बिहार में तेजी से चल रहा मतदाता सूची पुनरीक्षण का अभियान

बिहार में वोटर्स की लिस्ट की जाँच के बाद, अब यही काम पश्चिम बंगाल और असम में होगा। मुख्य चुनाव आयोग यहाँ के मतदाता सूची की लिस्ट को बहुत ध्यान से देखेगा। मुख्य चुनाव आयोग इस अभियान के जरिए यह सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई भी गैर-भारतीय मतदाता सूची में शामिल न हो।

यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब इन राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी पर पहले से ही राजनीति गरमाई हुई है।

घर-घर जाकर होगी जाँच

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची की यह गहन समीक्षा देश के हर राज्य में की जाएगी। इसमें घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि की जाएगी।

बिहार में चुनाव के बाद, असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी में यह अभियान चलाया जाएगा, जहाँ 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी राज्यों की मतदाता सूचियों की विशेष गहन समीक्षा पूरी करने की योजना है।

हालाँकि, विपक्षी दलों ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि नागरिकता तय करना सरकार का काम है, ना कि चुनाव आयोग का।

विपक्षी दल यह भी तर्क दे रहे हैं कि बिहार में ज्यादातर लोगों के पास आधार या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज ही हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने 11 विशिष्ट दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें ये शामिल नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में भी इस अभियान के खिलाफ याचिकाएँ दाखिल की गई हैं।

क्यों खास हैं बंगाल और असम?

यह अभियान पश्चिम बंगाल और असम में खास तौर पर महत्वपूर्ण है। इन राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी को लेकर लंबे समय से राजनीतिक विवाद रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इन राज्यों में मतदाता सूची में बड़ी संख्या में ऐसे लोग शामिल हो सकते हैं जो भारतीय नागरिक नहीं हैं।

चुनाव आयोग का यह अभियान घुसपैठियों को मतदाता सूची से बाहर करने में मदद कर सकता है।

आधार कार्ड और नागरिकता का सवाल

चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की समीक्षा के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, लेकिन इसमें आधार कार्ड, पैन और ड्राइविंग लाइसेंस शामिल नहीं हैं।

इसका कारण यह है कि ये दस्तावेज पहचान का प्रमाण तो हैं, लेकिन नागरिकता का नहीं।

हालाँकि, फॉर्म 6 (नए वोटर बनने के लिए) में आधार का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे यह सवाल उठता है कि अगर आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है तो इसे क्यों स्वीकार किया जाता है।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी इस बात पर चिंता जताई है कि आधार का इस्तेमाल गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल होने का मौका दे सकता है।

आगे की राह

वोटर लिस्ट का गहन रिवीजन जरूरी है ताकि मतदान के लिए पहले से रजिस्टर्ड लोगों की प्रामाणिकता की पुष्टि की जा सके। भारत जैसे देश में अवैध इमीग्रेशन एक बड़ी समस्या है। इसलिए वोटर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में ढिलाई नहीं बरती जा सकती।

विशेषज्ञों का मानना है कि पहली बार मतदाता बनने वालों के लिए सिर्फ घोषणा ही नहीं, बल्कि नागरिकता का प्रमाण भी अनिवार्य होना चाहिए।

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