sudarshanvahini.com

फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका, कनाडा, नॉर्वे… दुनियाभर से CSDS को मिलता है पैसा, संजय कुमार के ‘डाटा फ्रॉड’ के बाद फंड देने वाली सरकारी संस्थान ने भेजा नोटिस


देश में ‘वोट चोरी’ के नाम पर राजनीतिक बवंडर खड़ा करने वाले सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज) के संजय कुमार और कॉन्ग्रेस के युवराज राहुल गाँधी समेत कई लोगों के खिलाफ दिल्ली में शिकायत की गई है। फर्जी आँकड़ों के आधार पर ये खेल शुरू करने वाले संजय कुमार अब निशाने पर आ चुके हैं।

इस बीच, सीएसडीएस को सबसे ज्यादा फंडिंग देने वाली सरकारी संस्थान – भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) ने CSDS पर सवाल उठाए हैं और शो कॉज नोटिस जारी किया है। ICSSR ने सीएसडीएस पर फर्जी डेटा पेश करने और चुनाव आयोग की गरिमा को ठेस पहुँचाने का भी आरोप लगाया है। वहीं, सीएसडीएस की विदेशी फंडिंग खासकर जर्मनी की कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन से मिलने वाले करोड़ों रुपए अब जाँच के घेरे में हैं। आइए समझते हैं पूरा मामला..

मामला कैसे शुरू हुआ?

यह विवाद 17 अगस्त 2025 को तब शुरू हुआ जब सीएसडीएस के संजय कुमार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली। उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में वोटर लिस्ट में भारी गड़बड़ी हुई है। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि नासिक वेस्ट का वोटर संख्या लोकसभा चुनाव से विधानसभा चुनाव तक 47.38% बढ़ गई, जबकि हिंगणा में 42.08% की बढ़ोतरी हुई। साथ ही, रामटेक और देवलाली में वोटर संख्या में 40% की कमी आई। इन दावों को कॉन्ग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी बढ़ाया और चुनाव आयोग (ECI) पर सवाल उठाए। खेड़ा ने तो तंज कसते हुए लिखा, “अगली बार वे कहेंगे कि 2+2=420।”

लेकिन 19 अगस्त को संजय कुमार को कथित तौर पर अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने अपने पोस्ट को डिलीट कर दिया और माफी माँगी। उनका कहना था कि उनकी टीम ने डेटा की पंक्तियों को गलत पढ़ लिया था। लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था।

फर्जी आँकड़े सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर फैल चुके थे। असली डेटा देखें तो नासिक वेस्ट में वोटर संख्या में सिर्फ 6% और हिंगणा में 5.9% की मामूली बढ़ोतरी हुई, जबकि रामटेक और देवलाली में 3-4% की मामूली वृद्धि हुई।

ICSSR की कड़ी प्रतिक्रिया

इस घटना से नाराज होकर 19 अगस्त को ICSSR ने एक बयान जारी किया। शिक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली ICSSR सीएसडीएस को फंडिंग देने वाली मुख्य संस्था है। ICSSR के बयान में कहा गया कि सीएसडीएस के एक वरिष्ठ अधिकारी (संजय कुमार) ने गलत डेटा पेश किया, जो बाद में वापस लेना पड़ा। इसके अलावा, सीएसडीएस ने चुनाव आयोग के SIR (सार्वजनिक जानकारी अभ्यास) को गलत तरीके से पेश करके मीडिया स्टोरीज छापीं।

ICSSR ने कहा कि चुनाव आयोग भारत की सबसे बड़ी लोकतंत्र की रीढ़ है और इसके सम्मान को ठेस पहुँचाना गंभीर अपराध है। उन्होंने सीएसडीएस पर डेटा से छेड़छाड़ और गलत नैरेटिव बनाने का आरोप लगाया, जो उनके अनुदान नियमों (Grant-in-Aid Rules) का उल्लंघन है। इसके जवाब में ICSSR ने सीएसडीएस को शो कॉज नोटिस जारी करने का फैसला लिया है। उनका कहना है कि यह घटना संस्थान और चुनाव प्रक्रिया दोनों की गरिमा को ठेस पहुँचाती है।

