Site icon sudarshanvahini.com

बिहार SIR को लेकर द वायर-न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट्स भ्रामक, चुनाव आयोग ने कर दिया फैक्ट चेक

भारत का चुनावी तंत्र दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक ढांचों में से एक है और इसकी विश्वसनीयता मतदाता सूची की सटीकता पर निर्भर करती है। बिहार में हाल ही में आयोजित विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) का उद्देश्य 7.89 करोड़ मतदाताओं की पात्रता को सत्यापित करना था।

हालाँकि द वायर और न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी हालिया ग्राउंड रिपोर्ट्स में बिहार SIR की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, जिसमें मतदाता सूची में अनियमितताओं का दावा किया गया है। ये दोनों पोर्टल्स अक्सर वामपंथी विचारधारा से जुड़े माने जाते हैं और उनकी रिपोर्ट्स से ऐसा लगा जैसे बिहार चुनाव की निष्पक्षता पर खतरा है। इन दोनों मीडिया समूहों की रिपोर्ट्स में समान सामग्री और शब्दावली का उपयोग हुआ, जिसे बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (Chief Electoral Officer, Bihar) ने भ्रामक और तथ्यों से परे करार दिया है।

बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इन दावों का फैक्ट चेक कर दिया है। 26 अगस्त 2025 को X (पहले ट्विटर) पर पोस्ट करके और आधिकारिक बयान में उन्होंने साफ कहा कि ये रिपोर्ट्स भ्रामक हैं, तथ्यों से परे हैं और पूरी प्रक्रिया पर बेवजह सवाल उठा रही हैं।

दरअसल, इन दोनों प्रोपेगेंडा पोर्टल्स की रिपोर्ट्स लगभग एक जैसी हैं। हेडलाइन भी वैसी ही: “On the Ground in Bihar: How a Booth-by-Booth Check Revealed What the Election Commission Missed”। मतलब, बिहार में ग्राउंड पर जाकर बूथ-बूथ चेक किया तो चुनाव आयोग की गलतियाँ पकड़ी गईं। उन्होंने चार जिलों कटिहार, पूर्णिया, मधुबन और हरसिद्धि में 14 मामलों की जाँच की। दावा ये कि पाँच निर्वाचन क्षेत्रों में 1.5 लाख मतदाता सिर्फ 1200-1300 घरों में क्लस्टर किए गए हैं। एक ही पते पर दर्जनों से सैकड़ों नाम हैं, और ज्यादातर लोग वहाँ रहते ही नहीं।

उदाहरण के तौर पर-

  • पूर्णिया के बूथ नंबर 12 में घर नंबर 2 पर 153 मतदाता दर्ज थे, लेकिन वो पता एक मंदिर का था। मंदिर के मालिक चंदन यादव को कोई जानकारी नहीं। एक मतदाता कृष्ण मोहन राय का असली घर नंबर 269 था।
  • कटिहार के बूथ 222 में घर नंबर 82 पर 197 मतदाता, लेकिन वो घर 20 साल से बंद है। पड़ोसी शंभु नाथ झा ने बताया कि मालिक डॉ. ए.के. मिश्रा बेगूसराय चले गए।
  • मधुबन के बूथ 160 में घर नंबर 50 पर 274 मतदाता, लेकिन राजेश मंडल कहते हैं कि सिर्फ उनका परिवार वहाँ रहता है।
  • हरसिद्धि के बूथ 114 में घर नंबर 5 पर 48 मतदाता, लेकिन सिर्फ लालबाबू बिन और उनकी पत्नी रहते हैं।

इन रिपोर्ट्स में बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) के बयान हैं। जैसे, पूर्णिया के BLO चंदन कुमार ने कहा कि वे नाम से काम करते हैं, घर नंबर से नहीं। मधुबन के BLO पतित पवन कुमार ने बताया कि गलतियाँ पुरानी हैं, और वे सुधार के इंतजार में हैं। हरसिद्धि के BLO असगर अली ने कहा कि ऊपर से निर्देश थे कि सिर्फ मृत या स्थानांतरित नाम हटाओ, पता न बदलो।

दावे ये हैं-

  • चुनाव आयोग ने ठीक से घर-घर सत्यापन नहीं किया।
  • मतदाता क्लस्टरिंग अनियमितता है, जो सामाजिक संरचना से मेल नहीं खाती (जैसे एक घर में हिंदू-मुस्लिम मिलकर दर्ज)।
  • कई नाम अपरिचित हैं, और पते गलत या गैर-मौजूद।
  • इससे बिहार चुनाव की निष्पक्षता खतरे में है।

दोनों ने चुनाव आयोग से सवाल पूछे, लेकिन जवाब न मिलने का कहा। रिपोर्ट्स में फोटो भी हैं, जैसे बंद घरों की तस्वीरें।

अब आते हैं मुख्य बिंदु पर। बिहार चुनाव आयोग ने इन रिपोर्ट्स को सीधे भ्रामक बताया। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने X पर पोस्ट किया और आधिकारिक पड़ताल जारी की। उन्होंने पाँच मुख्य बिंदुओं में जवाब दिया, जो हर दावे को काटते हैं।

