अमेरिका और भारत के रिश्ते इन दिनों कुछ ख़ास अच्छे नहीं हैं। वजह है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया। उन्होंने लगातार भारत के विरुद्ध वाकयुद्ध का ऐलान कर रखा है। भारत के खिलाफ उन्होंने टैरिफ का ऐलान भी किया है। हालाँकि, इन बीच एक ऐसा नाम सामने आया है जिसे वाइट हाउस में भारत विरोधी विचारों को हवा देने का जिम्मेदार माना गया है। यह नाम है स्टीफन मिलर। मिलर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सहयोगी हैं, वाइट हाउस में ‘डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ’ हैं।
अगर सीधे-सीधे कहें तो ट्रंप को दुनिया के अलग-अलग देशों के खिलाफ भड़काने के प्रमुख जरूर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना सबसे अच्छा दोस्त बताने वाले ट्रंप आजकल उखड़े हुए हैं तो इसकी एक बड़ी वजह मिलर भी हैं।
मिलर ने भारत पर लगाए आरोप
मिलर ने भारत पर यूक्रेन और रूस युद्ध को फंड करने का आरोप लगाया है। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा, “ट्रंप ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदकर इस युद्ध को फंडिंग करना स्वीकार्य नहीं है।” मिलर का कहना है कि रूसी तेल खरीदने में भारत मूल रूप से चीन के साथ जुड़ा हुआ है जो यह एक आश्चर्यजनक बात है।
अब कैसे मिलर जैसे पश्चिमी देशों के लोग ये अनुमान लगा लेते हैं कि भारत का तेल खरीदा का छोटा हिस्सा तो फंडिंग कर रहा है लेकिन यूरोप गैस खरीदे तो सब बढ़िया है। इन लोगों की असल दिक्कत भारत की ऊर्जा जरूरतों के पूरा होने से है।
भारत को बात-बात पर तेल खरीदने का ज्ञान देने वाले पश्चिमी देशों की नैतिकता के मापदंड कैसे हैं वो इस रिपोर्ट से समझिए। अब इन देशों का मानना है कि भारत युद्ध की फंडिंग कर रहा है लेकिन दो दिन पहले की ही एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोप का रूस से गैस आयात जुलाई में 37% (पिछले महीने के मुकाबले) बढ़ा गया है।
कौन हैं स्टीफन मिलर?
39 वर्षीय मिलर ट्रंप के सबसे प्रभावशाली सलाहकारों में शामिल हैं। मिलर ने 2016 और 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। अमेरिका से दूसरे देशों के अवैध लोगों को चुन-चुनकर जिस नीति के तहत निकाला जा रहा है, माना जाता है कि उसके कर्ता-धर्ता भी मिलर ही हैं।
मिलर सबसे लंब समय से ट्रंप के सलाहकार रहे लोगों में शामिल हैं और उनके भाषण भी लिखते रहे हैं। मिलर की ताकत का अंदाजा लगाना हो तो NPR की इस रिपोर्ट को देख लीजिए। यह रिपोर्ट बताती है कि मिलर अन्य लोगों को तो छोड़िए अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस की बातों को भी दरकिनार कर देते हैं।
यहूदी माता-पिता की संतान मिलर बचपन से ही कुख्यात रहे हैं। ‘द गार्जियन’ की एक रिपोर्ट में उनके बचपन से नस्लवादी होने का ज़िक्र किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि स्कूली दिनों में मिलर का स्कूल के सफाई कर्मचारियों के प्रति घृणित रवैये का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल में मिलर का हिस्पैनिक मूल के साथी छात्रों के प्रति तिरस्कार भरा रवैया था और एक लेख में उन्होंने अपने स्कूल को लेकर लिखा था कि ‘यहाँ ओसामा बिन लादेन का बहुत स्वागत होता’। ड्यूक विश्वविद्यालय में कॉलेज के दिनों में मिलर श्वेत राष्ट्रवादी विचारकों के साथ जुड़ गए।
ग्रेजुऐशन के बाद मिलर ने वाशिंगटन जाकर कॉन्ग्रेस के लिए काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने ट्रंप के पहले अटॉर्नी जनरल जेफ सेशंस के लिए काम किया था। 2015 में ट्रंप द्वारा अपना राष्ट्रपति अभियान शुरू करने के बाद मिलर ने सेशंस के सीनेट कार्यालय को छोड़ दिया और ट्रंप के काम करने लगे। ट्रंप के बैनन की सिफारिश पर उन्हें भाषण लिखने के काम में लगा दिया गया।
मिलर की एक जीवनी भी लिखी गई है। जब कोई किसी की जीवनी लिखता है तो उसके व्यक्तित्व के हिसाब से, कर्मों से हिसाब से पुस्तक का अच्छा नाम खोजने की कोशिश करता है लेकिन मिलर की जीवनी का नाम है- हेट मॉन्गर यानी नफरत फैलाने वाला। इससे ज्यादा इस पर कुछ लिखे जाने की शायद जरूरत नहीं है।
राष्ट्रपति के सलाहकारों के कान भरने पर जब अमेरिका ने भुगता
मिलर ऐसे
कोई पहले सलाहकार भी नहीं है जो किसी राष्ट्रपति के कान भरकर उन्हें भड़काने में लगे हों। अमेरिकी इतिहास में कई ऐसे चर्चित सलाहकार रहे हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे हेनरी किसिंजर जैसे लोगों को आज भी याद किया जाता है।
किसिंजर ने वियतनाम युद्ध को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी और भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी को लेकर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया था। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के सलाहकार और उप-रक्षा मंत्री रहे पॉल वोल्फोविट्ज़ को 2003 के इराक युद्ध का सबसे बड़ा हिमायती माना जाता है।
कहा जाता है कि 9/11 के हमले के बाद कैंप डेविड में सबसे पहले वोल्फोविट्ज़ ने ही युद्ध के विचार को उठाया था। 2001 से 2005 बुश के कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहीं कोंडोलीज़ा राइस जैसे सलाहकारों को अफगानिस्तान युद्ध में अमेरिका की भूमिका के लिए जिम्मेदार माना जाता है।