अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ युद्ध छेड़ा हुआ है और उनके निशाने पर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि सभी BRICS देश हैं। अमेरिकी टैरिफ से अलग-अलग देशों के व्यापार पर जो असर होना है, वो तो होगा है लेकिन ऐसा लग रहा है कि ट्रंप ने दुनिया भर के कई दुश्मन देशों को एकजुट कर दिया है। ट्रंप के इस टैरिफ वॉर से भारत-चीन भी फिर से नजदीक आते दिख रहे हैं।

ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर टैरिफ लगाया और तमाम तरह की धमकियाँ भी दी हैं। भारत को दी गईं इन धमकियों के चलते चीन ट्रंप पर बरस पड़ा है। यह असर सिर्फ चीन के राजनीतिक हलकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि चीन का सरकारी मीडिया भी भारत को लेकर अपने सुर बदल रहा है।

ग्लोबल टाइम्स, चीनी सरकार का वो अखबार जो भारत के खिलाफ नैरेटिव फैलाने के लिए कुख्यात था, वो अब भारत के साथ दोस्ती और विकास की बातें करने लगा है। ट्रंप के टैरिफ के बीच चीन अब भारत के साथ अपनी दोस्ती पक्की करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है।

6 अगस्त 2025 को ग्लोबल टाइम्स ने एक ओपिनियन (विचार) प्रकाशित किया था। इसकी हेडलाइन थी “भारत ‘विदेशी निवेश का कब्रिस्तान’ के लेबल को क्यों नहीं हटा पा रहा?” इस लेख में तर्क दिया गया कि पश्चिमी मीडिया द्वारा फैलाया गया चीन और भारत के बीच ‘कौन किसकी जगह लेगा’ का नैरेटिव असल में बेबुनियाद है।

इस लेख में कहा गया है, “भारत और चीन के बीच सहयोग का लंबा इतिहास रहा है और उनकी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के पूरक हैं। चीन भारत के साथ सहयोग को बहुत महत्व देता है और भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदारों में से शामिल है। आज के जटिल और लगातार बदलते वैश्विक परिदृश्य में, यह चर्चा करने के बजाय कि कौन किसकी जगह लेता है, एक-दूसरे की ताकत का इस्तेमाल करना, व्यावहारिक सहयोग पर काम करना और आपसी लाभ, सभी के लिए फायदे वाले परिणामों और साझा विकास को बढ़ावा देना कहीं अधिक समझदारी है।”

इस लेख में बात पर भी जोर दिया गया है कि भारत-चीन के संबंध खराब दौर से गुजरकर अब एक महत्वपूर्ण जगह पर पहुँच गए हैं। साथ ही, कहा गया है कि भारत-चीन के संबंध दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध दोनों के हित में रहते हैं।

भारत स्थित चीन के दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने भी X पर यह लेख शेयर किया है। उन्होंने हाथी और ड्रेगन की दोस्ती दिखाने वाली तस्वीर शेयर कर लिखा, “आज के समय में दोनों देशों के लिए सहयोग और सहमति को बढ़ाना और एशिया व विश्व स्तर पर शांति को बढ़ावा देना समझदारी की बात होगी।”

इसके बाद 7 अगस्त को ग्लोबल टाइम्स ने एक और ओपिनियन (विचार) प्रकाशित किया। इसे ब्राज़ील के एक पत्रकार ने लिखा था और इसमें बताया गया कि कैसे अमेरिका के आर्थिक दबाव के खिलाफ ग्लोबल साउथ को एकजुट होने की आवश्यकता है। इसमें लिखा गया कि ग्लोबल साउथ में अपने रणनीतिक साझेदारों को अलग थलग करने की जो अमेरिका की कोशिश है, उसका असर उल्टा ही होता है। इससे उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ और करीब आ जाती हैं और अमेरिका पर उनकी निर्भरता कम हो जाती है। ग्लोबल टाइम्स के 7 अगस्त के ही एक लेख में बताया गया कि भारत और ब्राज़ील के साथ मिलकर अमेरिका के टैरिफ का विरोध कर रहे हैं।

