2008 के मालेगाँव ब्लास्ट केस में पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित के नाम सबसे अधिक चर्चा में रहे थे। इन दोनों को विस्फोट के कुछ ही समय बाद गिरफ्तार किया गया था। अब ये दोनों भी 5 अन्य आरोपियों के साथ इस केस से बरी कर दिए गए हैं।

साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के ऊपर जो आरोप लगे वो कोर्ट में साबित नहीं हो पाए हैं। खुद जाँच एजेंसियों ने ही माना है कि इन दोनों के खिलाफ सबूत नहीं थे। फिर भी कई वर्षों तक इन दोनों को जेल में रखा गया। इतना ही नहीं, दोनों को उन पर लगे आरोप कबूलने के लिए बुरी तरह प्रताड़ित भी किया गया।

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जब एजेंसियों को इनके खिलाफ सबूत नहीं मिले थे तो क्यों इन्हें गिरफ्तार किया गया और फिर अलग-अलग तरह की प्रताड़नाएँ दी गईं। क्या ऐसा किसी बड़ी साजिश के तहत किया गया था?

साध्वी प्रज्ञा पर आरोप

भोपाल से बीजेपी की लोकसभा सांसद रहीं साध्वी प्रज्ञा का बचपन भिंड में बीता था। प्रज्ञा के पिता आयुर्वेदाचार्य थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे थे। प्रज्ञा, स्वामी अवधेशानंद गिरी से प्रभावित होकर साध्वी बन गईं और इंदौर में उन्होंने राष्ट्रीय जागरण मंच की स्थापना की थी।

मालेगाँव में सितंबर 2008 में एक LML फ्रीडम बाइक पर बँधे बम में विस्फोट हुआ जिसमें 6 लोगों की मौत हुई और करीब 100 लोग घायल हुए। साध्वी प्रज्ञा पर आरोप लगाया गया कि जिस बाइक की मदद से बम धमाके को अंजाम दिया गया है, वो उनके नाम पर रजिस्टर्ड है।

इस धमाके के कुछ ही दिनों बाद 8 अक्टूबर 2008 को महाराष्ट्र ATS ने साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार कर लिया था। हालाँकि, तब तक वो साध्वी बन चुकी थीं और वाहन उनके कब्जे में नहीं था। यह बाइक रामजी कलसांगरा के पास थी। कोर्ट में कई गवाहों ने इस बात को माना है।

एक अहम बात यह भी थी कि साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी बेशक 8 अक्टूबर को हो गई थी लेकिन ATS ने बाइक की जानकारी जुटाने के लिए रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर पहली बार आवेदन 17 अक्टूबर को दिया था यानी गिरफ्तारी के 9 दिन बाद और यह बात तब सूरत के आरटीओ रहे जीतेंद्र सिंह वाघेला ने अपनी गवाही में मानी थी।

कोर्ट में यह भी पता चला कि इंजन नंबर के दो हिस्से (श्रृंखला संख्या और क्रमांक संख्या) होते हैं और इसमें पहली संख्या पूरी तरह नहीं मिली थीं। सिर्फ अनुमान के आधार पर ही यह मान लिया गया था कि यह वाहन साध्वी प्रज्ञा के नाम पर है।

साध्वी प्रज्ञा को कैसे किया गया प्रताड़ित

साध्वी प्रज्ञा ने गिरफ्तारी के बाद उनके साथ हुए उत्पीड़न की कहानी सुनाई थी। उन्होंने बताया था कि उन्हें एक बेल्ट से बुरी तरह पीटा जाता था। इसकी मार से पूरा नर्वस सिस्टम ढीला पड़ जाता था। साध्वी प्रज्ञा को सोने नहीं दिया जाता था और उन्हें गंदी-गंदी गालियाँ तक दी जाती थीं। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें उल्टा लटकाकर पीटा जाता था।

