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ट्रंप के सलाहकार नवारो ने रूस-यूक्रेन युद्ध को बताया ‘मोदी का युद्ध’

अमेरिका आजकल भारत को नसीहत दे रहा है, उसकी बुराई कर रहा है और रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहा है। ये ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों का रोज का काम बन गया है और भारतीयों के लिए मीम मटेरियल। मगर अब ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने दावा किया कि यूक्रेन-रूस युद्ध किसी तरह ‘मोदी का युद्ध’ है, सिर्फ इसलिए क्योंकि भारत रूस से तेल खरीदता है।

ब्लूमबर्ग को दिए इंटरव्यू में व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया कि अमेरिका और यूरोप को यूक्रेन को रूस के हमले के खिलाफ फंडिंग करनी पड़ रही है।

नवारो ने गुस्से में कहा, “यूक्रेन हमसे और यूरोप से कहता है कि हमें और पैसे दो (युद्ध के लिए)। भारत जो कर रहा है, उसकी वजह से अमेरिका में सब हार रहे हैं। ग्राहक और कारोबारी हार रहे हैं; मजदूर हार रहे हैं क्योंकि भारत के ऊँचे टैरिफ की वजह से नौकरियाँ, कमाई और ज्यादा तनख्वाह का नुकसान हो रहा है। टैक्स देने वाले हार रहे हैं क्योंकि हमें मोदी के युद्ध को फंड करना पड़ रहा है।”

नवारो ने आगे कहा, “शांति का रास्ता कम से कम कुछ हद तक नई दिल्ली से होकर गुजरता है।” व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार ने भारत को ‘घमंडी’ करार दिया क्योंकि वो अपनी ऊर्जा जरूरतों को प्राथमिकता देता है और सलाह दी कि उसे ‘लोकतंत्रों का साथ देना चाहिए।’

नवारो ने कहा, “भारतीय लोग इस बारे में बहुत घमंडी हैं। वो कहते हैं हमारे टैरिफ ऊँचे नहीं हैं। ये हमारा हक है। हम जिससे चाहें तेल खरीद सकते हैं। भारत तुम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो। ठीक है? तो वैसे ही बर्ताव भी करो। लोकतंत्रों का साथ दो।”

नवारो ने भारत पर चीन के साथ रिश्ते सुधारने के लिए भी हमला बोला, मॉस्को और बीजिंग के साथ भारत के बढ़ते रिश्तों पर गुस्सा जाहिर किया, जिन्हें उन्होंने ‘तानाशाह’ बताया।

नवारो ने कहा, “तुम तानाशाहों के साथ जा रहे हो। चीन, तुम दशकों से उनके साथ चुपके-चुपके जंग लड़ रहे हो। उसने अक्साई चिन और तुम्हारी जमीन पर कब्जा किया। ये तुम्हारे दोस्त नहीं हैं, दोस्तों। ठीक है? और रूस.. अरे, चलो न।”

नवारो के बयान तब आए जब डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय सामान पर 50 फीसदी टैरिफ लागू हुआ, जो बुधवार (27 अगस्त 2025) से शुरू हो गया। 50 फीसदी टैरिफ में से 25 फीसदी इसलिए लगाया गया क्योंकि भारत रूस से तेल और सैन्य उपकरण खरीद रहा है, जिसे विदेश मंत्रालय ने ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की बात दोहराई।

नवारो ने कितनी आसानी से रूस-यूक्रेन युद्ध को ‘मोदी का युद्ध’ कह दिया, जैसे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों को लड़ने के लिए कहा हो ताकि भारत उससे पैसे कमा सके। अगर ये रूस और यूक्रेन के अलावा किसी का युद्ध है, तो वो अमेरिका का है। रूस-यूक्रेन युद्ध से किसी ने ज्यादा फायदा नहीं उठाया जितना अमेरिका ने।

भारत पर ‘रूसी युद्ध मशीन’ को बढ़ावा देने का आरोप लगाने से लेकर अब बिना सोचे-समझे रूस-यूक्रेन युद्ध को ‘मोदी का युद्ध’ कहने तक, अमेरिका ने अपने कामों पर गौर करना छोड़ दिया। जब नवारो भारत पर हमला बोल रहे हैं, तब 16 अगस्त को अलास्का में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मुलाकात में पता चला कि पिछले कुछ महीनों में अमेरिका-रूस का द्विपक्षीय व्यापार 20 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है, जिससे ट्रंप के उन दावों की पोल खुलती है कि अमेरिका मॉस्को पर युद्ध खत्म करने का दबाव डाल रहा है।

खास बात ये है कि 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिकी तेल कंपनियों ने रिकॉर्ड मुनाफा कमाया है। लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) निर्यात, हथियार बिक्री और युद्ध से जुड़े कई मौकों से अमेरिका इस युद्ध का सबसे बड़ा फायदा उठाने वाला है।

अमेरिका ने यूरोप को अपना सस्ता LNG घरेलू कीमत से चार गुना ज्यादा कीमत पर बेचा, जिसे ‘युद्ध की वजह से आपूर्ति में रुकावट’ बताया गया और यूरोप की वैकल्पिक जरूरतों का फायदा उठाया। 2022 में अमेरिकी तेल और गैस कंपनियों जैसे शेवरॉन और एक्सॉनमोबिल ने युद्ध से पहले 2021 की तुलना में 125 फीसदी ज्यादा मुनाफा कमाया।

