दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस और राज्य सरकार से कहा कि जो लोग बार-बार रेप की झूठी शिकायत करते हैं, उनकी जाँच की जाए। हालाँकि, कोर्ट ने खुद इस मामले में दखल देने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये काम पुलिस और सरकार का है और उन्हें पता है कि इसे कैसे करना है।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डी के उपाध्याय और जज तुषार राव गेडेला ने साफ-साफ कहा, “ये याचिका है या कोई सुझाव? ये उनका काम है। पुलिस को बेहतर पता है कि पुलिसिंग कैसे करनी है।”
यानी कोर्ट ने याचिका पर कोई फैसला नहीं दिया, बल्कि साफ किया कि ये काम पुलिस और सरकार का है, कोर्ट का नहीं।
याचिका में क्या था?
ये जनहित याचिका शोनी कपूर नाम की एक महिला ने दायर की थी। उनके वकील थे शशि रंजन कुमार सिंह। याचिका में माँग थी कि पुलिस हर जिले में एक डेटाबेस बनाए, जिसमें उन लोगों की जानकारी हो जो बार-बार रेप या ऐसे ही अपराधों की शिकायत करते हैं।
याचिका में ये भी कहा गया कि ऐसी शिकायतों के लिए शिकायतकर्ता से पहचान पत्र जरूर लिया जाए। साथ ही ये आरोप लगाया गया कि कई बार रेप के कानून का गलत इस्तेमाल होता है और कोर्ट को भी इस बात की चिंता रही है।
हाई कोर्ट में आगे क्या हुआ
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने 3 मार्च को दिल्ली पुलिस कमिश्नर और दूसरे अधिकारियों को एक शिकायत पत्र भेजा था। 17 अप्रैल को RTI से जवाब मिला कि ये मामला बड़े अधिकारियों के पास विचार के लिए है।
इस पर कोर्ट ने कहा, “चूँकि याचिकाकर्ता ने पहले ही अधिकारियों को शिकायत दे दी है, तो हम इस याचिका को खत्म करते हैं। लेकिन हम आदेश देते हैं कि अधिकारी जल्दी से इस शिकायत पर ठोस फैसला लें।”
फर्जी मामले क्यों बढ़ रहे हैं?
आजकल कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहाँ कुछ महिलाएँ पुरुषों पर झूठे रेप के इल्जाम लगा देती हैं। जब जाँच होती है, तो पता चलता है कि सारे इल्जाम बेबुनियाद हैं।
आज के समय में जब महिलाएँ अपने हक के लिए खुलकर बोल रही हैं और रेप जैसे गंभीर मामलों पर आवाज उठा रही हैं, तब कुछ लोग इन कानूनों का गलत फायदा उठाते हैं। इससे असली पीड़ितों की लड़ाई कमजोर पड़ती है।
ऐसा ही एक मामला, 64 साल के रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर कैप्टन राकेश वालिया के साथ ऐसा ही हुआ। एक 39 साल की शादीशुदा महिला, जिसके दो बच्चे हैं… ने उनके खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया। उसने कहा कि उसकी मुलाकात वालिया से फेसबुक पर हुई थी। वालिया ने उसे मॉडलिंग के बहाने बुलाया, नशीला पदार्थ देकर सुनसान जगह ले गए और रेप किया।
केस दर्ज हुआ, लेकिन जाँच में चौंकाने वाली बात सामने आई। इस महिला ने 2014 से अब तक 9 अलग-अलग पुरुषों के खिलाफ रेप, छेड़छाड़ और धमकी जैसे लगभग एक जैसे इल्ज़ाम लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि महिला ने हर बार FIR में अपना नाम, उपनाम और दूसरी जानकारी बदल-बदलकर दी, ताकि वो नया व्यक्ति लगे।
इसके अलावा, FIR दर्ज कराने के बाद उसने जाँच में कोई मदद नहीं की और कोर्ट में भी नहीं आई। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘कानून का गलत इस्तेमाल’ बताया और सवाल किया कि जब इतने फर्जी मामले पहले से दर्ज थे, तो निचली कोर्ट ने पहले क्यों नहीं कुछ किया।
कोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ एक महिला की बात पर किसी बेगुनाह को सजा नहीं दी जा सकती, खासकर जब सारे सबूत उसकी बेगुनाही की तरफ इशारा कर रहे हों।
एक और फर्जी केस का उदाहरण
एक महिला ने अपनी 5 साल की बेटी के साथ रेप का झूठा इल्ज़ाम कुछ लोगों पर लगाया। ये केस पोक्सो एक्ट की धारा 5 (गंभीर यौन अपराध) के तहत दर्ज हुआ। अतिरिक्त सत्र जज सुशील बाला डागर ने जाँच में पाया कि महिला ने गुस्से और प्रॉपर्टी के झगड़े की वजह से ये झूठा केस किया था। उसका मकसद प्रॉपर्टी हड़पना था। कोर्ट ने इसे कानून और न्याय व्यवस्था का गलत इस्तेमाल बताया।
कोर्ट ने कहा कि कई लोग जमीन, शादी, राजनीति या निजी फायदे के लिए पोक्सो जैसे सख्त कानूनों का गलत इस्तेमाल करते हैं। इससे कानून का असली मकसद कमजोर होता है। इसलिए कोर्ट को ऐसे मामलों में सख्त और सावधान रहना चाहिए।
पोक्सो एक्ट की धारा 22 के तहत कोर्ट ने महिला पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और एक महीने में इसे भरने को कहा। अगर जुर्माना नहीं भरा, तो उसे 3 महीने की जेल होगी। कोर्ट ने साफ कहा कि महिला ने कानून को गुमराह किया और इसका गलत इस्तेमाल किया, जो गंभीर अपराध है।