  1. विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का दायरा और प्रक्रिया: बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण अवधि में 7.89 करोड़ मतदाताओं का घर-घर जाकर सत्यापन बूथ लेवल अधिकारियों द्वारा किया गया। दिनांक 01 अगस्त को प्रकाशित Draft सूची के 7.24 करोड़ निर्वाचकों में से 99.11 प्रतिशत निर्वाचकों के दस्तावेज़ पहले ही प्राप्त हो चुके हैं और शेष मामलों में सत्यापन कार्य चल रहा है। अतः यह दावा कि “विशेष गहन पुनरीक्षण में घर-घर सत्यापन नहीं हुआ” तथ्यों से परे एवं मनगढ़ंत है।
  2. मतदाता क्लस्टरिंग (Voter Clustering) का दावा गलत: बिहार के ग्रामीण एवं अर्ध-शहरी क्षेत्रों में एक ही मकान संख्या / एक ही खाता (Khata Number) / टोला / मोहल्ला के अंतर्गत समान पते पर कई परिवार रहते हैं।राजस्व अभिलेखों में भूमि या मकान संख्या के अभाव के कारण कभी-कभी “एक ही पते” पर सैकड़ों मतदाता दर्ज दिखाई देते हैं।यह स्थानीय सामाजिक-भौगोलिक वास्तविकता है, न कि किसी प्रकार की गड़बड़ी।
    इसीलिए केवल डेटा देखकर क्लस्टरिंग को “अनियमितता” मानना भ्रामक एवं तथ्यों से परे है।
  3. तथाकथित गलत पते और अपरिचित नाम: कई बार छात्र, प्रवासी मजदूर या किराएदारों के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज होते हैं, लेकिन वर्तमान स्थानीय निवासियों को उनकी जानकारी नहीं होती। दावा आपत्ति के दौरान ऐसे मामलों में BLOs द्वारा फॉर्म-7 (Deletion) या पता सुधार हेतु फॉर्म-8 भरने की कार्रवाई की गई है। अतः यह कहना कि “स्थानीय लोगों को निर्वाचकों नामों की जानकारी नहीं” अपने आप में प्रमाणित त्रुटि नहीं है साथ ही ऐसे दावों का कोई भी युक्तिसंगत आधार नहीं है।
  4. निर्वाचन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता : ड्राफ्ट रोल जारी होने के बाद भी सभी राजनीतिक दलों और नागरिकों को ऑनलाइन/ऑफलाइन दावा आपत्ति दर्ज कराने का अवसर दिया गया है और यह प्रक्रिया 1 अगस्त से लेकर अभी तक जारी है और आगामी 1 सितंबर 2025 तक चलेगी। इस प्रकार, प्रक्रिया न केवल पारदर्शी है, बल्कि किसी भी नागरिक/राजनीतिक दल द्वारा पाई गई त्रुटि को सुधारने के लिए खुली हुई है।
  5. मीडिया रिपोर्ट की सीमाएँ: Newslaundry की रिपोर्ट केवल कटिहार, पूर्णिया, मधुबन और हरसिद्धि विधानसभा क्षेत्रों में 14 मामलों (जांच अंतर्गत)पर आधारित है, जबकि SIR का दायरा 243 विधानसभा क्षेत्रों के 7.89 करोड़ मतदाताओं तक फैला हुआ रहा है। इतने छोटे आंशिक चयनित मामलों (14 मामले जांच अंतर्गत)के आधार पर पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाना न तो युक्ति-संगत है और न ही वस्तुनिष्ठ

क्यों लगते हैं ये पोर्टल्स प्रोपेगेंडा वाले?

द वायर और न्यूजलॉन्ड्री पर अक्सर वामपंथी झुकाव का आरोप लगता है। उनकी रिपोर्ट्स में सरकार या आयोग जैसी संस्थाओं पर सवाल उठाना आम है। यहाँ भी उन्होंने छोटी कमियों को बड़ा मुद्दा बनाया, बिना पूरा संदर्भ दिए। जैसे क्लस्टरिंग को गड़बड़ी कहा, लेकिन बिहार की ग्रामीण हकीकत को नजरअंदाज किया। इस फैक्ट चेक से साफ है कि दावे भ्रामक हैं। शायद चुनाव से पहले माहौल बिगाड़ने का प्रयास? लेकिन आयोग का जवाब मजबूत है – सबूतों से।

भ्रम फैलाने वाली खबरों से सावधान

चुनाव आयोग का ये फैक्ट चेक बताता है कि द वायर और न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट्स भ्रामक हैं। चुनाव आयोग ने हर दावे का खंडन किया और SIR प्रक्रिया पारदर्शी है। बिहार चुनाव निष्पक्ष होंगे, लेकिन ऐसी खबरें भ्रम फैला सकती हैं।



Source link

Exit mobile version