देशभर की वक्फ संपत्तियों के डिजिटल रिकॉर्ड को व्यवस्थित करने के लिए केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा बनाए गए UMEED पोर्टल पर तय समयसीमा में कुल वक्फ संपत्तियों में से करीब एक चौथाई ही दर्ज हो सकी हैं। 6 महीने की तय समयसीमा 6 दिसंबर 2025 को पूरी होने के बाद इस पोर्टल को फिलहाल बंद कर दिया गया है।
जब देश में वक्फ बोर्ड के दावों को लेकर आए दिन कहीं ना कहीं बवाल होता रहते हैं ऐसे में ये आँकड़े चौंकाने वाले हैं। देश में करीब आठ लाख वक्फ संपत्तियाँ हैं लेकिन आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, केवल 2.16 लाख संपत्तियों (करीब 27%) का ही पंजीकरण UMEED पोर्टल पर हो पाया। इसके अलावा कुल 5.17 लाख आवेदनों में से 10,872 को खारिज भी किया गया है। यानी इनके कागजातों या प्रक्रिया में कुछ ना कुछ गड़बड़ियाँ रही होंगी।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने क्या बताया?
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के मुताबिक, मंत्रालय और राज्यों की ओर से अंतिम दिनों में लगातार समीक्षा बैठकों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और सचिव स्तर तक के हस्तक्षेप के चलते अंतिम समय में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में तेजी आई।
अंतिम आँकड़ों के अनुसार, कुल 5,17,040 संपत्तियों की एंट्री पोर्टल पर शुरू की गई, जिनमें से 2,16,905 को जाँच के बाद मंजूरी मिली। वहीं 2,13,941 संपत्तियाँ अपलोड तो कर दी गईं लेकिन वे अंतिम अनुमोदन के लिए पाइपलाइन में ही रह गईं। जाँच के दौरान 10,869 संपत्तियों को खारिज भी किया गया।
अधिकारियों का कहना है कि अंतिम दिनों में बढ़ी रजिस्ट्रेशन की इस तेज गति ने दिखाया कि राज्यों ने समयसीमा नजदीक आते ही प्रक्रिया को गंभीरता से आगे बढ़ाया था। अब जिन संपत्तियों का पंजीकरण पूरा नहीं हो पाया है अथवा जिनमें विवाद हैं, उनके मामलों पर वक्फ बोर्ड और ट्रिब्यूनल आगे काम करेंगे।
कौन राज्य आगे, कौन फिसड्डी?
अलग-अलग राज्यों के वक्फ बोर्ड की बात करें तो कर्नाटक इस प्रक्रिया में सबसे आगे रहा। राज्य ने अपनी कुल संपत्तियों में से 52,917 संपत्तियों को दर्ज कर लिया जो उसके कुल आँकड़े का करीब 81% है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर ने 25,046 संपत्तियों का पंजीकरण किया, जो 77 प्रतिशत है। पंजाब ने 24,969 संपत्तियाँ दर्ज कराई, जो उसकी कुल संपत्तियों का करीब 90% है। वहीं, गुजरात में 24,133 संपत्तियों का पंजीकरण हुआ, जो करीब 61% है।
इसके उलट पश्चिम बंगाल इस मामले में सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाले राज्य के रूप में सामने आया। यहाँ 80,480 वक्फ संपत्तियों में से सिर्फ 716 का ही पंजीकरण हो पाया, जो 1 प्रतिशत से भी कम (करीब 0.89%) है। रिपोर्टों के अनुसार, राज्य सरकार ने वक्फ संशोधन अधिनियम को लागू करने में लंबा समय लिया और पोर्टल पर जानकारी अपलोड करने के निर्देश भी समयसीमा पूरी होने से ठीक पहले जारी किए।
उत्तर प्रदेश जहाँ देश की सबसे अधिक वक्फ संपत्तियाँ हैं, वहाँ भी स्थिति धीमी रही। यूपी शिया वक्फ बोर्ड की 789 संपत्तियों (लगभग 5 प्रतिशत) और सुन्नी वक्फ बोर्ड की 12,982 संपत्तियों (लगभग 11 प्रतिशत) का ही पंजीकरण हो पाया। बिहार और यूपी दो ऐसे राज्य हैं जहाँ शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बने हुए हैं। महाराष्ट्र में कुल 36,700 संपत्तियों में से 17,971 का पंजीकरण हुआ जो लगभग 48% है।
UPDATE ON UMEED CENTRAL PORTAL | Deadline Completed
The UMEED Central Portal for management of Waqf Properties in India, launched by Hon’ble Minister of Minority Affairs Shri Kiren Rijiju on 6 June 2025, officially closed for uploads on 6 December 2025 (Saturday), completing its… pic.twitter.com/orjVPaCRCr— Ministry of Minority Affairs (@MOMAIndia) December 7, 2025
कैसे काम करता है UMEED पोर्टल?
