने ‘Make in America’ नीति पर जोर दिया और एप्पल को भी भारत में उत्पादन न करने को कहा था। ऐसे में यह साफ नहीं कि अमेरिका भारत को इंजन बनाने की इजाजत देगा या नहीं।
इसलिए भारत के लिए चिंता की बात है कि अमेरिका से रक्षा उपकरणों की डिलीवरी समय पर नहीं हो रही और न ही तकनीक देने का भरोसा है।
अमेरिका भारतीय सेना के लिए बोइंग के अपाचे हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी में भी देरी कर रहा है। मार्च 2024 में भारतीय सेना ने जोधपुर के पास 451 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन तैयार किया था, ताकि अपाचे तैनात किए जा सकें। इनकी डिलीवरी मई-जून 2024 में होनी थी, लेकिन अमेरिका ने सप्लाई-चेन और तकनीकी समस्याओं का बहाना बनाकर इसे दिसंबर 2024 तक टाल दिया। अब वह इस नई समय-सीमा को भी पूरा नहीं कर पाया है।
साल 2020 में भारत ने अमेरिका के साथ 600 मिलियन डॉलर का सौदा किया था, जिसमें 6 अपाचे हेलीकॉप्टर खरीदे जाने थे। लेकिन अब तक पहले बैच के तीन हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी के लिए अमेरिका दो बार समय-सीमा टाल चुका है। अमेरिका ने साफ नहीं किया कि ये हेलीकॉप्टर कब मिलेंगे और देरी क्यों हो रही है।
अमेरिका इसे सप्लाई-चेन की दिक्कतें और तकनीकी समस्याएँ बता रहा है, लेकिन यह उसकी पुरानी चाल मानी जाती है, जिसमें वह जानबूझकर देरी करता है ताकि भारत पर दबाव बनाए। यह देरी ऐसे समय हो रही है, जब भारत अपनी हवाई ताकत को तेजी से बढ़ा रहा है और चीन-पाकिस्तान के साथ तनाव के चलते युद्ध की तैयारी को प्राथमिकता दे रहा है। अपाचे हेलीकॉप्टर जरूरी हैं, क्योंकि ये आधुनिक हथियारों और टारगेटिंग सिस्टम से लैस हैं। फिर भी अमेरिका इसे प्राथमिकता नहीं दे रहा।
दूसरी तरफ, रूस ने भू-राजनीतिक मुश्किलों के बावजूद भारत को समय पर रक्षा उपकरण देने का अच्छा रिकॉर्ड रखा है। यही कारण है कि Su-57 जैसे विमान को समय पर भारतीय वायुसेना में शामिल करने के लिए रूस ज्यादा भरोसेमंद और अनुमानित विकल्प है।
अमेरिका की डिलीवरी में देरी कोई नई बात नहीं। उसकी विदेश नीति अक्सर दबाव बनाने, धमकाने, प्रतिबंध लगाने और न मानने वाले देशों में शासन बदलने की कोशिशों पर टिकी रही है। जैसा कि पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने कहा था, “अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक हो सकता है, लेकिन उसका दोस्त होना जानलेवा भी हो सकता है।” यह बात आज भी सही लगती है।
दिलचस्प है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार ‘व्यापार समझौतों’ को संघर्ष सुलझाने का हथियार बताया, लेकिन यूक्रेन-रूस युद्ध और भारत-पाकिस्तान तनाव जैसे मामलों में यह रणनीति नाकाम रही, जैसे संयुक्त राष्ट्र इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को रोकने में नाकाम रहा।
रूस का Su-57 क्यों बेहतर है?