हाल ही में एक्सॉन मोबिल रूस के सखालिन-1 तेल और गैस प्रोजेक्ट में वापसी की योजना बना रहा है। अलास्का में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके अमेरिकी समकक्ष के बीच मुलाकात में रूस को अपने लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) प्रोजेक्ट्स, जैसे आर्कटिक LNG 2 के लिए अमेरिकी उपकरण खरीदने की इजाजत देने पर बात हुई, भले ही ये अभी प्रतिबंधों के तहत है। रूस को ‘सजा’ देने और पुतिन की ‘युद्ध मशीन’ को रोकने की बात तो दूर की है।

ऊर्जा के अलावा अमेरिका ने रूस-यूक्रेन युद्ध से अपनी रक्षा निर्यात के जरिए भी फायदा उठाया। अमेरिका ने यूक्रेन को 19 अरब डॉलर से ज्यादा के सैन्य उपकरण दिए, जिससे लॉकहीड मार्टिन और रेथियॉन जैसी अमेरिकी रक्षा कंपनियों के शेयरों की कीमत बढ़ गई।

ये भी नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका ने बेशर्मी से दावा किया कि यूक्रेन को दी जाने वाली रक्षा आपूर्ति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही है। पहले अमेरिका 95 अरब डॉलर का एक अतिरिक्त रक्षा बिल लाया, जिसमें यूक्रेन के लिए 60.7 अरब डॉलर रखे गए और वादा किया कि इसके 64 फीसदी फंड अमेरिकी रक्षा उद्योग को ‘पुनर्जीवित’ करेंगे।

अब डोनाल्ड ट्रंप यूरोपीय देशों के जरिए यूक्रेन को हथियार बेच रहे हैं, वो भी 10 फीसदी ज्यादा कीमत पर, ताकि अमेरिका का खजाना भरे, जबकि रूस और यूक्रेन के लोग अपनी जान गँवा रहे हैं। ट्रंप ने यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने की अमेरिकी भागीदारी की कीमत भी तय कर दी है।

जब अमेरिका यूक्रेन के लिए यूरोप को 10 फीसदी ज्यादा कीमत पर हथियार बेचता है, तो ये ठीक है। लेकिन जब भारत अपनी जरूरतों के लिए रूसी तेल खरीदता है और अपने पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स यूरोप और अमेरिका को बेचता है, तो भारत रूसी युद्ध मशीन को बढ़ावा दे रहा है और ये अचानक मोदी का युद्ध बन जाता है।

अमेरिका ने रूस-यूक्रेन युद्ध से मुनाफा कमाया और अब शांति की दलाली करके भी मुनाफा कमाने की कोशिश कर रहा है। अगर रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की शांति वार्ता में युद्धविराम, क्षेत्रीय वापसी या स्थायी शांति की गारंटी से ज्यादा अमेरिका को रूस और यूक्रेन से लाभकारी व्यापार सौदे मिल रहे हैं, तो साफ है कि अमेरिका को शांति नहीं, सिर्फ मुनाफा चाहिए।

रूस-यूक्रेन युद्ध से मुनाफा कमाने के अलावा अमेरिका ने मॉस्को के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते भी जारी रखे हैं। गैर-लौह धातु, उर्वरक, अकार्बनिक रसायन, परमाणु रिएक्टर और मशीनरी, तैयार पशु चारा, लोहा और इस्पात और तिलहन आदि में अमेरिका का रूस से आयात लगातार बना हुआ है और कुछ मामलों में बढ़ा भी है। ये सब तब हो रहा है जब पश्चिम ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं और उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने का दावा करता है।

यूरोप और अमेरिका को भारत के रूसी तेल खरीदने से दिक्कत है, लेकिन रूसी कच्चे तेल से बने पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स खरीदने में उन्हें कोई परेशानी नहीं है। बात सीधी है, अगर पसंद नहीं तो मत खरीदो। लेकिन अमेरिका खरीदता है, यूरोप खरीदता है। अगर पश्चिम को रूसी तेल से बने पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स खरीदने में खुद से नफरत नहीं है, तो भारत को उसी के लिए विलेन नहीं बनाना चाहिए।

अगर भारत नहीं होता, तो वैश्विक ऊर्जा की कीमतें आसमान छूतीं, जिससे संकट पैदा होता, लेकिन भारत रूसी युद्ध मशीन को बढ़ावा दे रहा है।

अमेरिका रूस के साथ व्यापार कर रहा है। यूक्रेन को हथियार बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है। रूस को बाजार से बाहर करके यूरोप को अपने प्रोडक्ट्स बेच रहा है। लेकिन भारत रूस-यूक्रेन युद्ध से मुनाफा कमा रहा है, उसका जोर इसी झूठ को जोर-शोर से फैलाने पर है, ताकि वो खुद का चेहरा बचा सके और भारत को विलेन साबित कर सके।

मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी में श्रद्धा पाण्डेय ने लिखी है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें



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