राहुल गाँधी मैन्युफैक्चरिंग

कॉन्ग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी आजकल कभी कभार अपने AC कमरों से निकल आते हैं। जब वह निकलते हैं तो उन्हें कोई ना कोई दुखी इंसान मिल जाता है। इसके बाद उस दुख की कहानी का एक सिरा मोदी सरकार से जोड़ कर उसकी आलोचना की जाती है। 

देश पर 6 दशक से अधिक राज करने वाली कॉन्ग्रेस के डिफैक्टो मुखिया राहुल गाँधी इसी कड़ी में हाल ही में दिल्ली में अपने परनाना के नाम पर बनाई गई नेहरू प्लेस मार्केट पहुँचे। इसे एशिया की सबसे बड़ी कंप्यूटर और मोबाइल मार्केट होना का खिताब हासिल है। 

जब राहुल गाँधी यहाँ पहुँचे तो उन्हें पता चला कि इस देश में फोन बनाए जाते हैं। लेकिन इसमें उन्हें एक समस्या दिखी और यह समस्या उन्होंने ट्वीट के रूप में जाहिर की। राहुल गाँधी ने दावा किया कि भारत में मोदी सरकार आने के बाद निर्माण क्षेत्र बर्बाद हो गया है। 

उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत में जो फोन निर्मित हो रहे हैं वह असल में मैन्युफैक्चरिंग नहीं बल्कि असेम्बलिंग यानी पुर्जों को एक साथ जोड़ना है। इसके साथ ही उन्होंने वीडियो में दावा किया कि हम चीन से कहीं पीछे हैं। उन्होंने चीन और भारत के बीच व्यापार घाटे का भी ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ा। 

वैसे तो देश के नेता प्रतिपक्ष का मैन्युफैक्चरिंग जैसी चीजों के लिए चिंतित होना काफी प्रसन्नता की बात होती, लेकिन राहुल गाँधी असल में चिंतित नहीं हैं बल्कि वह झूठ बोल रहे हैं और आधे अधूरे तथ्य रख कर सरकार को घेरना चाह रहे हैं। ऑपइंडिया राहुल गाँधी के दावों की सच्चाई आपके सामने ला रहा है।  

सबसे पहला दावा- असेम्बलिंग और मैन्युफैक्चरिंग

राहुल गाँधी ने कहा कि हमारे देश में जो स्मार्टफोन का निर्माण हो रहा है, वह असल में मेक इन इंडिया नहीं बल्कि असेम्बल इन इंडिया है। उन्होंने दावा किया कि हम सिर्फ पुर्जे जोड़ने के काम को मेक इन इंडिया कह रहे हैं। राहुल गाँधी ने दावा किया कि चीन से पुर्जे आते हैं और हम उन्हें जोड़ देते हैं।  

राहुल गाँधी के इस दावे की सच्चाई हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बनने वाले एप्पल के फोन और बाकी उत्पादों में लगने वाले 20% से अधिक पार्ट देश में ही बन रहे हैं। यानी भारत में बनने वाले किसी आईफोन के लगभग 20% पार्ट स्थानीय स्तर पर ही निर्मित होते हैं।

रिपोर्ट बताती है कि यह उपलब्धि एप्पल को अलग-अलग पार्ट सप्लाई करने वाले वेंडर्स ने हासिल की है। एप्पल के भारत भर में पार्ट सप्लायर्स मौजूद हैं। इनमें TDK कॉर्पोरेशन, होन हाई प्रिसिजन, टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स, फॉक्सलिंक समेत तमाम कम्पनियाँ हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार, सैमसंग और डिक्सन भी 20%-25% तक भारत में बने पार्ट ही उपयोग कर रही है। सरकार का लक्ष्य है कि इसे आने वाले वर्षों में 35%-40% के स्तर पर ले जाया जाए। इससे भारतीय उद्योग भी मजबूत होंगे और जरूरी पार्ट्स के लिए विदेशों पर निर्भरता भी कम होगी।

राहुल गाँधी को यह पता होना चाहिए कि दशकों से इस काम जुटा हुआ चीन भी अभी तक 35%-40% के स्तर पर पहुँच पाया है। भारत ने 20% की उपलब्धि 5 ही वर्षों में हासिल कर ली है। और उन्हें एक बात और समझनी चाहिए कि किसी भी वस्तु का निर्माण जब चालू होता है, तो उसका लोकलाइजेशन धीमे-धीमे होता है। 

इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश की ऑटो इंडस्ट्री है। 1980 के दशक में सुजुकी ने भारत में गाड़ियों को केवल एक साथ जोड़ना (असेम्बली) चालू किया थी लेकिन अब भारत में बनने वाली सुजुकी की हर गाड़ी में 95% पार्ट भारतीय होते हैं। यही स्थिति बाक़ी इंडस्ट्री की भी है। 

राहुल गाँधी आज जिस असेम्बलिंग को कोस रहे हैं, उसने वित्त वर्ष 2024-25 में देश के निर्यात में ₹2 लाख करोड़ से अधिक का योगदान दिया है। इससे लाखों नौकरियाँ पैदा हुई हैं। हालाँकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब राहुल या उनके गैंग ने भारत की इस उपलब्धि को कम कर दिखाने का प्रयास किया है। 

इससे पहले उनके करीब रघुराम राजन भी ऐसी बातें कह चुके हैं। उनके करीबी कई लोग तो इसे पेचकसबाजी बताते थे। हालाँकि, जब भारत ने पार्ट्स भी स्थानीय स्तर पर बनाने चालू कर दिए, तो उनके होठ सिल गए हैं। राहुल गाँधी को पूरी सच्चाई देश को बतानी चाहिए। 