भारत और रूस का रक्षा रिश्ता लंबे समय से भरोसे और सम्मान पर टिका है। रूस का Su-57 ऑफर भारत के लिए खास है, क्योंकि यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाओं से मेल खाता है। रूस ने Su-57 के भारत में गहरे निर्माण का प्रस्ताव दिया है, जिसमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की उन फैक्ट्रियों में सह-उत्पादन शामिल है, जहां पहले से Su-30MKI विमान बन रहे हैं। यह भारत को उन्नत तकनीक देगा और घरेलू रक्षा उद्योग को मजबूत करेगा।
रूस ने Su-57 की पूरी तकनीक देने और भारत को GaN-आधारित AESA रडार, भारतीय मिशन कंप्यूटर और स्वदेशी हथियार जैसे अस्त्र और रुद्रम मिसाइल जोड़ने की छूट देने का वादा किया है।
सबसे खास बात ये है कि 4 जून 2025 को रूस की यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन ने कहा कि भारत को Su-57 के सोर्स कोड तक पूरी पहुँच मिलेगी। यह बहुत बड़ा ऑफर है, क्योंकि इससे भारत को विमान में अपनी जरूरत के हिसाब से बदलाव करने की आजादी मिलेगी। ऐसी पारदर्शिता और नियंत्रण शायद ही कोई और देश दे।
वहीं, अमेरिका का F-35 सिर्फ चुनिंदा सहयोगी देशों जैसे इजरायल, जापान, ऑस्ट्रेलिया और इटली को मिलता है। इसके सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर अमेरिका का सख्त नियंत्रण है। खरीदार देशों को F-35 बनाने या उसमें गैर-NATO हथियार जोड़ने की इजाजत नहीं मिलती, जब तक अमेरिका मंजूरी न दे। यह भारत के लिए मुश्किल है, क्योंकि भारत अपने हिसाब से विमान में बदलाव और स्वदेशी हथियार जोड़ना चाहता है।
भारत की नीति विदेशी रक्षा आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने की है। अमेरिका का सख्त रवैया भारत के लिए चिंता का सबब है। ट्रंप के समय यह और साफ हुआ, जब अमेरिका ने तकनीक देने से मना किया, यह कहकर कि इससे उसकी तकनीकी बढ़त कमजोर हो सकती है।
कीमत की बात करें तो अमेरिकी F-35A की लागत लगभग 80 से 110 मिलियन डॉलर प्रति यूनिट है, जबकि रूस का Su-57 कहीं ज्यादा सस्ता है, करीब 35 से 40 मिलियन डॉलर प्रति यूनिट। इसके अलावा, Su-57 की रखरखाव लागत भी F-35 की तुलना में काफी कम है। इसलिए, सिर्फ रणनीतिक और तकनीकी कारणों से ही नहीं, बल्कि आर्थिक नजरिए से भी Su-57 भारत के लिए एक ज्यादा व्यावहारिक और लचीला विकल्प बन जाता है।
लागत और तकनीकी दिक्कतें
F-35 की कीमत 80 से 110 मिलियन डॉलर प्रति विमान है, जबकि Su-57 सिर्फ 35 से 40 मिलियन डॉलर में मिलता है। Su-57 की रखरखाव लागत भी F-35 से कम है। यानी आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक नजरिए से Su-57 भारत के लिए ज्यादा फायदेमंद है।
साल 2023 की एक बिजनेस इनसाइडर रिपोर्ट के मुताबिक, F-35 में कई तकनीकी समस्याएँ हैं, जैसे स्टील्थ कोटिंग, सुपरसोनिक उड़ान, हेलमेट डिस्प्ले और तोप में कंपन। इसे बिजली गिरने से भी खतरा है।
सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि साइबर सुरक्षा को लेकर भी चिंता है। F-35 को हैकिंग के लिए असुरक्षित माना गया है। 2015 में एक जर्मन पत्रिका ने खुलासा किया था कि एडवर्ड स्नोडेन द्वारा लीक किए गए दस्तावेजों के अनुसार, चीनी हैकर्स ने ऑस्ट्रेलिया के US-निर्मित F-35 से लगभग 50 टेराबाइट डेटा चुरा लिया था। इसमें विमान के रडार सिस्टम, इंजन डिज़ाइन और टारगेट ट्रैकिंग तकनीक जैसी संवेदनशील जानकारी शामिल थी।
यही कारण है कि विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के J-35A और अमेरिका के F-35 में कई डिजाइन और तकनीकी समानताएँ दिखती हैं। ये सभी बातें F-35 की विश्वसनीयता और सुरक्षा पर सवाल खड़े करती हैं, खासकर उन देशों के लिए जो इसे अपनाने पर विचार कर रहे हैं।
