राजनीति हो या भू-राजनीति दोनों का एक नियम होता है। यहाँ कोई ना स्थाई दोस्त होता है, ना कोई स्थाई दुश्मन। अपने देश का हित ही भू-राजनीति का सबसे बड़ा सिद्धांत है। अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को देखिए वो खुलेआम इस बात का प्रदर्शन कर रहे हैं कि कैसे उनके लिए अपने देश का स्वार्थ ही सबसे बड़ा है। अब चाहे इसके लिए इस्लामी जिहादी आतंकवादियों या उनके समर्थकों को खुश ही करना पड़े।
मई 2025 में ट्रंप ने सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद हुसैन अल-शरा से मुलाकात की। इसी अल-शरा के सिर पर कुछ दिनों पहले तक अमेरिका ने $10 मिलियन (87.5 करोड़ रुपए) का इनाम रखा हुआ था। कहा जाता है कि अल-शरा ने 9/11 आतंकी हमलों का जश्न मनाया था। अमेरिका में हुए इस हमले में हज़ारों लोग मारे गए थे लेकिन अब ट्रंप इसका जश्न मनाने वाले की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। ट्रंप ने शरा की तारीफ करते हुए कहा कि वह एक आकर्षक और सख्त आदमी हैं जिनका अतीत काला रहा है। ट्रंप ने उन्हें फाइटर तक बता दिया।
2021 में जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी कराई तो उनकी खूब आलोचना की गई। अमेरिका से लेकर अन्य देशों के लोग भी उनके पीछे पड़ गए। हालाँकि, यह ट्रंप का 2020 का दोहा समझौता था जिसके चलते अमेरिका की वापसी हुई। वहीं, अफगानिस्तान को तालिबानी आतंकियों के हाथों में छोड़ दिया गया।
अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ने में 20 साल, 2 ट्रिलियन डॉलर और सैकड़ों सैनिकों की जान गंवाई। 2021 में उन्होंने तालिबान से समझौता करके वहाँ से सेना हटा ली और अरबों डॉलर के सैन्य हथियार और संसाधन उसी तालिबान को सौंप दिए जिससे वे 20 साल से लड़ रहे थे।
2️⃣AFGHANISTAN
Invading in late 2001 together with a NATO+ coalition, the US thought a ‘liberal interventionism at gunpoint’ approach would turn Afghanistan into a compliant client.
Instead, they spent 20 years and $2T to replace the Taliban… with the Taliban. pic.twitter.com/SljWokFhd8— Sputnik (@SputnikInt) July 4, 2025
सीरिया में एक पूर्व ISIS आतंकी से हाथ मिलाने और अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले करने के बाद, ट्रंप ने पाकिस्तान फौज से दोस्ती गाँठी है। वही पाकिस्तानी फौज, जो इस क्षेत्र में इस्लामी आतंक का सबसे बड़ा गिरोह है।
पाकिस्तान प्रायोजित पहलगाम इस्लामी आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तानी फौज को करारी शिकस्त दी। इसके सिर्फ एक महीने बाद पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर, व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ लंच करने पहुँच गए थे। हालाँकि, यह मुलाकात भारत-पाक संघर्ष के कुछ ही दिनों बाद हुई लेकिन इसका मुख्य एजेंडा भारत नहीं बल्कि ईरान-इजरायल संघर्ष था।
इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने हमेशा पाकिस्तान का इस्तेमाल अपने क्षेत्रीय हित साधने के लिए किया है। खुद पाकिस्तान के बड़े-बड़े नेता लाइव टीवी पर आकर यह कबूल चुके हैं। अमेरिका ने वर्षों तक अफगानिस्तान समेत इस क्षेत्र के कई हिस्सों में अपने रणनीतिक अभियानों के लिए पाकिस्तान को मोहरा बनाया है।
हाल ही में पाकिस्तानी फौजी के मुखिया मुनीर एक बार फिर अमेरिका गए। उन्होंने वहाँ अमेरिकी सेंट्रल कमांड (Centcom) के रिटायर हो रहे कमांडर के विदाई समारोह में हिस्सा लिया। ट्रंप को या तो खुलकर मुनीर का समर्थन है या अमेरिका उसे उकसा रहा है कि वो भारत के खिलाफ बयानबाजी करे। इसी से ‘चने के झाड़’ पर चढ़े मुनीर ने अमेरिकी धरती से भारत को परमाणु हमले की गीदड़भभकी तक दे डाली।
Pakistani Field Marshal Munir in US, meets Centcom military leadership, and attends Kurilla farewell.
