अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को रणनीतिक मोर्चे पर पटखनी मिली है। जिस पनामा नहर पर वह वापस कब्जे की बात लम्बे समय से कर रहे हैं, उसका नियंत्रण चीन के हाथों में जाता दिख रहा है। पनामा नहर का संचालन वर्तमान में ऐसे व्यक्ति के हाथों में है, जो चीन का नागरिक है।

पनामा नहर अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ती है और दुनिया के व्यापार के लिए एक बेहद अहम रास्ता है। यह नहर वर्ष 1914 में बनी थी और वर्ष 1999 में अमेरिका ने इसका नियंत्रण पनामा को सौंप दिया था। तब से पनामा ही इसका संचालन करता है और पनामा की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इस नहर पर टिका है।

यह नहर फिर से एक बार कूटनीतिक लड़ाई के केंद्र में आ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में चिंता जताई थी कि इस नहर के नियंत्रण पर चीन का बढ़ता दखल अमेरिकी हितों के लिए आने वाले समय में खतरा बन सकता है।

उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि अमेरिका को पनामा नहर का नियंत्रण फिर से अपने हाथ में लेना चाहिए। ट्रंप का कहना था कि चीनी सरकार की पाली पोषी कम्पनियाँ पनामा नहर और आसपास के बंदरगाहों पर अपना प्रभाव लगातार बढ़ा रही हैं। अमेरिका अपनी कम्पनियों को इस नहर के कामों में जोड़ना चाहता था।

इसी के तहत पिछले साल अमेरिका की बड़ी निवेश कंपनी ब्लैकरॉक और हांगकांग की CK हचिसन के बीच पनामा के कुछ बंदरगाहों को लेकर समझौता पर बातचीत चालू हुई थी। इस सौदे के तहत ब्लैकरॉक की अगुवाई वाले जॉइंट वेंचर पनामा के दो प्रमुख बंदरगाहों सहित कई अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों का संचालन सौंपा जाना था।

यह लगभग ₹3 लाख करोड़ की डील मानी गई थी। इसका सीधा उद्देश्य इस नहर के संचालन पर चीन का प्रभाव कम करना था। हालाँकि, इस प्रस्ताव ने अमेरिका और चीन के बीच प्रभाव की लड़ाई को और बढ़ा दिया और चीन ने इस डील पर नाराजगी जताई। अब पनामा नहर पर चीन का प्रभाव कम करने की यह धराशायी हो गई है।

इस समझौते की बातचीत आखिरकार फेल हो गई है। CK हचिसन ने आधिकारिक रूप से यह घोषणा की है कि ब्लैकरॉक के साथ बातचीत की अवधि समाप्त हो चुकी है। इसके परिणामस्वरूप, चीन समर्थित CK हचिसन को पनामा में और अधिक प्रभावी स्थिति मिल गई है।

यह बात उल्लेखनीय है कि CK हचिसन 1997 से ही पनामा के दोनों प्रमुख बंदरगाहों का संचालन कर रही है और इसका मालिकाना हक हांगकांग के अरबपति ली का-शिंग के पास है। वह चीन के नागरिक हैं। पश्चिमी विशेषज्ञों का मानना है कि चीन सरकार द्वारा ऐसे रणनीतिक निवेशों को न सिर्फ स्वीकृति दि जति है, बल्कि वे इसका राजनीतिक लाभ भी उठाते हैं।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “चीन पनामा नहर का संचालन कर रहा है और हमने इसे चीन को नहीं दिया, हमने इसे पनामा को दिया और हम इसे वापस ले रहे हैं।” उन्होंने पनामा पर अत्यधिक शुल्क वसूलने का आरोप लगाते हुए इसके प्रबंधन पर भी सवाल खड़े किए।

ट्रंप ने पनामा सरकार से निर्देश लेने की अपील की, जिससे संकेत मिलता है कि अमेरिका अब इस नहर पर दोबारा नियंत्रण की संभावनाएँ तलाश रहा है। हालाँकि, मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि अमेरिका को अपने प्रभाव को बहाल करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

पनामा नहर पर बढ़ता चीनी प्रभाव केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं, बल्कि यह वैश्विक शक्ति संतुलन को दिखलाने वाला बन चुका है। यह घटना स्पष्ट रूप से यह दिखाने का कोशिश कर रही है कि ग्लोबल साउथ में चीन कैसे अपने रणनीतिक निवेश और वाणिज्यिक ताकत के जरिए अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।

वहीं अमेरिका, जिसकी कभी इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ थी, अब अपने पुराने प्रभाव को फिर से कायम करने की कोशिशों में लगा है। लेकिन मौजूदा हालात में वह लगातार पिछड़ता दिखाई दे रहा है।

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