अगर भारत F-35 फाइटर जेट को तैनात करना चाहता है, तो उसे अमेरिका से AIM-120 एडवांस मीडियम-रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (AAM) भी खरीदनी पड़ेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि F-35 में भारत की अपनी मिसाइलें या गैर-NATO हथियार तभी लगाए जा सकते हैं जब अमेरिका इसकी इजाजत दे, जो आसान नहीं है।
इसके अलावा, भारतीय वायुसेना (IAF) के पास पहले से ही सात अलग-अलग तरह के फाइटर जेट हैं। तेजस, राफेल, मिग-21, मिग-29, सुखोई Su-30MKI, मिराज 2000 और जगुआर। इन सभी की मेंटेनेंस, स्पेयर पार्ट्स, ओवरहाल और ट्रेनिंग पर भारी खर्च आता है। अगर भारत अब एक और अलग और महंगा फाइटर जेट F-35 शामिल करता है, तो यह एक बड़ा लॉजिस्टिक सिरदर्द बन सकता है और संचालन में और भी जटिलता जोड़ देगा।
हालाँकि Su-57 भी एक नया फाइटर जेट है, लेकिन चूँकि यह सुखोई परिवार से है, और भारत पहले से ही Su-30MKI जैसे सुखोई विमानों का इस्तेमाल कर रहा है, इसलिए Su-57 को अपनाना ज्यादा आसान, सस्ता, और IAF के लिए बेहतर फिट हो सकता है। इससे रखरखाव और ट्रेनिंग में भी आसानी होगी।
तकनीकी बातों के अलावा, भारत के रक्षा खरीद फैसले भू-राजनीतिक कारणों से भी बहुत प्रभावित होते हैं। खासकर अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के डर से, जिन्हें काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट (CAATSA) कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, भारत ने 2021 में रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा था, जिससे अमेरिका नाराज़ हो गया था। इसके बावजूद भारत ने अमेरिका की धमकियों और हथियारों की सप्लाई में देरी की चेतावनियों को नजरअंदाज किया और S-400 खरीदने का अपना फैसला कायम रखा।
इसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, अमेरिका ने भारत के रूस से तेल खरीदने पर भी आपत्ति जताई और फिर से प्रतिबंधों की धमकी दी। इन सब घटनाओं से साफ होता है कि भारत अपने रक्षा और ऊर्जा जरूरतों के लिए अमेरिका के दबावों के बावजूद अपने रणनीतिक फैसले खुद ले रहा है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने हमेशा अपनी रक्षा तकनीकों को सुरक्षित रखने के लिए निर्यात नियंत्रण और प्रतिबंध लगाए हैं। इससे भारत के लिए F-35 के पुर्जों और रखरखाव में दिक्कतें आ सकती हैं, खासकर संकट के समय। अमेरिका पहले भी उन देशों को हथियारों की सप्लाई में देरी करता रहा है या रोक लगाता है, जिन्हें वह अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं के खिलाफ समझता है।
जैसा कि पहले बताया गया है, अमेरिका इस तरह की देरी रणनीतिक दबाव बनाने के लिए करता है ताकि दूसरे देश उसके अनुसार चलें। अमेरिका की विश्वसनीयता इस बात से भी सवाल उठती है कि वह पाकिस्तानी नागरिकों को अमेरिका में आतंकवादी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार करता है, लेकिन फिर भी पाकिस्तान को ‘अभूतपूर्व भागीदार’ कहकर समर्थन देता रहता है। वह भारत को परेशान करने के बावजूद पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते खत्म नहीं करता।
भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता पर जोर देता है और किसी का कठपुतली बनने से मना करता है। इसलिए, वह किसी एक देश पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता। ऐसे में रूस का Su-57 जेट भारत के लिए एक बेहतर विकल्प है क्योंकि इसमें भू-राजनीतिक बंधन कम हैं और यह भारत की स्वतंत्रता और सुरक्षा की जरूरतों के अनुसार बेहतर फिट बैठता है।
इस बात में कोई शक नहीं कि भारत को अपनी रक्षा जरूरतों के लिए विदेशी निर्भरता कम करनी चाहिए। लेकिन रूस के साथ भारत की रक्षा साझेदारी ने समय की कसौटी पर अच्छा प्रदर्शन किया है।
