मोदी सरकार ने हाल ही में बीमा पॉलिसियों पर ‘GST जीरो’ कर एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार के इस कदम की तारीफ चारों ओर हो रही है। लेकिन, हमेशा की तरह प्रोपेगेंडाई पत्रकार रवीश कुमार इस फैसले से भी नाखुश दिख रहे हैं। पहले जब बीमा पर 18% जीएसटी लगता था, तब रवीश कुमार सरकार पर जमकर हमला करते थे। अब जब सरकार ने लोगों को राहत देते हुए इंश्योरेंस पर टैक्स 0% कर दिया है, उसके बाद भी वह सवाल उठा रहे हैं कि क्या वाकई GST जीरो होने से लाभ होगा।

रवीश कुमार 8 साल वाला हवाला तो दे रहे हैं, लेकिन कॉन्ग्रेस काल में ऐसा फैसला कभी नहीं लिया गया, ये नहीं बता रहे हैं। इससे उनकी पत्रकारिता साफ झलकती है कि उनकी दुकान सिर्फ मोदी सरकार को कोसने से चलती है। और उनका लाभ कॉन्ग्रेस सरकार की खामियों पर पर्दा डालने से हैं।

रवीश का दोहरा मापदंड

पिछले साल प्रोपेगेंडाई पत्रकार रवीश कुमार ने अपने यूट्यूब चैनल @ravishkumar.official पर एक वीडियो बनाकर डाला, जिसकी हेडलाइन ‘ममता की माँग: वापिस लो 18% GST’ थी। इस वीडियो में रवीश कुमार सरकार पर कई आरोप लगाते है। रवीश कुमार मेडिकल और स्वास्थ्य बीमा पर 18% GST का मुद्दा जोर-शोर से उठाते हैं। इसके अलावा इसे ‘जनविरोधी’ बताते हैं।

रवीश कुमार बताते है कि 18% GST होने से वरिष्ठ नागरिक सबसे ज्यादा परेशान है और दूसरे देशों की तुलना में यह सबसे ज्यादा है। रवीश कुमार सरकार पर गरीबों से पैसा लूटने का आरोप भी मड़ते है। उनके वीडियो में वह लगातार सरकार से सवाल करते कि वह बीमा पर टैक्स क्यों वसूल रही है। उस समय उनका तर्क था कि इस टैक्स से आम आदमी पर बोझ बढ़ रहा है, जिसे सरकार को वापस ले लेना चाहिए।

अब राहत मिली तो फिर हंगामा

अब जब सरकार ने वही किया, जिसकी माँग हो रही थी तो रवीश कुमार ने एक नई कहानी गढ़ ली। अब वह फिर से यूट्यूब पर वीडियो बनाकर पूछ रहे हैं कि क्या वाकई इंश्योरेंस पर ‘GST जीरो’ होने से कुछ लाभ होने वाला है??? रवीश कुमार को अब भी यकीन नहीं हो रहा कि जो काम कॉन्ग्रेस काल में नहीं हो पाया, वो काम मोदी सरकार ने एक झटके में कर दिखाया।

रवीश कुमार इस बात को बस हज़म नहीं कर पा रहे हैं कि इंश्योरेंस पर GST 18% से 0% कैसे हो गई, जो 70 साल से राज कर रही कॉन्ग्रेस में नहीं हो पाई। अपनी वीडियो में रवीश कुमार कह रहे है कि मोटा-मोटी वाला अनुमान दीजिए, क्योंकि उन्हें ‘जीरो’ GST समझ आने वाला नहीं है। इसके अलावा रवीश कुमार अपनी वीडियो में आरोप लगाते है, कि लोग प्राइवेट अस्पताल में इसलिए जाते हैं, क्योंकि सरकारी अस्पतालों की हालत ठीक नहीं है।

वहीं, सरकारी अस्पतालों की बात करते हुए उन्हें आइना दिखा देते हैं और याद दिलाते है 2014 के बाद की। स्वास्थ्य व्यय लगभग तीन गुना बढ़कर 95,958 करोड़ रुपए हुआ। सरकारी अस्पतालों में 50 करोड़ से ज्यादा नागरिकों को 5 लाख रुपए का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा मिला। ये पैसा अस्पताल में इलाज के लिए दिया गया, जिससे लोग इलाज के लिए अपनी जेबों से पैसा खर्च ना करें और सरकार की तरफ से मुफ्त इलाज आसानी से करवा सके।

इस योजना में पहले सिर्फ गरीब-मिडिल क्लास लोग ही शामिल थे, लेकिन अब इसमें 70 से ज्यादा उम्र के वृद्ध लोग भी शामिल कर दिए गए है। 40 करोड़ से ज्यादा लोग आयुष्मान कार्ड बनवाकर 17000+ सरकारी अस्पताल में लाभ ले रहे हैं। वहीं, 2014 के 80 केंद्रों से बढ़कर अब 16000+ केंद्र हुए, जहाँ 90% तक सस्ती दवाओं का लाभ लिया जा सकता है। इस सेवा से भी लोगों के 28,000 करोड़ रुपए की बचत का लाभ लिया हैं। रवीश कुमार कॉन्ग्रेस काल के सरकारी अस्पतालों की स्थिति को याद करते हुए रोते हैं और मोदी सरकार पर आरोप मढ़ देते हैं।

रवीश कुमार ने वीडियो में एक क्लिप दिखाई जिसमें पीएम मोदी इंदिरा गाँधी के टॉफी पर 21 प्रतिशत GST लगाने की बात कहते हैं और इसी का हवाला देते हुए निशाना साधते है। लेकिन रवीश कुमार भूल गए कि उसी इंदिरा गाँधी के दौर में इनकम टैक्स की दर एक समय में 97.5% तक पहुँच गई थी। और जवाहरलाल नेहरू के समय में 12 लाख कमाने वाले को 3 लाख टैक्स देना पड़ता था। लेकिन पुरानी बातें सोचने में शायद उन्हें मेहनत लगती है, इसलिए वह 10 साल वाली बातें ही सोच सकते हैं।

मोदी सरकार ने 12 लाख रुपए तक की आय को पूरी तरह से टैक्स-फ्री किया। यह फैसला मिडिल क्लास के लिए एक बड़ी राहत बनकर उभरा, जिससे उनकी जेब पर बोझ कम हुआ। लेकिन रवीश कुमार और उनके जैसे पत्रकार इस सकारात्मक बदलाव को देखने के बजाय सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे हैं। रवीश जी, आरोप तो बहुत है, लेकिन अगर खोलने पर आए, तो एक किताब बन सकती है।

रवीश कुमार की ‘पत्रकारिता’ सिर्फ मोदी सरकार को गाली देने और कॉन्ग्रेस के ‘काले कारनामों’ पर पर्दा डालने तक सीमित है। उनकी हर रिपोर्ट और वीडियो में एक ही एजेंडा नजर आता है- सरकार की हर नीति में कमी निकालना, चाहे वह अच्छी हो या बुरी। GST पर उनके बदलते रुख से साफ है कि वह एक ‘टूटे हुए टेप रिकॉर्डर’ की तरह हैं जो हमेशा ‘सरकार के खिलाफ’ बजता रहता है।

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