साध्वी प्रज्ञा ने बताया था कि उन्हें 24 दिनों तक भूखा रखा गया था, उनको बिजली के झटके दिए जाते थे। गाली-गलौज आम बात थी। उनको पुरुष कैदियों के साथ रखकर पोर्न वीडियो देखने पर मजबूर किया जाता था।

इस केस में बरी किए गए 7 आरोपियों में शामिल मेजर रमेश उपाध्याय ने 2017 में बताया था कि साध्वी प्रज्ञा को उनकी मौजूदगी में पोर्नोग्राफिक ऑडियो सुनाया गया था। उन्होंने बताया था कि हमें बराबर के कमरों से साध्वी प्रज्ञा के चीखने की आवाजे सुनाई देती थीं और इस तरह की प्रताड़ना को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता है।

कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा को लेकर क्या कहा?

बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, NIA अदालत ने माना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मोटरसाइकिल ठाकुर की थी या विस्फोट स्थल पर मिली मोटरसाइकल पर सिर्फ उनका ही नियंत्रण था।

कोर्ट ने कहा कि वाहन का चेसिस और इंजन नंबर पूरी तरह बरामद नहीं किया जा सका और अगर यह मान भी लिया जाए कि यह वाहन वही था, तो भी घटना से दो साल पहले तक प्रज्ञा के पास वाहन का कब्जा नहीं था।

अदालत ने कहा, “आरोप-पत्रों और गवाही से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि संन्यास लेने के बाद ए-1 के पास यह वाहन नहीं था। यह वाहन केवल एए-1 (रामजी कलसांगरा) के कब्जे में था। ATS और NIA ने खुद दावा किया कि वाहन शुरू से ही रामजी कलसांगरा के कब्जे में था।”

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि मोटरसाइकल पर बम बाँधे जाने का दावा केवल ‘अनुमान’ था और वाहन को हुए नुकसान के आधार पर संभावना है कि बम मोटरसाइकिल पर बाँधे जाने के बजाय उसके बाहर रखा या लटकाया गया था।

अदालत ने कहा कि NIA ने पूरक आरोपपत्र में ठाकुर को दोषमुक्त कर दिया था और निष्कर्ष निकाला था कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता। प्रज्ञा पर इंदौर और उज्जैन में धमाके के षड्यंत्र से जुड़ी कथित बैठकों में शामिल होने का भी आरोप था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

यानी कोर्ट ने साफ किया कि साध्वी प्रज्ञा को लेकर जो कथित सबूत इकट्ठा किए गए थे, उनमें कोई दम नहीं था, खुद NIA भी ATS के सबूतों को नहीं मान सकी था। ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या ATS जल्दबाजी में जाँच कर रही थी या उस पर कोई राजनीतिक दबाव था, जिसके चलते ऐसे फैसले लिए गए।

कर्नल पुरोहित के घर नहीं मिला RDX, फिर भी बनाए गए आरोपित

महाराष्ट्र के पुणे में जन्मे पुरोहित के पिता बैंक ऑफिसर थे और उन्हें 1994 में मराठा लाइट इन्फेंट्री में जगह मिली थी। बाद में उन्हें मिलिट्री इंटेलीजेंस में भेजा गया था। मालेगाँव धमाके के बाद नवंबर 2008 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

कर्नल पुरोहित पर मालेगाँव विस्फोट के लिए RDX की खरीद और भंडारण का आरोप था। साथ ही उन पर पचमढ़ी, उज्जैन, इंदौर और नासिक फार्म हाउस जैसे स्थानों पर हुईं षड्यंत्रकारी बैठकों में भाग लेने का भी आरोप था।

पुरोहित पर आरोप लगाया गया था कि वह अपनी पोस्टिंग पूरी करने के बाद कश्मीर से लगभग 60 किलोग्राम RDX अपने साथ लाए और उसे अपने घर में रखा हुआ था। आरोप था कि इसी RDX में से कुछ का इस्तेमाल बम विस्फोट के लिए हुआ था।

साध्वी प्रज्ञा और अन्य आरोपियों की तरह कर्नल पुरोहित को भी जेल में खूब टॉर्चर सहना पड़ा, उन पर जुर्म कबूल करने के लिए दबाव बनाया गया। उन्होंने बताया था कि मारपीट के दौरान उनका घुटना तक तोड़ दिया गया था और अवैध तरीके से उनसे पूछताछ की गई।

कोर्ट ने कर्नल पुरोहित पर लगे आरोपों पर क्या कहा?