भारत का लगभग 60 प्रतिशत सैन्य उपकरण जैसे ब्रह्मोस मिसाइल, Su-30MKI लड़ाकू जेट, S-400 सिस्टम और T-72 टैंक रूसी हैं। जब प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, समर्थन और सह-उत्पादन की बात आती है, तो रूस काफी लचीला रहता है, जबकि अमेरिका इसे ‘सुरक्षा कारणों’ का हवाला देकर मना कर देता है।
Su-30MKI, रूसी Su-30 का एक खास रूप है, जो भारतीय वायु सेना का मुख्य हिस्सा है और इसके 260 से ज्यादा विमान सेवा में हैं। HAL की नासिक फैक्ट्री में इसका सफल निर्माण भारत-रूस रक्षा सहयोग की ताकत दिखाता है।
रूस ने भारत में मौजूदा सुविधाओं का इस्तेमाल करने का भी प्रस्ताव दिया है, जिससे Su-57 को अपनाना आसान होगा। इसके मुकाबले, अमेरिका का F-35 जेट भारत के लिए नया होगा, जिससे नए प्रशिक्षण और रखरखाव की जरूरत पड़ेगी और रसद की परेशानियां बढ़ेंगी। इस वजह से रूस का विकल्प भारत के लिए ज्यादा सुविधाजनक और सही माना जा रहा है।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, रूस की विश्वसनीयता भारत के लिए महत्वपूर्ण समय पर साबित हुई है, जैसे 1971 के भारत-पाक युद्ध में, जबकि अमेरिका के साथ ऐसा भरोसा कम है। अमेरिका ने भारत को C-17 ग्लोबमास्टर और अपाचे हेलीकॉप्टर दिए हैं, लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सों की डिलीवरी में जानबूझकर देरी और सख्त निर्यात नियम भारत के लिए चिंता का कारण बने हैं।
रूसी Su-57 पाँचवीं पीढ़ी का स्टील्थ लड़ाकू विमान न केवल F-35 से सस्ता है, बल्कि भारत के रक्षा बजट के हिसाब से भी बेहतर है और भारत को बड़े बेड़े खरीदने की सुविधा देता है। Su-57 का डिजाइन खासतौर पर तेज़ गति, सुपरक्रूज़ (लगातार तेज उड़ान) और बहु-भूमिका क्षमता पर केंद्रित है, जो चीन की सीमा जैसे उच्च और चुनौतीपूर्ण इलाकों में लड़ने के लिए भारत की जरूरतों के लिए बेहतर है।
वहीं, F-35 नेटवर्क-आधारित युद्ध के लिए ज्यादा अनुकूलित है और यह अकेले ऑपरेशन के लिए भारत की जरूरतों को पूरी तरह पूरा नहीं कर सकता। इसलिए, Su-57 भारत के लिए ज्यादा सही विकल्प माना जा रहा है।
बदलते वैश्विक रिश्तों में भारत नाटो के ज्यादा करीब नहीं रहना चाहेगा, खासकर जब रूस, नाटो समर्थित यूक्रेन से युद्ध कर रहा है। रूस का Su-57 सह-उत्पादन का ऑफर भारत को उन्नत विमान बनाने और क्षेत्रीय निर्यात का मौका देगा। इससे भारतीय रक्षा उद्योग को फायदा होगा, क्योंकि दुनिया भारत के हथियारों में रुचि दिखा रही है। F-35 में निर्यात पर सख्त पाबंदी है, इसलिए भारत को ऐसी आजादी नहीं मिलेगी।
इससे भारतीय रक्षा उद्योग को बड़ा फायदा होगा, क्योंकि दुनिया भारत के युद्ध-परीक्षणित हथियारों में तेजी से रुचि दिखा रही है। वहीं, अमेरिका के F-35 में निर्यात पर सख्त रोक के कारण भारत को ऐसी आज़ादी नहीं मिलेगी। इसलिए, Su-57 भारत के लिए बेहतर विकल्प है।
निष्कर्ष
जब तक AMCA जैसे स्वदेशी विमान तैयार नहीं हो जाते, भारत को पाँचवीं पीढ़ी के विदेशी विमानों पर विचार करना होगा। इस दौरान लागत, आसानी और समय पर डिलीवरी महत्वपूर्ण है, जो रूस बेहतर दे सकता है। रूस का भारत के साथ पुराना भरोसा, तकनीक देने की इच्छा और भारत की रणनीतिक आजादी का सम्मान उसे बेहतर विकल्प बनाता है।
रक्षा में आयात कम करना चाहिए, लेकिन AMCA तैयार होने तक भारत को रूस जैसे भरोसेमंद साथी पर भरोसा करना चाहिए, न कि अमेरिका पर। खासकर जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान के पक्ष में रहे हैं और अपनी निजी योजनाओं में व्यस्त हैं। भारत कब तक अपनी रक्षा और रणनीतिक आजादी को छोड़कर अमेरिका के स्वार्थों का बोझ उठाएगा?