कॉन्ग्रेस के बड़े नेता और राज्यसभा सांसद पी. चिदंबरम ने एक ट्वीट करके तमिलनाडु में रहने वाले ‘बाहरियों’ खासकर बिहार के लोगों को नीचा दिखाने का काम किया है। उन्होंने तमिलनाडु में रहने वाले बिहारी प्रवासी मजदूरों को ‘बाहरी’ बताकर उनके वोटर बनने के हक पर सवाल उठाए। चिदंबरम ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग तमिलनाडु में 6.5 लाख प्रवासियों को वोटर लिस्ट में जोड़ रहा है, जो ‘गैरकानूनी और खतरनाक’ है।
चिदंबरम ने बिहार में 65 लाख वोटरों के नाम कटने का खतरा होने की बात कही। उनके ट्वीट का लहजा ऐसा है, जैसे बिहारी मजदूर तमिलनाडु में बसने या वोट देने के हकदार ही न हो।
चिदंबरम ने बिहारियों को ‘प्रवासी मजदूर’ कहकर और उनके ‘स्थाई घर’ को बिहार बताकर उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाई। ये बातें सुनने में तो चुनावी नियमों की चिंता जैसी लगती हैं, लेकिन असल में ये बिहारियों को बाहरी और खतरे के रूप में दिखाने की कोशिश थी। वैसे भी, यह कोई नई बात नहीं है। इंडी गठबंधन पहले भी बिहारियों के खिलाफ नफरत भड़काकर वोट की राजनीति करता रहा है। चिदंबरम का ये बयान उसी पुरानी चाल का हिस्सा है, जिसे कॉन्ग्रेस और उसके सहयोगी चुपचाप बढ़ावा देते रहे हैं।
चिदंबरम ने की बिहारियों को नीचा दिखाने की कोशिश
चिदंबरम ने रविवार (3 अगस्त 2025) को X पर ट्वीट किया कि चुनाव आयोग तमिलनाडु में 6.5 लाख प्रवासियों को वोटर लिस्ट में जोड़ रहा है, जो ‘खतरनाक और गैरकानूनी’ है। उन्होंने सवाल उठाया कि बिहारी मजदूर तमिलनाडु में वोटर क्यों बन रहे हैं, जब उनका ‘स्थायी घर’ बिहार में है। उन्होंने छठ पूजा का जिक्र करते हुए कहा कि ये मजदूर बिहार लौटते हैं, तो फिर तमिलनाडु में वोटर बनने का क्या हक? चिदंबरम ने इसे चुनाव आयोग की साजिश बताकर तमिलनाडु के ‘चुनावी चरित्र’ को बदलने का आरोप लगाया।
The SIR exercise is getting curiouser and curiouser
While 65 lakh voters are in danger of being disenfranchised in Bihar, reports of "adding" 6.5 lakh persons as voters in Tamil Nadu is alarming and patently illegal
Calling them "permanently migrated" is an insult to the…— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 3, 2025
ये बातें सुनने में तो तकनीकी लगती हैं, लेकिन इनका असली मकसद बिहारियों को तमिलनाडु में बाहरी और अनचाहा दिखाना था। चिदंबरम ने बिहारियों को ‘प्रवासी मजदूर’ कहकर उनकी पहचान को सिर्फ मजदूरी तक सीमित कर दिया, जैसे वे तमिलनाडु में बसने या वोट देने के हकदार ही नहीं हैं। यह न सिर्फ बिहारियों का अपमान है, बल्कि भारत के संविधान का भी उल्लंघन है, जो हर नागरिक को देश में कहीं भी रहने, काम करने और वोट देने का हक देता है। चिदंबरम का ये बयान बिहारियों को दोयम दर्जे का नागरिक बताने की कोशिश है।
बिहारी क्यों नहीं, जब राहुल को हक है?
