उमर खालिद, शरजील इमाम

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार (3 सितंबर 2025) को शरजील इमाम और उमर खालिद जैसे लोगों की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इन दंगों की साजिश पहले से बनाई गई थी और शरजील इमाम व उमर खालिद जैसे लोग इसके मुख्य षड़यंत्रकारी (Intellectual Architects) थे। कोर्ट ने आरोपितों की उस दलील को भी नहीं माना कि बिना सुनवाई के वो लोग लंबे समय से जेल में हैं, ऐसे में उन्हें जमानत दी जाए।

स्वाभाविक तरीके से चलनी चाहिए सुनवाई, सही दिशा में आगे बढ़ रहा केस

उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य को दिल्ली दंगों के बड़े षड्यंत्र मामले में जमानत न देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल को अपने स्वाभाविक तरीके से आगे बढ़ना चाहिए। जल्दबाजी में ट्रायल करना न तो आरोपितों के हक में होगा और न ही सरकार के। ये लोग पाँच साल से ज्यादा समय से गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत जेल में बंद हैं।

जस्टिस शैलेंद्र कौर और जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने कहा, “ट्रायल की गति स्वाभाविक रूप से आगे बढ़ेगी। जल्दबाजी में ट्रायल दोनों पक्षों के अधिकारों के लिए नुकसानदायक होगा।”

कोर्ट को बताया गया कि मामला अभी चार्ज तय करने के लिए तर्क सुने जाने के चरण में है, यानी केस आगे बढ़ रहा है। उमर खालिद और शरजील इमाम के बारे में कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में उनकी भूमिका इस षड्यंत्र में ‘गंभीर’ लगती है, क्योंकि उन्होंने सांप्रदायिक आधार पर भड़काऊ भाषण दिए, जिससे मुस्लिम समुदाय के लोगों को उकसाकर भीड़ जुटाने की कोशिश की।

ये आम दंगा नहीं, बल्कि देश को खतरे में डालने वाली साजिश

दिल्ली हाई कोर्ट ने देखा कि दिल्ली पुलिस ने इस कथित गहरे षड्यंत्र को उजागर करने की पूरी कोशिश की है। इसका सबूत ये है कि चार्जशीट 3,000 पेज से ज्यादा की है और 30,000 पेज का इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी है। कोर्ट ने कहा, “सरकार ने विस्तार से जाँच की, जिसके बाद कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और चार अतिरिक्त चार्जशीट दाखिल की गईं। कई आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई और 58 गवाहों के बयान, जिनमें कुछ संरक्षित गवाह भी हैं, मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए।”

कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, खासकर सॉलिसिटर जनरल और विशेष लोक अभियोजक के इस दावे को कि ये कोई साधारण विरोध या दंगा नहीं, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालने वाला सोचा-समझा षड्यंत्र है।

आरोपित खुद ही मुकदमे की सुनवाई में देरी के जिम्मेदार

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि दिल्ली दंगों के बड़े षड्यंत्र मामले में आरोपित खुद ही अलग-अलग समय पर मुकदमे में देरी के लिए जिम्मेदार हैं, न कि दिल्ली पुलिस या ट्रायल कोर्ट। जस्टिस सुब्रह्मण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने कहा कि जमानत पर बाहर आए आरोपित आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल चार्ज पर बहस में देरी कर रहे हैं, जिसका नुकसान जेल में बंद बाकी आरोपितों को हो रहा है।

कोर्ट ने कहा, “बेशक केस जल्दी सुनवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का एक हिस्सा है। लेकिन अगर आरोपित खुद ही सुनवाई में बार-बार देरी करता है और फिर जमानत माँगता है, तो ये ठीक नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो कानून जो सुनवाई में देरी के आधार पर जमानत देने को सीमित करता है, उसे आसानी से तोड़ा जा सकता है। एक तरफ सुनवाई में देरी करो और दूसरी तरफ जमानत के लिए अर्जी डालो।”

कोर्ट ने उमर-शरजील के भाषणों की टाइमिंग पर भी दिया ध्यान

दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि शरजील और उमर ने अपने भाषणों के जरिए मुस्लिम समुदाय को ये बात मनवाने की कोशिश की कि CAA और NRC उनके खिलाफ हैं। ये भाषण ऐसे वक्त दिए गए, जब देश में तनाव का माहौल था। सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि ये भाषण सिर्फ राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि दंगे भड़काने की साजिश का हिस्सा थे। कोर्ट ने भी माना कि इन भाषणों की टाइमिंग गलत नहीं थी – ये उसी वक्त आए जब साजिश को अंजाम देने की तैयारी चल रही थी।

दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले की कॉपी का अंश

भाषणों का असर साफ दिखा। कोर्ट ने कहा कि ये भाषण पर्चों और मीटिंग्स के जरिए लोगों तक पहुँचे, जिससे भीड़ जुटाई गई और दंगों की योजना बनी।

हालाँकि शरजील जनवरी 2020 से हिरासत में था और उमर दंगा वाले दिन मौजूद नहीं था, लेकिन कोर्ट ने साफ किया कि उनकी गैरमौजूदगी मायने नहीं रखती। कोर्ट का कहना था कि अगर कोई पहले से योजना बनाए, लोगों को उकसाए और ग्रुप तैयार करे, तो उसकी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। इनके भाषणों ने माहौल को इतना गरम किया कि दंगे होना तय हो गए।

इसके अलावा दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इन भाषणों को अलग-अलग नहीं, बल्कि पूरे घटनाक्रम के साथ जोड़कर देखना चाहिए। अभियोजन पक्ष का दावा है कि ये भाषण साजिश, संगठन, और व्यवस्था को ठप करने की कोशिशों का हिस्सा थे। साफ है कि ये सिर्फ राजनीतिक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि गंभीर अपराध की ओर इशारा करते हैं। UAPA जैसे गंभीर कानून के तहत ये मामला अब और पेचीदा हो गया है।

हालाँकि कोर्ट ने अभी अंतिम फैसला नहीं दिया, लेकिन प्रथम दृष्टया (prima facie) इनके भाषणों को साजिश से जोड़ा गया है। बचाव पक्ष का तर्क था कि हिरासत या गैरमौजूदगी से इनकी भूमिका कम नहीं होती, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले की कॉपी का अंश

गौरतलब है कि दिल्ली में 2020 की फरवरी में हिंदू विरोधी दंगे भड़क उठे थे। ये दंगे CAA और NRC को लेकर शुरू हुए विवाद के बाद भड़के। शरजील इमाम और उमर खालिद जैसे लोग इन दंगों से पहले कई सभाओं में शामिल हुए और भाषण दिए। आरोप है कि उनके उकसावे से दंगे हुए। इस मामले में UAPA के तहत कार्रवाई हुई और अब कोर्ट इसकी जाँच कर रही है। फिलहाल आरोपितों की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है।

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