भारत को कभी इस बात का भ्रम नहीं था कि अमेरिका भारत के साथ बहुत गहरी दोस्ती निभाएगा। भारत को पता है कि अमेरिका का उससे दोस्ती रखने का बड़ा मकसद चीन के साथ बैलेंस बनाने की नीति ही है। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि अमेरिका का एजेंडा अगर कोई देश ना माने तो उन्हें वो बिल्कुल भूल जाता है फिर चाहे दोस्ती कैसी भी हो।

अगर भारत अमेरिका का बराबरी का साझेदार न होता, तो वह खुशी-खुशी अमेरिका के आगे झुक जाता और ट्रंप की शर्तों पर ट्रेड डील साइन कर देता। लेकिन हुआ इसका उल्टा, भारत ने अपने किसानों की रोजी-रोटी पर चोट करने वाली माँग यानी अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए बाजार खोलने से साफ मना कर दिया। भारत ने रूस से तेल खरीदना भी बंद नहीं किया और अमेरिका व यूरोप की दोहरी नीति वाली सोच पर खुलकर वार भी किया है। इससे इतना तो साफ है कि अगर कोई देश भारत को जूनियर पार्टनर समझता है तो वह भूल ही कर रहा है। क्योंकि भारत पाकिस्तान नहीं है।

अमेरिका ने अगर यह सोचा था कि भारत, अमेरिका का भोंपू बनकर काम करेगा तो उसे BRICS और क्वाड में भारत की मौजूदगी से साफ पता चल जाना चाहिए था कि भारत किसी और देश की झोली में नहीं है और ना ही किसी एक महाशक्ति के सर्वशक्तिमान होने पर उसका भरोसा है।

ग्लोबल टाइम्स में 7 अगस्त को ‘RIC बहुध्रुवीय व्यवस्था को आगे बढ़ाने का एक रणनीतिक अवसर’ हेडलाइन से प्रकाशित एक अन्य लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय सहयोग को फिर से शुरू करने के लिए इसे सिर्फ प्रतीक नहीं रहने देना होगा। इसमें कहा गया, “यह तीनों के लिए बाहरी प्रतिबंधों के दबाव के खिलाफ एकजुट होने, मुक्त विदेश नीति दिखाने और एक बहुध्रुवीय व्यवस्था को आगे बढ़ाने का एक रणनीतिक अवसर है।”

SCO शिखर सम्मेलन के लिए पीएम मोदी के चीन जाने की भी चर्चा है। इसी को लेकर गुरुवार को ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित संपादकीय लेख में कहा गया है, “अगर भारत पीएम मोदी की इस यात्रा को मौका मानकर अपनी चीन नीति में जल्दी बदलाव करे और बेवजह की रुकावटें हटाए, तो दोनों देशों के रिश्तों में आगे बढ़ने की बहुत ज्यादा गुंजाइश है।”

लेख में कहा गया कि पश्चिमी मीडिया जिस तरह मोदी जी की चीन यात्रा को अमेरिका के खिलाफ ‘संतुलन बनाने’ की कोशिश बता रहा है, वैसा नहीं है। इसमें लिखा गया, “आज दुनिया के ज्यादातर देशों की इच्छा है कि मुक्त व्यापार होता रहे और एकतरफा टैरिफ का विरोध हो।” ग्लोबल टाइम्स ने यह भी कहा कि भारत और चीन दोनों पुरानी सभ्यताएं हैं और तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाएं भी हैं। ये दोनों देश ग्लोबल साउथ के अहम सदस्य हैं और अपने विकास के एक अहम मोड़ पर हैं।

अखबार ने मोदी जी का स्वागत करते हुए एक हिंदू कहावत ‘अपने भाई की नाव पार लगाओ तो तुम्हारी नाव किनारे तक पहुँच जाएगी’ का जिक्र भी किया है। लेख में यह भी कहा गया कि क्षेत्रीय ताकतों के रूप में भारत और चीन के बीच आतंकवाद-रोधी कदम, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे कई क्षेत्रों में साझा हित हैं।

ग्लोबल टाइम्स ने संपादकीय में चीन का प्रतिनिधित्व करने के लिए आक्रामक ड्रैगन के बजाय पांडा का इस्तेमाल किया