विनीत जिंदल ने दर्ज कराई एफआईआर

इसी बीच वकील विनीत जिंदल ने 19 अगस्त 2025 को दिल्ली पुलिस कमिश्नर को एक शिकायत दी। उनकी शिकायत में राहुल गाँधी (विपक्ष के नेता), संजय कुमार (सीएसडीएस) और लोकसभा के सदस्य लोक सबा समेत कई लोगों पर आरोप लगाए गए। जिंदल का कहना है कि इन लोगों ने फर्जी डेटा फैलाकर जनता में अशांति फैलाई और सरकार के खिलाफ साजिश रची। उन्होंने कहा कि यह डेटा लोकसभा चुनावों को लेकर गलत था और चुनाव आयोग की साख को नुकसान पहुंचाने की कोशिश थी।

जिंदल ने अपनी शिकायत में लिखा कि ये लोग सोशल मीडिया और प्रेस के जरिए झूठी खबरें फैला रहे हैं, जिससे जनता का भरोसा लोकतंत्र पर कमजोर हो रहा है। उन्होंने माँग की कि इस मामले में सख्त कार्रवाई हो और जाँच शुरू की जाए।

सीएसडीएस की फंडिंग: कौन देता है पैसा?

अब सवाल उठता है कि सीएसडीएस को फंडिंग कहाँ से मिलती है? ICSSR सीएसडीएस का मुख्य फंडर है, जो सरकार के जरिए चलता है। लेकिन इसके अलावा सीएसडीएस को विदेशी फंडिंग भी मिलती है, जिस पर कई सवाल उठ रहे हैं।

सीएसडीएस की वेबसाइट और विदेशी योगदान की रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई देशों और संगठनों से पैसा आता है। इनमें फोर्ड फाउंडेशन, गेट्स फाउंडेशन (अमेरिका), आईडीआरसी (International Development Research Centre-कनाडा), डीएफआईडी (यूके), नॉराड (नॉर्वे), ह्यूलेट फाउंडेशन और जर्मनी की KAS जैसी एजेंसियाँ शामिल हैं। इसके अलावा स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया और ताइवान की कुछ एनजीओ से भी डोनेशन मिलते हैं।

हैरानी की बात है कि जर्मनी की सत्ताधारी पार्टी सीडीयू (क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन ऑफ जर्मनी) से जुड़ी कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन सीएसडीएस के लिए सर्वाधिक फंडिंग करती है। सीएसडीएस की वेबसाइट पर विदेशी फंडिग से जुड़ी जो जानकारी साझा की गई है, वो जनवरी 2016 से लेकर अब तक की है।

हर तिमाही में कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन ने सीएसडीएस को लाखों की फंडिंग की है। इन 10 सालों में देखा जाए, तो ये आँकड़ा कई करोड़ों में है। हालाँकि बदले में सीएसडीएस ने कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन के साथ मिलकर कुछ रिसर्स पेपर पब्लिश किए हैं, लेकिन फंडिंग के स्तर और काम को देखते हुए साफ है कि ये पैसा सिर्फ रिसर्च पेपर के लिए तो नहीं ही मिलता है।

CSDS के सहयोग से जर्मन संस्था द्वारा प्रकाशित पेपर

बीते एक साल की बात की जाए, तो कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन ने सीएसडीएस को 25 लाख 9 हजार 190 रुपए ( 29 सितंबर 2024 को ₹4,58,950, 20 नवंबर 2024 को ₹4,39,300 / 17 दिसंबर 2024 को ₹4,38,600 रुपए / 27 फरवरी 2025 को ₹11,72,340) दिए।

वहीं, अमेरिका की UCLA लाइब्रेरी से ₹12.71 लाख का डोनेशन मिला। UCLA की लाइब्रेरी डिपार्टमेंट से जुड़ी रेचेल डेबलिंगर ने ये धन दिए हैं। उसने 24 जून 2024 को भी 24 लाख 92 हजार रुपए से ज्यादा की धनराशि दान दी है।

जनवरी 2024 में फ्रांस की FNSP संस्था के पास से 12 लाख रुपए से अधिक की धनराशि आई, तो ब्रिटिश लाइब्रेरी ने 5 फरवरी 2024 को 14 लाख रुपए से ज्यादा की धनराशि CSDS को दी।

इसके अलावा अतीत में जाकर देखें तो साल 2016 से अगले कई सालों तक कनाडा की संस्था की तरफ से हर साल करोड़ों की धनराशि लगातार मिलती रही। भारत सरकार ने एनजीओ की आड़ में विदेशी धन के प्रवाह को रोकने के लिए जब कदम उठाए, तो इसका असल सीएसडीएस की फंडिंग पर भी पड़ा। साल 2016 और 2025 के आँकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है।

