भारतीय फिल्ममेकर सत्यजीत रे का बांग्लादेश में स्थित घर गिरा दिया गया है। मैमनसिंह शहर में बने सत्यजीत रे के पैतृक घर को न गिराने की गुजारिश भारत सरकार की ओर से भी की गई थी। भारत की ओर से कहा गया था कि ये एक सांस्कृतिक धरोहर है। इसकी मरम्मत और संरक्षण का बीड़ा भी भारत सरकार ने उठाने की बात कही थी। इसके बावजूद बांग्लादेश की युनुस सरकार नहीं मानी और ऐतिहासिकता की परवाह किए बिना इसे जमींदोज कर दिया।
सत्यजीत का ये घर असल में उनकी तीन पीढ़ियों से जुड़ा हुआ था। इस घर को सत्यजीत रे के दादा और कवि सुकुमार रे के पिता प्रसिद्ध बाल साहित्यकार उपेंद्र किशोर रे का पैतृक घर है। जर्जर होने के 10 साल पहले तक इस घर को पहले मैमनसिंह शिशु अकादमी के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन बीते कुछ वर्षों से यह वीरान पड़ी थी। बांग्लादेशी अधिकारियों ने इमारत को जर्जर कहते हुए इसे नशेड़ियों का अ्डडा बताया था।
सिनेमा की रीढ़ रहे सत्यजीत
सत्यजीत रे विश्व सिनेमा के बड़े फिल्मकारों में से एक रहे हैं। उनकी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को वैश्विक पहचान दिलाई। वह फिल्म डायरेक्टर होने के साथ-साथ लेखक, संगीतकार और चित्रकार भी थे। उनके दादा उपेंद्र किशोर रे ने लगभग 100 साल पहले ये घर बनवाया था। जो वर्तमान में एक ऐतिहासिक धरोहर था। 1947 में बँटवारे के दौरान यह संपत्ति वर्तमान बांग्लादेश (पहले पूर्वी पाकिस्तान) के अधिकार क्षेत्र में चली गई थी।
200 year old Heritage home of Satyajit Roy has been demolished in Bangladesh. Beyond border, they hate everything Hindu & remotely Indian. Earlier Rabindranath Tagore's house got vandalised. Same pattern throughout. End of day they can never be Bengalispic.twitter.com/dnn6DqxXcy
— Sudhanidhi Bandyopadhyay (@SudhanidhiB) July 15, 2025
भारत सरकार ने इस इमारत को बचाने की पेशकश भी की थी, लेकिन बांग्लादेशी प्रशासन ने इसे नजरअंदाज कर दिया।
रबींद्रनाथ टैगोर के घर पर भी हुए हमले
संस्कृति के विनाश में महज सत्यजीत रे का ही घर नहीं तोड़ा गया बल्कि इस कड़ी में नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर का भी नाम शामिल है। 8 जून 2025 को रबींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर रबींद्र कचहरी बाड़ी में 50-60 लोगों की भीड़ ने घुसकर तोड़फोड़ की और संग्रहालय, सभागार और संरक्षक कार्यालय को भी नुकसान पहुँचाया था। घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश पैदा किया।
The attack on Gurudev Rabindranath Tagore Ji’s ancestral home in Shahjadpur is a direct assault on cultural memory and civilisational continuity. Silence from Bangladesh’s interim government raises serious questions. Such actions strike at the roots of shared heritage and must be… pic.twitter.com/EXuOFJouwm
— Temjen Imna Along (@AlongImna) June 12, 2025
अपनी सफाई में क्या बोले यूनुस
सत्यजीत रे के घर को गिराए जाने के बाद भारत सरकार में इसे अत्यंत खेदजनक बताया और बांग्लादेश सरकार से पुनर्विचार की अपील भी की। इसके बाद मोहम्मद यूनुस सरकार का कहना है कि अब उस जगह पर नई इमारत बनाई जाएगी ताकि शिशु अकादमी की गतिविधियाँ दोबारा शुरू की जा सकें। पर असल में ये हरकत बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की असंवेदनशीलता और गैर-जिम्मेदाराना हरकत को दिखलाता है।
रबींद्रनाथ के घर पर तोड़फोड़ की घटना के बाद भी भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी और इसे “सांस्कृतिक स्मृति और सभ्यतागत निरंतरता पर सीधा हमला” बताया था। इसके बाद खुद की साख बचाने के दबाव में यूनुस सरकार ने जाँच और गिरफ्तारी की बात कही।