दूसरा दावा- चीन पर बढ़ती निर्भरता

राहुल गाँधी वीडियो क दौरान दावा करते हैं कि बीते 10 वर्षों में हमारे चीन से आयात 2 गुना बढ़ गए हैं और मोदी सरकार दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापार घाटे के लिए दोषी है। यह बात ठीक है कि हम चीन से बड़ी मात्रा में चीजें आयात करते हैं और हमारा, उसका व्यापार घाटा भी बहुत बड़ा है। 

लेकिन राहुल गाँधी एक बात इस दौरान बहुत करीने से छुपा ले जाते हैं। वह यह नहीं बताते कि भारत की चीन पर निर्भरता असल में UPA दौर में ही चालू हुई थी। मोदी सरकार को आयात में दोगुनी बढ़त के लिए कोसने वाले राहुल गाँधी की पार्टी के राज में भारत का चीन से व्यापार घाटा लगभग 20 गुना बढ़ा।

वर्ष 2004 में भारत चीन से आयात मात्र 7.5 बिलियन डॉलर (₹62 हजार करोड़) था। कॉन्ग्रेस के 2004 से 2014 के राज में या 8 गुना बढ़ कर लगभग 60 बिलियन डॉलर (₹5 लाख करोड़+) के पार पहुँच गया। यानी इस दौरान इसमें बिना किसी रोकटोक के 8 गुने की बढ़त हुई। 

राहुल गाँधी को यह भी जानना चाहिए कि इसी दौरान भारत और चीन का व्यापार घाटा भी प्रति वर्ष 45% की रफ़्तार से बढ़ा। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार, 2004 और 2014 के बीच, भारत का व्यापार घाटा 2 बिलियन डॉलर से लगभग 40 बिलियन डॉलर हो गया।

आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2004 में भारत का चीन से व्यापार घाटा लगभग ना के बराबर था। कॉन्ग्रेस के सत्ता में रहते हुए 2014 में यह 40 बिलियन डॉलर (₹3.2 लाख करोड़+) के पार पहुँच गया। वर्तमान में मोदी सरकार ने इसे बीते कई वर्षों से नियंत्रित कर रखा है।  

राहुल गाँधी और उनकी पार्टी को यह जवाब देना चाहिए कि आखिर क्यों उनकी सरकार के दौरान चीन के लिए भारत के बाजार के दरवाजे खोल दिए गए और क्यों उसके उत्पाद भारत में बिना रोक टोक के आते रहे। क्यों उस दौरान कॉन्ग्रेस ने भारत में निर्माण को बढ़ावा देने पर जोर दिया। 

यह काम भी मोदी सरकार ने ही चालू किया और PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) की स्कीम निकाली। इसके चलते भारत के निर्माण क्षेत्र में दोबारा जान आई और विदेशी कम्पनियाँ चीन के बजाय भारत को भी एक विकल्प के तौर पर देखने लगीं। 

तीसरा दावा- मैन्युफैक्चरिंग का घटता शेयर

राहुल गाँधी ने अपने इस वीडियो और ट्वीट में दावा किया कि भारत में निर्माण क्षेत्र का हिस्सा लगातार घट रहा है। उन्होंने यह बताया तो लेकिन दो तथ्य छुपा लिए। पहला तथ्य यह है कि जब भी कोई देश विकासशील से विकसित की यात्रा करता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था में निर्माण और कृषि क्षेत्र का हिस्सा घटता है। 

दूसरा यह कि जब भी कोई देश विकसित होने चलता है तो वह कृषि से निर्माण और फिर सेवा क्षेत्र की तरफ जाता है। लेकिन यह कॉन्ग्रेस की ही देन है कि भारत सीधे कृषि से सेवा क्षेत्र में जाने वाली अर्थव्यवस्था बना है। कॉन्ग्रेस को सलाह देने वाले अर्थशास्त्रियों ने लगातार इस बात का विरोध किया है कि भारत को निर्माण क्षेत्र पर फोकस बढ़ाना चाहिए। 

इसका सबसे बड़ा उदाहरण रघुराम राजन हैं। उन्होंने ही भारत को चीन की तरह निर्माण क्षेत्र पर ध्यान ना देने की सलाह दी थी। कॉन्ग्रेस के ही राज में 1991 तक तो भारत में आर्थिक सुधार नहीं हुए। इसके चलते निर्माण क्षेत्र नहीं पनपा। इसके बाद जब आर्थिक सुधार मजबूरी में किए भी गए तो हमने सेवा क्षेत्र की राह पकड़ी। 

राहुल गाँधी जिस निर्माण क्षेत्र का हिस्सा GDP में घटने की बात कर रहे हैं, वह कोई नई बात नहीं है। यह प्रक्रिया कॉन्ग्रेस राज में ही चालू हो गई थी। असल बात यह है कि निर्माण क्षेत्र में भारत वापस अब अपनी मजबूती दर्ज करवा रहा है। इससे राहुल गाँधी को समस्या है। 

कभी वह इसे असेम्बली इन इंडिया तो कभी चीन को फायदा पहुँचाने की प्रक्रिया बता रहे हैं। उनके पास इसका कोई विकल्प है, ऐसा भी नहीं है। राहुल गाँधी सिर्फ आलोचना के वास्ते ही भारत की इस उपलब्धि का मजाक उड़ा रहे हैं, हालाँकि यह सत्य के आसपास भी नहीं फटकता। 



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