इन विदेशी फंडिंग का आँकड़ा हर तिमाही की रिपोर्ट में उपलब्ध है, जो सीएसडीएस की वेबसाइट पर सार्वजनिक है। आरोप है कि यह पैसा हिंदू समाज को जाति के आधार पर बाँटने और गलत नैरेटिव बनाने में इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए सीएसडीएस के लोकनीति प्रोग्राम में हिंदुओं को ओबीसी, ईबीसी, दलित और सवर्ण में बांटकर वोटिंग पैटर्न की रिपोर्ट छापी जाती है, जो अखबारों में सुर्खियाँ बनती हैं। लेकिन मुसलमानों की अंदरूनी जातीय दरारों (जैसे दलित मुसलमान, अशरफ) पर चुप्पी साध ली जाती है।

कई लोग इसे साजिश मानते हैं और कहते हैं कि सीएसडीएस का मकसद हिंदू समाज को तोड़कर कॉन्ग्रेस जैसे दलों को फायदा पहुँचाना है। योगेंद्र यादव और संजय कुमार जैसे नाम इस एजेंडे को हमेशा आगे बढ़ाते दिखते हैं। फिर, योगेंद्र कुमार किसान आंदोलन से लेकर उन तमाम मंचों पर खड़े नजर आते हैं, जो सरकार के विरोध में खड़े होते हैं।

फंडिंग रोकने की आशंका

ICSSR ने साफ कर दिया है कि सीएसडीएस का यह व्यवहार उनके नियमों का उल्लंघन है। शो कॉज नोटिस के बाद अगर सीएसडीएस संतोषजनक जवाब नहीं दे पाता, तो फंडिंग रोकने की नौबत आ सकती है। यह कदम न सिर्फ सीएसडीएस के लिए बड़ा झटका होगा, बल्कि इस बात की भी जाँच शुरू हो सकती है कि विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल कहाँ हो रहा है। अगर साबित हो जाता है कि विदेशी पैसा किसी खास राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल हुआ तो कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।

विदेशी फंडिंग की वजह से अफवाहों में शामिल हुआ CSDS?

यह पूरा मामला अब साजिश के दावों से भरा हुआ है। एक तरफ जहाँ ICSSR और विनीत जिंदल इसे जानबूझकर फैलाई गई अफवाह मान रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सीएसडीएस इसे तकनीकी गलती बता रहा है। लेकिन सवाल यह है कि एक प्रतिष्ठित संस्थान जैसे सीएसडीएस की टीम ने बिना जाँच-पड़ताल के डेटा क्यों पेश किया? क्या यह गलती सचमुच भूल थी या इसके पीछे कोई बड़ा प्लान था?

आरोप हैं कि विदेशी फंडिंग का दबाव सीएसडीएस पर है, जिसके चलते वह गलत डेटा पेश कर रहा है। हालाँकि ये तो तय है कि यह घटना भारतीय लोकतंत्र और शोध संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है।

दूर तलक जाएगा ये मामला

सीएसडीएस को ICSSR के शो कॉज नोटिस और विनीत जिंदल की एफआईआर से साफ है कि यह मामला यहीं खत्म नहीं होगा। चुनाव आयोग की साख बचाने और फर्जी डेटा से नुकसान को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। अगर सीएसडीएस दोषी पाया जाता है, तो न सिर्फ उसकी फंडिंग पर असर पड़ेगा, बल्कि उसके शोध कार्यों पर भी सवाल उठेंगे।

दूसरी तरफ विदेशी फंडिंग की जाँच शुरू होने से सीएसडीएस को और दबाव का सामना करना पड़ सकता है। जनता के लिए भी यह सब एक सबक है कि सोशल मीडिया पर आने वाली हर खबर पर भरोसा करने से पहले उसकी सच्चाई जाँच लेनी चाहिए।

यह पूरा मामला सीएसडीएस, ICSSR और भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। फंडिंग को लेकर उठे सवाल, फर्जी डेटा का विवाद, और एफआईआर सब कुछ मिलाकर यह दिखाता है कि शोध संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। ICSSR का कड़ा रुख और जिंदल की शिकायत से उम्मीद है कि सच सामने आएगा और दोषियों पर कार्रवाई होगी। लेकिन इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि जाँच निष्पक्ष हो, ताकि किसी का भी राजनीतिक फायदा न हो।



Source link

Exit mobile version