sudarshanvahini.com

‘नेपो किड्स’ के ऐशो-आराम VS गरीब आम जनता: समझें नेपाल में क्यों ओली सरकार से नहीं मैच हुई GenZ की वाइब, कैसे सोशल मीडिया छोड़ सड़कों पर किया प्रदर्शन


नेपाल का युवा

नेपाल में लगातार कई दिनों से भड़की हिंसक झड़पों के बाद हालात काबू से बाहर हो गए हैं। स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि गुरुवार (11 सितम्बर 2025) को पूरे देश में कर्फ्यू और कड़ी पाबंदियाँ लगा दी गईं। छोटे से हिमालयी देश को हिलाकर रख देने वाले इन प्रदर्शनों का नेतृत्व मुख्यतः Gen-Z (नई पीढ़ी) कर रही है।

इन प्रदर्शनों में अब तक 31 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 600 से अधिक लोग घायल हुए हैं। राजधानी काठमांडू में सेना ने नागरिकों से घरों के भीतर रहने की अपील की है। बुधवार (11 सितम्बर 2025) की देर रात बड़ी संख्या में सैनिकों को सड़कों पर उतारकर हालात पर काबू पाने की कोशिश की गई।

हफ्ते की शुरुआत में ही प्रदर्शनकारियों ने सरकारी दफ्तरों और इमारतों को आग के हवाले कर दिया था। इसके बाद राजनीतिक संकट इतना गहराया कि सरकार ही धराशायी हो गई। इस अफरातफरी में देशभर की 77 जिलों की जेलों से करीब 13,000 कैदियों के फरार होने की भी पुष्टि हुई है।

बुधवार (10 सितम्बर 2025) को प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधियों ने काठमांडू स्थित सेना मुख्यालय में जाकर सैन्य अधिकारियों से बातचीत की। चर्चा का विषय यह था कि अंतरिम सरकार का नेतृत्व किसके हाथ में होना चाहिए।

इस दौरान आंदोलन के भीतर से कुछ आवाजें नेपाल की पूर्व मुख्य जज सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए जाने के पक्ष में उठीं। उधर, काठमांडू के युवा मेयर बालेन शाह, जो सिर्फ 35 साल के हैं और इंजीनियर व राजनेता बनने से पहले एक रैपर भी रह चुके हैं, उन्होंने आंदोलनकारियों से शांति बनाए रखने और अंतरिम प्रशासन की घोषणा तक संयम बरतने की अपील की है।

सोशल मीडिया पर प्रतिबंध से लेकर सड़क पर विरोध प्रदर्शन तक

नेपाल में सोमवार (8 सितम्बर 2025) को सोशल मीडिया पर अचानक लगाए गए बैन के बाद ही हालात बेकाबू होने शुरू हो गए। सरकार के इस फैसले से नाराज युवाओं ने सड़कों पर उतरकर जोरदार प्रदर्शन किया। पुलिस ने भीड़ पर गोलियाँ चलाईं, जिससे गुस्सा और भड़क उठा।

जिसके बाद मंगलवार (9 सितम्बर 2025) तक आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया। हजारों युवाओं ने सरकारी दफ्तरों पर हमला कर दिया और कई इमारतों में आग लगा दी। दरअसल, सरकार ने यह कदम उस विवादित कानून के तहत उठाया, जिसमें तय समय-सीमा तक फेसबुक, यूट्यूब और ‘X’ समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के रजिस्ट्रेशन न होने पर कार्रवाई का प्रावधान किया गया था।

सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी बनाकर नफरत फैलाने, अफवाहें गढ़ने, धोखाधड़ी करने और साइबर अपराधों को अंजाम देने वालों पर लगाम कसने के लिए यह आदेश दिया गया।

नेपाल दूरसंचार प्राधिकरण को निर्देश दिया गया कि जो प्लेटफॉर्म्स रजिस्टर नहीं हुए हैं, उन्हें बंद कर दिया जाए। हालाँकि, नोटिस में यह साफ नहीं किया गया कि किन प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई की जाएगी।