रवींद्रनाथ टैगोर और सत्यजीत रे दोनों ही बंगाली साहित्य, कला और विचारधारा को दुनिया के सामने लाने में और मजबूती से खड़ा करने में बेहद अहम भूमिका निभाई है। रबींद्रनाथ ने बांग्लादेश के साथ भारत का राष्ट्रगान भी लिखा। उनकी रचनाएँ बंगाली संस्कृति की आत्मा को साफतौर पर दिखलाती हैं।
इन दोनों के घरों के साथ हुई घटनाओं में एक समानता जरूर है और वह है- सरकार की निष्क्रियता और इस्लामीकरण करने वाले कट्टरपंथियों को बढ़ावा देने वाली चुप्पी। मोहम्मद यूनुस खुद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं। इसके बावजूद एक दूसरे नोबेल विजेता रबींद्रनाथ टैगोर की निशानी, उनके घर, जिससे न केवल भारत बल्कि बांग्लादेश के भी संस्कृति के बारे में दुनिया को पता चलता है, उसे बचाने में असफल रहे।
सत्यजीत रे के मामले में भी उनसे अपेक्षा थी कि वे सांस्कृतिक सहिष्णुता और विरासत संरक्षण को प्राथमिकता देंगे। लेकिन उनकी सरकार की नीतियाँ और प्रतिक्रियाएँ इस उम्मीद के विपरीत ही रही हैं। यह विडंबना ही है कि एक व्यक्ति, जिसने गरीबी हटाने और सामाजिक न्याय की बात की, उसकी सरकार सांस्कृतिक न्याय और ऐतिहासिक स्मृति की रक्षा में असफल रही।
अपने देश के संस्थापक के साथ भी किया अन्याय
ऐतिहासिकता को दरकिनार करने के साथ-साथ युनुस सरकार अपनी जड़ों को भी भुलाने के लिए हर विनाशकारी कदम उठाने को तैयार है। अंतरिम सरकार ने बांग्लादेश के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता के दर्जे से भी वंचित कर दिया। साथ ही उनके स्वतंत्रता सेनानी की मान्यता को रद्द किया ।
मुजीबुर रहमान ने 1971 के मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया, लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने और एक स्वतंत्र राष्ट्र की नींव रखी। देश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने के उनके संघर्ष और बलिदान की अवहेलना करके असल में युनुस सरकार ने उनके अस्तित्व के साथ खिलवाड़ किया, उन्हें इतिहास से मिटाने की कोशिश की और उनके नाम को भी मुक्ति संग्राम की परिभाषा से हटा दिया।
नए अध्यादेशों के तहत उन्हें “मुक्ति संग्राम का सहयोगी” मात्र घोषित किया गया है, जिससे उनकी ऐतिहासिक भूमिका को गौण कर दिया गया है। इससे पहले यूनुस सरकार ने उनकी तस्वीर को करेंसी नोटों से हटाने और उनसे जुड़े राष्ट्रीय दिवसों को रद्द करने का भी निर्णय लिया था।
असल में युनुस का यह निर्णय शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को निशाना बनाने के लिए था। मुजीबुर रहमान की विरासत को मिटाने की कोशिशें बांग्लादेश को उसके इतिहास से काटने की साजिश जैसी लगती हैं, जो अंततः देश की पहचान और आत्मसम्मान को कमजोर करती हैं।
यह सब उस समय हो रहा है जब बांग्लादेश को एक स्थिर और समावेशी नेतृत्व की आवश्यकता है। यूनुस, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सामाजिक न्याय के प्रतीक माने जाते हैं, उनकी सरकार का यह रवैया सांस्कृतिक और ऐतिहासिक न्याय के खिलाफ है।
बांग्लादेश की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझना होगा कि किसी भी शहर, राज्य या देश की सांस्कृतिक विरासत केवल ईंट-पत्थर की इमारतें नहीं होतीं, बल्कि वे समाज की आत्मा होती हैं। सत्यजीत रे और रबींद्रनाथ टैगोर जैसे व्यक्तित्वों की स्मृति को मिटाना, दरअसल उस आत्मा को ही नष्ट करना है।
मोहम्मद यूनुस सरकार उन लोगों का जखीरा है जिन्हें संस्कृति, विरासत, ऐतिहासिकता जैसे किसी भी शब्द से कोई वास्ता ही नहीं है। यह वे का इस्लामिक कट्टरपंथी हैं जिन्हें बस हर तरह से विनाश करना ही आता है।
जिनके घर गिराए गए या तोड़े गए या जो सेनानी रहे उन्होंने तो समाज के भले के लिए और समाज को आगे बढ़ने का ही काम किया पर यूनुस की सरकार में शामिल इस्लामिक कट्टरपंथी सिर्फ देश में अस्थिरता, अशांति और तनाव बढ़ाने के लिए ही जाने जा रहे हैं। भविष्य में मोहम्मद यूनुस सरकार इतिहास में एक ऐसी सत्ता के रूप में दर्ज होगी जिसने अपनी ही सांस्कृतिक जड़ों को काटने का काम किया।