राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) 2025 में अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रहा है।79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने RSS की सेवाओं का जिक्र करते हुए इसे विश्व का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन (NGO) बताया है। पीएम ने कहा, “यह संगठन देश के अलग-अलग हिस्सों में योगदान दे रहा है।” हालाँकि RSS के विश्व का सबसे बड़ा NGO बनने की यात्रा में कॉन्ग्रेस हमेशा बाधक बनती रही है।
पीएम ने कहा, ”आज मैं गर्व के साथ एक बात का जिक्र करना चाहता हूँ। आज से 100 साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म हुआ। संघ के लोग 100 साल से राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं। व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के संकल्प को लेकर 100 साल तक माँ भारती के कल्याण का लक्ष्य लेकर संघ के लोगों ने मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। ऐसा RSS दुनिया का सबसे बड़ा NGO है। बीते 100 साल के दौरान देश की यात्रा में संघ का अहम योगदान है।”
#WATCH | PM Narendra Modi says, "Today, I would like to proudly mention that 100 years ago, an organisation was born – Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS). 100 years of service to the nation is a proud, golden chapter. With the resolve of 'vyakti nirman se rashtra nirman', with the… pic.twitter.com/zGMb8H0arw
— ANI (@ANI) August 15, 2025
प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं आज यहाँ लाल किले के प्राचीर से 100 साल की इस राष्ट्र सेवा की यात्रा में योगदान करने वाले सभी स्वयंसेवकों को आदरपूर्वक स्मरण करता हूँ। देश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस 100 साल की भव्य, समर्पित यात्रा पर गर्व करता है और यह हमें प्रेरणा देता रहेगा।”
जानिए कैसे RSS को रोकने के लिए कॉन्ग्रेस ने चली चालें
बता दें कि जिस RSS को पीएम ने विश्व का सबसे बड़ा NGO कहा है, उसे रोकने के लिए कॉन्ग्रेस ने कम चालें नहीं चली हैं। कॉन्ग्रेस की सरकार ने 3 बार RSS पर प्रतिबंध लगाया। 60 के दशक में कॉन्ग्रेस ने सरकारी कर्मचारियों के RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर बैन ही लगा दिया था।
महात्मा गाँधी की हत्या के बाद कॉन्ग्रेस ने RSS को खुलेआम टारगेट करना शुरू किया। कॉन्ग्रेस ने मौके का फायदा उठाते हुए संघ पर बैन लगा दिया था। हालाँकि बाद में गृहमंत्री सरदार पटेल ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, जिसके बाद इस बैन को हटाया गया। RSS कॉन्ग्रेस की आँखों में हमेशा ही खटकता रहा है। 1966 में सरकारी कर्मचारियों को इस संगठन की गतिविधियों में भाग लेने से रोक दिया गया।
1975 में जब इमरजेंसी लागू हुई तो फिर RSS को बैन किया गया। 1977 के चुनावों में RSS ने इसके खिलाफ आवाज उठाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। इसका असर इतना प्रभावी हुआ कि न सिर्फ पार्टी हारी, बल्कि इंदिरा गाँधी और उनके बेटे संजय गाँधी तक अपनी सीटों से हाथ धो बैठे। इसके बाद RSS से फिर से बैन हटाया गया।
कॉन्ग्रेस को RSS की ये जीत कहाँ सुहाने वाली थी। 1992 में जब अयोध्या में कारसेवा के बाद बाबरी ढाँचा गिरा तो फिर कॉन्ग्रेस को RSS पर बैन लगाने का मौका मिला गया। इस बार UAPA 1967 के प्रावधानों के तहत बैन लगाया गया।
कॉन्ग्रेस ने ढाँचा गिरने का सारा इल्जाम RSS पर लगा दिया। मामला ट्रिब्यूनल कोर्ट तक गया, हालाँकि कोर्ट को RSS के विरुद्ध पर्याप्त सबूत नहीं मिले और RSS से बैन एक बार फिर हटा दिया गया।
कुछ भी हासिल नहीं हुआ तो संघ से जुड़े लोगों की छीन ली नौकरी
RSS पर प्रतिबंध नहीं लग सका तो कॉन्ग्रेस ने संघ के सरकारी कर्मचारियों को इस संगठन की गतिविधियों में शामिल होने से रोकने का प्रयास किया। पुलिस को आदेश दिया गया कि वे सत्यापित करें कि केंद्र में काम करने वाले लोग RSS से तो नहीं जुड़े, अगर जुड़े हैं तो उनकी नियुक्ति रद्द कर दी जाए। कॉन्ग्रेस ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि उन्हें नौकरी देने से मना कर दो और नौकरी से हटा दो।
