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दिल्ली की प्रदूषित हवा पर बरसेगी राहत की बारिश, IIT कानपुर के सहयोग से पहले आर्टिफिशियल रेन की तैयारी पूरी: जानें कैसे सूखे और ठंड में बरसेंगे बदरा


रेखा गुप्ता कृत्रिम वर्षा

दिल्ली की प्रदूषित हवा से राहत दिलाने के लिए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। उनकी पहल पर राजधानी में पहली बार आर्टिफिशियल बारिश (Artificial Rain) कराने की तैयारी पूरी हो चुकी है। मौसम विभाग के मुताबिक, 28 से 30 अक्टूबर के बीच दिल्ली-एनसीआर में पर्याप्त बादल छाने की संभावना है और 29 अक्तूबर 2025 को दिल्ली वासी पहली आर्टिफिशियल बारिश का अनुभव करेंगे।

दिलचस्प बात यह है कि ऐसा प्रयास पहले आम आदमी पार्टी सरकार ने भी करने की घोषणा की थी, लेकिन तकनीकी और मंजूरी के कारण वह इसे पूरा नहीं कर सकी थी। अब रेखा गुप्ता सरकार ने उस अधूरे वादे को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत ₹3.21 करोड़ है, जिसे IIT कानपुर, आईएमडी (भारतीय मौसम विभाग) और दिल्ली सरकार मिलकर चला रहे हैं।

क्यों जरूरत पड़ी कृत्रिम बारिश की?

दिल्ली में हवा की गुणवत्ता हर साल गंभीर रूप से गिरती है और राजधानी में प्रदूषण बढ़ जाता है। इस बार भी सड़कों पर चल रही गाड़ियों के धुआँ, औद्योगिक फैक्ट्रियों और निर्माण कार्यों के कारण हालत और खराब हो गई है। इस वजह से साँस लेना मुश्किल हो गया है, खासकर बुजुर्गों, बच्चों और साँस से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए।

बारिश चाहे प्राकृतिक हो या आर्टिफिशियल, हवा में मौजूद PM2.5 और PM10 जैसे प्रदूषक कणों को नीचे गिरा देती है। यही वजह है कि दिल्ली सरकार ने क्लाउड सीडिंग तकनीक से बारिश कराने का फैसला किया है ताकि लोगों को कुछ दिनों के लिए राहत मिल सके।

वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्टिफिशियल बारिश के बाद प्रदूषण का स्तर लगभग 7 से 10 दिनों तक काफी हद तक कम हो जाता है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, “यह सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि दिल्ली की साँसों को राहत देने का मिशन है।”

कैसे होती है कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग प्रक्रिया)?

क्लाउड सीडिंग एक ऐसी वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें बादलों के अंदर कुछ विशेष रासायनिक कण छोड़े जाते हैं ताकि उनमें मौजूद नमी एक-दूसरे से जुड़कर पानी की बूँदों में बदल जाए और बारिश हो सके। यह प्रक्रिया प्राकृतिक बारिश की तरह ही होती है, फर्क बस इतना है कि इसे तकनीकी रूप से तेज किया जाता है।

इसमें इस्तेमाल होने वाले मुख्य रसायन हैं-

इन रसायनों को हवाई जहाज, ड्रोन या रॉकेट की मदद से बादलों में छोड़ा जाता है। दिल्ली के इस प्रोजेक्ट में सेसना विमान का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मेरठ, खेकड़ा, बुराड़ी, सादकपुर, भोजपुर और अलीगढ़ के ऊपर से उड़ान भरेगा।

प्रत्येक विमान में 8 से 10 केमिकल पैकेट होंगे जिन्हें बटन दबाकर छोड़ा जाएगा। एक उड़ान लगभग 90 मिनट की होगी। हालांकि यह तभी संभव है जब आसमान में पर्याप्त बादल मौजूद हों। बिना नमी के बारिश कराना संभव नहीं होता।

दुनिया में पहली बार कब और कहाँ हुई थी आर्टिफिशियल बारिश?