सरकार ने इतना जरूर कहा कि आदेश मानने के बाद सेवाएँ बहाल कर दी जाएँगी। अधिकारियों का दावा है कि यह कदम केवल साइबर अपराध रोकने के लिए उठाया गया है। लेकिन युवाओं के लिए यह सीधे उनकी आवाज पर हमला साबित हुआ। यही वजह है कि आंदोलन धीरे-धीरे भड़क कर पूरे देश में आग की तरह फैल गया।

#NepoKids का बढ़ता चलन

हालाँकि नेपाल में भड़के इस आंदोलन की जड़ें सिर्फ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं हैं। इसकी शुरुआत तो हफ़्तों पहले ऑनलाइन ही हो चुकी थी। पिछले कुछ दिनों से इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर लगातार वीडियो और पोस्ट वायरल हो रहे थे, जिन पर हैशटैग ‘#NepoKids’ ट्रेंड कर रहा था।

इन वीडियो में नेपाल के सीनियर नेताओं के बेटे-बेटियाँ अपने महँगे Gucci हैंडबैग, प्राइवेट जेट और विदेशी विश्वविद्यालयों की डिग्रियाँ दिखाते नजर आए। यह चमक-धमक उस नेपाल से बिलकुल अलग तस्वीर पेश कर रही थी, जहाँ आम गरीब परिवार रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

एक पोस्ट में तो साफ लिखा था – “नेपो-बच्चे आलीशान जिंदगी जीते हैं, वो भी उस पैसे पर जो उनके भ्रष्ट माता-पिता जनता से लूटते हैं, वही पैसा जो प्रवासी मजदूरों की पसीने से भीगी मेहनत से कमाकर नेपाल भेजा जाता है।”

कई युवाओं के लिए यह ट्रेंड महज मजाक नहीं था, बल्कि एक आईना था जिसने नेपाल की राजनीतिक जमात के बच्चों की अय्याशी को उजागर कर दिया। जहाँ सत्ता परिवारों के वारिस आराम से विदेशों में पढ़ाई और ऐशो-आराम में डूबे हैं, वहीं आम नेपाली युवा बेरोजगारी और अनिश्चित भविष्य से जूझ रहे हैं।

सोशल मीडिया पर भड़का यह गुस्सा धीरे-धीरे सड़कों पर फूट पड़ा और देखते ही देखते यह आंदोलन नेपाल के इतिहास के सबसे बड़े जन-आंदोलनों में बदल गया।

दो दुनिया, एक देश

एक तरफ नेपाल के असरदार नेताओं के बच्चे विदेशों में बसे हैं, बिजनेस क्लास में उड़ान भरते हैं, ऊँची-ऊँची इमारतों में रहते हैं और ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जिसका खर्च असल में नेपाल की जनता की गाढ़ी कमाई से उठाया जा रहा है।

दूसरी तरफ करोड़ों नेपाली नागरिक बुनियादी जरूरतों के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, सस्ती शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ और सुरक्षित रोज़गार तक उनके लिए सपना बन गया है। हालात इतने खराब हैं कि युवा अपने घर-परिवार का पेट पालने के लिए विदेशों में मज़दूरी करने को मजबूर हैं।

इंस्टाग्राम पोस्ट का स्क्रीनशॉट

सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे वीडियो वायरल हुए जिन पर हैशटैग #NepoKid, #NepoBabies, #PoliticiansNepoBabyNepal चलने लगे। इनमें सीधा सवाल उठाया गया, क्या नेताओं के बच्चों की सफलता उनकी मेहनत का नतीजा है या फिर परिवार की मलाई खाने का? कई जगहों से तो सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन की अपीलें भी सामने आईं।

अब यह खाई इतनी चौड़ी हो चुकी है कि उसे नजरअंदाज करना नामुमकिन हो गया है। युवाओं के लिए यह ईर्ष्या का नहीं, बल्कि न्याय और अस्तित्व का सवाल बन गया है। उनका सीधा सवाल है, आख़िर कब तक वे नेताओं के बच्चों को ऐशो-आराम की जिंदगी जीते देखते रहेंगे जबकि खुद न्यूनतम जरूरतों के लिए संघर्ष करते रहेंगे?