कॉन्ग्रेस की इस तानाशाही का भुक्तभोगी रामशंकर रघुवंशी को भी बताया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार रघुवंशी स्कूल शिक्षक थे। रघुवंशी को पहले पूर्व में हुए सत्यापन पर स्कूल में शामिल कर लिया गया। हालाँकि बाद में पुलिस ने सरकार को बताया कि वो एक समय में RSS और जनसंघ की गतिविधियों में शामिल थे तो उन्हें नौकरी से हटा दिया गया।
इसी तरह, रंगनाथाचार्य अग्निहोत्री को कर्नाटक में मुंसिफ के पद के लिए चुना गया था। पुलिस सत्यापन में पता चला कि वे पहले येलबुर्गा में RSS से जुड़े रहे थे। जिसका फायदा उठाते हुए सरकार ने उन्हें नौकरी में प्रवेश देने से मना कर दिया।
उदाहरण के तौर पर नागपुर के चिंतामणि की भी कहानी सामने आई। वे उप पोस्ट मास्टर थे। उन पर आरोप लगाया गया था कि वे RSS के सदस्य हैं और संक्रांति के अवसर पर RSS कार्यालय गए थे। इतनी सी बात के लिए चिंतामणि को सेवा से हटा दिया गया था।
हालाँकि चिंतामणी ने हार नहीं मानी वो इंसाफ के लिए मैसूर हाई कोर्ट पहुँचे। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, “प्रथम दृष्टया RSS एक गैर-राजनीतिक सांस्कृतिक संगठन है। इसमें गैर-हिंदुओं के प्रति कोई घृणा या दुर्भावना नहीं है। देश के कई प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्तियों ने इसके कार्यों की अध्यक्षता करने या इसके स्वयंसेवकों के काम की सराहना करने में संकोच नहीं किया है।”
कोर्ट ने कहा, “हमारे जैसे देश में जहाँ लोकतंत्र है (जैसा कि संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है), यह प्रस्ताव स्वीकार करना उचित नहीं होगा कि ऐसे शांतिपूर्ण या अहिंसक संघ की सदस्यता और उसकी गतिविधियों में भागीदारी मात्र से कोई व्यक्ति (जिसके चरित्र और पूर्ववृत्त में कोई अन्य दोष नहीं है) मुंसिफ के पद पर नियुक्त होने के लिए अनुपयुक्त हो जाएगा।”
बाद में उन्होंने विशेष सिविल अपील संख्या 22/52 में बॉम्बे (नागपुर बेंच) में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले में कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता चिंतामणि के मामले में पहला आरोप यह है कि वह RSS की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं और उसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहे है।
हालाँकि चिंतामणि ने इस आरोप से इनकार किया है, मगर हम मान सकते हैं कि प्रतिवादी के अनुसार आरोप सत्य है… लेकिन ये भी गौर हो RSS ऐसा संगठन नहीं है जिसे गैरकानूनी घोषित किया गया हो। आरोप में यह भी नहीं बताया गया है कि RSS की कौन सी गतिविधियाँ हैं, जिनमें भागीदारी या जिनसे जुड़ाव को विध्वंसक माना जाता है।”
कोर्ट ने चिंतामणि पर लगाए गए आरोपों को लेकर कहा कि सरकार बेहद अस्पष्ट है। जब तक किसी व्यक्ति पर उचित रूप से यह संदेह न हो कि वह कुछ गैरकानूनी काम कर रहा है या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए हानिकारक है, तब तक यह कहना मुश्किल है कि किसी ऐसी संस्था से जुड़ाव मात्र, जिसे न तो गैरकानूनी घोषित किया गया है और न ही किसी असामाजिक या देशद्रोही गतिविधियों या शांति भंग करने वाली गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप या दिखाया गया है, नियम 3 के तहत कार्रवाई का आधार बन सकता है।
आँकड़े और भी हैं। कहा जाता है कि RSS के सदस्यों के मामलों की सुनवाई कई हाई कोर्ट्स में की गई। सभी मामलों में ऐसे ही शिकायतें सामने आईं कि केवल संगठन से जुड़ने पर नौकरी से निकाले जाने के प्रयास हुए।
तय हैं कि प्रधानमंत्री के लाल किले की प्राचीर से RSS की सेवाओं को याद किया जाना और संघ की उपलब्धियों को सराहा जाना कॉन्ग्रेस को अपने मुँह पर चाटे की तरह महसूस हुआ होगा, लेकिन सच्चाई तो यही है कि कॉन्ग्रेस के हर जुल्म को सहते हुए भी RSS ने भारत देश और भारतवासियों की सेवा में अथाह योगदान दिया है।