चिदंबरम का बयान और कॉन्ग्रेस की नीति तब और हास्यास्पद हो जाती है, जब हम राहुल गाँधी की बात करते हैं। राहुल गाँधी दिल्ली के स्थाई निवासी हैं, लेकिन वे केरल के वायनाड और उत्तर प्रदेश के अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ चुके हैं। अगर राहुल गाँधी दिल्ली में रहकर दूसरे राज्यों में वोटर बन सकते हैं और चुनाव लड़ सकते हैं, तो बिहारी मजदूर तमिलनाडु में वोटर क्यों नहीं बन सकते? क्या नियम सिर्फ बिहारियों के लिए अलग हैं?
भारत का कानून साफ कहता है कि कोई भी नागरिक, जो किसी जगह पर सामान्य रूप से रहता है, वहाँ वोटर बन सकता है। इसके लिए फॉर्म 6 भरना होता है, जिसमें निवास स्थान बदलने की अर्जी दी जाती है। और ये जरूरी नहीं कि आपके पास अपना मकान हो। किराए के घर में रहने वाला भी वोटर बन सकता है।
चिदंबरम और कॉन्ग्रेस ये बात अच्छे से जानते हैं, लेकिन फिर भी बिहारियों को ‘स्थायी रूप से बसे हुए’ कहकर उनका मजाक उड़ाते हैं। ये लोग भारी-भरकम अंग्रेजी शब्दों से बिहारियों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बिहारी इतने भोले नहीं हैं।
इंडी गठबंधन का बिहार विरोधी रवैया
चिदंबरम का बयान कोई नई बात नहीं है। इंडी गठबंधन पहले भी बिहारियों को निशाना बनाकर राजनीति करता रहा है। 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) ने बिहारी प्रवासियों को बीजेपी का समर्थक बताकर बंगाली अस्मिता के खिलाफ खड़ा किया। ममता बनर्जी ने हिंदी भाषी प्रवासियों खासकर बिहारियों को ‘बाहरी’ कहकर बंगाल की जनता को भड़काया। इस दौरान बिहारियों के योगदान को नजरअंदाज किया गया, जो कोलकाता से लेकर छोटे शहरों तक मेहनत करके बंगाल की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं।
इसी तरह महाराष्ट्र में इंडी गठबंधन का हिस्सा शिवसेना ‘मराठी माणूस’ के नाम पर बिहारियों को निशाना बनाती रही है। 2000 के दशक में शिवसेना कार्यकर्ताओं ने मुंबई और अन्य शहरों में बिहारी मजदूरों पर हमले किए, उन्हें नौकरियाँ छीनने वाला बताया। मारवाड़ी और गुजरातियों को भी निशाना बनाया गया, लेकिन बिहारी सबसे आसान शिकार थे। कॉन्ग्रेस ने इन हमलों पर चुप्पी साधे रखी। यह दिखाता है कि कॉन्ग्रेस और उसके सहयोगी बिहारियों के खिलाफ नफरत को चुपचाप बढ़ावा देते हैं।
आरजेडी की चुप्पी यानी राहुल गाँधी की गुलामी?
बिहार की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) चिदंबरम के बयान पर चुप्पी साधे हुए है। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की पार्टी RJD जो सामाजिक न्याय की बात करती है, वो इस मुद्दे पर कुछ बोलने को तैयार नहीं।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ने पी चिदंबरम की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “चिदंबरम का बयान बिहारियों के लिए अपमानजनक है। वे हमें दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं। कॉन्ग्रेस को माफी माँगनी चाहिए और आरजेडी की चुप्पी बिहार के गौरव के साथ धोखा है।” उन्होंने कहा कि बिहारी मजदूर देश भर में मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें बार-बार अपमान सहना पड़ता है।
जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन ने भी कॉन्ग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “बिहार के लोगों ने देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपने खून पसीने से सींचा है। अगर वो तमिलनाडु में लंबे समय से हैं, और वहाँ की वोटिंग प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो इससे चिदंबरम या किसी को तकलीफ क्यों हो?”
