5 सितंबर 2025 को शिक्षक दिवस के अवसर पर जब देशभर में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि दी जा रही थी, उन्हें याद कर शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक जगहों पर आयोजन किए जा रहे थे, तब तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK ने अपने सोशल मीडिया मंचों पर पेरियार ई वी रामासामी के लिए कई ट्वीट कर रही थी।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इसी दिन ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पेरियार की पोट्रेट का अनावरण किया, लेकिन दिनभर में DMK के किसी नेता या पार्टी के आधिकारिक हैंडल पर राधाकृष्णन का नाम तक नहीं लिया गया। दक्षिण भारत की राजनीति में ये वैचारिक मतभेद लगातार गहराता जा रहा है।
तमिलनाडु के तिरुत्तनी में जन्मे और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ाई करने वाले राधाकृष्ण ने भी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र पढ़ाया। वे भारतीय दर्शन को पश्चिमी दुनिया में सम्मान दिलाने वाले प्रमुख विचारकों में से एक थे। इसके बावजूद राधाकृष्णन को दरकिनार करना DMK की अपनी ही रणनीति को ही दिखाता है।
ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पेरियार की पोट्रेट का अनावरण करते हुए स्टालिन ने उन्हें ‘रैशनलिज्म की वैश्विक रोशनी’ बताया। उन्होंने पेरियार को ‘स्वाभिमान आंदोलन का सूरज’ कहा और खुद को उनके विचारों से ओतप्रोत बताया।
#SelfRespectMovement – A revolution that redefined freedom! Chains fell, dignity rose!
Thanthai Periyar’s Self-Respect Movement shattered fundamentalisms, awakened dignity, nurtured scientific temper, and made us a guiding light of social transformation.
At #Oxford, I spoke… pic.twitter.com/ESFq8VLcJF
— M.K.Stalin (@mkstalin) September 5, 2025
असल में ऑक्सफोर्ड में हुआ ये यह आयोजन न केवल पेरियार की विचारधारा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने का प्रयास था, बल्कि DMK की वैचारिक विरासत को भी वैश्विक मान्यता दिलाने की रणनीति थी।
ऑक्सफोर्ड में स्टालिन को पेरियार की तस्वीर के अनावरण के लिए खास तौर पर बुलाया गया। इसके पीछे भी गहरी रणनीति शामिल है। एमके स्टालिन के पिता करुणानिधि की पूरी राजनीति पेरियार के विचारों पर आधारित थी। स्टालिन भी अपनी राजनीति में जब तब पेरियार का नाम और विचार के बारे में बात करते और अमल में लाने का प्रयत्न करते रहे हैं।
पेरियार वही शख्स है जिसने यहूदियों और ब्राह्मणों को कीड़े-मकोड़े जैसा माना था। स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने भी सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया के मच्छर से करते हुए इसे जड़ से मिटा देने की बात तक कही है। ऐसे में स्टालिन का इस कार्यक्रम में शामिल होना कोई नई बात नहीं, बल्कि उनकी राजनीतिक विरासत का ही विस्तार कहा जा सकता है।
नेहरू ने पेरियार को दिया था विकृत मानसिकता का तमगा
5 नवंबर 1957 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मद्रास के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कामराज को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने पेरियार ईवी रामासामी नायकर की ओर से लगातार चलाए जा रहे ब्राह्मण-विरोधी अभियान की आलोचना की थी।
नेहरू ने लिखा था, “मैं पेरियार द्वारा लगातार चलाए जा रहे ब्राह्मण-विरोधी अभियान से अत्यंत व्यथित हूँ। मैं पहले भी इस विषय पर लिख चुका हूँ और मुझे बताया गया था कि यह मामला विचाराधीन है।”
यह पत्र उस समय लिखा गया था जब पेरियार ने 3 नवंबर 1957 को तंजावुर में एक सम्मेलन आयोजित किया था। इसमें उसने संविधान से धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को हटाने की माँग की थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, पेरियार की पार्टी द्रविड़ कड़गम ने उस सम्मेलन में ब्राह्मणों की हत्या और उनके घरों को जलाने तक की बात कह डाली थी।

