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तीन तलाक ‘सही’, लेकिन ‘खुला’ पर बिलबिला उठते हैं इस्लामी कट्टरपंथी: मुस्लिम महिला की माँग को तेलंगाना HC ने माना, कुरान के हवाले से कहा- शौहर की मर्जी के बगैर भी बीवी हो सकती है अलग


मुस्लिम महिला खुला

मुस्लिम महिला को ‘खुला’ यानी तलाक माँगने का अधिकार बिल्कुल सही है। इसके लिए शौहर की सहमति नहीं चाहिए। यह टिप्पणी तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान की है। कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर महिला अपने शौहर के साथ नहीं रहना चाहती है, तब महिला को अधिकार है कि वह ‘खुला’ से तलाक ले सकती है।

कोर्ट ने आगे कहा कि बीवी के लिए विवाह विच्छेद को अंतिम रूप देने के लिए मुफ्ती या दार-उल-कजा से खुलनामा (विवाह विच्छेद का प्रमाण पत्र) लेना जरूरी नहीं है। मुफ्ती की राय केवल सलाह के लिए होती है। इसके साथ कोर्ट ने साफ किया कि अगर पत्नी खुला माँगती है और केस अदालत तक पहुँचता है। ऐसे मामले में खुला तत्काल रूप से प्रभावी हो जाता है। बेशक ही मामला दोनों पक्षों का निजी क्यों न हो।

जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस बीआर मधुसूदन राव की बेंच ने कहा कि मुस्लिम बीवी का ‘खुला’ माँगने का अधिकार सही है। इसके लिए पति की स्वीकृति या कारण बताने की जरूरत नहीं है। इसलिए कोर्ट की भूमिका केवल निकाह को खत्म कराने के लिए मुहर लगाने तक ही सीमित है।

बेंच ने कहा, “कोर्ट की एकमात्र भूमिका निकाह समाप्ति पर न्यायिक मुहर लगाना है, जो कि खुला के दौरान दोनो पक्षों के लिए तनावपूर्ण हो जाती है…पारिवारिक न्यायालय को केवल यह पता लगाना है कि दोनों पक्षों के बीच आपसी मतभेद सुलझ सकते है या नहीं। इसी आधार पर खुला की माँग वैध मानी जाएगी। इसके लिए विस्तारित जाँच नहीं होनी चाहिए, बल्कि केंद्रित जाँच काफी है।”

क्या है मामला ?

तेलंगाना हाई कोर्ट ने यह फैसला एक मुस्लिम दंपति के मामले में सुनाया है। मामले में एक मुस्लिम बीवी ने अपने शौहर को खुला की माँग की, लेकिन शौहर ने उसकी माँग को ठुकरा दिया। इसके बाद बीवी ने फैमिली कोर्ट में केस दर्ज कराया। यहाँ कोर्ट ने बीवी के पक्ष में फैसला सुनाया।

इसके बाद गैर-सरकारी संगठन सदा-ए-हक शरई परिषद ने मुस्लिम व्यक्ति को तलाक प्रमाण-पत्र सौंप दिया। परिषद निकाह के बाद छिड़े गृह कलह के समाधान कराने का काम करता है। लेकिन व्यक्ति ने इस प्रमाण-पत्र के विरोध में तेलंगाना हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। अब तेलंगाना हाई कोर्ट ने मुस्लिम व्यक्ति को फटकार लगाई है और मुस्लिम महिला के पक्ष में फैसला सुनाया है।

कोर्ट ने इस मामले में कुरान की आयतों में ‘खुला’ का अध्ययन किया। साथ ही इस मामले में इतिहास की परतें भी खोली। जिसमें कहा गया, “कुरान के अध्याय-2 की आयत 228 और 229 में बीवी को अपने शौहर के साथ निकाह को रद्द करने का पूर्ण अधिकार दिया गया है। खुला की वैधता के लिए शौहर की सहमति कोई पूर्व शर्त नहीं है।”

साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर शौहर अपनी बीवी की खुला की माँग को स्वीकार नहीं करता है, तो इस्लाम में इस मामले पर कोई भी प्रक्रिया नहीं है। चाहे वह कुरान, सुन्नत या पैगंबर हो।

क्या है खुला?

खुला के तहत अगर बीवी अपने शौहर से अलग होती है तो उसे अपने शौहर से उसकी जायदाद लौटानी पड़ेगी। पर यह जरूरी है कि दोनों इसके लिए रजामंद हों। उल्लेखनीय है कि खुला की पहल केवल बीवी ही कर सकती है। कुरान और हदीस में इसका जिक्र है।

वहीं, भारत में मुस्लिमों के बीच मान्य पुस्तक फतवा-ए-आलमगीरी में कहा गया है कि जब निकाह के बाद शौहर-बीवी इस बात पर राज़ी हैं कि अब वे साथ नहीं रह सकते तो बीवी कुछ संपत्ति शौहर को वापस करके स्वयं को उसके बंधन से मुक्त कर सकती है। जायदाद में बीवी अपनी मेहर की रकम छोड़ सकती है या फिर कोई अन्य रकम/संपत्ति दे सकती है।

खुला को लेकर मुस्लिमों की आपत्ति

‘खुला’ को लेकर हनफी सहित कुछ तबके के उलेमाओं का कहना है कि इसके तहत मुस्लिम महिला तभी तलाक ले सकती है, जब उसका शौहर तैयार हो। अगर शौहर मना कर दे तो महिला के पास मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 के प्रावधानों के तहत अदालत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साल 2021 में ‘खुला’ के संबंध में कहा था कि इस प्रक्रिया में पति की स्वीकृति एक शर्त है। वहीं, अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि कुरान एक मुस्लिम बीवी को एक प्रक्रिया निर्धारित किए बिना उसकी निकाह को रद्द करने के लिए ‘खुला’ का अधिकार देता है।

मद्रास हाई कोर्ट ने भी ‘खुला’ पर सुनाया था फैसला

मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम महिलाओं के ‘खुला’ को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएँ ‘खुला’ के तहत अपने शौहर से तलाक लेने की अधिकारी हैं। हालाँकि, कोर्ट ने इसके लिए कुछ प्रावधान बताए हैं।

मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ‘खुला’ के तहत तलाक लेने के लिए मुस्लिम महिलाओं को फैमिली कोर्ट जाना होगा। किसी निजी शरीयत परिषद को इस संबंध में प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे प्रमाण-पत्र की कोई मान्यता नहीं है।

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