अमेरिका के मिनियापोलिस में चर्च और स्कूल में गोलीबारी कर एक 23 साल के ट्रांसजेंडर रॉबिन वेस्टमैन ने 2 बच्चों की जान ले ली। जाहिर है इसके खिलाफ अमेरिका और पूरी दुनिया को एकजुट हो जाना था। दुनिया हुई भी, इस घटना की सबने निंदा की, हमलावर पर सवाल उठाए। हमने खुद इसके खिलाफ वीडियो बनाई और उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शेयर भी किया।
लेकिन, अमेरिका के ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक को एक ट्रांसजेंडर आतंकी की निंदा रास नहीं आई। फेसबुक ने ‘ऑपइंडिया’ के वीडियो को अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया। फेसबुक पर एक खास वोक विचारधारा से जुड़े होने के आरोप तो अक्सर लगते रहे हैं लेकिन बच्चे के हत्यारे के समर्थन में वीडियो को हटाना? यह वाकई हैरान करने वाली बात है।
फेसबुक ने इसे हटाने को लेकर तर्क दिया कि इसमें खतरनाक लोगों का महिमामंडन हो सकता है। फेसबुक ने हमें लिखा, “हमने आपके वीडियो को हटा दिया, इस वीडियो में, ऐसे लोगों और संगठनों से जुड़े प्रतीक चिह्न, उनका महिमामंडन या उनके लिए समर्थन से जुड़ी बातें मौजूद हो सकती हैं, जिन्हें हम खतरनाक मानते हैं।” इसे फेसबुक ने खतरनाक संगठन और लोगों से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के खिलाफ माना।

हमारा पूरा वीडियो आप यहाँ देख सकते हैं। जाहिर है कि इस वीडियो में किसी खतरनाक संगठन या शख्स के महिमामंडन का कोई सवाल ही नहीं था। हमने सिर्फ वही बताया जो तथ्य थे। हमने बताया कि कैसे आंतकी ने अपनी रायफल पर भारत पर न्यूक्लियर हमले की बात लिखी थी। रॉबिन वेस्टमैन ने अपने हथियारों पर ‘माशाल्लाह’ और ‘न्यूक इंडिया’ लिखा था।
वेस्टमैन ने ‘इजरायल को खत्म करने’ और ‘द्वितीय विश्व युद्ध में 60 लाख यहूदियों के मारे जाने को कम बताने’ जैसी बातें लिखी थीं। इस आतंकी की बंदूक पर उस मोहम्मद अत्ता का नाम था जिसने अमेरिका में ही 9/11 का हमला किया था। हमने अपने वीडियो में इन सब बातों का जिक्र किया और उस कट्टरपंथी आतंकी की विचारधारा पर सवाल उठाए।
फेसबुक के दावे के मुताबिक, इसमें ना कहीं खतरनाक संगठनों का महिमामंडन था और ना किसी प्रतीक चिह्न का, उल्टा हमने तो हमलावर और उसकी विचारधारा पर सवाल ही उठाए थे। इसलिए हमें लगा कि शायद गलती से फेसबुक ने इसे हटा दिया हो, तो हमने इसे फेसबुक से रिव्यू करने का कहा।
फेसबुक ने इसका रिव्यू किया और हमारे इस वीडियो को रीस्टोर करने से इनकार कर दिया। फेसबुक ने हमें लिखा, “हमने आपके वीडियो का फिर से रिव्यू किया है। हमने कन्फर्म किया है कि यह खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़े हमारी कम्युनिटी स्टैंडर्ड के खिलाफ है। हम जानते हैं कि यह निराशजनक है लेकिन हम Facebook को सभी के लिए सुरक्षित और सुखद बनाए रखना चाहते हैं।”

फेसबुक पर सेसरशिप के आरोप तो वर्षों से लगते ही रहे हैं। खास विचारधारा को बढ़ावा देने के अनेक उदाहरणों सामने आए हैं, लोगों ने सवाल खड़े किए हैं। लेकिन, जो अमेरिकी बच्चों को मारे, जो अमेरिका के सबसे वीभत्स आतंकी हमले का समर्थक हो, उसके लिए वीडियो को हटा देना क्या संदेश देने की कोशिश है।
क्या खुद को ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का झंडाबरदार बताने वाले फेसबुक के लिए आतंकवादी और उसकी विचारधारा की आलोचना भी सहन करना नामुमकिन हो गया है। अगर फेसबुक आतंकियों की आलोचना करने वाले शब्दों को सहन नहीं कर सकता तो उसकी आजादी की बातें बस पाखंड नहीं तो क्या हैं?
ऑपइंडिया के साथ यह पहली बार हुआ है, ऐसा भी नहीं है। राष्ट्रवाद, हिंदू हित और इस्लामिक कट्टरपंथ की बात करने को लेकर कई बार हमें फेसबुक का निशाना बनना पड़ा है। सितंबर 2024 में हमने Wikipedia के वामपंथी पूर्वाग्रह को लेकर रिपोर्ट बनाई तो फेसबुक ने उसे ब्लॉक कर दिया। जब हमने अपने फेसबुक पेज पर लिंक साझा करने की कोशिश की, तो लिंक हटा दिया गया और हमें एक चेतावनी दी गई।
फेसबुक अगर चाहता है कि दुनिया वामपंथी विचारधारा की भोंपू बन जाए, हर कोई उसके विचार से ही चल तो ऐसा होने से रहा। वर्षों से फेसबुक को हिंदू विरोधी और राष्ट्रवादी विचारों को कुचलने का औजार बना दिया गया है। कभी पोस्ट हटा दिए जाते हैं, कभी अकाउंट सस्पेंड किए जाते हैं तो कभी रीच घटा दी जाती है।
इन सबसे आगे बढ़कर अब जब फेसबुक जैसे मंच आतंकवादियों की आलोचना तक नहीं सह पा रहे हैं, तो यह सवाल उठना चाहिए कि हमें असली खतरा किससे है? क्या फेसबुक और मेटा सिर्फ वोकिज्म के ही भोंपू बनकर रह जाएँगे?