वर्षों से लटकी परियोजनाओं की पीएम मोदी ने ली सुध
पीएम मोदी ने इस परियोजना समेत ऐसे लटके हुए दूसरे कई परियोजनाओँ को लेकर समीक्षा बैठक की। पीएम ने कहा कि परियोजनाओं की देरी से दोहरा नुकसान होता है। एक तो लागत बढ़ जाती है, वहीं दूसरी ओर लोग इतने समय तक लाभ से वंचित रह जाते हैं। इसलिए केन्द्र और राज्य के अधिकारी दोनों को मिलकर ऐसी परियोजना को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए और लोगों को फायदा पहुँचाने पर काम करना चाहिए।
क्या है उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना?
उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना एक अंतरराज्यीय सिंचाई परियोजना है जिससे बिहार और झारखंड जुड़े हुए हैं। इसमें झारखंड के लातेहार के कुटकू गाँव से होकर बहने वाली उत्तरी कोयल नदी पर एक बाँध बनाने की योजना है। बाँध से 92 किलोमीटर दूर झारखंड के पलामू जिले के मोहम्मदगंज में बैराज बनेगा और फिर बैराज से दो नहरें निकलेंगी। दाहिनी मुख्य नहर (आरएमसी) और बैराज से बाईं मुख्य नहर (एलएमसी)
इस परियोजना की शुरुआत 1972 में किया गया था। उस वक्त बिहार और झारखंड अलग नहीं हुए थे। परियोजना को 1993 में वन विभाग ने रोक लगा दी थी क्योंकि बाँध में पानी जमा होने पर झारखंड के बेतला नेशनल पार्क और पलामू टाइगर रिजर्व को खतरा हो सकता था। काम रुकने के बाद यह परियोजना 71,720 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए सालाना जल दे रही थी।
2000 में जब बिहार से झारखंड अलग हुआ तो परियोजना के दोनों बैराज और बाँध झारखंड में आ गए। दो नहरों में से एक नहर झारखंड में रह गया जबकि दूसरा नहर बिहार और झारखंड दोनों में चला गया। बिहार में ये 79.08 किलोमीटर तक फैला हुआ है।
2017 में मोदी सरकार ने की थी पहल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के बाकी बचे कामों के लिए संशोधित 2,430.76 करोड़ रुपए की लागत से पूरा करने के लिए परियोजना को मंजूरी दी। इसमें केन्द्र का हिस्सा 1,836.41 करोड़ रुपए है।
अगस्त 2017 में बचे काम के लिए पहले 1,622.27 करोड़ रुपए को मंजूरी दी गई थी। इसमें केन्द्र का हिस्सा 1,378.60 करोड़ रुपये था। लेकिन अब इसे करीब 800 करोड़ रुपए बढ़ा दिया गया है।