आर्टिफिशियल बारिश का इतिहास करीब 80 साल पुराना है। सबसे पहले 13 नवंबर 1946 को अमेरिका में वैज्ञानिक डॉ विंसेंट शेफर्ड ने यह कारनामा किया था। उन्होंने एक प्लेन से ड्राई आइस बादलों पर फेंकी, जिससे भारी बर्फबारी और बारिश शुरू हो गई। इसके बाद डॉ बेरहार्ड फॉनगुड ने सिल्वर आयोडाइड का उपयोग करके क्लाउड सीडिंग को और विकसित किया।

आज के समय में यह तकनीक कई देशों में सफलतापूर्वक अपनाई जा चुकी है। जहाँ चीन ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक के दौरान मौसम को नियंत्रित करने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया था, ताकि खेलों के दौरान बारिश न हो और आयोजन सुचारू रूप से संपन्न हो सके।

वहीं, दुबई में हर साल गर्मी के मौसम में आर्टिफिशियल बारिश कराई जाती है, ताकि तापमान में कमी लाई जा सके और सूखे की स्थिति से राहत मिले। फ्रांस में भी इस तकनीक का उपयोग निजी स्तर पर किया जाता है।

वहाँ कई कंपनियाँ शादियों या बड़े आयोजनों के दौरान बारिश रोकने के लिए क्लाउड सीडिंग करवाती हैं। इसकी लागत करीब 1 करोड़ रुपए तक होती है, जो इस सेवा की बढ़ती लोकप्रियता और उपयोगिता को दर्शाता है।

भारत में कब और कहाँ हुई थी पहली कृत्रिम बारिश?

भारत में पहली बार क्लाउड सीडिंग का प्रयोग 1983 और 1987 में किया गया था। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने 1993–94 में सूखे से राहत पाने के लिए इसका इस्तेमाल किया। कर्नाटक सरकार ने 2003 में और महाराष्ट्र सरकार ने 2009 और 2015 में यह प्रयोग किया।

भारत में इस तकनीक पर सबसे ज्यादा शोध IIT कानपुर और CAIPEEX (Cloud Aerosol Interaction and Precipitation Enhancement Experiment) प्रोजेक्ट के तहत हुआ है। यही संस्थान अब दिल्ली की आर्टिफिशियल बारिश के प्रोजेक्ट में भी सहयोग कर रहा है।

कितना खर्च आता है आर्टिफिशियल बारिश पर?

क्लाउड सीडिंग कोई सस्ता प्रोजेक्ट नहीं है। एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बारिश कराने का औसत खर्च करीब 1 लाख रुपए होता है। अगर पूरी दिल्ली में बारिश कराई जाए तो खर्च 15 करोड़ रुपए से अधिक हो सकता है।

वर्तमान में दिल्ली सरकार के इस प्रोजेक्ट पर 3.21 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसमें 5 ट्रायल्स किए जाएँगे, हर ट्रायल की लागत 55 लाख रुपए से 1.5 करोड़ रुपए के बीच होगी। इसके अलावा 66 लाख रुपए शुरुआती सेटअप पर खर्च हुए हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि कृत्रिम बारिश के बाद हवा में मौजूद धूल, धुआँ और प्रदूषक नीचे बैठ जाते हैं। इससे PM2.5 और PM10 जैसे खतरनाक कणों की मात्रा घट जाती है। हवा साफ हो जाती है और साँस लेने में राहत मिलती है।

हालाँकि यह राहत अस्थाई होती है, क्योंकि प्रदूषण के स्रोत जैसे गाड़ियाँ, फैक्ट्रियाँ और निर्माण कार्य फिर से हवा को दूषित करने लगते हैं। फिर भी यह एक वैज्ञानिक और त्वरित समाधान है जो लोगों को कुछ समय के लिए राहत दे सकता है।

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