एक पीढ़ी जो चुप रहने से इनकार करती है

यह गुस्सा अचानक नहीं फूटा। नेपाल का युवा सालों से उपेक्षा झेल रहा है। चाहे पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सरकार रही हो या उसके पहले की, किसी ने भी जनता से संवाद बनाने या अपने वादे पूरे करने की जहमत नहीं उठाई। जनता की चिंताओं को बार-बार दरकिनार किया गया और सुधारों के नाम पर किए गए वादे कभी जमीनी हकीकत नहीं बने।

लेकिन इस बार सरकार ने जब सोशल मीडिया पर बैन लगाकर आवाज दबाने की कोशिश की तो दाँव उल्टा पड़ गया। पहले से ही भ्रष्टाचार और परिवारवाद से नाराज Gen-Z ने साफ कर दिया, अब बहुत हो चुका।

युवाओं ने सिर्फ बैन का विरोध नहीं किया, बल्कि इसे अपने आंदोलन का झंडा बना दिया, एक ऐसा आंदोलन जो भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सत्ता के रसूख़दार वर्ग की अय्याशियों को जड़ से खत्म करने की माँग कर रहा है।

एक विरोध प्रदर्शन जिसने रातों रात नेपाल को बदल दिया

हैशटैग #NepoKids अब नेपाल के इस जनविद्रोह का चेहरा बन चुका है। जो बहस ऑनलाइन शुरू हुई थी, वही आज राजनीतिक भूकंप में बदल गई है। प्रदर्शन इतने प्रचंड हुए कि प्रधानमंत्री समेत कई मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा। यह साफ बताता है कि जनता का गुस्सा किस कदर फूट पड़ा है।

मौतों का आँकड़ा लगातार बढ़ रहा है और हजारों लोग घायल हो चुके हैं। राजधानी काठमांडू में सेना की मौजूदगी यह साबित करती है कि हालात कितने गंभीर हैं। लेकिन एक सच यह भी है कि इस आंदोलन ने नेपाल की राजनीति की तस्वीर हमेशा के लिए बदल दी है।

डिजिटल युग में यह साबित हो गया कि एक हैशटैग सरकार गिरा सकता है और जिस पीढ़ी को कभी ‘बहुत छोटी’ कहकर नजरअंदाज़ किया जाता था, वही आज एक न्यायपूर्ण देश की लड़ाई की अगुवाई कर रही है।

अगर इन प्रदर्शनों की गहराई में जाएँ तो एक साफ सच्चाई सामने आती है, नेपाल के युवा केवल सोशल मीडिया बैन का जवाब नहीं दे रहे थे। वे उन दशकों की नाराज़गी का हिसाब माँग रहे थे, जिसमें भ्रष्टाचार थमा नहीं, नेता जनता के पैसों को अपनी जागीर समझकर लूटते रहे और सियासी घरानों के बच्चे विदेशों में ऐशो-आराम की जिंदगी दिखाते रहे, जबकि आम नेपाली अपने ही देश में बुनियादी जरूरतों के लिए तरसते रहे।

आख़िरकार, यह गहरी खाई गुस्से के विस्फोट में बदल गई। अनसुने रहने से तंग आकर GenZ सड़कों पर उतर आया, सिर्फ बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, परिवारवाद और सत्ता के रसूख़दारों की अय्याशी को खत्म करने की माँग के लिए।

(मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में श्रीति सागर ने लिखी है, इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है)



Source link

Exit mobile version