जब कर्नल पुरोहित पर लगे आरोपों को साबित करने की बारी आई तो कोर्ट में एजेंसियाँ उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं साबित कर पाईं। पुरोहित पर आरोप लगाया गया कि वे कश्मीर से RDX चुराकर लाए हैं लेकिन कोर्ट में यह तक साबित नहीं हो पाया कि वे कश्मीर में तैनात भी थे।

कोर्ट ने कहा, “अभियोजन पक्ष के अनुसार, ए-9 (कर्नल पुरोहित) ने कश्मीर से RDX लाकर अपने घर में रखा था और सह-अभियुक्तों की मदद से ए-11 (सुधाकर चतुर्वेदी) के घर में IED तैयार किया था। आरडीएक्स से लैस कथित मोटरसाइकिल के स्रोत, परिवहन, भंडारण, फिटिंग, रेकी और पार्किंग के बारे में केवल आरोपों के अलावा कोई सबूत नहीं है।”

रिपोर्ट्स के मुताबिक, कर्नल पुरोहित के घर के तलाशी के दौरान पहली बार 12 नवंबर 2008 को महाराष्ट्र ATS को केवल दो CD मिलीं। वहीं, 26 नवंबर 2008 को दूसरी बार तलाशी के दौरान पुणे की फॉरेंसिक साइंस लैब (FSL) की टीम को भी जाँच के लिए बुलाया गया था जिसने वहाँ से सैंपल लेकर उनकी लैब में जाँच की।

कोर्ट के आदेश के मुताबिक, “कर्नल पुरोहित के घर से मिलने सैंपल को लेकर रासायनिक विश्लेषक ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है और RDX की संभावना खारिज की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘जाँच में कोई विस्फोटक या विस्फोटक अवशेष नहीं मिले। डेटोनेटर, डेटोनेटर के लिए प्रयुक्त तार जैसे कोई संदिग्ध उपकरण नहीं मिले। IED बनाने में प्रयुक्त घड़ियाँ आदि भी नहीं मिलीं’।”

कोर्ट ने कहा, “RDX के परिवहन के लिए कई जाँच और प्रतिबंध हैं। किसी ने गवाही नहीं दी है कि उन्होंने कर्नल पुरोहित को कश्मीर में तैनाती के दौरान देखा था या उन्होंने RDX खरीदा था या वह RDX लेकर आए। साक्ष्य के अभाव में, मैं यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि कर्नल पुरोहित कश्मीर से कोई आरडीएक्स लाए।” इसके अलावा पुरोहित द्वारा षड्यंत्रकारी बैठकों में भाग लेने के आरोप भी साबित नहीं हुए।

कुल मिलाकर देखा जाए तो जिन दो शुरुआती सबूतों के आधार पर साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को गिरफ्तार किया गया। उन्हें जुर्म कबूल करने के लिए प्रताड़ित किया गया और वर्षों तक जेल में रखा गया वो दोनों ही कोर्ट में साबित नहीं हो पाए। दोनों ने जेल में लंबा समय बिताया है और मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले संगठन और लोग इस पर खामोश हैं।

इन दोनों की गिरफ्तारी कोई राजनीतिक प्रतिशोध थी या ये दोनों उस बड़े खेल का मोहरा थे जिसमें इस देश की बहुसंख्यक हिंदू आबादी को आतंकवादी साबित करने की साजिश रची जा रही था। यह अगर भविष्य में कोई जाँच होगी तो शायद सामने आ पाए।

Source link

Search

Categories

Recent Posts

Tags

Gallery