किरेन रिजिजू ने 6 जून को दिल्ली से UMEED पोर्टल की शुरुआत की थी। सरकार के मुताबिक, यह पोर्टल वक्फ संपत्तियों की वास्तविक समय पर अपलोडिंग, सत्यापन और निगरानी के लिए एक सेंट्रल डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में काम करेगा। सरकार को उम्मीद थी कि इससे देश भर में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता आएगी।
जानकारी के मुताबिक, इस पोर्टल में 3-स्तरों वाली सत्यापन प्रणाली ‘निर्माता-जाँचकर्ता-स्वीकृतकर्ता’ है। इसके तहत एक मुतवल्ली संपत्ति के विवरण को ‘निर्माता’ के रूप में दर्ज करता है जिसके बाद वक्फ बोर्ड के अधिकारियों द्वारा इसका सत्यापन और निर्धारित सरकारी प्राधिकरण द्वारा रिकॉर्ड की जाँच के बाद स्वीकृति दी जाती है।
पोर्टल की दिक्कत या कागजों का कमी?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मुतवल्लियों को संपत्ति पोर्टल पर दर्ज कराने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें UMEED पोर्टल क्रैश होने जैसी कई समस्याएँ आ रही हैं। मुतवल्लियों का यह भी कहना था कि सदियों पुरानी संपत्तियों के कागजात ढूँढने में भी समस्याएँ हैं। इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में माप की अलग-अलग ईकाइयाँ भी समस्या पैदा कर रही हैं।
उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद अली जैदी ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा है कि पोर्टल साथ नहीं दे रहा है। उनका कहना है कि इस पूरे डेटा को अपलोड होने में करीब 6 महीने का समय और लगेगा। वहीं, एक अन्य अधिकारी ने कहा कि हर दिन केवल 2-3 संपत्तियाँ ही अपलोड हो पा रही हैं।
हालाँकि, पोर्टल के क्रैश होने के दावे हाल के ही कुछ दिनों में सामने आने शुरू हुए थे जब इसकी डेडलाइन नजदीक आ रही थी। अतीत में कई बार इस तरह के दावे अलग-अलग जगहों से सामने आए हैं कि वक्फ बोर्ड ने जबरन संपत्तियों पर कब्जा किया है या अपना दावा ठोका है। ऐसे में इतनी कम संख्या में संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन किया जाना भी इसे लेकर सवाल उठा रहा है। सुगबुगाहट है कि दरअसल बड़ी संख्या में कागज ना होने के चलते कई प्रॉपर्टीज को पोर्टल पर रजिस्टर नहीं किया गया है।
क्या सरकार करेगी बची संपत्तियों पर कब्जा?
मौजूदा स्थिति की बात करें तो UMEED पोर्टल पर नए रजिस्ट्रेशन बंद हैं लेकिन जिन लोगों ने प्रकिया शुरू कर दी है उन्हें 3 महीने तक कोई जुर्माना देने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा अभी वक्फ बोर्ड्स के पास वक्फ ट्रिब्यूनल में जाने का विकल्प भी खुला हुआ है और वहाँ से पोर्टल पर नई संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन की तारीख भी बढ़ सकती है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वक्फ बोर्ड के अधिकारियों ने कहा कि वे अपने राज्यों के वक्फ न्यायाधिकरणों में आवेदन जमा करना शुरू कर देंगे जिसमें पोर्टल पर दस्तावेज अपलोड करने और संपत्तियों के पंजीकरण के लिए समय सीमा बढ़ाने की माँग की जाएगी। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा, “जिन राज्यों में पंजीकरण कम हैं, वहाँ के ट्रिब्यूनल में इस प्रक्रिया के लिए समय सीमा बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में आवेदन डाले जाएँगे।” सुप्रीम कोर्ट में इसका समय बढ़ाने की माँग के साथ एक याचिका डाली गई थी लेकिन कोर्ट ने इस मामले को ट्रिब्यूनल पर ही छोड़ दिया था।
ट्रिब्यूनल से भी जिन संपत्तियों को राहत नहीं मिलेगी उन्हें लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील शारिक अब्बासी बताते हैं कि जो संपत्तियाँ अपलोड नहीं हो पाएँगी, उनके लिए ट्रिब्यूनल जाना होगा। उन्होंने कहा कि ट्रिब्यूनल से भी अगर फैसला खिलाफ आता है तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रास्ते खुले हैं। हालाँकि, इसके बाद भी अगर राहत नहीं मिलती है तो संपत्तियाँ सरकारी हस्तक्षेप के दायरे में आ सकती हैं।