PS: So far no public inputs on Trump meet
Picture released by Pakistani military https://t.co/W0E4QVmxVr pic.twitter.com/tcATWn5EnL— Sidhant Sibal (@sidhant) August 10, 2025
पाकिस्तान की विदेश और सुरक्षा नीति को नियंत्रित करने वाले और मदरसे में पढ़े जिहादी वर्दीधारी ने 10 अगस्त को फ्लोरिडा के टैम्पा शहर में एक निजी डिनर के दौरान एक उदाहरण दिया। उसने पाकिस्तान को ‘स्पॉइलर’ ताकत बताते हुए मर्सिडीज और डंप ट्रक की तुलना की। उसने कहा, “भारत एक चमकती हुई मर्सिडीज है जो हाईवे पर फरारी की तरह दौड़ रही है और हम बजरी से भरा डंप ट्रक हैं। अगर ट्रक कार से टकरा जाए, तो नुकसान किसको होगा?”
मुनीर ने उद्योगपति मुकेश अंबानी को धमकाने के लिए कुरान की आयतों का भी जिक्र किया। उसने कहा, “एक ट्वीट करवाया था, जिसमें सूरह अल-फील और मुकेश अंबानी की तस्वीर थी ताकि उन्हें दिखा सकें कि अगली बार हम क्या करेंगे।”
आसिम मुनीर की यह परमाणु धमकी बेहद अहम समय पर आई। पहली बात, यह धमकी अमेरिकी जमीन से दी गई। इसके अलावा, मुनीर ने ना सिर्फ पाकिस्तान के इस्लामी आतंकियों को खुश करने के लिए कुरान की आयतों का हवाला दिया बल्कि परमाणु हथियार की धमकी देकर भारत को ब्लैकमेल भी किया।
मुनीर ने कहा कि पाकिस्तान आधी दुनिया को अपने साथ तबाह कर देगा। भारत को यह धमकी ठीक उसी दिन दी गई जिस दिन 80 साल पहले अमेरिका ने जापान के नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था।
भारत ने इस धमकी पर कड़ा बयान जारी किया और दोहराया कि भारत को ऐसे ब्लैकमेल से कभी डराया नहीं जा सकता। अमेरिकी सरकार और मीडिया ने मुनीर की इस गीदड़भभकी पर चुप्पी साध रखी है। इससे अटकलें लग रही हैं कि यह धमकी सिर्फ मुनीर की भारत-विरोधी और हिंदू-विरोधी सोच नहीं है। यह भी संभव है कि यह अमेरिका के इशारे पर की गई एक सोची-समझी चाल हो।
परमाणु धमकी और मुकेश अंबानी को निशाना बनाने के अलावा मुनीर ने फिर से अपना पुराना बयान दोहराया कि ‘कश्मीर हमारे गले की नस है’। पहलगाम हमले से कुछ दिनों पहले भी मुनीर ने यही बयान दिया था। उसने कहा था, “कश्मीर भारत का आंतरिक मामला नहीं, बल्कि अधूरा अंतरराष्ट्रीय एजेंडा है। जैसे कायदे-आजम (मोहम्मद अली जिन्ना) ने कहा था कि कश्मीर पाकिस्तान की ‘गले की नस’ है।”
मुनीर ने ट्रंप को भारत-पाक संघर्ष खत्म कराने में उनके ‘काल्पनिक योगदान’ के लिए धन्यवाद दिया। हालाँकि, आसीम मुनीर की ट्रंप की चापलूसी बेकार नहीं गई। ट्रंप प्रशासन ने बूलचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और उसकी मजीद ब्रिगेड को ‘विदेशी आतंकी संगठन’ घोषित कर दिया। इससे पाकिस्तान आर्मी की झूठी कहानी को नया सहारा मिला कि अपनी आजादी के लिए लड़ रहे बलूच ‘आतंकवादी’ हैं।
इसके जरिए बलूचों की आजादी की लड़ाई को उन इस्लामी आतंकियों के बराबर बताने की कोशिश की गई जिन्हें पाकिस्तान आर्मी समर्थन देती है। इनमें लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और पहलगाम हमले के आरोपी लश्कर का नया गुट द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) जैसे आतंकी संगठन शामिल हैं। अमेरिका ने कुछ दिनों पहले ही TRF को ‘विदेशी आतंकी संगठन’ घोषित किया था।
पाक सरकार के शोषण और चीनी परियोजनाओं के खिलाफ लड़ रहे हैं बलूच विद्रोही
पाकिस्तानी सरकार के शोषण और अपनी जमीन पर चीन की परियोजनाओं के खिलाफ बलूच विद्रोही वर्षों से लड़ते रहे हैं। वर्षों से BLA ने पाकिस्तानी फौज, चीनी कर्मचारियों और चीन की परियोजनाओं पर हमले किए हैं। बलूच लोग लगातार पाकिस्तान और चीन को लेकर कहते हैं कि वे यहाँ के संसाधन लूट रहे हैं और स्थानीय लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ नया व्यापार समझौता घोषित किया। इसमें पाकिस्तान के कथित ‘विशाल तेल भंडार’ को मिलकर विकसित करने की योजना है। इस घोषणा के कुछ घंटे पहले ही ट्रंप ने भारतीय आयात पर 25% शुल्क और अतिरिक्त जुर्माना लगाया था। ट्रंप ने यहाँ तक दावा किया कि शायद एक दिन पाकिस्तान, भारत को तेल बेच सकता है।
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर ने लिखा, “हमने पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत हम दोनों मिलकर उनके विशाल तेल भंडार को विकसित करेंगे… कौन जाने, एक दिन वे भारत को तेल बेचें!”