दरअसल, भारत और चीन के बीच कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर दोनों पड़ोसी मिलकर काम कर सकते हैं, खासकर आतंकवाद से लड़ाई में लेकिन दिक्कत यह है कि चीन, पाकिस्तान को सैन्य और नीतिगत मदद देता है। पाकिस्तान में असल में सेना ही हुकूमत चलाती है और वह भारत के खिलाफ सीमा पार जिहादी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। चीन का ऐसे देश का समर्थन करना भारत को कभी भी मंजूर नहीं होगा।

अगर भारत-चीन रिश्ते सच में सुधरने हैं तो बीजिंग को इस मसले पर गंभीर कदम उठाने होंगे। भारत यह भी नहीं भूला है कि पिछले मई में जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था, तब चीन ने पाकिस्तान को बचाने का वादा किया था और रक्षा समर्थन भी दिया था।

पाकिस्तान का अमेरिका की तरफ झुकाव और ट्रंप की चापलूसी चीन के लिए आंख खोलने वाली बात होनी चाहिए। उसका यह ‘हर मौसम का दोस्त’ असल में सिर्फ डॉलर का दोस्त है।

जैसा कहा जाता है, वक्त की सबसे अच्छी बात यह है कि वह बदलता है। आज जब चीन खुद अमेरिका के टैरिफ युद्ध का सामना कर रहा है तो उसे भारत में एक अहम साझेदार और पश्चिमी दबाव के खिलाफ संतुलन का साधन दिखने लगा है। भले ही चीन की अपनी क्षेत्र में दबदबा बनाने और विस्तारवाद की महत्वाकांक्षाएं रही हैं लेकिन अब वह खुलकर भारत की उस सोच का समर्थन कर रहा है जिसमें दुनिया एक ही ताकत के बजाय कई ताकतों में बँटी हो। वहीं, अमेरिका एकतरफा दुनिया बनाना चाहता है जहाँ वह ‘बड़ा भाई’ बना रह सके।

भारत ने BRICS और SCO जैसे मंचों पर हमेशा अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता और संतुलित वैश्विक व्यवस्था की सोच रखी है। अब जब चीन भी इस सोच की तारीफ कर रहा है और ग्लोबल टाइम्स के लेखों में इसका असर दिख रहा है तो लगने लगा है कि बीजिंग भारत के साथ मिलकर काम करने को तैयार है ताकि अमेरिका को टक्कर दी जा सके।

ग्लोबल टाइम्स अब भले ही मीठी बातें कर रहा हो लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि पहले यही अखबार भारत के खिलाफ लगातार जहर उगलता रहा है।

इसी साल मई में जब पहलगाम में पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के आतंक और सैन्य ढाँचों के खिलाफ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया था, तो ग्लोबल टाइम्स और शिन्हुआ जैसे बाकी चीनी प्रोपेगेंडा मीडिया ने झूठी खबर फैलाई कि पाकिस्तान के चीनी JF-17 लड़ाकू विमान ने पंजाब के आदमपुर में भारत के S-400 एयर डिफेंस सिस्टम को नष्ट कर दिया। बाद में भारतीय सेना ने सबूत देकर इन दावों को पूरी तरह झूठा साबित कर दिया।

इतना ही नहीं, ग्लोबल टाइम्स ने पाकिस्तानी फोर्स के इस दावे को भी फैलाया कि उन्होंने साइबर अटैक करके भारत के 70% पावर ग्रिड को ठप कर दिया है। इस झूठ को भी चीनी सरकारी मीडिया जैसे शिन्हुआ ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था।

चीन की वेबसाइट China.com ने भी पाकिस्तान के उस झूठे दावे को छापा था जिसमें कहा गया था कि उसने भारत के ब्रह्मोस मिसाइल भंडारण केंद्र को नष्ट कर दिया। इसी तरह Sina News ने पाकिस्तान के इस झूठ को फैलाया कि भारत ने नीलम-झेलम हाइड्रोपावर स्टेशन को निशाना बनाया। पाकिस्तान ने तो यहाँ तक फर्जी दावा किया था कि उसने एक भारतीय महिला पायलट को पकड़ लिया है और चीनी मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने इसे भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया।