उन्होंने कहा कि चिदंबरम और कॉन्ग्रेस का मकसद चुनाव को बिहारी वर्सेज बाहरी बनाने की है। जो कि पूरी तरह से गलत है। ऐसा कॉन्ग्रेस पार्टी लगातार कर रही है। उन्होंने कहा कि SIR पर कॉन्ग्रेस और सहयोगी दल ऊल-जलूल बयानबाजी करके सिर्फ राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं, जबकि ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक में है और सुप्रीम कोर्ट ने खुद SIR को हरी झंडी दी है।
राजीव रंजन ने कहा, “चिदंबरम का बयान कॉन्ग्रेस की दोहरी नीति को दिखाता है। ये लोग गरीबों की बात करते हैं, लेकिन बिहारी मजदूरों को राजनीतिक बोझ मानते हैं। आरजेडी की चुप्पी बताती है कि वे बिहार के लोगों से ज्यादा राहुल गाँधी के वफादार हैं।”
आरजेडी की चुप्पी इसलिए और दुखद है, क्योंकि ये वही पार्टी है जो बिहार में दलितों, पिछड़ों और गरीबों के हक की बात करती है। लेकिन जब उनके अपने लोग, बिहारी मजदूर, अपमानित हो रहे हैं, तो आरजेडी राहुल गाँधी के सामने सिर झुकाए खड़ी है। ये बिहार के लोगों के साथ गद्दारी है।
हालाँकि बिहार कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता असित नाथ ने चिदंबरम के बयान का ये कहकर बचाव किया कि चुनाव आयोग आरएसएस के इशारे पर ऐसे काम कर रहा है, जिसमें गैर-कानूनी तरीके से बाहरी लोगों को वोटर लिस्ट में जोड़ दिया जाता है। कुछ खास वर्ग के लोगों के नाम हटाए जाते हैं, जबकि कुछ खास लोग हर चुनाव में राज्य बदलते हैं।
असित नाथ ने कहा कि बिहार के मजदूर धान की रोपाई-कटाई या खेती के कामों से बाहर जाते हैं, लेकिन बाद में लौट आते हैं। किसके पास इतनी फुरसत है कि वो वहाँ का वोटर बने? असित नाथ ने SIR की गड़बड़ियाँ भी गिनाई। उन्होंने ये भी कहा कि खुद उनकी पत्नी का नाम SIR की लिस्ट में नहीं है, जबकि लोकसभा चुनाव में उन्होंने वोट डाला था। अगर आखिरी लिस्ट में पत्नी का नाम नहीं आता, तो वो कोर्ट का रुख करेंगे। हालाँकि उन्होंने चिदंबरम के बिहार के मजदूरों को लेकर दिए बयान पर सीधे-सीधे कोई विरोध नहीं किया, भले ही वो बिहार कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता हैं।
बिहारी मजदूर है देश की रीढ़, फिर भी निशाना
बिहारी प्रवासी मजदूर देश के हर कोने में मेहनत करते हैं। 2018 में गुजरात में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म की अफवाह के बाद बिहारी मजदूरों पर हमले हुए। करीब 50,000 मजदूरों को गुजरात छोड़कर भागना पड़ा। 2023 में तमिलनाडु में भी ऐसी अफवाहें फैलीं कि बिहारी मजदूरों पर हमले हो रहे हैं। हालाँकि डीएमके सरकार ने इन अफवाहों को खारिज किया और मजदूरों को सुरक्षा का भरोसा दिया, लेकिन चिदंबरम का ताजा बयान फिर से बिहारियों को निशाना बनाने का काम कर रहा है।
तमिलनाडु में करीब 10 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं, जिनमें ज्यादातर बिहारी हैं। ये लोग टेक्सटाइल उद्योग, निर्माण कार्य और छोटे-मोटे व्यवसायों में योगदान देते हैं। बिहारी मजदूर सिर्फ मजदूर नहीं हैं; कई उद्यमी, शिक्षक और कुशल पेशेवर भी हैं। फिर भी चिदंबरम जैसे नेता उन्हें सिर्फ ‘मजदूर’ कहकर उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं। यह न सिर्फ अपमानजनक है, बल्कि देश की एकता के लिए भी खतरनाक है।