पाकिस्तान के ज्यादातर तेल और गैस के बलूचिस्तान में हैं। इस वजह से यह कदम राजनीतिक चर्चा का कारण बना कि अमेरिका की यहाँ क्या भूमिका हो सकती है। बलूचिस्तान संसाधनों से भरपूर है लेकिन राजनीतिक रूप से अशांत इलाका है। पाकिस्तान और चीन पहले से ही यहाँ संसाधनों का दोहन कर रहे हैं।
अमेरिका की एक कंपनी ने पाकिस्तान के साथ एक क्रिप्टो डील साइन की है। इस कंपनी में ट्रंप के परिवार की 60% हिस्सेदारी है। इसके बाद ट्रंप की नजर बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर है। चीन ने भी यहाँ निवेश करने की कोशिश की थी लेकिन यह सफल नहीं हो पाई। बलूच आजादी के लिए लड़ने वाले लोग, चीनी इंजीनियरों और CPEC पर काम कर रहे अधिकारियों और पाकिस्तानी फौज पर लगातार हमले करते रहे हैं।
अमेरिका, पाकिस्तान में तेल खोजना चाहता है। वर्षों पहले पाकिस्तान ने यही तेल भंडार अमेरिका को ‘लाहौरी चूरन’ के नाम पर चिपका दिया था। लगातार खोज के बाद भी वहाँ तेल और गैस कुछ नहीं मिला।
दशकों से इस्लामी आतंकियों को बढ़ावा दे रही पाक आर्मी
1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद से ही पाकिस्तानी फौज आतंकियों को पालती रही है। पाक ने इनका इस्तेमाल भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ किया है। अमेरिका का भी इतिहास इन इस्लामिक जिहादी आतंकियों के समर्थन का ही रहा है। हालाँकि, ओसामा बिन लादेन के मामले में अमेरिका के साथी पाकिस्तान की पोल खुल गई थी।
लादेन खुद को आतंक की लड़ाई में अमेरिका का दोस्त बताने वाले पाकिस्तान की नाक के नीचे मिला था। 9/11 हमलों के मास्टरमाइंड को अमेरिका कई वर्षों तक ढूंढ रहा था और वो 2011 में एबटाबाद में पाकिस्तानी फौज की एक छावनी के पास मिला।
पाकिस्तानी फौज दशकों से अलग-अलग नामों से इस्लामी आतंकियों को फंड और ट्रेनिंग देती रही है। चाहे 1980 के दशक में कश्मीर के जिहादी समूहों को धन या लॉजिस्टिक की मदद देना हो, कश्मीरी पंडितों की हत्याएँ और पलायन कराना हो या डोडा नरसंहार जैसे अन्य हमले हों।
सेना के अफसर इन आतंकियों को पैसा और प्रशिक्षण देते हैं। साथ ही, अपने देश में उन्हें सुरक्षा भी देते हैं। पाकिस्तान की सिविल सरकार इन आतंकियों के हवाला से आए पैसों को छिपाने में मदद करती है। ये काम चैरिटी और धार्मिक संगठनों के नाम पर किया जाता रहा है। भारत और हिंदुओं से नफरत करने वाली पाकिस्तान फौज ने भारत से 4 बार युद्ध लड़ा लेकिन वे हर बार हारे। पाकिस्तान भी जानता है कि भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान की कोई औकात नहीं है।
पाकिस्तानी फौज, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे इस्लामी आतंकी संगठनों का समर्थन करती है। वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकियों जैसे सैयद सलाउद्दीन, मसूद अजहर, हाफिज सईद जैसे अनगिनत आतंकियों को पाकिस्तान में सुरक्षित पनाहगाह भी मुहैया कराते हैं। मई में जब भारत ने कुछ आतंकियों को मार गिराया, तो पाकिस्तानी फौजी उनके जनाजों में भी शामिल हुए। खुद पाकिस्तानी सेना के पीआर विंग का मौजूदा प्रमुख अहमद शरीफ चौधरी संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित एक आतंकी का बेटा है।
अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप आतंकियों और जिहादी आतंकवाद का इस्तेमाल करने वाले देशों के बारे में अपना रुख बदलते रहते हैं। उन्हें पाकिस्तान के ओसामा बिन लादेन वाले धोखे और अफगानिस्तान में डॉलर ऐंठने वाली चालें भी याद नहीं है। भारत कभी नहीं भूलेगा कि पाकिस्तान ने कितने निर्दोष भारतीयों का खून बहाया है।
2018 की बात है, ट्रंप ने X पर एक पोस्ट में कहा कि पाकिस्तान को अरबों की आर्थिक मदद देकर अमेरिका मूर्खता कर रहा था। उन्होंने लिखा, “अमेरिका ने मूर्खता की हद तक जाकर पाकिस्तान को पिछले 15 साल में 33 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद दी। बदले में हमें सिर्फ झूठ और धोखा मिला। वे हमारे नेताओं को मूर्ख समझते हैं। अफगानिस्तान में जिन आतंकियों को हम मारते हैं, वे उन्हें सुरक्षित पनाह देते हैं। अब और नहीं!”