सबसे शर्मनाक बात यह रही कि Xinhua जैसे चीनी मीडिया ने पहलगाम में हुए इस्लामी आतंकी हमले को ‘शूटिंग की घटना’ बताया था। जबकि साफ था यह हमला पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के एक गुट द रेजिस्टेंस फ्रंट के आतंकियों ने अंजाम दिया था। इस हमले में दो दर्जन से ज्यादा मासूम लोगों को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वे मुस्लिम नहीं थे और चीनी मीडिया ने इसे धार्मिक नफरत से प्रेरित नरसंहार के बजाय एक मामूली गोलीबारी की घटना दिखाने की कोशिश की।

मई में जब पाकिस्तान के चीनी हथियार भारत के सामने नाकाम हो गए, तो चीन ने पश्चिमी मीडिया में प्रोपेगेंडा चलाकर अपनी इज्जत बचाने और भारतीय सेना को कमजोर दिखाने की कोशिश की। हकीकत यह है कि भारत ने हमले के दौरान पाकिस्तान के चीनी एयर डिफेंस सिस्टम को कुछ समय के लिए बेकार कर दिया था और पाकिस्तान को गहरे अंदर तक चोट पहुंचाई थी।

दरअसल, यह कोई नई बात नहीं है। चीनी सरकारी मीडिया लंबे समय से भारत की विदेश नीति को निशाना बनाता रहा है और भारत के अंदरूनी मामलों पर भी नकारात्मक और चालाकी भरे नैरेटिव फैलाता रहा है। OpIndia पहले भी चीन और कॉन्ग्रेस राहुल गाँधी के रिश्तों पर रिपोर्ट कर चुका है। हालाँकि, यह प्यार एक-तरफा नहीं है। ग्लोबल टाइम्स और बाकी चीनी मीडिया कई बार राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस के बयानों का इस्तेमाल भारत को घेरने के लिए करते रहे हैं।

चीन खुद अपने विस्तारवादी रवैये और पड़ोसियों के साथ सीमा विवादों पर आक्रामक व्यवहार के लिए बदनाम है। फिर भी, अब उसका सरकारी मीडिया रणनीतिक स्वतंत्रता और संप्रभुता की बातें करने लगा है। लेकिन जब अगस्त 2024 में भारत ने अपना दूसरा परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN), INS अरिघाट को नौसेना में शामिल किया, तो ग्लोबल टाइम्स ने एक द्वेष से भरा लेख छापा कि ‘भारत की दूसरी परमाणु मिसाइल पनडुब्बी का जिम्मेदारी से इस्तेमाल होना चाहिए: विशेषज्ञ’ यानी भारत को ‘जिम्मेदार इस्तेमाल’ का नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश की थी।

इतिहास देखें तो भारत-चीन रिश्ते हमेशा तनाव से भरे रहे हैं, सीमा विवाद, 2017 का डोकलाम संकट, 2020 की गलवान झड़प, आर्थिक मुकाबला, रणनीतिक अविश्वास और अलग-अलग वैश्विक गुटों में खड़ा होना, ये सब रिश्तों को मुशकिल बनाते रहे। मगर अब हवाएँ कुछ बदलती दिख रही हैं।

रिश्ते सुधारने के हाल के प्रयास उम्मीद जगाते हैं लेकिन भारत अभी भी चीन के इरादों पर पूरी तरह भरोसा नहीं करता है। मोदी सरकार, चीन की भारत-चीन दोस्ती की बातों को सावधानी और आशा के साथ देख रही है लेकिन साथ-साथ पूरी तरह सतर्क भी है।

दिलचस्प यह है कि ट्रंप के टैरिफ युद्ध ने अनजाने में वो कर दिया जो लगभग असंभव लगता है यानि चीन और भारत को एक मुद्दे पर साथ खड़ा कर दिया है। चीन के सख्त कंट्रोल वाले सरकारी मीडिया का यह बदला हुआ लहजा अहम है। टकराव से मेल-मिलाप की ओर यह बदलाव बीजिंग की एक नई दिशा को दिखा रहा है। लगता है कि पीएम मोदी की चीन यात्रा से पहले चीन, भारत के साथ विचारधारा और रणनीति की खाई पाटने की कोशिश कर रहा है।

यह जितना अजीब सुनने में लगता है, उतना ही सच भी है। चीन का टकराव से दोस्ती की ओर आना दिखाता है कि ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ का सपना, असल में ‘BRICS फर्स्ट’ की हकीकत में बदलता जा रहा है।

मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी में श्रद्धा पाण्डेय ने लिखी है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें



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