चिदंबरम का तर्क कानूनी और नैतिक रूप से भी गलत
चिदंबरम का ये कहना कि बिहारी मजदूर तमिलनाडु में वोटर नहीं बन सकते क्योंकि उनका ‘स्थायी घर’ बिहार में है, कानूनी रूप से गलत है। भारत का संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 कहता है कि कोई भी भारतीय नागरिक, जो किसी जगह पर सामान्य रूप से रहता है, वहाँ वोटर बन सकता है। अगर कोई बिहारी मजदूर सालों से तमिलनाडु में रह रहा है, तो वह वहाँ वोटर बनने का हकदार है। चिदंबरम का इसे ‘गैरकानूनी’ कहना कानून की गलत व्याख्या है।
छठ पूजा का जिक्र करके चिदंबरम ने बिहारियों को अस्थाई निवासी दिखाने की कोशिश की। लेकिन छठ पूजा के लिए बिहार लौटना कोई सबूत नहीं कि वे तमिलनाडु में स्थायी रूप से नहीं रहते। क्या तमिलनाडु कोई अलग देश है, जहाँ बाहरी लोग बस नहीं सकते? यह तर्क जम्मू-कश्मीर के पुराने आर्टिकल 370 जैसा लगता है, जो बाहरी लोगों को वहाँ बसने से रोकता था।
खतरनाक मिसाल कायम कर रहे पी चिदंबरम
चिदंबरम का बयान ऐसे समय में आया है, जब बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ चल रही हैं। वोटर लिस्ट की सफाई को लेकर विपक्ष पहले ही चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहा है। लेकिन चिदंबरम ने इसे तमिलनाडु बनाम बिहार का मुद्दा बनाकर 2026 के तमिलनाडु चुनावों के लिए क्षेत्रीय भावनाएँ भड़काने की कोशिश की। यह रणनीति न सिर्फ बिहारियों को तमिलनाडु में अलग-थलग कर सकती है, बल्कि राज्यों के बीच तनाव भी बढ़ा सकती है।
कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी की अगुवाई वाला इंडी गठबंधन बार-बार ऐसी राजनीति करता है, जो देश को बाँटने का काम करती है। एक तरफ वे ‘एकता में विविधता’ की बात करते हैं, दूसरी तरफ चिदंबरम जैसे नेता बिहारियों को बाहरी बताकर नफरत फैलाते हैं। आरजेडी की चुप्पी इस बात का सबूत है कि वह बिहार के हितों से ज्यादा गठबंधन की राजनीति को तरजीह दे रही है।
जहर फैलाने वालों को जवाबदेह बनाने की जरूरत
पी. चिदंबरम का बयान सिर्फ चुनाव आयोग की आलोचना नहीं, बल्कि बिहारी मजदूरों को अपमानित करने की कोशिश है। उन्हें तमिलनाडु में बाहरी और खतरे के रूप में दिखाकर वह क्षेत्रीय नफरत को हवा दे रहे हैं। कॉन्ग्रेस का ये दोहरा चरित्र, जहाँ राहुल गाँधी खुद दूसरे राज्यों से चुनाव लड़ते हैं, लेकिन बिहारियों को वोट देने का हक नहीं दिया जाता.. बेहद शर्मनाक है। इंडी गठबंधन का बिहारियों के खिलाफ नफरत भड़काने का इतिहास और आरजेडी की चुप्पी इस बात को और गंभीर बनाती है।
बिहारी मजदूर देश की रीढ़ हैं। वे करदाता हैं, वोटर हैं और भारत के विकास में हिस्सेदार हैं। उन्हें सम्मान मिलना चाहिए, न कि अपमान। चिदंबरम और कॉन्ग्रेस को अपने बयान के लिए माफी माँगनी चाहिए। आरजेडी को भी फैसला करना होगा कि वह बिहार के लोगों के साथ है या राहुल गाँधी की गुलामी करेगी। भारत की एकता को बनाए रखने के लिए ऐसे नेताओं को जवाबदेह बनाना जरूरी है।