नेहरू ने अपने पत्र में साफ तौर पर लिखा था कि पेरियार लोगों को ‘छुरा घोंपने और हत्या करने’ के लिए उकसा रहे हैं और यह भाषा केवल ‘किसी अपराधी या पागल’ द्वारा ही इस्तेमाल की जा सकती है।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस तरह की बयानबाजी देश में असामाजिक और आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है। इसके चलते राष्ट्र का नैतिक पतन होता है। नेहरू ने सुझाव दिया था कि पेरियार को ‘पागलखाने में भेजा जाना चाहिए और उनकी विकृत मानसिकता का इलाज किया जाना चाहिए।’
पेरियार की ब्राह्मणों के प्रति नफरत इतनी गहरी थी कि उन्होंने अपने समर्थकों से ये तक कह दिया था, “अगर रास्ते में ब्राह्मण और साँप मिलें, तो पहले ब्राह्मण को मारो।”
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पेरियार पर आयोजित संगोष्ठी का आयोजन फैसल देवजी एक व्यक्ति की ओर से किया गया था। खुद को इतिहासकार बताने वाले फैसल ने अपनी किताब ‘द इंपॉसिबल इंडियन’ में महात्मा गाँधी पर कई अपमानजनक बातें लिख चुका है।
किताब में फैसल देवजी ने गाँधी की तुलना जोसेफ स्टालिन, एडॉल्फ हिटलर और माओ जेडोंग जैसे तानाशाहों से की है। इसमें उसने लिखा है, “कई मायनों में गाँधी लेनिन, हिटलर और माओ के की श्रेणी में आते हैं। उन्हें बीसवीं सदी की मुख्यधारा की राजनीति से अलग किसी तरह की नैतिकता वाला इंसान नहीं माना जाना चाहिए।”
असल में तो फैसल की विचारधारा पेरियार जितनी ही उग्र मानी जाती है। उसने नरेंद्र मोदी सरकार के तहत भारत में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर भी कई लेख लिखे हैं, जिनमें उसने सरकार को ‘निराशाजनक और भयावह’ बताया है।
एमके स्टालिन के अलावा इस तथाकथित ‘इतिहासकार’ ने एक अन्य वक्ता को भी इस संगोष्ठी में शामिल किया था। ‘Dravidian Geography and the History of Respect’ नाम की इस संगोष्ठी के वक्ता थे- एक एंथ्रोपॉलोजिस्ट अर्जुन अप्पादुराई।
अर्जुन अप्पादुराई ने भी 2021 में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के तहत भारत में ‘राष्ट्रवाद’ की तुलना ‘नरसंहारवाद’ से की थी। एक रिसर्च पेपर में उन्होंने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को ‘मुस्लिम-विरोधी नीति निर्माण’ के रूप में पेश करने का प्रयास किया।
राधाकृष्णन को भूली DMK
विदेश में जाकर हिंदू विरोधी पेरियार की तस्वीर का अनावरण करने वाले स्टालिन अपने ही देश के महान शिक्षाविद और तमिलनाडु की धरती पर ही जन्मे सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भूल गए।
राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति (1952–1962) और दूसरे राष्ट्रपति (1962–1967) बने। साथ ही उन्होंने UNESCO और सोवियत संघ में भारत के राजदूत के रूप में भी कार्य किया। उनके सम्मान में ही भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
इसके बावजूद DMK शिक्षक दिवस के दिन ही पेरियार के लिए कई ट्वीट करती है लेकिन राधाकृष्णन को भूल गई। एक ओर पेरियार ने ब्राह्मणवाद और धार्मिक रूढ़ियों के खिलाफ बोला, वहीं राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन को दुनिया में सम्मान दिलाया। दोनों ही दक्षिण भारत से थे, लेकिन राधाकृष्णन पर DMK की चुप्पी एक वैचारिक असहजता को दर्शाती है।
DMK की यह रणनीति अपने समर्थकों को स्पष्ट संदेश देती है कि हम केवल उस विरासत को स्वीकारते हैं जो हमारे वैचारिक ढाँचे में फिट बैठती है। सवाल ये है कि क्या यह चुप्पी केवल राजनीतिक प्राथमिकताओं का परिणाम है, या फिर यह उस वैचारिक संघर्ष का हिस्सा है जिसमें पेरियार की नास्तिकता और सामाजिक न्याय की राजनीति को राधाकृष्णन के अध्यात्मिक और अकादमिक प्ररूपों से टकराव में देखा जाता है?