The United States has foolishly given Pakistan more than 33 billion dollars in aid over the last 15 years, and they have given us nothing but lies & deceit, thinking of our leaders as fools. They give safe haven to the terrorists we hunt in Afghanistan, with little help. No more!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) January 1, 2018
इससे एक साल पहले ही ट्रंप ने पाकिस्तान का धन्यवाद दिया था और रिश्ते बेहतर करने को लेकर वो बहुत उत्साहित थे। पाकिस्तान उसके आतंकवाद और उसके धोखों पर ट्रंप का रुख उतना ही बदलता रहता है जितना कि उनका एप्सटीन फाइल्स जारी करने का वादा।
ट्रंप सरकार ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और मजीद ब्रिगेड को आतंकवादी संगठन तो घोषित किया लेकिन पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूच जनता पर किए जा रहे जुल्म पर कोई सवाल नहीं उठाया। ट्रंप ने ये नहीं पूछा कि ग्वादर इलाके में 1 लाख से ज्यादा लोगों के पास पीने का साफ पानी क्यों नहीं है। ना ही उन्होंने यह पूछा कि बलूच बच्चों को बलूची भाषा क्यों नहीं पढ़ने दी जाती और उन पर उर्दू थोपी दी जाती है। ट्रंप ने इस पर भी सवाल नहीं उठाया कि क्यों बलूचिस्तान का सुई गैस फील्ड पूरे पाकिस्तान की ऊर्जा जरूरतें पूरी करता है लेकिन खुद बलूचिस्तान में गैस की पहुंच सीमित है।
शायद, डोनाल्ड ट्रंप और आसिम मुनीर की बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने का लालच बलूच जनता पर हो रहे अन्याय से ज्यादा अहम है। BLA आजादी के लिए लड़ रही है लेकिन पाकिस्तान का दमनकारी शासन और अमेरिकी लालच इसके रास्ते में खड़े हैं।
वर्षों से पाकिस्तान ने PoK और अपने दूसरे इलाकों में जिहादी आतंकियों को पाला-पोसा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकी संगठनों को ताकत दी है। बलूच लोगों पर जुल्म किया है, जबरन गायब किया है और महरंग बलूच जैसे कई नेताओं को गिरफ्तार किया है। अब पाकिस्तानी सेना को बलूच जनता का शोषण और दमन करने का एक नया मौका मिल गया है। अमेरिका को शायद एक नई जगह मिल गई है जहाँ वह अपने कभी ना खत्म होने वाले युद्ध चला सके जिनसे उसकी हथियार बनाने वाली इंडस्ट्री को फायदा होता है।
आसिम मुनीर असल में एक फौजी वर्दी में मसूद अजहर या हाफिज सईद जैसा ही है। कोई हैरानी नहीं कि ट्रंप भारत से नाराज हैं क्योंकि उन्हें भारत जैसे बराबरी के साझेदार के बजाय पाकिस्तान जैसे झगड़ों में उलझे हुए गुलाम मुल्क पसंद हैं, जिन्हें हड्डी फेंककर खुश करना आसान है। एक आजाद, मजबूत और गर्व से भरे भारत के साथ इज्जत से रिश्ता निभाना ट्रंप को यकीनन मुश्किल ही लगेगा।
(मूल रूप से यह खबर अंग्रेजी में श्रद्धा पांडेय द्वारा लिखी गई है, जिसे आप यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं।)